UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद.

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2010, 11, 16, 17]
या
जयशंकर प्रसाद को साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 16, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में माघ शुक्ल दशमी संवत् 1945 वि० (सन् 1889 ई०) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। ये तम्बाकू के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने से इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया। ये बड़े मिलनसार, हँसमुख तथा सरल स्वभाव के थे। इनका बचपन बहुत सुख से बीता, किन्तु उदार प्रकृति तथा दानशीलता के कारण ये ऋणी हो गये। अपनी पैतृक सम्पत्ति का कुछ भाग बेचकर इन्होंने ऋण से छुटकारा पाया। अपने जीवन में इन्होंने कभी अपने व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती गयी और चिन्ताओं ने इन्हें घेर लिया।

बाल्यावस्था से ही इन्हें काव्य के प्रति अनुराग था, जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। ये बड़े स्वाभिमानी थे, अपनी कहानी अथवा कविता के लिए पुरस्कारस्वरूप एक पैसा भी नहीं लेते थे। यद्यपि इनका जीवन बड़ा नपा-तुला और संयमशील था, किन्तु दु:खों के निरन्तर आघातों से ये न बच सके और संवत् 1994 वि० ( सन् 1937 ई०) में अल्पावस्था में ही क्षय रोग से ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गये। साहित्यिक सेवाएँ-श्री जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ-साथ युग प्रवर्तक नाटककार, कथाकार तथा उपन्यासकार भी थे। विशुद्ध मानवतावादी दृष्टिकोण वाले प्रसाद जी ने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनन्दवाद की प्रतिष्ठा की है। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य के प्रमुख विषय रहे हैं, किन्तु मानवीय संवेदना उनकी कविता का प्राण है।

रचनाएँ–प्रसाद जी अनेक विषयों एवं भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित और प्रतिभासम्पन्न कवि थे। इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि सभी साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी और अपने कृतित्व से इन्हें अलंकृत किया। इनका काव्य हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि है। इनके प्रमुख काव्यग्रन्थों का विवरण निम्नवत् है-
कामायनी—यह प्रसाद जी की कालजयी रचना है। इसमें मानव को श्रद्धा और मनु के माध्यम से हृदय और बुद्धि के समन्वय का सन्देश दिया गया है। इस रचना पर कवि को मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है।
आँसू-यह प्रसाद जी का वियोग का काव्य है। इसमें वियोगजनित पीड़ा और दु:ख मुखर हो उठा है।
लहर—यह प्रसाद जी का भावात्मक काव्य-संग्रह है।
झरना—इसमें प्रसाद जी की छायावादी कविताएँ संकलित हैं, जिसमें सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूति साकार हो उठी है।
कहानी—आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, आँधी।
उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
निबन्ध-काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध।
चम्पू-प्रेम राज्य। इनके अन्य काव्य-ग्रन्थ चित्राधार, कानन-कुसुम, करुणालय, महाराणा को महत्त्व, प्रेम-पथिक आदि हैं।
साहित्य में स्थान–प्रसाद जी असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य में एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण एवं चमत्कार है कि सहृदय पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है। निस्सन्देह वे आधुनिक हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं।

‘पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोवर

गीत

प्रश्न-दिए गए पद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
बीती विभावरी जाग री ।
अम्बर-पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा-नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय को अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लायी—
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी ।
अधरों में राग अमन्द पिये,
अलकों में मलयज बन्द किये–
तू अब तक सोयी है आली !
आँखों में भरे विहाग री।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में किस समय का सुन्दर वर्णन किया गया है?
(iv) कौन आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रहा है? ।
(v) ‘खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गीत महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद के ‘लहर’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक रचना से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-इस गीत में मानवीकरण द्वारा प्रात:काल की शोभा का सुन्दर चित्रण किया गया है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! रात बीत चुकी है। अब तू उठ। आकाशरूपी पनघट पर ऊषारूपी चतुर नारी तारारूपी घड़ा डुबो रही है; अर्थात् तारे एक-एक करके छिपते चले जा रहे हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रात:काल की शोभा का सुन्दर वर्णन किया गया है।
(iv) उषारूपी चतुर नारी आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रही है।
(v) अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

श्रद्धा-मनु

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
“कौन तुम ? संसृति-जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मणि एक,
कर रहे निर्जन का चुपचाप
प्रभा की धारा से अभिषेक ?
मधुर विश्रान्त और एकान्त–
जगत का सुलझा हुआ रहस्य
एक करुणामय सुन्दर मौन
और चंचल मन का आलस्य !”
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) उक्त पंक्तियों में कौन किसका परिचय पूछ रहा है?
(iv) कौन अपनी कान्ति से वीराने को शोभायमान कर रहा है?
(v) ‘प्रभा की धारा से अभिषेक?’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मेनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा मनु से उनका परिचय पूछ रही है कि संसाररूपी सागर के तट पर तरंगों (लहरों) द्वारा फेंकी गयी किसी मणि के सदृश तुम कौन हो, जो चुपचाप बैठे अपनी शोभा की किरणों से इस निर्जन प्रदेश को स्नान करा रहे हो; अर्थात् जिस प्रकार लहरें समुद्र के तल से किसी मणि को उठाकर तट पर पटक देती हैं, उसी प्रकार सांसारिक आघातों से ठुकराये हुए हे भव्य पुरुष! तुम कौन हो?
(iii) उक्त पंक्तियों में श्रद्धा मनु का परिचय पूछ रही हैं।
(iv) मनु भव्य पुरुष की भाँति अपनी कांति से वीराने को शोभायमान कर रहे हैं।
(v) रूपक अलंकार।।

प्रश्न 2.
समर्पण लो सेवा का सार
सजल संसृति का यह पतवार;
आज से यह जीवन उत्सर्ग
इसी पद तल में विगत विकार।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) श्रद्धा किसकी जीवनसंगिनी बनकर सेवा करना चाहती हैं?
(iv) किसका समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा?
(v) ‘सजल संसृति का यह पतवार।’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मानवता को सफल और समृद्ध बनाने के लिए मनु के समक्ष आत्मसमर्पण करती है और कहानी है कि यह मेरा आत्मसमर्पण संसार-सागर में निरुद्देश्य भटकने वाली तुम्हारी जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा अर्थात् तुम्हारे जीवन को निश्चित दिशा देगा। आज से तुम्हारे चरणों में बिना किसी स्वार्थभावना के मैं अपने जीवन को न्योछावर करती हूँ।
(iii) श्रद्धा मनु की जीवनसंगिनी बनकर उनकी सेवा करना चाहती हैं।
(iv) श्रद्धा का समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा।
(v) अनुप्रास अलंकार।।

प्रश्न 3.
डरो मत अरे अमृत सन्तान
अग्रसर है। मंगलमय वृद्धि
पूर्ण आकर्षण जीवन-केन्द्र
खिंची आवेगी सकल समृद्धि!
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) मनु ने संसार और जीवन को क्या मान लिया था?
(iv) श्रद्धा मनु को किसकी संतान बताकर उत्साहित करती हैं?
(v) कब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रसाद जी के ‘कामायनी’ महाकाव्य की नायिका श्रद्धा निवृत्ति पथ पर अग्रसर मनु को प्रवृत्ति पथ पर लाने का प्रयास करती है। मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था। श्रद्धा उनमें जीवन के प्रति उत्साह भरती हुई कहती है कि तुम कभी न मरने वाले देवताओं की सन्तान हो; अत: भयभीत क्यों होते हो? तुम्हारे सामने मंगलों की भरपूर समृद्धि है। तुम उसे पाने का साहस तो करके देखो।
(iii) मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था।
(iv) श्रद्धा मनु को कभी न मरने वाले देवताओं की संतान बताकर उत्साहित करती हैं।
(v) जब भय समाप्त हो जाएगा और मन के अन्दर जीने का उत्साह पैदा हो जाएगा तब सेब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी।

प्रश्न 4.
शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त
विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;
समन्वय उसका करे समस्त ।
विजयिनी मानवता हो जाय।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को कौन-सी बात बताई है?
(iv) समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है?
(v) श्रद्धा मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मनु से कहती है कि जीवन के प्रति हताशा और निराशा को त्यागकर आपको लोक-मंगल के कार्यों में लगना चाहिए। इसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य कार्य संसार की विभिन्न शक्तियों में पारस्परिक समन्वय स्थापित करना है। विश्व की विद्युत्-कणों के समान जो भी करोड़ों-करोड़ शक्तियाँ हैं, वे सब बिखरी पड़ी हैं, जिस कारण जीवन में उनका कोई भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। उन सब शक्तियों को एकत्रित कीजिए और उनमें आया समन्वय स्थापित कीजिए, जिससे उन शक्तियों का अधिक-से-अधिक उपयोग हो सके। इसी में मानवता का कल्याण निहित है। यदि आप यह समन्वय स्थापित करने में सफल हो गए तो सर्वत्र मानवता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को मानवता की विजय का उपाय बताया है।
(iv) समस्त सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्-कणों से हुई है।
(v) श्रद्धा ने मनु को बिखरी पड़ी समस्त शक्तियों को एकत्रित करके उनके उपयोग द्वारा मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *