UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 8 Community: As an Agency of Education (समुदाय: शिक्षा के अभिकरण के रूप में)

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UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 8 Community: As an Agency of Education

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BoardUP Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPedagogy
ChapterChapter 8
Chapter NameCommunity: As an Agency of Education
(समुदाय: शिक्षा के अभिकरण के रूप में)
Number of Questions Solved18
CategoryUP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 8 Community: As an Agency of Education (समुदाय: शिक्षा के अभिकरण के रूप में)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 समुदाय का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। समुदाय की मुख्य विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उतर:

समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Community)

अंग्रेजी का शब्द ‘Community’ (समुदाय) दो लैटिन शब्दों-‘Com’ एवं ‘Munis’ का मिश्रित रूप है। Com का अर्थ ‘एक साथ’ और Munis का अर्थ ‘सेवा करना है। इन शब्दों के आधार पर समुदाय का शाब्दिक अर्थ ‘साथ-साथ मिलकर सेवा करने से है। समुदाय का तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो निश्चित भूभाग पर सामान्य उद्देश्यों के लिए एकसाथ मिलकर जीवन व्यतीत करते हैं। वे साधारण जीवन व्यतीत करते हुए एक-दूसरे की सहायता करते हैं और अपने अधिकारों का उपयोग भी करते हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर तथा पेज की दृष्टि में समुदाय सामान्य जीवन का क्षेत्र है। समुदाय के आधारभूत तत्त्वों तथा प्रकृति के आधार पर विभिन्न विद्वानों ने समुदाय को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित करने का प्रयास किया है

  1. ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण संगठन को समुदाय कहा जाता है।”
  2. बोगाईस की दृष्टि में, “संमुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसमें कुछ अंशों में ‘हम की भावना पाई जाती है तथा जो एक निश्चित्रं क्षेत्र में रहता है।”
  3. डेविस के अनुसार, “समुदाय सबसे छोटा ऐसा क्षेत्रीय समूह है जिसमें सामाजिक जीवन के सभी पहलू आ जाते हैं।”
  4. मैकाइवर तथा पेज के मतानुसार, “जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ-साथ इस प्रकारे रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में ही भागीदार न होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या स्थितियों में भाग लेते हैं तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है।

इस प्रकार, “समुदाय सामान्य सामाजिक जीवन में सहभागी लोगों का एक ऐसा समूह है जो किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में साथ-साथ रहता है और जिसमें ‘हम की भावना’ या ‘सामुदायिक भावना पाई जाती है।”

समुदाय की विशेषताएँ
(Characteristics of Community)

समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. जन-समूह- व्यक्तियों का समूह (जन-समूह) समुदाय के निर्माण हेतु प्रथम मुख्य आधार है। ..
  2. निश्चित भौगोलिक क्षेत्र- निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाला समूह ही समुदाय है। गाँव, नगर या राष्ट्र इसलिए समुदाय हैं क्योंकि इनमें से हर एक का निश्चित भौगोलिक क्षेत्र है।
  3. सामुदायिक भावना- समुदाय में रहने वाले लोगों के बीच सामुदायिक भावना पाई जाती है, जिसके तीन तत्त्व हैं-हम की भावना, दायित्व निर्वाह की भावना तथा निर्भरता की भावना।
  4. व्यापक उद्देश्य- समुदाय के उद्देश्य व्यक्ति विशेष, समूह विशेष या वर्ग विशेष के हितों की पूर्ति नहीं करते। ये तो व्यापक रूप से समस्त व्यक्तियों एवं समूहों के सभी प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करते हैं।
  5. सामुदायिक सदस्यता- एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण समुदाय की सदस्यता स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।
  6. स्वतः विकसित- समुदाय का निर्माण जान-बूझकर या नियोजित प्रयासों से नहीं किया जाता। ये तो समय के साथ स्वत: विकसित होते हैं।
  7. विशिष्ट नाम- प्रत्येक समुदाय को अपना एक विशिष्ट नाम समुदाय की विशेषताएँ होता है।जन-समूह
  8. सामान्य नियम व्यवस्था- समुदाय में सामान्य नियमों के निश्चित भौगोलिक क्षेत्र माध्यम से लोगों के व्यवहार को निर्देशित किया जाता है व उन पर १ सामुदायिक भावना नियन्त्रण रखा जाता है।व्यापक उद्देश्य
  9. स्थायित्व- किसी अस्थायी समूह; जैसे-भीड़, श्रोता सामुदायिक सदस्यता समूह या खानाबदोश झुण्ड को समुदाय नहीं कहेंगे। समुदाय एक स्वतः
  10. विकसित निश्चित भू- भाग से स्थायी रूप से जुड़ी रहता है। विशिष्ट नाम
  11. सामान्य जीवन- समुदाय के सभी सदस्य प्रायः एक जैसा सामान्य नियम व्यवस्था सामान्य जीवन जीते हैं। उनके कुछ सामान्य रीति-रिवाज, परम्पराएँ, स्थायित्व त्योहार, विश्वास, उत्सव तथा संस्कार होते हैं जो उन्हें एकता के सूत्र के सामान्य जीवन में बाँध देते हैं।

प्रश्न 2.
शिक्षा के एक अभिकरण के रूप में समुदाय के शैक्षिक कार्यों की विवेचना कीजिए।
या
“समाज शिक्षा का एक शक्तिशाली अभिकरण है।” इस सन्दर्भ में समाज के शैक्षिक कार्यों को लिखिए।
या
शिक्षा के अभिकरण के रूप में समुदाय की भूमिका का वर्णन कीजिए।
या
“समुदाय शिक्षा का सक्रिय एवं अनौपचारिक अभिकरण है।” विवेचना कीजिए।
या
समाज के शैक्षिक कार्य क्या हैं?
या
समुदाय के शैक्षिक कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उतर:

शिक्षा के अभिकरण के रूप में समुदाय के कार्य
(Functions of Community as Agency of Education)

शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों में समुदायका महत्त्वपूर्ण स्थान है। समुदाय को अपने सदस्यों विशेष रूप से बच्चों एवं युवा वर्ग के प्रति विशेष दायित्व होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समुदाय अपने क्षेत्र में विभिन्न शैक्षिक कार्यों को दायित्वपूर्ण ढंग से सम्पन्न करता है। शिक्षा के एक सक्रिय एवं अनौपचारिक अभिकरण के रूप में समुदाय के शैक्षिक कार्यों का विवरण निम्नलिखित है

1. शारीरिक विकास की व्यवस्था-समुदाय के शैक्षिक कर्तव्य में प्रथम है बालक के शारीरिक विकास की व्यवस्था। समुदाय का कर्तव्य है कि वह विद्यालय में शान्त एवं स्वस्थ वातावरण के माध्यम से विद्यार्थियों का समुचित शारीरिक विकास करे। इसके लिए विद्यालय प्रांगण अथवा किसी सार्वजनिक स्थान पर खेलकूद तथा व्यायामशालाओं का पर्याप्त प्रबन्ध किया जाना चाहिए। प्रत्येक ग्राम और नगर में स्थान-स्थान पर सामुदायिक उद्यान, पार्क, क्रीड़ा-स्थल, मनोरंजन के साधन तथा स्वास्थ्य व चिकित्सा केन्द्र स्थापित किए जाने चाहिए। यही नहीं, समुदाय द्वारा निर्धन वर्ग के बच्चों हेतु मुफ्त आहार की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

2. सम्पूर्ण मानसिक विकास- शारीरिक विकास के साथ ही बालक को मानसिक विकास भी अपरिहार्य है। बालक को अपनी क्षमताओं, योग्यताओं तथा विचारों को मुक्त रूप से अभिव्यक्त करने का अवसर मिलना चाहिए और यह शैक्षिक दायित्व भी समुदाय का है। समुदाय का कर्तव्य है कि वह श्रेष्ठ शिक्षण संस्थाओं, पुस्तकालयों, वाचनालयों, पत्र-पत्रिकाओं, नाट्यशालाओं, रेडियो, टी०वी० तथा चलचित्रों जैसे अभिकरणों के माध्यम से बच्चों के बौद्धिक विकास में मदद दे। समुदाय द्वारा बालक को सम्पूर्ण मानसिक विकास के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

3. नैतिकता का विकास- किसी समुदाय के सदस्यों का नैतिक-चरित्र उसे समाज में उत्कृष्ट तथा गौरवशाली बनाता है। अत: समुदाय का एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि वह बालकों के नैतिक-चरित्र को उन्नत करे। प्रेम, परोपकार, उदारता, विनम्रता, कर्तव्यपरायणता, सहिष्णुता, बन्धुत्व की भावना एवं पारस्परिक सहयोग-इन सभी मानवीय गुणों से बालक के जीवन में नैतिकता की आधारभूमि निर्मित होती है। समुदाय को ऐसे शैक्षिक साधन सुलभ कराने चाहिए जो बालक का अधिकतम नैतिक विकास कर सकें। बालक में उत्तम गुणों के विकास हेतु जहाँ एक ओर समुदाय के वातावरण को स्वच्छ एवं सुन्दर बनाया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर बालकों को दूषित एवं अनैतिक वातावरण से दूर रखना सर्वथा उपयुक्त है।

4. धार्मिक सहिष्णुता का विकास- भारतीय सैमॉज के प्रत्येक नागरिक के जीवन में धर्म तथा मानव-सेवा की भावना सर्वोपरि पाई जाती है। समुदाय का कर्तव्य है कि वह बालक में ऐसी भावनाओं का समावेश तथा विकास करे, क्योंकि समाज में विभिन्न मत-मतान्तरों एवं मजहबों के अनुयायी रहते हैं। अतः समुदाय को अपने औपचारिक व अनौपचारिक अभिकरणों के माध्यम से लोगों को धर्म का वास्तविक अर्थ एवं स्वरूप समझाना चाहिए। इससे लोगों में धार्मिक सहिष्णुता तथा समन्वयवादी भावनाओं का विकास होगा। इसके अतिरिक्त समुदाय द्वारा आयोजित किए जाने वाले धार्मिक-पर्व, उत्सव, गोष्ठियाँ, व्याख्यान मालाओं तथा धार्मिक शिक्षा के अभिकरण के रूप में आयोजनों से समाज के नागरिकों में सत्य, अहिंसा, दया, त्याग, समुदाय के कार्य सहयोग, विश्व-शान्ति तथा भाईचारे की मानवीय भावनाओं का ॐ शारीरिक विकास की व्यवस्था विकास भी होगा। सम्पूर्ण मानसिक विकास

5. भावात्मक तथा कलात्मक विकास- मानव-जीवन के दो , नैतिकता का विकास पक्ष अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं- (i) भावपक्ष एवं (ii) कलापक्ष। सुन्दर-विशुद्ध भावनाएँ तथा विविध रूपमयी कलाएँ मनुष्य को जीवन का चरम लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता देती हैं। इन दोनों पक्षों के समुचित विकास की दृष्टि से समुदाय को ललित कलाओं, संगीत २ जीविकोपार्जन की समस्या का विद्यालयों, सौन्दर्य स्थलों एवं बाल-उद्यानों आदि की स्थापना करनी समाधान चाहिए। इसके अतिरिक्त समय-समय पर संगीत समारोह, साहित्य के शिक्षा-प्रणाली एवं संस्थाओं पर सम्मेलन, नाटक, प्रदर्शनी एवं उत्सव भी आयोजित किए जाएँ। बालक नियन्त्रण का भावात्मक तथा कलात्मक विकास नि:सन्देह समुदाय का शैक्षिक ” शिक्षा के अनौपचारिक साधनों कर्तव्य है, जिसे पूरा करने हेतु समुदाय को अधिकतम प्रयास करना। की व्यवस्था चाहिए।

6. जीविकोपार्जन की समस्या का समाधान- समुदाय का एक शैक्षिक कर्तव्य यह भी है कि वह बालक के व्यावसायिक विकास में योगदान कर जीविकोपार्जन की समस्या का समाधान करे। इसके लिए एक तो व्यावसायिक एवं औद्योगिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जाए; दूसरे कृषि, हस्तकौशल तथा विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित प्रशिक्षण संस्थाएँ स्थापित की जाएँ। समुदाय द्वारा जीविकोपार्जन के उचित अवसर उपलब्ध कराने से बच्चों में आत्मनिर्भरता तथा स्वावलम्बन की भावना जाग्रत होगी।

7. शिक्षा-प्रणाली एवं संस्थाओं पर नियन्त्रणसभी लोकतान्त्रिक देश अपनी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत शैक्षिक उद्देश्य एवं शिक्षण की विधियों में लोकतान्त्रिक आदर्शों का समावेश चाहते हैं, किन्तु यह कार्य समुदाय के बिना सम्भव नहीं है। यह सामुदायिक नेतृत्व का दायित्व है कि वह समुदाय की आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रकार के विद्यालयों; जैसे—बाल-विद्यालय, विकलांग एवं पिछड़े बालकों के लिए विद्यालय, सामान्य बुद्धि के बालकों हेतु विद्यालय, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र तथा व्यावसायिक व तकनीकी संस्थान की स्थापना करे तथा शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों तथा प्रशासनिक संगठन की रूपरेखा सुनिश्चित करे।

यह दायित्व भी समुदाय का ही है कि वह विद्यालय की शिक्षा-दीक्षा एवं प्रबन्ध-तन्त्र के संचालन हेतु ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति करे जो पर्याप्त रूप से कुशल और अनुभवी हों। इस सन्दर्भ में हावर्थ के अनुसार, ‘विद्यालय समाज के चरित्र का सुधार करने का साधन है। यह सुधार सामाजिक उन्नति की दिशा में है या नहीं, यह विद्यालय के संचालकों के विचारों तथा आदर्शों पर निर्भर रहता है।”

8. शिक्षा के अनौपचारिक साधनों की व्यवस्था शिक्षा के व्यापक दृष्टिकोण के अन्तर्गत शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक सभी साधन सम्मिलित हैं। सिर्फ औपचारिक साधनों की व्यवस्था करके ही समुदाय का शैक्षिक दायित्व पूरा नहीं हो जाता, उसे बालकों के लिए शिक्षा के अनौपचारिक साधनों का प्रबन्ध भी करना चाहिए। इस दृष्टि से समुदाय द्वारा पुस्तकालयों, चित्रशालाओं, संग्रहालयों, संगीतशालाओं, अभिनय केन्द्रों तथा स्वास्थ्य संगठनों की स्थापना होनी आवश्यक है। उल्लेखनीय रूप से इन अनौपचारिक साधनों में भाँति-भाँति के शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि शिक्षा के साधन के रूप में समुदाय के अनेक शैक्षिक कर्तव्य हैं। जो बालक की शिक्षा में समुदाय के महत्त्व तथा शैक्षिक प्रभाव का प्रतिपादन करते हैं। वास्तव में समुदाय के सहयोग से ही बालक एक आदर्श नागरिक बनकर व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से समाज की प्रगति में सहायता दे सकता है।

प्रश्न 3.
विद्यालय और समुदाय में सहयोग स्थापित करने की विधियों का उल्लेख कीजिए।
या
उन मुख्य उपायों का संक्षेप में वर्णन कीजिए जो विद्यालय तथा समुदाय के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं।
उतर:

विद्यालय और समुदाय में सहयोग
(Co-operation in School and Community)

एडम्स का यह कथन है, “विद्यालय एक ऐसी संस्था है जहाँ बालक में समाज, देश और युग की आवश्यकतानुसार गुणों का विकास करके उसे एक सुयोग्य नागरिक बनाया जाता है। विद्यालय, समुदाय के घनिष्ठ एवं अटूट सम्बन्ध की पुष्टि करता है। समुदाय शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विद्यालयों की स्थापना करते हैं और विद्यालय शिक्षा के माध्यम से समुदाय की प्रगति में सहयोग करते हैं। इस भाँति विद्यालय और समुदाय दोनों के शैक्षिक उद्देश्य प्रायः एकसमान हैं और इनकी उन्नति भी आपसी सहयोग पर ही निर्भर करती है। अत: दोनों संस्थाओं को मिल-जुलकर सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य करना चाहिए। विद्यालय और समुदाय में परस्पर सहयोग एवं सामंजस्य स्थापित करने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित

1. विद्यालयों में कार्यक्रमों का आयोजन- विद्यालय और समुदाय के बीच आपसी सहयोग एवं सामंजस्य बढ़ाने की दृष्टि से विद्यालय के प्रांगण में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। समय-समय पर विद्यालयों में वाद-विवाद, निबन्ध एवं भाषण प्रतियोगिताओं, विज्ञान एवं चित्रकला प्रदर्शनियों, संगोष्ठियों तथा सम्मेलनों का आयोजन किया जाए और उनमें समुदाय के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया जाए। सामुदायिक समस्याओं के सम्बन्ध में आपसी विचार-विमर्श तथा समाधान की खोज निश्चय ही शिक्षकों, शिक्षार्थियों तथा समुदाय के सदस्यों को निकट लाने में मदद देगी।

2. समुदाय के शैक्षिक साधनों का उपयोग- समुदाय के कुछ शैक्षिक साधन होते हैं; जैसे-शिक्षा-प्रसार विभाग, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, साक्षरता केन्द्र, महिला शिक्षा केन्द्र, सांस्कृतिक कार्य केन्द्र आदि। समाज की शिक्षा संस्थाओं को चाहिए कि वे उपलब्ध सामुदायिक शैक्षिक साधनों का उपयोग करके अधिकाधिक लाभ अर्जित करें। स्पष्टत: विद्यालय और समुदाय के पारस्परिक हित एक-दूसरे को अधिक निकट लाने में सहयोग करेंगे।

3. अनुकूल पाठ्यक्रम का निर्माण- विद्यालय का पाठ्यक्रम व्यक्ति और समुदाय दोनों के लिए उपयोगी होना चाहिए। इसके साथ ही शैक्षिक पाठ्यक्रम समुदाय विशेष की प्रकृति, समस्याओं तथा आवश्यकताओं के अनुकूल भी होना चाहिए। इस भाँति जीवन्त तथा उपयोगी पाठ्यक्रम, विद्यालय और समुदाय के मध्य एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बनकर दोनों संस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करता है।

4. विद्यालय-प्रबन्ध में समुदाय का योगदान- विद्यालय और समुदाय के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध तभी स्थापित हो सकता है जब दोनों एक-दूसरे के विकास हेतु अपना दायित्व समझकर वांछित योगदान करें। इस दृष्टि से विद्यालय के प्रबन्ध-तन्त्र में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। विद्यालय के प्रबन्ध में समुदाय के सदस्यों के प्रतिनिधित्व तथा योगदान से जहाँ एक ओर विद्यालय अधिकाधिक उन्नति करेगा, वहीं दूसरी ओर विद्यालय तथा समुदाय के मध्य आपसी समझ-बूझ तथा सहयोग की भावना भी बढ़ेगी।

5. समाज-सेवा के कार्य विद्यालयों को उचित एवं यथेष्ठ अवसरों पर समुदाय के अन्तर्गत समाज-सेवा के कार्य करने चाहिए। समाज-सेवा समिति, बालचर संघ, श्रमदान तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सहायता कार्यों में सक्रिय भाग लेकर शिक्षक एवं छात्र समज-सेवा की भावना से प्रेरित होते हैं तथा समुदाय को लाभ पहुँचाते हैं। यही कारण है कि हर एक शिक्षा संस्थान में स्काउटिंग-गाइडिंग, राष्ट्रीय सेवा योजना, समाज-सेवा, प्राथमिक चिकित्सा, श्रमदान सप्ताह तथा सफाई सप्ताह आदि का आयोजन किया जाना चाहिए। इन सामाजिक कार्यों के परिणामस्वरूप विद्यालय एवं समुदाय के बीच सहयोग की भावना का विकास होगा।

6. शिक्षक-अभिभावक संघ-शिक्षक- अभिभावक संघ भी विद्यालय और समुदाय में सहयोग स्थापित करने की उत्तम विधि है। यह संघ विद्यालय के शिक्षकों तथा विल य भयो। शिक्षार्थियों के अभिभावक-गणों का एक सोद्देश्य संगठन है, जिसके अन्तर्गत शिक्षक और अभिभावक मिलकर समदाय की प्रगति एवं विद्यालय में कार्यक्रमों का विद्यालय की उन्नति के विषय में विचार-विनिमय करते हैं। यह आयोजन विद्यालय तथा समुदाय के बीच घनिष्ठता बढ़ाने का एक द्विमार्गीय उपयोग उपाय है। अत: प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक-अभिभावक संघ की स्थापना आवश्यक रूप से की जाए और समय-समय पर उसकी सभाएँ भी आयोजित की जाएँ।

7. पूर्व-छात्र परिषद् विद्यालयों में पूर्व- छात्र परिषद् की , समाज-सेवा के कार्य स्थापना द्वारा विद्यालय तथा समुदाय के पारस्परिक सम्बन्धों को उत्तम शिक्षक-अभिभावक संघ बनाया जा सकता है। विद्यालय से जाने के बाद छात्र समाज के पूर्व-छात्र परिषद् विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हैं। वे अपने अनुभवी सुझावों द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान करना विद्यालय की मदद कर सकते हैं। अतः पूर्व-छात्र परिषद् की स्थापना के सरस्वती यात्राएँ करके शिक्षा-संस्थाओं में समुदाय के बीच से पुरातन छात्रों को विद्यालय को सामुदायिक जीवन आमन्त्रित करना चाहिए। इस प्रकार की गतिविधियाँ, निश्चय हीका केन्द्र बनाना विद्यालय और समुदाय को अत्यधिक निकट ला देंगी।

8. आर्थिक सहायता प्रदान करना- समुदाय के सक्षम सदस्य विद्यालयों की आर्थिक दशा सुधारने हेतु उन्हें वांछित आर्थिक सहायता प्रदान कर सकते हैं। इसके निमित्त समुदाय के प्रबुद्ध नागरिकों तथा विद्यालय के अधिकारियों को पारस्परिक विचार-विमर्श द्वारा अनिवार्यताओं के क्रम में आर्थिक योजना का प्रारूप तैयार करना चाहिए। आर्थिक सहायता पाकर जहाँ एक ओर विद्यालयों की उन्नति होगी, वहीं दूसरी ओर समुदाय के सदस्य भी अपने शैक्षिक दायित्वों के प्रति अधिकाधिक प्रेरित होंगे।

9. सरस्वती यात्राएँ- सरस्वती यात्राएँ विद्यालय और समुदाय में सहयोग स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन यात्राओं के अन्तर्गत समय-समय पर विद्यालय के बच्चों को ऐतिहासिक तथा भौगोलिक स्थलों पर ले जाना चाहिए। उन्हें विभिन्न औद्योगिक संस्थानों, वन्य प्राणि-विहारों, संग्रहालयों तथा दर्शनीय स्थानों का भ्रमण कराना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे निरीक्षण एवं अनुभव द्वारा अपना अधिकाधिक ज्ञान बढ़ा सकते हैं। वस्तुतः उनका यह ज्ञान समुदाय एवं विद्यालय के बीच सहयोग बनाने की एक कड़ी के रूप में उपयोगी सिद्ध होता है।

10. विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाना- विद्यालयी शिक्षा सामुदायिक जीवन से जुड़कर ही अर्थपूर्ण हो सकती है। अतः विद्यालय के प्रांगण में समुदाय के हितों से सम्बद्ध विभिन्न गतिविधियों के केन्द्र स्थापित किए जाने चाहिए। विद्यालयों में प्रौढ़ शिक्षा एवं स्त्री-शिक्षा के केन्द्र, संध्या या रात्रि समय पुस्तकालय व वाचनालय तथा स्वस्थ मनोरंजन सम्बन्धी कार्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए। विद्यालय में उपलब्ध शैक्षिक साधनों का प्रयोग करके समुदाय के लोगों की भावनाएँ विद्यालय के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण तथा उदार होती हैं, जिसके परिणामतः वे विद्यालय को अधिकाधिक सहयोग देने हेतु प्रेरित होते हैं।

निष्कर्षतः सर्वांगीण उन्नति एवं विकास की दृष्टि से पारस्परिक सहयोग बढ़ाने के लिए विद्यालय और समुदाय को एक-दूसरे की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समुदाय के महत्त्व का उल्लेख कीजिए। या शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में समुदाय के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

समुदाय का महत्त्व
(Importance of Community)

  1. समुदाय, गृह अथवा विद्यालय की तरह ही, बालक के व्यवहार में परिवर्तन इस भाँति लाता है ताकि वह एक सदस्य के रूप में समूह के कार्यों में सक्रिय भाग ले सके।
  2. समुदाय बालक की शिक्षा को शुरू से ही प्रभावित करता है। यह शिक्षा के उपयोगी साधनों की व्यवस्था करता है जिससे समुदाय के सभी सदस्यों का सर्वांगीण विकास होता है।
  3. बालक की संस्कृति, बोलचाल, रहन-सहन, स्वभाव, विचारों तथा आदतों पर समुदाय की अप्रत्यक्ष, किन्तु प्रभावपूर्ण छाप होती है। बच्चे को शिक्षित एवं सुसंस्कृत बनाने में समुदाय की विशिष्ट भूमिका रहती है।
  4. समुदाय बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में अधिकतम योगदान देता है। समुदाय विशेष के बीच रहकर अर्जित किए गए अनुभव तथा सामाजिक प्रतिमान बालक को सामाजिक व्यक्ति बनाने में सहयोग प्रदान करते हैं।
  5. समुदाय का वातावरण बालक की अनुकरण करने की जन्मजात प्रवृत्तियों पर विशेष प्रभाव डालता है। बालक गृह-परिवार, आस-पड़ोस, विद्यालय तथा अनेक समूहों के साथ रहकर सम्बन्ध बनाता है और उनसे प्रभावित होकर शिक्षा ग्रहण करता है।
  6. 6. समुदाय को शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अभिकरण स्वीकार करते हुए विलियम ए० ईगर ने इस प्रकार लिखा है, “क्योंकि मानव स्वभाव से ही सामाजिक प्राणी है, इसलिए उसने वर्षों के अनुभव से सीख लिया है। कि व्यक्तित्व और सामूहिक क्रियाओं का विकास समुदाय द्वारा ही सर्वोत्तम रूप में किया जा सकता है।”

प्रश्न 2.
बालक की शिक्षा में समुदाय के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

बालक की शिक्षा में समुदाय का योगदान
(Contribution of Community in Child’s Education)

परिवार और विद्यालय के समान समुदाय भी शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अभिकरण है। समुदाय बालक के व्यवहार को इस भाँति रूपान्तरित करता है ताकि वह उस समूह के कार्यों में सक्रिय भाग ले सके, जिसका कि वह सदस्य है। बालक समुदाय से औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्राप्त करता है। व्यापक अर्थ में शिक्षा आजन्म चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत बालक अनौपचारिक तथा स्वाभाविक रूप से प्रत्येक क्षण अपने सामुदायिक जीवन से कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। जॉन डीवी का मत है, “विद्यालय को समाज का वास्तविक प्रतिनिधि होना चाहिए।’ विद्यालय शिक्षा की एक औपचारिक संस्था है, जिसकी स्थापना समाज या समुदाय करता है। अत: विद्यालय पर समुदाय का प्रभाव पड़ता ही है। इसी तरह से समुदाय भी विद्यालय शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करने में योगदान देता है।

बालक के व्यक्तित्व के विकास पर समुदाय का गहरा असर पड़ता है। बालक की संस्कृति, आचरण, रहन-सहन, बोलचाल, स्वभाव, विचारों तथा आदतों के निर्माण में भी समुदाय का परोक्ष, प्रभावशाली एवं महत्त्वपूर्ण योगदान है। बालक की अनुकरण करने की जन्मजात प्रवृत्तियों पर समुदाय के वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। प्रायः बालक वैसा ही बनता है जैसा कि समुदाय का नेतृत्व उसे बनने की प्रेरणा देता है। सामुदायिक संगति का गहरा और व्यापक असर होता है। प्राय: देखने में आता है कि कलाकार के साथ रहने वाला बालक उसकी कला से प्रभावित हो जाता है और विशिष्ट कला में रुचि रखने लगता है। इसके अतिरिक्त, धार्मिक, सामाजिक, नागरिक एवं शैक्षिक संस्थाएँ; जैसे-विद्यालय, समाज सेवी तथा राजनीतिक दल, समाचार-पत्र, पुलिस, यात्राएँ, घर, पास-पड़ोस तथा क्रीड़ा-स्थल आदि सामुदायिक इकाइयाँ भी बालक की शिक्षा और उसके सर्वांगीण विकास में भूमिका निभाती हैं। स्पष्टतः बालक की शिक्षा में समुदाय का अभीष्ट योगदान रहता है।

प्रश्न 3.
समाज तथा समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उतर:

समाज तथा समुदाय में अन्तर

मनुष्यों द्वारा सामूहिक जीवन व्यतीत करने के लिए विभिन्न संगठन गठित किए गए हैं, जिनमें से दो मुख्य हैं–‘समाज’ तथा समुदाय’। समाज तथा समुदाय में विभिन्न समानताएँ होते हुए भी निम्नलिखित अन्तर–

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्यालय तथा समुदाय के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उतर:
विद्यालय तथा समुदाय का आपसी सम्बन्ध निम्नलिखित विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाएगा–

  1. विद्यालय का समुदाय से गहरा सम्बन्ध है और दोनों ही अपने विकास के लिए एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
  2. विद्यालय औपचारिक शिक्षा के माध्यम से तथा समुदाय अनौपचारिक शिक्षा द्वारा बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। अतः व्यक्तित्व के समुचित विकास हेतु विद्यालय एवं समुदाय में आपसी सहयोग अनिवार्य है।
  3. प्रत्येक समुदाय अपनी प्रगति हेतु विद्यालय की स्थापना करता है। विद्यालय, समुदाय के प्रतिनिधि तथा राष्ट्र के भावी नागरिक के रूप में बालक को शिक्षा प्रदान करता है।
  4. विद्यालय में विभिन्न समुदायों से प्रायः सभी संस्कृतियों के बालक शिक्षा पाने हेतु आते हैं और साथ-साथ रहकर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
  5. विद्यालय और समुदाय के वातावरण भी एक-दूसरे के साथ अन्त:क्रिया करते हैं। विद्यालय का वातावरण कृत्रिम, किन्तु समुदाय का वातावरण स्वाभाविक होता है। समुदाय की सभी अच्छाइयाँ और बुराइयाँ विद्यालय के संगठन एवं क्रियाकलापों पर गहरा असर रखती हैं।
  6. बालक के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक विकास द्वारा विद्यालय समुदाय के विकास में सहयोग करते हैं। हावर्थ लिखते हैं, “विद्यालय समाज के चरित्र में सुधार करने का साधन है। यह सुधार सामाजिक उन्नति की दिशा में है या नहीं, यह विद्यालय के संचालकों के चरित्र एवं आदर्शों पर निर्भर करता है।”
  7. जॉन डीवी ने सच ही कहा है, “विद्यालय समाज का सच्चा प्रतिनिधि है।”

प्रश्न 2.
गृह अथवा परिवार तथा समुदाय के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह अथवा परिवार तथा समुदाय के आपसी सम्बन्ध का विवरण निम्नलिखित है-

  1. व्यक्ति, गृह (परिवार) का एक सदस्य है-परिवारों से समुदाय बनते हैं और समुदाय समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। इस प्रकार व्यक्ति, समुदाय एवं समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है।
  2. गृह और समुदाय एक-दूसरे से इतने अधिक सम्बद्ध हैं कि एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं रहता।
  3. घर में जन्म लेने वाला प्रत्येक बच्चा एक निश्चित समुदाय से जुड़ा होता है। उसके प्रारम्भिक जीवन का अधिकांश समय जिस समुदाय के बीच व्यतीत होता है, उस समुदाय की संस्कृति के अनुसार ही उसके व्यक्तित्व का विकास होता है।
  4. समुदाय अपने शैक्षिक कर्तव्यों के अन्तर्गत परिवार के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का व्यापक प्रबन्ध करता है।
  5. दूसरी ओर, जहाँ परिवार का सभ्य-सुसंस्कृत वातावरण, चरित्र, आचरण एवं नैतिक आदर्श समुदाय की दिशा निर्धारित करता है, वहीं परिवार के सदस्यों के दोष भी समुदाय के वातावरण पर प्रभाव डालते हैं।
  6. रॉस के अनुसार, ‘‘ऐसे व्यक्ति का कोई भी मूल्य नहीं है जो सामाजिक जीवन से पृथक् हो।”

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘समुदाय’ की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए। उत्तर “समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसमें कुछ अंशों में हम की भावना पाई जाती है तथा जो एक निश्चित क्षेत्र में रहता है।” 
-बोगस

प्रश्न 2.
‘समुदाय की तीन मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • ‘सामुदायिक भावना’ अथवा ‘हम की भावना’ का पाया जाना,
  • निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तथा
  • स्वत: विकास।

प्रश्न 3.
क्या समुदाय भी शिक्षा का अभिकरण है? यदि हाँ, तो यह शिक्षा का किस प्रकार का अभिकरण है? ‘समुदाय शिक्षा के किस अभिकरण का उदाहरण है ?
उत्तर:
समुदाय स्पष्ट रूप से शिक्षा का अभिकरण है। यह शिक्षा का अनौपचारिक अभिकरण है।

प्रश्न 4.
समुदाय द्वारा अपने युवकों की जीविकोपार्जन की समस्या के समाधान में क्या योगदान दिया जाता है?
उत्तर:
समुदाय द्वारा युवकों के औद्योगिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करके उनकी जीविकोपार्जन सम्बन्धी समस्या के समाधान में योगदान दिया जाता है।

प्रश्न 5.
बच्चों की औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था में समुदाय द्वारा क्या योगदान दिया जाता है?
उत्तर:
समुदाय विद्यालय एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करके बच्चों की औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करता है।

प्रश्न 6.
“विद्यालय समाज का सच्चा प्रतिनिधि है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
प्रस्तुत कथन जॉन डीवी का है।

प्रश्न 7.
कथन सत्य हैं या असत्य

  1. एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण संगठन को समुदाय कहते हैं।
  2. समुदाय द्वारा बच्चों की शिक्षा-व्यवस्था में कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं दिया जाता है।
  3. समुदाय स्पष्ट रूप से शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण औपचारिक अभिकरण है।
  4. विद्यालय तथा समुदाय में घनिष्ठ आपसी सम्बन्ध होता है।
  5. समुदाय द्वारा बच्चों के बहुपक्षीय विकास में विशेष योगदान दिया जाता है।

उत्तर:

  1. सत्य,
  2. असत्य,
  3. असत्य,
  4. सत्य,
  5. सत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
बच्चों की शिक्षा के दृष्टिकोण से समुदाय को माना जाता है|
(क) अनावश्यक अभिकरण
(ख) औपचारिक अभिकरण
(ग) अनौपचारिक अभिकरण
(घ) कामचलाऊ अभिकरण

प्रश्न 2.
बच्चों की शिक्षा-व्यवस्था के दृष्टिकोण से विद्यालय तथा समुदाय का आपसी सम्बन्धहोता है
(क) परस्पर विरोध का
(ख) परस्पर सहयोग का
(ग) समुदाय विद्यालय पर हावी रहता है।
(घ) विद्यालय समुदाय के प्रभाव से मुक्त है।

प्रश्न 3.
‘समुदाय’ का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान है
(क) शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों की व्यवस्था करना
(ख) शिक्षा पर आवश्यक नियन्त्रण रखना
(ग) विद्यालय पर आवश्यक नियन्त्रण रखना
(घ) उपर्युक्त सभी योगदान

उत्तर:

1. (ग) अनौपचारिक अभिकरण,
2. (ख) परस्पर सहयोग का,
3. (घ) उपर्युक्त सभी योगदान।

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