UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology

UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology (मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र) are part of UP Board Solutions for Class 11 Psychology. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology (मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र).

BoardUP Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPsychology
ChapterChapter 1
Chapter NameMeaning, Definition and Scope of Psychology
(मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र)
Number of Questions Solved25
CategoryUP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं। इसके आधुनिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
या
मनोविज्ञान के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए इसकी उपयुक्त परिभाषा निर्धारित कीजिए।
या
“मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
मनोविज्ञान का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी आधुनिक परिभाषा का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
प्राणी कोई व्यवहार कब, क्यों और कैसे करता है? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए ही मनोविज्ञान का जन्म हुआ। मनोविज्ञान के अध्ययन की परम्परा के साथ ही इसकी परिभाषा का प्रश्न उत्पन्न हुआ, क्योंकि परिभाषा के अभाव में किसी विषय का समुचित ज्ञान हो पाना सम्भव नहीं है। लेकिन मनोविज्ञान के अर्थ की परिभाषा को लेकर एक लम्बे समय तक विवाद चलता रहा है। मनोविज्ञान के विकास-क्रम में भिन्न-भिन्न स्तरों पर इसके अर्थ में परिवर्तन किया जाता रहा है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञान (Psychology) के शाब्दिक अर्थ तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सामान्य विवरण निम्नलिखित है–

मनोविज्ञान का अर्थ
(Meaning of Psychology)

‘मनोविज्ञान’ शब्द को अंग्रेजी में साइकॉलाजी (Psychology) कहते हैं, जो यूनानी भाषा के दो शब्दों साइके (Psyche) तथा लोगेस (Logas) से मिलकर बना है। साइके का अर्थ है-‘आत्मा’ (Soul) तथा लोगेस का अर्थ है-‘विज्ञान’ (Science)। इस प्रकार साइकॉलाजी का अर्थ हुआ आत्मा का विज्ञान (Science of soul), परन्तु मनोविज्ञान के इस अर्थ को अब स्वीकार नहीं किया जाता है।

मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(Historical Background of Psychology)

आधुनिक मनोविज्ञान के विकास से पूर्व इस विषय का अध्ययन दर्शनशास्त्र के ही अन्तर्गत किया जाता था। 16वीं शताब्दी के दार्शनिकों ने इसे मन का विज्ञान स्वीकार किया और इसके बाद शनैः-शनैः यह विषय दर्शनशास्त्र से अलग हो गया।

लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला की स्थापना के साथ-साथ यह विषय प्रयोगात्मक विज्ञान की श्रेणी में आ गया और चेतना का विज्ञान स्वीकार किया गया। इस अर्थ में मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतना की क्रियाओं का अध्ययन करना था। 1913 ई० में वाटसन द्वारा व्यवहारवाद की स्थापना के साथ ही मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान कहा जाने लगा। इस प्रकार समय में परिवर्तन के साथ-साथ मनोविज्ञान का अर्थ भी परिवर्तित होता गया।

मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र 9 मनोविज्ञान के प्रारम्भिक अर्थ से इसके आधुनिक एवं प्रचलित अर्थ तक पहुँचने में निम्नलिखित सोपान प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

प्रथम चरण: आत्म-दर्शन-ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व, प्रारम्भिक काल में मनोविज्ञान का अध्ययने दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता था। यूनानी दार्शनिकों ने इस शास्त्र को ‘आत्म-दर्शन’ या ‘मानसिक दर्शन’ कहकर पुकारा था। प्लेटो ने मन और विचार को एक समझा तथा अरस्तू ने इसे ‘मानव की आत्मा का अध्ययन स्वीकार किया। इस प्रकार अपने प्रारम्भिक चरण में मनोविज्ञान का अर्थ ‘मानव की आत्मा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था।

द्वितीय चरण : मानसिक व्यापार–सत्रहवीं से अठारहवीं शताब्दी के मध्य चिन्तन की क्रियाओं का क्षेत्र विकसित हुआ जिसने साहचर्यवाद की विचारधारा को पुष्ट किया। अब मानसिक रोगियों तथा अपराधियों का अध्ययन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से होने लगा था। इस चरण के प्रमुख विचारकों में रेन डेकार्ते, लाइबनीज, स्पीनोजा, बर्कले तथा डेविड ह्यूम का नाम प्रमुख है। अब मनोविज्ञान का अर्थ प्राणियों के मानसिक व्यापार तथा अनुभवों की ओर केन्द्रित होता जा रहा था।

तृतीय चरण : वैज्ञानिक प्रकृति-उन्नीसवीं शताब्दी के आस-पास मनोविज्ञान में जीव विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान के नियमों के प्रवेश से मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक समझी जाने लगी। वुण्ट के प्रयासों से लिपजिग (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रयोगशाला सबसे पहले स्थापित हुई और मेन अथवा चेतना के अनुभवों का मापन प्रयोगों की मदद से सम्भव हो सका। फलत: मनोविज्ञान का अर्थ मानव चेतना से मानव व्यवहार की ओर खिसकने लगा। इस चरण के विचारकों में वुण्ट के अलावा वेबर, गाल्टन, फेकनर, कैटल, जेम्स तथा ऐबिंगहास के नाम मुख्य हैं।

चतुर्थ चरण : व्यवहारवादी दृष्टिकोण–पावलोव के प्रतिबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त से प्रभावित वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का नया अर्थ प्रदान किया। मैक्डूगल ने मनोविज्ञान को जीवित वस्तुओं के व्यवहार का विधायक विज्ञान बताया। मनोविश्लेषक फ्रायड ने अतृप्त इच्छाओं, कर्टलीविन ने ‘मनोवैज्ञानिक क्षेत्र की परिकल्पना’ तथा वर्दाईमर, कोहलर व कोफ्का ने ‘गेस्टाल्टवाद’ की क्विारधारा के माध्यम से मानव-व्यवहार को समझाया। स्पष्टत: बीसवीं शताब्दी के इस चरण में मनोविज्ञान को व्यवहारवादी दृष्टि से युक्त एक नया अर्थ मिला।।

मनोविज्ञान के ऐतिहासिक अध्ययन पर आधारित उपर्युक्त चारों सोपान स्पष्ट करते हैं कि आत्मा, मन और चेतना-सम्बन्धी अर्थ बदलता हुआ मनोविज्ञान धीरे-धीरे व्यवहार के विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। इस सन्दर्भ में मनोविज्ञान की बदलती हुई परिभाषाओं का विवरण निम्नवर्णित है

मनोविज्ञान की परिभाषा
(Definition of Psychology)

मनोविज्ञान की विषय-वस्तु को स्पष्ट करने के लिए इनमें मनोवैज्ञानिकों ने समय-समय पर मनोविज्ञान की अनेक परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं। कुछ प्रमुख परिभाषाओं का विवरण निम्नलिखित है –

(1) मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है (Psychology is the Science of Soul) – सर्वप्रथम प्लेटो ने मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान बताया। बाद में अरस्तू ने भी इसकी पुष्टि की।
आलोचना–लेकिन आत्मा का स्वरूप निर्धारित न होने के कारण यह परिभाषा मान्य न हो सकी। लोगों को आत्मा के अस्तित्व के विषय में नाना प्रकार की शंकाएँ होने लगीं। मनोवैज्ञानिकों ने आत्मा को मनोविज्ञान की खोज स्वीकार नहीं किया। इसके प्रमुख कारण निम्नवर्णित हैं –
(i) आत्मा एवं शरीर के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट नहीं किया गया था;
(ii) आत्मा के स्वरूप को वैज्ञानिक दृष्टि से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता था; और
(iii) इस विचारधारा के समर्थकों ने आत्मा के विविध अर्थ बताये; अत: विज्ञान की कसौटी पर मनोविज्ञान का आत्मा-विषयक अर्थ खरा नहीं उतर सका। फलतः अपने अस्थिर स्वरूप के कारण आत्मा की विज्ञान सम्बन्धी परिभाषा को मनोविज्ञान की विषय-वस्तु से निकाल दिया गया। विलियम जेम्स का कथन है, “मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ है—आत्मा का विज्ञान, किन्तु यह परिभाषौ अस्पष्ट है; क्योंकि आत्मा क्या है ? इस प्रश्न का हम सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सकते।”

(2) मनोविज्ञान सन का विज्ञान है (Psychology is the Science of Mind) –‘आत्मा का विज्ञान की परिभाषा अस्पष्ट होने के कारण विद्वानों ने मनोविज्ञान को ‘मन का विज्ञान’ कहकर परिभाषित किया। उनके अनुसार मनोविज्ञान ‘मन’ या ‘मस्तिष्क से सम्बन्धित क्रियाओं का अध्ययन है। यद्यपि इस परिभाषा के आधार पर मनोविज्ञान की विषय-सामग्री को बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक समझाया जाता रहा, किन्तु आत्मा के सदृश मन की यह परिभाषा भी लोकप्रिय न हो सकी।

आलोचना – आलोचकों ने मनोविज्ञान को मन का विज्ञान मानने वालों के विरुद्ध ये तर्क प्रस्तुत किये –

  1. यह स्पष्ट नहीं है कि मन और उसका स्वरूप क्या है ?
  2. मनोविज्ञान में केवल मानसिक प्रक्रियाओं (Mental Processes) अथवा वृत्तियों (Modes) का ही अध्ययन किया जाता है।
  3. इस परिभाषा से मनोविज्ञान की प्रकृति स्पष्ट नहीं होती, क्योंकि परिभाषा यह अभिव्यक्त नहीं कर पाती कि मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है या नियामक विज्ञान।
  4. इस परिभाषा में मनुष्यों और पशुओं के बाह्य व्यवहार को सम्मिलित नहीं किया गया जिसका इस शास्त्र में सबसे अधिक अध्ययन किया जाता है।
  5. मनोविज्ञान को मन का विज्ञान बताने वाले विद्वान् स्वयं ही उसके एक सर्वमान्य अर्थ का निर्धारण नहीं कर सके।

(3) मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of Consciousness) – मनोविज्ञान के विकास की प्रक्रिया ने विद्वानों को मानव-व्यवहार को गहराई से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। फलस्वरूप चेतना के अनुभवों को व्यवहारों का आधार माना जाने लगा। विलहेम वुर्पट, विलियम जेम्स तथा जेम्स सली ने कहा कि मनोविज्ञान चेतना से सम्बन्धित विज्ञान है। विलियम जेम्स ने लिखा, ‘मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा ‘चेतना की दशाओं का वर्णन और व्याख्या के रूप में दी जा सकती है।’

आलोचना – ईस परिभाषा की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है –

  1. मनोविज्ञान का प्रचलित अर्थ चेतना’ जैसे किसी तत्त्व को स्वीकार नहीं करता, न ही चेतना कोई बाह्य पदार्थ है। आधुनिक मनोविज्ञान तो चेतन प्रक्रियाओं को मानता है।
  2. विद्वानों ने चेतना के अलग-अलग अर्थ बताये। कुछ विद्वान् इसे विशिष्ट द्रव्य मानते हैं, तो कुछ इसे धारा के रूप में स्वीकार करते हैं, तो कुछ चेतना की प्रक्रिया मानते हैं। वस्तुतः स्वयं इस मत के अनुयायी भी चेतना’ को एक निश्चित अर्थ प्रदान नहीं कर सके।
  3. मनोविज्ञान की परिभाषा भी यह स्पष्ट नहीं कर पायी कि मनोविज्ञान को विधायक विज्ञान कहा जाए या कि नियामक विज्ञान।
  4. चेतना के माध्यम से मानव-स्वभाव के सभी पक्षों को नहीं समझाया जा सकता। इसके लिए तो हमें मनुष्य के अचेतन, अर्द्धचेतन तथा अवचेतन सभी पक्षों को समझना होगा।
  5. चेतना सम्बन्धी यह परिभाषा मनुष्य के व्यवहार की व्याख्या करने में भी असमर्थ रही। मैक्डूगल ने तो यहाँ तक कहा, “चेतना मूल रूप से एक बुरा शब्द है। यह मनोविज्ञान के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि यह शब्द सामान्य प्रयोग में आ गया।”

(4) मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है (Psychology is the Science of Behaviour) – बीसवीं शताब्दी के व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक जे० बी० वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषित करते हुए लिखा, “एक ऐसा मनोविज्ञान लिखना सम्भव है …………… जिसकी ‘व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषा की जा सके।” विलियम मैक्डूगल के अनुसार, “मनोविज्ञान एक ऐसा विधायक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहारों का अध्ययन होता है।” वुडवर्थ ने भी इस विचारधारा को सहमति प्रदान करते हुए कहा है, “सर्वप्रथम मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया, फिर उसने अपने मस्तिष्क का त्याग किया, तत्पश्चात् उसने अपनी चेतना का परित्याग किया, अब वह व्यवहार की विधि को अपनाता है।”

आलोचना – मनोविज्ञान की उपर्युक्त परिभाषाएँ भी आलोचनाओं से नहीं बच सकीं। इनकी परिसीमाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान बताने वाली इस परिभाषा में ‘व्यवहार’ शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग नहीं किया। इसे अत्यन्त संकुचित अर्थों में प्रयोग किया गया है।
  2. इस विचारधारा के अनुसार व्यवहार का अर्थ वातावरण में उपस्थित उत्तेजना के प्रति प्राणी की अनुक्रिया है। इस भाँति मनोविज्ञान उत्तेजना-अनुक्रिया (Stimulus-Response) का अध्ययन कहा जा सकता है, जबकि इसमें आन्तरिक प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित की जानी आवश्यक हैं।
  3. यह परिभाषा मनोविज्ञान की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करती; अर्थात् मनोविज्ञान को कैसा विज्ञान समझा जाए–नियामक विज्ञान अथवा विधायक विज्ञान।

मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषाएँ
(Modern Definitions of Psychology)

मनोविज्ञान की कुछ अन्य प्रमुख आधुनिक परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. मैक्डूगल के अनुसार, “मनोविज्ञान एक ऐसा विधेयक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहार का अध्ययन होता है।”
  2. मर्फी के अनुसार, “मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो उन अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है जिन्हें जीवित व्यक्ति अपने वातावरण के प्रति करते हैं।’
  3. चार्ल्स ई स्किनर के अनुसार, “मनोविज्ञान जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के प्रति प्राणी की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है। प्रतिक्रियाओं अथवा व्यवहार से तात्पर्य प्राणी की सभी प्रकार की प्रतिक्रियाओं, समायोजन, कार्य-व्यापारों तथा अनुभवों से है।”
  4. जलोटा का मत है, “मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है, जिनका प्रदर्शन शारीरिक व्यवहारों में होता है और प्रत्यक्ष अनुभवों द्वारा उनका निरीक्षण होता है।”
  5. थाउलैस के अनुसार, “मनोविज्ञान मानव के अनुभव एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है।”

निष्कर्ष – उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर मनोविज्ञान की निम्नलिखित विशेषताओं पर प्रकाश पड़ता है.

  1. मनोविज्ञान मानव और पशु दोनों के व्यवहार का अध्ययन करने वाला एक विधायक विज्ञान है।
  2. मनोविज्ञान मानव को मनः शारीरिक प्राणी अर्थात् मन और शरीर से युक्त प्राणी मानता है।
  3. प्रत्येक मानव एक वातावरण में रहता है और उसमें उपस्थित विभिन्न तत्त्वों से क्रिया-प्रतिक्रिया करता है, जिसे ‘मानव-व्यवहार’ कहते हैं। मनोविज्ञान इसी मानव-व्यवहार के भिन्न-भिन्न पक्षों का क्रमबद्ध अध्ययन करता है।
  4. मनोविज्ञान प्राणी के व्यवहार पर वातावरण के भौतिक तथा अभौतिक प्रभावों का अध्ययन करता है तथा अन्तिम रूप से प्राणियों की ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा संवेगात्मक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।

मनोविज्ञान की उपयुक्त परिभाषा – मनोविज्ञान की उपयुक्त परिभाषाओं की समीक्षा करने से यह ज्ञात होता है कि इनमें से कोई भी परिभाषा सर्वमान्य कहलाने की अधिकारी नहीं है। प्रत्येक परिभाषा में कुछ-न-कुछ दोष अवश्य है। अत: यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि एक आदर्श परिभाषा की कसौटी पर किस परिभाषा को खरा समझा जाए। यद्यपि मैक्डूगल और वुडवर्थ की परिभाषाएँ एक ही सीमा तक तर्क संगत समझी जाती हैं, तथापि उसके आधार पर यह जोड़ना उचित होगा कि “मनोविज्ञान प्राणियों के व्यवहार का विधायक विज्ञान है और वातावरण के प्रति उन समस्त अनुक्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है जो उसके परिवेश के साथ समायोजन में सहायक होते हैं।”

प्रश्न 2.
आधुनिक मनोविज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में क्यों रखा जाता है ?
या
आप किस प्रकार सिद्ध करेंगे कि मनोविज्ञान एक विज्ञान है ?
या
मनोविज्ञान की प्रकृति का उल्लेख करते हुए इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।”
उत्तर :
मनोविज्ञान की प्रकृति
(Nature of Psychology)

प्रायः मनोविज्ञान की प्रकृति के विषय में यह प्रश्न किया जाता है कि इसे ‘विज्ञान’ कहा जाये या ‘कला’ और यदि यह एक विज्ञान है तो किस प्रकार का विज्ञान है ? विज्ञान का शाब्दिक अर्थ है-‘विशिष्ट ज्ञान अथवा किसी वस्तु या क्षेत्र के बारे में क्रमबद्ध ज्ञान। मनोविज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों के अनुरूप ही सभी विशेषताएँ पायी जाती हैं और यह अपनी विषय-वस्तु का क्रमबद्ध अध्ययन विशेष वैज्ञानिक तथा प्रयोगात्मक विधि के माध्यम से करता है।

आधुनिक मनोविज्ञान एक विज्ञान है।
(Modern Psychology is a Science)

आधुनिक मनोविज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की तरह उच्च वैज्ञानिक, सांख्यिकीय तथा गणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। रॉबिन्सन, मॉर्गन तथा किंग आदि विद्वानों ने चार ऐसी विशेषताओं का वर्णन किया है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक विज्ञान है। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(1) आनुभविक अध्ययन – मनोविज्ञान में प्राणी के व्यवहारों एवं मानसिक क्रियाओं का अध्ययन प्रयोग, तथा निरीक्षण विधि के द्वारा किया जाता है। अध्ययन के परिणाम वस्तुनिष्ठ और पूर्णतया विश्वसनीय होते हैं। मनोवैज्ञानिक प्रयोग के परिणामों की वैधता की जाँच प्रयोग की पुनरावृत्ति द्वारा कर सकते हैं। इसी भाँति आँकड़ों की जॉच भी की जा सकती है। विषय-वस्तु का ऐसा आनुभविक अध्ययुन विज्ञान के अन्तर्गत ही सम्भव है। इस तरह मनोविज्ञान एक विज्ञान की श्रेणी में आ जाता है।

(2) क्रमबद्ध दृष्टिकोण का सिद्धान्त – मनोविज्ञान के अन्तर्गत मनुष्य तथा पशु के व्यवहारों के विषय में प्रयोग एवं निरीक्षण विधि द्वारा जो आँकड़े प्राप्त किये जाते हैं, उन्हें अलग-अलग बिखरे हुए नहीं छोड़ा जाता, अपितु उन्हें क्रमबद्ध रूप से सारणियों में व्यवस्थित किया जाता है। अन्य प्राकृतिक विज्ञानों के समान, मनोवैज्ञानिक सांख्यिकीय एवं गणितीय विधियों के आधार पर सिद्धान्तों को प्रतिपादन करते हैं जिससे मनुष्य एवं पशु के व्यवहारों के बारे में भविष्यवाणी करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, थॉर्नडाइक ने बिल्ली पर प्रयोग करके उसके व्यवहार सम्बन्धी आँकड़ों को क्रमबद्ध किया और मनोविज्ञान का एक प्रमुख सिद्धान्त ‘प्रयत्न एवं भूल का सिद्धान्त’ (Trial and Error Theory) प्रतिपादित किया।

(3) मापन की सुविधा – यथार्थ मापन की सुविधाएँ होने पर ही किसी विषय को विज्ञान कहा जा सकता है। मनोविज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की तरह मापन की सुविधा उपलब्ध है। मनोवैज्ञानिकों ने प्राणियों के व्यवहार तथा मानसिक प्रक्रियाओं को मापने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रविधियाँ विकसित की हैं, जिन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Test) कहा जाता है। इस प्रकार से विषय-वस्तु का मापन एक विज्ञान के अन्तर्गत ही सम्भव है।

(4) पदों की परिभाषा – किसी विज्ञान का मनुष्य गुण यह भी है कि उसके पद (Terms) तथा सम्प्रत्यय (Concepts) सही ढंग से परिभाषित होते हैं। मनोविज्ञान के प्रमुख पद; जैसे-प्रेरणा, संवेदना, चिन्तन, अधिगम तथा बुद्धि आदि संक्रियात्मक एवं वैज्ञानिक ढंग से परिभाषित किये गये हैं। इसका यह लाभ है कि मनोविज्ञान की विषय-वस्तु को यथार्थ मापन सम्भव हो जाता है, उसका अध्ययन वस्तुनिष्ठ हो जाता है तथा पूर्वकथन भी सही होता है।

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर निर्विरोध कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान का अध्ययन आनुभविक है। इसकी विषय-वस्तु से सम्बन्धित सभी तथ्य क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित हैं जिनके आधार पर किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया ज़ सकता है। इसमें वैज्ञानिक प्रविधियों द्वारा व्यवहार एवं मानसिक क्रियाओं का मापन किया जा सकता है तथा इसके समस्त पद भली प्रकार परिभाषित हैं और इसी कारण मनोविज्ञान भी एक विज्ञान है।

मनोविज्ञान की वैज्ञानिकता की विशेषताएँ
(Characteristics of Psychology as a Science)

मनोविज्ञान को विज्ञान सिद्ध करने वाली कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(1) वैज्ञानिक पद्धति – मनोविज्ञान के अन्तर्गत किये जाने वाले सभी अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होते हैं। विज्ञान की प्रयोग विधि में प्रयोगशाला, यन्त्र तथा उपकरणों का अधिकाधिक उपयोग किया जाता है एवं वांछित परिस्थितियों को नियन्त्रित किया जा सकता है। आजकल मनोवैज्ञानिक अध्ययन में प्रयोग विधि की इन सभी शर्तों का पालन किया जाता है। अत: मनोविज्ञान की वैज्ञानिक पद्धति स्पष्ट एवं निश्चित कही जा सकती है।

(2) व्यापकता – मनोविज्ञान एक व्यापक अध्ययन है, जिसमें मनुष्य से लेकर पशु तक के व्यवहारों को सम्मिलित किया गया है। मनोविज्ञान मानव तथा पशु-समाज के अन्तर्गत आने वाली समस्त इकाइयों का पृथक् तथा समूहगत दोनों प्रकार से अध्ययन करता है। इतना ही नहीं, यह तो गर्भ में पल रहे शिशु से लेकर प्रौढ़ मनुष्य तक की समस्त अवस्थाओं में उसके विकास तथा क्रियाओं का भी अध्ययन करता है।

(3) विधायक विज्ञान या तथ्यात्मकता – मनोविज्ञान की एक विशेषता तथ्यात्मकता है। यह एक विधायक विज्ञान है जो प्रत्येक वस्तु का अध्ययन तथ्य के रूप में करता है। इसका अर्थ यह है कि यह ‘क्या है ?’ का अध्ययन करता है। इसका इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि क्या होना चाहिए ? विधायक विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान का एक गुण तटस्थता भी है, क्योंकि तथ्यात्मक अध्ययन के परिणाम न तो किसी के पक्ष में होते हैं और न किसी के विपक्ष में। वे तो केवल तथ्य को प्रकट करते हैं।

(4) सार्वभौमिकता – मनोविज्ञान के सिद्धान्त सार्वभौमिक (universal) होते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि मनोविज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों पर देश, काल एवं पात्र की भिन्नता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि परिस्थितियाँ एकसमान हैं तो प्रत्येक समय में, प्रत्येक स्थान पर मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को सदा ही प्रमाणित किया जा सकता है।

(5) कार्य-कारण सम्बन्धों का अध्ययन – प्रत्येक क्रिया अथवा प्रघटना का कुछ-न-कुछ कारण अवश्य होता है। इसी प्रकार प्रत्येक मानव-व्यवहार के पीछे भी कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है। मनोविज्ञान इस बात का विश्लेषण करती है कि विशिष्ट व्यवहार का क्या कारण है एवं किस विशिष्ट व्यवहार से प्रभावित होकर मनुष्य क्या व्यवहार करेगा ? कार्य-कारण सम्बन्धों के अध्ययन से मनोविज्ञान व्यवहार के सामान्य नियम निर्धारित करता है। ये नियम और सिद्धान्त सही तथा निश्चित होते हैं।

(6) पूर्वानुमान या भविष्यवाणी – मनोवैज्ञानिक पूर्वानुमान या भविष्यवाणियाँ कार्य-कारण सम्बन्ध पर आधारित होती हैं। यदि हम एक घटना (अर्थात् कारण) को जानते हैं तो हम दूसरी घटना (अर्थात् परिणाम) की भविष्यवाणी कर सकते हैं। आधुनिक समय में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से मानव व्यवहार के सम्बन्ध में पूर्वानुमान किये जा सकते हैं। पूर्वानुमान उचित व्यवसाय के लिए उचित व्यक्ति का चुनाव करने में मदद करते हैं।

निष्कर्षतः मनोविज्ञान की ये विशेषताएँ; यथा—वैज्ञानिक पद्धति, व्यापकता, तथ्यात्मकता, सार्वभौमिकता, कार्य-कारण सम्बन्ध तथा पूर्वानुमान; इसे पूरी तरह विज्ञान बना देते हैं। हाँ, मनोविज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के बीच एक आधारभूत अन्तर अवश्य है। मनोविज्ञान प्राणियों के व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है, जबकि प्राकृतिक विज्ञान स्थूल तत्त्वों से सम्बन्ध रखते हैं।

प्रश्न 3.
मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
या
मनोविज्ञान का क्षेत्र बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि इसका क्षेत्र दिनो-दिन बढ़ता जा रहा या मनोविज्ञान के बढ़ते हुए क्षेत्र पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
या
‘बाल मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं? ।
उत्तर :
मनोविज्ञानं का क्षेत्र
(Scope of Psychology)

मनोविज्ञान का क्षेत्र जीवन की विविध परिस्थितियों में मानव के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है। मनोविज्ञान के अध्ययन के क्षेत्र में उन समस्त विषय-सामग्रियों को शामिल किया जाता है जो मानव-जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित हैं तथा मानव-कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इस भाँति, मनोविज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है जिसका सम्पूर्ण एवं विशद वर्णन करना यहाँ प्रायः असम्भव है। अत: हम मनोविज्ञान से सम्बन्धित उन प्रमुख शाखाओं का विवरण प्रस्तुत करेंगे जिनमें इसकी अध्ययन-सामग्री को विभाजित किया गया है –

(1) सामान्य मनोविज्ञान – सामान्य मनोविज्ञान मानव-व्यवहार के सामान्य पक्षों तथा उसके सैद्धान्तिक स्वरूपों का अध्ययन करता है। यह मनोविज्ञान का एक व्यापक क्षेत्र है जिसके अन्तर्गत मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा, अध्ययन की विधियाँ, संवेग, प्रेरणा, प्रत्यक्षीकरण, सीखना, स्मृति, अवधान, चिन्तन एवं कल्पना, बुद्धि एवं व्यक्तित्व और संवेदना आदि का अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान के गहन अध्ययन से पूर्व यह आवश्यक समझा जाता है कि मनोविज्ञान के समस्त क्षेत्रों के सामान्य सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाए।

(2) वैयक्तिक मनोविज्ञान – वैयक्तिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत व्यक्तिगत लक्षणों के आधार पर व्यक्ति-विशेष के मनोविज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। हम जानते हैं कि विश्व के कोई भी दो व्यक्ति सभी लक्षणों में एकसमान नहीं हो सकते। इसी आधार पर व्यक्तित्व के भी विभिन्न प्रकार हैं। पी० टी० यंग (Young) ने मानव व्यक्तित्व को तीन भागों में बाँटा है–अन्तर्मुखी, बहिर्मुखी तथा उभयमुखी। वैयक्तिक मनोविज्ञान इन तीनों ही प्रकार के व्यक्तित्वों का व्यापक अध्ययन करता है।

(3) वैयक्तिक भिन्नता का मनोविज्ञान – अध्ययन बताते हैं कि व्यक्तियों में वैयक्तिक भिन्नता शारीरिक के साथ-ही-साथ मानसिक स्तर पर भी होती है। मनोविज्ञान की यह शाखा इन भिन्नताओं को समझने में हमारी सहायता करती है। मनोवैज्ञानिक, भिन्नताओं का कारण जानने के अतिरिक्त उनका मापन भी करते हैं। मापन के लिए मानसिक परीक्षणों का सहारा लिया जाता है। वैयक्तिक भिन्नताओं को मापने के लिए अनेक परीक्षणों का निर्माण किया गया है; जैसे-व्यक्तित्व प्रश्नावली, उपलब्धि परीक्षण, विशेष योग्यता परीक्षण तथा बुद्धि परीक्षण आदि। परीक्षणों का निर्माण करते समय वस्तुनिष्ठ मापन को महत्त्व प्रदान किया जाता है।

(4) समाज मनोविज्ञान – व्यक्तियों से मिलकर समाज बनता है। समाज का वास्तविक विकास तभी सम्भव है जब व्यक्ति’ और ‘समूह’ के मनोविज्ञान में सुन्दर सामंजस्य हो; अतः समाज मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन सामाजिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में करता है। मनोविज्ञान की यह शाखा सामाजिक परिवर्तनों के साथ-ही-साथ भीड़, श्रोता समूह, प्रचार, विज्ञापन आदि का मनोवैज्ञानिक अध्ययनं करती है। समाज मनोवैज्ञानिक सामाजिक क्षेत्रों में व्याप्त तनावों, संघर्षों, अपराधों तथा पूर्वाग्रहों का अध्ययन कर उनके निदान तथा उपचार-सम्बन्धी सुझाव देता है।

(5) बाल मनोविज्ञान – बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसमें गर्भस्थ शिशु से लेकर बारह वर्ष तक की आयु के बालक-बालिकाओं के विकास का क्रमिक रूप से अध्ययन किया जाता है। बाल्यावस्था में शरीर और मन का तेजी से विकास होता है। इस अवस्था में बालक नवीन प्रत्ययों को तेजी से सीखता है तथा इस काल के प्रभाव एवं आदतें स्थायी होती हैं। यही कारण है। कि बालक के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा, शिक्षा की व्यवस्था, व्यवहार संशोधन तथा सामंजस्य से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में बाल मनोविज्ञान ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(6) किशोर मनोविज्ञान – किशोरवस्था मानव-जीवन का एक नाजुक तथा महत्त्वपूर्ण मोड़ है। इस अवस्था में मानव-व्यवहार का विशिष्ट अध्ययन करने के लिए मनोविज्ञान की एक पृथक् शाखा का विकास हुआ जिसे किशोर-मनोविज्ञान कहा जाता है। यह शाखा तेरह वर्ष से लेकर उन्नीस वर्ष तक की आयु के बालक-बालिकाओं के विकास का क्रमबद्ध अध्ययन करती है। किशोरावस्था में आने वाले परिवर्तनों के कारणों का विश्लेषण कर मनोवैज्ञानिक उनके नियन्त्रण के उपाय बताते हैं जिससे व्यक्तित्व के सन्तुलित विकास तथा भावी समायोजन में सहायता मिलती है। इस भाँति किशोर मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के अध्ययन का अत्यन्त उपयोगी क्षेत्र है।

(7) उत्पत्तिमूलक मनोविज्ञान – व्यक्ति, जाति, प्रजाति तथा जातीय नस्लों की उत्पत्ति तथा उनके क्रमिक विकास का अध्ययन मनोविज्ञान की जिस शाखा में किया जाता है. उसे उत्पत्तिमूलक मनोविज्ञान कहते हैं। इस शाखा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, क्योंकि इसके अन्तर्गत शिशु, बालक, किशोर और प्रौढ़ आदि समस्त वर्गों का सामूहिक अध्ययन किया जाता है।

(8) विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान – मनोविज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत मानव-व्यवहार से सम्बन्धित स्वाभाविक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है। इससे व्यवहार का अध्ययन व्यवस्थित और सुविधाजनक बन जाता है। इस प्रकार के अध्ययन में मस्तिष्क की जटिल क्रियाओं को उनके भिन्न-भिन्न भागों में बाँट दिया जाता है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत प्रयोग की जाने वाली विधियों में अन्तर्दर्शन, निरीक्षण तथा प्रयोग विधि मुख्य हैं।

(9) मनो-भौतिक मनोविज्ञान – मनोविज्ञान की इस आधुनिक एवं महत्त्वपूर्ण शाखा को विकसित करने का श्रेय वेबर तथा फिचनर को दिया जाता है। इसमें मानसिक क्रियाओं, संवेदनाओं तथा भौतिक उद्दीपनों के मध्य परिमाणात्मक सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। उदाहरणार्थ, मनो-भौतिक मनोविज्ञान के नियम बताते हैं कि प्रकाश के उद्दीपनों की प्रबलता का प्रकाश की संवेदना पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा दो उद्दीपनों को अलग-अलग पहचानने के लिए कितना न्यूनतम अन्तर होना चाहिए।

(10) मनोविश्लेषणात्मक मनोविज्ञान – आधुनिक मनोविज्ञान की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण शाखा सिगमण्ड फ्रॉयड द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषणात्मक मनोविज्ञान है। फ्रॉयड ने अचेतन मन में निहित इच्छाओं को ज्ञात करके उनके कारणों का पता विश्लेषण के द्वारा लगाया। फ्रॉयड ने स्वप्न, दिवास्वप्न, हास्य-विनोद, भूलना, लिखने-बोलने तथा कार्य करने सम्बन्धी त्रुटियों के अलावा कला एवं धर्म आदि का भी विश्लेषण करके उनके अचेतन कारणों का पता लगाया। इससे न केवल मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक विशाल एवं रोचक साहित्य का सृजन हुआ, अपितु मानसिक रोगियों के लिए मनोचिकित्सा पद्धति का भी विकास हुआ।

(11) प्रेरणात्मक मनोविज्ञान – मनोविश्लेषणात्मक तथा असामान्य मनोविज्ञान से विकसित ज्ञान की इस शाखा का एक नाम ‘सामान्य प्रेरणा का मनोविज्ञान’ भी है। इसके अन्तर्गत प्राणी की उन आन्तरिक क्रियाओं की व्याख्या की जाती है जिन्हें वह बाह्य जगत में सन्तुष्ट करना चाहता है। प्रायः देखने में आता है कि मनुष्य की इच्छाओं के सन्तुष्ट न हो पाने के कारण उसके व्यक्तित्व का सन्तुलन और सामाजिक समायोजन बिगड़ने लगता है—मनुष्य की ऐसी उलझनों, आदतों तथा इच्छाओं का अध्ययन और व्यवहार के विविध ढंगों की खोज प्रेरणात्मक मनोविज्ञान के अन्तर्गत की जाती है।

(12) लोक मनोविज्ञान – लोक मनोविज्ञान, आधुनिक मनोविज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। जिसमें आदिवासी जातियों के क्रमिक विकास का अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान की यह शाखा इन जातियों में पाए जाने वाले अन्धविश्वासों, पौराणिक कथाओं, धर्म, संगीत तथा कला आदि में निहित मनोवैज्ञानिक तथ्यों की विवेचना करती है और उनकी तुलना आधुनिक समाजों से करती है।

(13) पशु-मनोविज्ञान – पशु मनोविज्ञान का विकास पशुओं और मनुष्यों की समानता के आधार पर हुआ। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से सम्बन्धित ऐसे अनेक प्रयोग हैं जिन्हें सीधे मनुष्यों पर आरोपित नहीं किया जा सकता; जैसे–मस्तिष्क के किसी भाग को निकालकर उसका प्रभाव देखना तथा आनुवंशिकता सम्बन्धी प्रयोग। ऐसे परीक्षण पशुओं पर सरलता से किये जा सकते हैं तथा उनके निष्कर्षों की तुलना मानव से सम्बन्धित तथ्यों से की जा सकती है। इस प्रकार के अध्ययनों में पशुओं की मूल प्रवृत्तियाँ तथा उनके सीखने के ढंग शामिल हैं।

(14) शारीरिक मनोविज्ञान – यद्यपि मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है, किन्तु मन का शरीर से अटूट सम्बन्ध है। मानव-व्यवहार तथा स्वभाव को समझने के लिए विविध शारीरिक अंगों की संरचना तथा उनकी क्रियाओं का अध्ययन अपरिहार्य है। यही कारण है कि मनोविज्ञान की यह शाखा मस्तिष्क, स्नायु मण्डल, संग्राहकों, प्रभावकों तथा मांसपेशियों का विधिवत् अध्ययन करती है। और प्राप्त ज्ञान का उपयोग मानव-व्यवहार की व्याख्या के लिए करती है।

(15) परा-मनोविज्ञान – मनुष्य के विलक्षण व्यवहारों को ‘अलौकिक घटना या परा-सामान्य घटना कहा जाता है; जैसे–स्वप्न में किसी व्यक्ति को देखकर अगले दिन उससे आश्चर्यजनक भेट हो जाना, किसी सफर में चलने से पूर्व न जाने की अप्रकट चेतावनी मिलना और सफर में दुर्घटना का होना, किसी दूर के प्रियजन का विचार मन में आना और अप्रत्याशित रूप से उसका आ जाना। इन अलौकिक या परा-सामान्य घटनाओं का अध्ययन मनोविज्ञान की जो शाखा करती है उसे परामनोविज्ञान कहा जाता है।

(16) प्रयोगात्मक मनोविज्ञान – प्रयोगात्मक मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान का सबसे प्रमुख क्षेत्र है जो प्रयोगों की सहायता से मानसिक क्रियाओं यथा-स्मृति, बुद्धि, सीखना, संवेग, संवेदना आदि प्रत्ययों का अध्ययन करता है और इस भाँति मनोविज्ञान को विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करता है। मनोविज्ञान की इस शाखा के विकास का श्रेय विलहेम वुण्ट, कैटेल तथा फ्रांसिस गाल्टन जैसे मनोवैज्ञानिकों को जाता है।

(17) असामान्य मनोविज्ञान – मनोविज्ञान में प्राणी के सामान्य व्यवहार के अतिरिक्त उसके असामान्य व्यवहार का भी अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान की यह शाखा मन की असामान्य अवस्थाओं तथा स्थायी एवं अस्थायी मनोविकृतियों का अध्ययन करती है। इसके अन्तर्गत सनकीपन, भ्रान्तियाँ, अन्धापन, वातरोग, वातोन्माद (हिस्टीरिया), आतंक (फोबिया), हकलाना, चरित्र-विकार, असामाजिक व्यक्तित्व, स्नायु रोग, मानसिक दुर्बलता तथा विविध प्रकार के उन्माद शामिल किये जाते हैं। उपचार की व्यवस्था के कारण असामान्य मनोविज्ञान ने एक नयी शाखा ‘चिकित्सा मनोविज्ञान को भी जन्म दिया है।

(18) व्यावहारिक मनोविज्ञान – यदि सामान्य मनोविज्ञान मानव के स्वभाव तथा व्यवहार के सैद्धान्तिक पक्षों का अध्ययन करता है तो व्यावहारिक मनोविज्ञान इन सिद्धान्तों अथवा नियमों की मानव-जीवन में उपयोगिता खोजता है। व्यावहारिक मनोविज्ञान का अध्ययन मानव एवं उसके समाज की समस्याओं के समाधान से सीधा सम्बन्ध रखता है और इस प्रकार एक अत्यन्त उपयोगी क्षेत्र समझा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षण, शिक्षा एवं व्यवसाय के लिए निर्देशन, मानसिक स्वास्थ्य, अपराध, सामूहिक तनाव, प्रचार एवं विज्ञापन, औद्योगिक तथा कानूनी मनोविज्ञान विशेष रूप से सम्मिलित हैं।

(19) शिक्षा-मनोविज्ञान – शिक्षा के क्षेत्र की अनेक समस्याओं का समाधान सामान्य मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है। इनमें मुख्य समस्याएँ बच्चों के शिक्षण, अधिगम, योग्यताओं, अभिप्रेरणा, आकांक्षा-स्तर, पाठ्यक्रम, परीक्षा, उपलब्धि तथा भविष्य योजनाओं से सम्बन्धित होती हैं। शिक्षा-मनोविज्ञान इन सभी समस्याओं का अध्ययन कर उचित समाधान प्रस्तुत करता है।

(20) पर्यावरणीय-मनोविज्ञान – पर्यावरणीय-मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की आधुनिकतम (Recent) शाखाओं में से एक है। इस विज्ञान की विषय-वस्तु मौसम, जलवायु, मृदा तथा भौगोलिक दृश्य-इन चारों क्षेत्रों से सम्बन्धित है। मनोविज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत प्राकृतिक पर्यावरण को मानव-व्यवहार एवं उसकी मानसिक अवस्थाओं से सम्बद्ध करके अध्ययन किया जाता है।

मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं विषय-विस्तार दिन-प्रतिदिन वृद्धि कर रहा है। आधुनिक युग में जीवन का कोई भी क्षेत्र एवं पक्ष ऐसा नहीं है जो मनोविज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र से बाहर हो। सच तो यह है कि मनोविज्ञान की विस्तृत होती जा रही परिधि को संक्षिप्त विवरण में सीमित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 4
मानव-जीवन में मनोविज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
या
विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए कि मानव-जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में मनोविज्ञान उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर :
मनोविज्ञान का मूल्य अथवा उपयोगिता एवं महत्त्व
(Value or Utility and Importance of Psychology)

मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनोविज्ञान ने मूल्यवान योगदान प्रदान किया है। मनोविज्ञान के अध्ययन ने मानव-जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप मानव के दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तनों का जन्म हुआ। इस शास्त्र के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान ने मानव की व्यक्तिगत तथा सामूहिक समस्याओं का समाधान खोजने में पर्याप्त सहायता दी है। इस भाँति मनोविज्ञान को मनुष्य के दैनिक जीवन में विशेष महत्त्व है। मानव-जीवन को सुखमय बनाने में | मनोविज्ञान की उपयोगिता निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णित है

(1) व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान की उपयोगिता – आधुनिक मानव स्वयं को गम्भीर समस्याओं से घिरा पाता है। ये समस्याएँ जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित हैं और मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं आध्यात्मिक विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं। मनोविज्ञान का ज्ञान इन अवरोधों को हटाने में हमारी पर्याप्त सहायता करता है। बहुत-सी शारीरिक समस्याओं का समाधान मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा सम्भव है। अनुकूलन की समस्या भी मनोविज्ञान के ज्ञान द्वारा हल होती है। मनोविज्ञान के ज्ञान से विभिन्न मानसिक रोगों तथा समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है। मानव व्यक्तित्व के सन्तुलन तथा विकास में मनोवैज्ञानिक निर्देशन की विशिष्ट भूमिका है। अच्छी आदतों तथा उत्तम चरित्र के निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस भाँति मनुष्य की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान के ज्ञान की अनिवार्यता निर्विवाद है।

(2) शिक्षा के क्षेच्च में मनोविज्ञान की उपयोगिता – मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में आधारभूत परिवर्तनों को जन्म दिया है। मनोविज्ञान से सम्बन्धित खोजों ने सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया का दृष्टिकोण ही बदल दिया है। आधुनिक शिक्षा का केन्द्र-बिन्दु शिक्षक से हटकर ‘बालक’ हो गया है अर्थात् शिक्षा ‘बाल केन्द्रित हो गयी है। बालक को दण्ड का भय दिखाकर सीखने के लिए बाध्य नहीं किया जाता; अपितु उसकी भावनाओं को समझकर उसमें अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाये जाते हैं। बालक को मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर सीखने एवं शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है। मनोविज्ञान ने शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित किये हैं–पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधियाँ, शिक्षण-सहायक सामग्री, अभिप्रेरणा के तरीकों तथा सीखने के सिद्धान्तों में मनोविज्ञान का अपूर्व योगदान स्पष्ट है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का समाधान सरल हो गया है।

(3) अपराधियों के सुधार तथा अपराधों के नियन्त्रण में मनोविज्ञान की उपयोगिता – मनोविज्ञान के ज्ञान ने अपराध जगत् को एक अभूतपूर्व सकारात्मक दिशा प्रदान की है। पहले अपराधियों को शारीरिक यन्त्रणाओं के माध्यम से सुधारने के प्रयास किये जाते थे, किन्तु आज मनोविज्ञान ने इस धारणा को मूलतः बदल दिया है। मनोविज्ञान की मान्यता है कि मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, अपितु समाज की परिस्थितियाँ उसे अपराधी बना देती हैं। अपराध को जन्म देने वाली परिस्थितियों तथा कारणों का विश्लेषण कर अपराधी में सुधार हेतु प्रयास किये जाने चाहिए। अतः दण्ड के स्थान पर सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए तथा परिस्थितियों में सुधार का प्रयास किया जाना चाहिए। इसी कारण से आजकल सुधार-गृहों, खुले जेलखानों, बोस्टेल स्कूलों एवं प्रोबेशन की व्यवस्था की गयी है। मनोविज्ञान ने बाल-अपराधियों के लिए भी उदारवादी एवं सुधारात्मक समाधान प्रस्तुत किये हैं। मनोविज्ञान का ज्ञान समाज में अपराधों को नियन्त्रित करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यदि पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में सुधार कर लिया जाये तो निश्चित रूप से क्रमश: बाल-अपराधों एवं अपराधों में कमी आ सकती है।

(4) चिकित्सा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का महत्त्व –  शिक्षा एवं अपराध के अतिरिक्त-मभोविज्ञान का चिकित्सा के क्षेत्र में भी विशेष महत्त्व है। दुर्भाग्य से, पहले मन्द बुद्धि वाले व्यक्तियों तथा मानसिक रोगियों के साथ समाज का व्यवहार अच्छा नहीं था। विक्षिप्त अथवा पागल व्यक्तियों के रोग को भूत-प्रेत आदि की आपदाओं का शिकार माना जाता था। उन्हें जंजीरों से बाँधकर रखा जाता था और उन पर अमानवीय अत्याचार किये जाते थे। इस प्रकार के अन्धविश्वासों का खण्डन करके मनोविज्ञान ने इस प्रकार के रोगों के कारणों का पता लगाकर समुचित चिकित्सा की पद्धति विकसित की है। इस भाँति, मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की सहायता से मनोरोगियों के उपचार की व्यवस्था करता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार कुछ शारीरिक रोगों का कारण भी मनोवैज्ञानिक ही होता है तथा उनका उपचार भी मनोवैज्ञानिक उपायों द्वारा किया जा सकता है।

(5) उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र में उपयोगिता – मनोविज्ञान ने उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र को नये आयाम दिये हैं। औद्योगिक मनोविज्ञान’ नामक मनोविज्ञान की एक शाखा तो विशेषत: औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का अध्ययन करती है तथा उनका समाधान प्रस्तुत करती है। उद्योगों में हड़ताल तथा तालाबन्दी की समस्याएँ, मजदूर तथा मिल-मालिकों के आपसी सम्बन्ध, कर्मचारियों के कार्य की दशाओं में सुधार और कर्मचारियों की भर्ती सम्बन्धी समस्याएँ आदि ऐसे विषय हैं जिन्हें मनोवैज्ञानिक आधार की आवश्यकता है। मनोविज्ञान ने मानवीय क्षमताओं तथा कौशल के आधार पर श्रम विभाजन का विचार किया, जिससे कम श्रम तथा समय में बेहतर उत्पादन की युक्तियाँ विकसित की गईं। मनोवैज्ञानिक खोजों ने प्रचार तथा विज्ञापन के क्षेत्र को अत्याधुनिक और सर्वाधिक उपयोगी बना दिया है।

(6) मनोविज्ञान स्वयं तथा दूसरों को समझने में सहायक – मनोविज्ञान का अध्ययन मनुष्य के निजी व्यक्तित्व को समझने में सहायता देता है। मनोविज्ञान के ज्ञान से व्यक्ति अपनी शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों तथा स्वभाव से परिचित होता है और उनके समुचित विकास हेतु प्रयास करता है। मनोविज्ञान के अध्ययन से व्यक्ति अपने व्यवहार-सम्बन्धी कमियों का ज्ञान प्राप्त कर उनमें संशोधन करने की चेष्टा करता है। इस भाँति वह स्वयं को सहज ही वातावरण से समायोजित कर लेता है। इसके अतिरिक्त मनोविज्ञान के जोन से दूसरे लोगों से भिन्न व्यवहार के कारणों तथा स्वभाव का पता चलता है जिससे उनके साथ समायोजन में सहायता मिलती है। इस प्रकार से मनोविज्ञान का अध्ययन मात्र स्वयं को समझने में ही सहायक नहीं है बल्कि इससे दूसरों को समझने में भी सहायता मिलती है।

(7) राजनीतिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का महत्त्व – आधुनिक राजनीति में मनोविज्ञान का सक्रिय योगदान है। जनता की इच्छा के विरुद्ध चलने वाली सरकारें स्थायी नहीं होतीं तथा थोड़े समय में ही गिर जाती हैं। चुनाव के दौरान प्रत्याशियों को अपने प्रचार में मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाने होते हैं। चुनाव-प्रचार जितना अधिक मनोवैज्ञानिक होगा, चुनाव में उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होगी। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत शासन प्रबन्ध चलाने, कानून बनाने तथा सुधारवादी प्रस्तावों के लिए भी मनोवैज्ञानिक समझ होनी चाहिए। देश के नेतागण अपने पद तथा राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा हेतु मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं। वे जनता के प्रति मनोवैज्ञानिक ढंग से अपना प्रेम, सहानुभूति, सम्मान या अपनी उपलब्धियाँ प्रस्तुत करते हैं। जनक्रान्ति को रोकने तथा जनसमूह पर नियन्त्रण रखने के लिए भी मनोविज्ञान का ज्ञान आवश्यक है। इस प्रकार, राजनीतिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का अध्ययन मूल्यवान समझा जाता है। आज वही नेता लोकप्रिय हो सकता है जो जन-साधारण के मनोविज्ञान का ज्ञाता है।

(8) सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु मनोविज्ञान की उपयोगिता – प्रत्येक सामाजिक समस्या का अपना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है। आज भारतीय समाज विभिन्न कुरीतियों, विषमताओं तथा समस्याओं का शिकार है; उदाहरण के लिए-दहेज-प्रथा, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, बेरोजगारी तथा हिंसा की प्रवृत्तियाँ। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास करते समय उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती। ये समस्याएँ समाज के व्यक्तियों से सम्बन्ध रखती हैं। और समाज के व्यक्तियों की भावनाओं, रुचियों, अभिरुचियों, प्रथाओं एवं परम्पराओं का अध्ययन करके ही उनकी मनोवृत्तियों में परिवर्तन सम्भव है। समाज मनोविज्ञान, सामाजिक समस्याओं के मनोवैज्ञानिक पक्ष को समझकर उनके समाधान का प्रयास करता है। इस प्रकार सामाजिक समस्याओं को हल करने में मनोविज्ञान के अध्ययन की अत्यधिक आवश्यकता प्रतीत होती है।

(9) युद्धकाल में मनोविज्ञान की उपयोगिता – भले ही युद्ध एक बुराई तथा सभ्य मानव समाज के लिए कलंक है, परन्तु प्रत्येक देश-काल में युद्ध होते रहे हैं तथा भविष्य में भी होते रहेंगे। इस स्थिति में प्रत्येक देश सम्भावित युद्धों में विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। युद्धों में सफलता के दृष्टिकोण से भी मनोविज्ञान का ज्ञान उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। मनोविज्ञान के ज्ञान ने युद्ध-कार्यों में भारी सहायता प्रदान की है। शीत-युद्ध मनोवैज्ञानिक प्रचार पर आधारित होते हैं। जल, स्थल और वायु सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए आवश्यक है कि उनका चुनाव वांछित योग्यतानुसार किया जाये। भर्ती से पूर्व उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षाएँ देनी होती हैं। जो अभ्यर्थी इन परीक्षणों में सफलता प्राप्त कर लेते हैं उन्हें सेवाओं में प्रवेश मिल जाता है। युद्धकाल में आक्रमण से पूर्व तथा युद्ध घोषित होने के पश्चात् जनता की प्रतिक्रियाओं का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। सैनिकों को प्रेरित करने की दृष्टि से देश के नेतागण सीमा पर जाते हैं। इससे सैनिकों का हौसला बढ़ता है और वे बड़े-से-बड़े बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इसके विपरीत, विभिन्न मनोवैज्ञानिक उपायों द्वारा शत्रुपक्ष की सेना के मनोबल को गिराने का भी प्रयास किया जाता है। यदि शत्रुपक्ष की सेना का मनोबल टूट जाए तो युद्ध में अनिवार्य रूप से विजय प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि युद्धकाल में मनोविज्ञान का महत्त्व सर्वाधिक रूप से सिद्ध होता है।

(10) विश्व-शान्ति की स्थापना में मनोविज्ञान का योगदान – विश्व-शान्ति की स्थापना हेतु मानव सम्बन्धों में उचित सामंजस्य की आवश्यकता है। मनोविज्ञान के अध्ययन से ही सामंजस्य या अनुकूलन की समस्या का समाधान सम्भव है। वैयक्तिक भिन्नता की जानकारी प्राप्त करके ही विभिन्न राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक तनाव कम किया जा सकता है। विश्व-स्तर पर तनाव एवं अशान्ति के कारणों को खोजकर उनको मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है तथा पहले से ही इस प्रकार के संघर्ष का निवारण सम्भव हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय तनाव तथा राष्ट्रों की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूद, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से कम किया जा सकता है। इस प्रकार मनोविज्ञान का ज्ञान वसुधैव कुटुम्बकम् एवं विश्व-बन्धुत्व की भावना को जाग्रत करता है, जिससे विश्व-शान्ति की स्थापना सम्भव है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मानव-जीवन के प्रत्येक पक्ष में मनोविज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व स्वयंसिद्ध है। मनोविज्ञान का ज्ञान मनुष्य की दैनिक आवश्यकताओं में बहुमूल्य योगदान प्रदान कर रहा है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान के अध्ययन की महती आवश्यकता है और इसकी उपेक्षा करके जन-कल्याण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान एक नव-विकसित विज्ञान है। विकास-क्रम में मनोविज्ञान को भिन्न-भिन्न रूप में प्रतिपादित किया जाता रहा है, परन्तु अब इसका अर्थ एवं क्षेत्र आदि निर्धारित हो गया है। वर्तमान मान्यताओं के अनुसार मनोविज्ञान की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. मनोविज्ञान मनाव और पशु दोनों के व्यवहार का अध्ययन करने वाला एक विधायक विज्ञान है।
  2. मनोविज्ञान मनुष्य को एक मन:शारीरिक प्राणी मानकर उसका अध्ययन करता है।
  3. मनोविज्ञान मानव-व्यवहार के भिन्न-भिन्न पक्षों का क्रमबद्ध अध्ययन करता है। वास्तव में मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, उसमें उपस्थित विभिन्न तत्त्वों से वह क्रिया करता है। इसी को मानव व्यवहार कहते हैं।
  4. मनोविज्ञान प्राणियों के व्यवहार पर वातावरण के भौतिक तथा अभौतिक प्रभाव का अध्ययन करता है तथा अन्तिम रूप से प्राणियों की ज्ञानात्मक तथा संवेगात्मक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
“मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान की वैज्ञानिक प्रकृति को निर्धारित करते हुए यह कहा जाता है कि मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान (Positive Science) है। विज्ञानों की प्रकृति को ध्यान में रखकर किये गये वर्गीकरण के अन्तर्गत विज्ञान के दो मुख्य प्रकार निर्धारित किये गये हैं, जिन्हें क्रमश: ‘विधायक विज्ञान तथा नियामक विज्ञान’ कहा गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत विधायक विज्ञान उन विज्ञानों को कहा जाता है जो केवल तथ्यों का अध्ययन करते हैं तथा अपने अध्ययन के आधार पर तथ्यात्मक निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार विधायक विज्ञान क्या है की बात करते हैं। जहाँ तक नियामक विज्ञानों का प्रश्न है, वे मूल्यों एवं आदर्शों का अध्ययन एवं विवेचन करते हैं। ये विज्ञान अपने अध्ययन के आधार पर मूल्यात्मक निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं। नियामक विज्ञान सदैव ‘क्या होना चाहिए’ की बात करते हैं। अब प्रश्न उठता है कि मनोविज्ञान के अध्ययन किस प्रकार के होते हैं? मनोविज्ञान के समस्त अध्ययन तथ्यों से सम्बन्धित होते हैं। मनोविज्ञान द्वारा प्रतिपादित निष्कर्ष भी तथ्यात्मक होते हैं। मनोविज्ञान को मूल्यों एवं आदर्शों से कोई सरोकार नहीं होता। मनोविज्ञान के इस दृष्टिकोण को ही ध्यान में रखते हुए इसे एक विधायक विज्ञान स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 3.
मनोविज्ञान की मुख्य शाखाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान व्यवहार का विधायक विज्ञान है। व्यवहार के अनेक पक्ष एवं रूप हैं; अतः मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र भी अत्यधिक व्यापक है। अध्ययन की सुविधा के लिए मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाएँ निर्धारित की गयी हैं। मनोविज्ञान की मुख्य शाखाएँ हैं –

  1. सामान्य मनोविज्ञान
  2. वैयक्तिक मनोविज्ञान
  3. वैयक्तिक विभिन्नता का मनोविज्ञान
  4. समाज मनोविज्ञान
  5. बाल मनोविज्ञान
  6. किशोर मनोविज्ञान
  7. उत्पत्तिमूलक मनोविज्ञान
  8. विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान
  9. मनो-भौतिक मनोविज्ञान
  10. मनोविश्लेषणात्मक मनोविज्ञान
  11. प्रेरणात्मक मनोविज्ञान
  12. लोकमनोविज्ञान
  13. पशु मनोविज्ञान
  14. शारीरिक मनोविज्ञान
  15. परा-मनोविज्ञान
  16. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान
  17. असामान्य मनोविज्ञान
  18. व्यावहारिक मनोविज्ञान
  19. शिक्षा मनोविज्ञान
  20. पर्यावरणीय मनोविज्ञान।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान की कोई आधुनिक परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
मनोविज्ञान की एक आधुनिक परिभाषा मैक्डूगल ने इन शब्दों में प्रतिपादित की है, मनोविज्ञान एक ऐसा विधायक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहार का अध्ययन होता है।”

प्रश्न 2.
मनोविज्ञान द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त किस प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
प्रत्येक विज्ञान अपने व्यवस्थित अध्ययन के आधार पर कुछ सिद्धान्त प्रस्तुत करता है। मनोविज्ञान द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त सामान्य रूप से सार्वभौमिक (Universal) होते हैं। सार्वभौमिक सिद्धान्त उन सिद्धान्त को माना जाता है जिन पर देश-काल या पात्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मनोविज्ञान के सिद्धान्त भी देश-काल के प्रभाव से मुक्त हैं। समान परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न देश-काल में मनोविज्ञान के सिद्धान्त पूर्ण रूप से प्रामाणिक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 3
क्या मनोविज्ञान द्वारा पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करना सम्भव है?
उत्तर :
विज्ञान की एक अनिवार्य विशेषता है-अपने क्षेत्र में पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करना। मनोविज्ञान भी एक विज्ञान होने के नाते अपने अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित पूर्वानुमान या भविष्यवाणी प्रस्तुत करता है। मनोविज्ञान द्वारा विभिन्न परीक्षणों के आधार पर मानव-व्यवहार एवं व्यक्तित्व के विषय में पूर्वानुमान प्रस्तुत किये जाते हैं। इस प्रकार के पूर्वानुमान व्यावसायिक वरण एवं निर्देशन आदि के क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 4.
मनोविज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व के मुख्य क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मानव-जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में मनोविज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व को स्वीकार किया जा चुका है। मनोविज्ञान के महत्त्व एवं उपयोगिता के मुख्य क्षेत्र हैं –

  1. व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान का क्षेत्र
  2. शिक्षा का क्षेत्र
  3. अपराध नियन्त्रण एवं अपराधियों के सुधार का क्षेत्र
  4. चिकित्सा का क्षेत्र
  5. उद्योग तथा व्यापार का क्षेत्र
  6. राजनीति का क्षेत्र
  7. व्यक्तित्व के अध्ययन का क्षेत्र
  8. सामाजिक समस्याओं के समाधान का क्षेत्र तथा
  9. युद्ध एवं विश्व-शान्ति का क्षेत्र।

प्रश्न 5.
उद्योग मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
औद्योगिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मनोविज्ञान के व्यावहारिक पक्ष से है। औद्योगिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत मुख्य रूप से औद्योगिक एवं व्यावसायिक पर्यावरण में होने वाले मानवीय व्यवहार का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। औद्योगिक मनोविज्ञान सम्बन्धित क्षेत्र की समस्याओं के लक्षणों, कारणों एवं समाधान के उपायों का भी अध्ययन करता है।

क्रिश्चित उतरीय प्रश्न

प्रश्न I.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए –

  1. साइकोलॉजी (Psychology) का शाब्दिक अर्थ है ………………………. |
  2. मनोविज्ञान को प्रारम्भिक अर्थ ………………………. था।
  3. प्रारम्भिक काल में मनोविज्ञान का अध्ययन ………………………. के अन्तर्गत किया जाता था।
  4. अरस्तू ने मनोविज्ञान को ………………………. के रूप में प्रतिपादित किया था।
  5. सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी में मनोविज्ञान को ………………………. माना जाता था।
  6. विलियम जेम्स के अनुसार मनोविज्ञान ………………………. का विज्ञान है।
  7. प्राणी के व्यवहार का अध्ययन ………………………. विषय के अन्तर्गत किया जाता है।
  8. मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान मानने वाले विद्वानों को ………………………. कहते हैं।
  9. मनोविज्ञान ………………………. का वैज्ञानिक अध्ययन है।
  10. मनोविज्ञान व्यवहार का ………………………. विज्ञान है।
  11. मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो विभिन्न परिस्थितियों में प्राणी के ………………………. का अध्ययन करता है।
  12. जब मनुष्य का व्यवहार सामान्य नहीं होता है तो उसे ………………………. व्यवहार कहा जाता है।
  13. एडविन जी० बोरिंग के अनुसार मनोविज्ञान ………………………. का अध्ययन है।
  14. मनोविज्ञान की एक विशेषता तथ्यात्मकता है और यह ………………………. कहलाता है।
  15. मनोविज्ञान द्वारा प्रतिपादित समस्त सिद्धान्त ………………………. आधारित होते हैं।
  16. मनोविज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र ………………………. है।
  17. मनोविज्ञान न केवल सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से बल्कि ………………………. दृष्टिकोण से भी उपयोगी है।
  18. मनोविज्ञान द्वारा व्यक्ति के सामान्य तथा ………………………. दोनों प्रकार के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
  19. मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला की स्थापना ………………………. ने की थी।
  20. विलियम वुण्ट के प्रयासों से विश्व में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला ………………………. में स्थापित की गयी थी।
  21. बच्चों की समस्याओं तथा व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित मनोविज्ञान का क्षेत्र है ………………………. |

उत्तर :

  1. आत्मा का विज्ञान
  2. आत्मा का ज्ञान
  3. दर्शनशास्त्र
  4. आत्मा के ज्ञान
  5. मन का विज्ञान
  6. चेतना
  7. मनोविज्ञान
  8. व्यवहारवादी
  9. व्यवहार
  10. विधायक
  11. व्यवहार
  12. असामान्य
  13. मानव स्वभाव
  14. विधायक विज्ञान
  15. तथ्यों पर
  16. व्यापक
  17. व्यावहारिक
  18. असामान्य
  19. विलियम वष्ट
  20. लिपजिग
  21. बाल मनोविज्ञाना

प्रश्न II.
निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
प्राचीन यूनानी विद्वान मनोविज्ञान को किस रूप में प्रतिपादित करते थे?
उत्तर :
प्राचीन यूनानी विद्वान मनोविज्ञान को ‘आत्म-दर्शन’ अथवा ‘मानसिक दर्शन के रूप में प्रतिपादित करते थे।

प्रश्न 2.
मनोविज्ञान को मन का विज्ञान मानना क्यों छोड़ दिया गया?
उत्तर :
मन के स्वरूप के स्पष्ट न हो पाने के कारण ही मनोविज्ञान को मन का विज्ञान मानना छोड़ दिया गया।

प्रश्न 3.
मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान मानने वाले मुख्य विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर :
विलियम वुण्ट, विलियम जेम्स तथा जेम्स सली।

प्रश्न 4.
व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक वाटसन द्वारा प्रतिपादित मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
“एक ऐसी मनोविज्ञान लिखना सम्भव है …… जिसकी ‘व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषा की जा सके।

प्रश्न 5.
मनोविज्ञान किस प्रकार का विज्ञान है?
उत्तर :
मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है।

प्रश्न 6.
मनोविज्ञान की उस शाखा को क्या कहते हैं जिसके अन्तर्गत व्यवहार के सामान्य पक्षों तथा उसके सैद्धान्तिक स्वरूपों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर :
उक्त सामान्य मनोविज्ञान।

प्रश्न 7.
मनोविज्ञान की किस शाखा के अन्तर्गत व्यक्ति के असामान्य व्यवहार का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर :
असामान्य मनोविज्ञान।

प्रश्न 8.

मानव-जीवन में मनोविज्ञान की उपयोगिता को निर्धारित करने वाली मनोविज्ञान की शाखा को क्या कहते हैं?
उत्तर :
व्यावहारिक मनोविज्ञान।

प्रश्न 9.
‘मनोविश्लेषणात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कौन था?
उत्तर :
फ्रॉयड।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए 

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान के विकास-क्रम के प्रथम चरण में इसे माना जाता था
(क) स्वभाव का विज्ञान
(ख)चेतना का विज्ञान
(ग) आत्मा की ज्ञान
(घ) मन का विज्ञान

प्रश्न 2.
मनोविज्ञान को आत्मा का ज्ञान नहीं कहा जा सकता, क्योंकि
(क) आत्मा का स्वरूप स्पष्ट नहीं है।
(ख) आत्मा तथा शरीर का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है।
(ग) आत्मा के विभिन्न अर्थ प्रतिपादित किये जाते थे
(घ) इन सभी कारणों से

प्रश्न 3.
मनोविज्ञान वैज्ञानिक अध्ययन है
(क) व्यवहार को
(ख) मन का
(ग) आत्मा का
(घ) पदार्थ को

प्रश्न 4.
मनोविज्ञान एक विज्ञान है, क्योकि
(क) यह वैज्ञानिक पद्धति को अपनाता है।
(ख) इसका अध्ययन तथ्यात्मक है।
(ग) यह कार्य-कारण सम्बन्धों का अध्ययन करता है ।
(घ) उपर्युक्त सभी कारणों से

प्रश्न 5.
मनोविज्ञान अपने आप में एक
(क) रोचक विज्ञान है।
(ख) आदर्श विज्ञान है ।
(ग) भौतिक विज्ञान है।
(घ) विधायक विज्ञान है।

प्रश्न 6.
“मनोविज्ञान एक ऐसा विधायक विज्ञान है जिसमें जीवों के व्यवहारों का अध्ययन होता है।” इस परिभाषा के प्रतिपादक हैं
(क) विलियम जेम्स।
(ख) विलियम मैक्डूगल
(ग) विलियम वुण्ट
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 7.
शैक्षिक परिस्थितियों में मानव-व्यवहार का अध्ययन करने वाली मनोविज्ञान की शाखा को कहते हैं
(क) बाल मनोविज्ञान
(ख) शिक्षा मनोविज्ञान
(ग) व्यावहारिक मनोविज्ञान
(घ) सामान्य मनोविज्ञान

प्रश्न 8.
मनोविज्ञान द्वारा किस प्रकार के मानव-व्यवहार का अध्ययन किया जाता है?
(क) केवल सामान्य व्यवहार का
(ख) केवल असामान्य व्यवहार का
(ग) सामान्य तथा असामान्य दोनों प्रकार के व्यवहार का
(घ) शिष्ट व्यवहार का

प्रश्न 9.
मनोविज्ञान का ज्ञान उपयोगी नहीं है
(क) शिक्षा के क्षेत्र में
(ख) उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में
(ग) चिकित्सा के क्षेत्र में
(घ) नैतिकता का पाठ पढ़ाने में

प्रश्न 10.
मनोविज्ञान की किस शाखा को सम्बन्ध मानसिक समस्याओं के निदान से है?
(क) विकासात्मक मनोविज्ञान
(ख) वैयक्तिक मनोविज्ञान
(ग) नैदानिक मनोविज्ञान
(घ) तुलनात्मक मनोविज्ञान

प्रश्न 11.
प्रमुख व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक का नाम है
(क) पावलोव
(ख) वाटसन
(ग) होल
(घ) एडलर

उत्तर :

  1. (ग) आत्मा का ज्ञान
  2. (घ) इन सभी कारणों से
  3. (क) व्यवहार का
  4. (घ) उपर्युक्त सभी कारणों से
  5. (घ) विधायन विज्ञान है
  6. मिलियने मैक्डूगल
  7. (ख) शिक्षा मनोविज्ञान
  8. (ग) सामान्य तथा असामान्य दोनों प्रकार के व्यवहार का
  9. (घ) नैतिकता का पाठ पढाने मे
  10. (ग) नैदानिक मनोविज्ञान
  11. (ख) वाटसन

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology (मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Psychology Chapter 1 Meaning, Definition and Scope of Psychology (मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *