UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 1 मृदा गठन या मृदा कणाकार
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कृषि-विज्ञान
(समस्त पाठों के ‘अभ्यासों’ के सम्पूर्ण प्रश्नोत्तर)
इकाई-1 मृदा गठन या मृदा कणाकार
अभ्यास
प्रश्न 1.
सही विकल्प के सामने () का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
उत्तर :
- मोटी बालू का आकार होता है
(क) 4.0-3.0 मिमी
(ख) 3.0-2.0 मिमी
(ग) 2.0-0.2 मिमी ()
(ध) 0.2 से .02 - बलुई मिट्टी में बालू, सिल्ट एवं मृत्तिका की % मात्रा होती है
(क) 30-50 30-500-20
(ख) 80-1000 -200-20 ()
(ग) 20-50 20-50 20-30
(घ) 0-20 50-70 30-50 - ऊसर भूमि बनने का कारण है
(क) अत्यधिक वर्षा
(ख) घने जंगल होना
(ग) जल निकास अच्छा होना
(घ) क्षारीय उर्वरकों का अधिक मात्रा में उपयोग () - ऊसर भूमि को सुधारा जा सकता है|
(क) चूना प्रयोग करके
(ख) जिप्सम प्रयोग करके ()
(ग) क्षारीय उर्वरकों का प्रयोग करके
(घ) क्षारीय उर्वरकों को अधिक मात्रा में उपयोग करके
प्रश्न 2.
उत्तर :
निम्नलिखित प्रश्नों में खाली जगह भरिए (भरकर)
(क) मृत्तिका का आकार 0.002 मिमी गिर्ग होता है। (0.2/0.002)
(ख) दोमट मिट्टी में सिल्ट की मात्रा 30-50 % नी हैं। (3050,80-100)
(ग) मेंड़बन्दी करना ऊसर भूमि सुधार की भौतिक विधि है। (रासा पनेक/भौतिक)
(घ) पायराइट का प्रयोग क्षारीय सुधार में किया जाता है। (अम्लीय/क्षारीय)
(छ) अम्लीय भूमि सुधार में चूना का प्रयोग होता है। (जिप्सम/चूना)
प्रश्न 3.
उत्तर :
निम्नलिखित कथनों में सी पर () को तथा गलत पर (✗) का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
(क) मृदा में बालू सिल्ट और मृत्तिका कणों का विभिन्न मात्राओं में आपसी सम्बन्ध मृा गठन कहलाता है। ()
(ख) अच्छी गठन वाली मृदा में रन्ध्रों की संख्या बहुत कम होती है। (✗)
(ग) भारत में ऊसर भूमि 170 लाख हेक्टेयर है। (✗)
(घ) नहरों द्वारा अधिक सिंचाई करने से भूमि ऊसर नहीं होती है। (✗)
(ङ) अम्लीय मृदा का PH 7.0 से बहुत कम होता है। ()
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में स्तम्भ अ का स्तम्भ ब से सुमेल कीजिये (सुमेल करके)
उत्तर : स्तम्भ अ
(क) बालू, सिल्ट व मृत्तिका कणों का आपसी सम्बन्थे । मृदा गठन ।
(ख) अधिक बालू की मात्रा बलुई
(ग) लवण । रेह
(घ) निक्षालन भौतिक विधि
(ङ) कार्बनिक खादों का प्रयोग । जैविक विधि
प्रश्न 5.
मृदा गठन की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
मृदा में तीन प्रकार के कणों- बालू, सिल्ट और मृत्तिका का विभिन्न मात्रा में आपसी जुड़ाव या सम्बन्ध मृदा गठन कहलाता है। विभिन्न मृदा वर्ग में कणों के सापेक्षिक अनुपात को मृदा गठन (कणाकार) कहते हैं।
प्रश्न 6.
मृदा कण एवं उनके आकार के विषय में लिखिए।
उत्तर : विभिन्न प्रकार के मृदा कणों और उनके आकार निम्न प्रकार हैं
प्रश्न 7.
मुख्य कणाकार वर्ग लिखिए।
उत्तर :
मुख्य कणाकार वर्ग निम्न प्रकार से वर्गीकृत है
प्रश्न 8.
ऊसर भूमि की परिभाषा लिखिए |
उत्तर :
ऐसी भूमि जिसमें लवणों (सोडियम कार्बोनेट, सोडियम बाईकार्बोनेट, सोडियम क्लोराइड आदि) की अधिकता के कारण ऊपरी सतह सफेद दिखाई देने लगती है और फसलें नहीं उगाई जा सकतीं, उसे ऊसर भूमि कहते हैं।
प्रश्न 9.
अम्लीय मृदा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
अम्लीय मृदा- यह मिट्टी अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मिट्टी में अथसड़े जीवांश अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। अम्लीयता के कारण उत्पादन नहीं होता। हाइड्रोजन आयनों (H)+ की सान्द्रता अधिक होती है। मृदा का PH सदैव 7 से कम होता है। हमारे देश में अम्लीय मृदा असम, केरल, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, बिहार का तराई क्षेत्र, उत्तर प्रदेश तथा हिमालय के तराई क्षेत्र के कुछ स्थानों में पाई जाती है।
प्रश्न 10.
मृदा गठन एवं मृदा विन्यास में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
मृदा गठन से तात्पर्य है कि मृदा किस गटने वाली है, जैसे- बलुई, बलुई दोमट, दोमट, सिल्टी, चिकनी आदि। मृदा विन्यास से तात्पर्य मृदा के तत्त्व जैसे खनिज पदार्थ (50%) मृदा वायु 25%, मृदा जल 24%, जैविक पदार्थ 1% आदि।
प्रश्न 11.
मृदा गठन क्या है? मृदा गठन वर्गों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्रश्न 5 एवं प्रश्न 7 का उत्तर देखिए।
प्रश्न 12.
ऊसर भूमि किसे कहते हैं? ऊसर भूमि के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ऐसी भूमि, जिसमें लदणे की अधिकता के कारण ऊपरी सतह सफेद दिखाई देने लगती है और फसलें नहीं उगाई जा सकतीं, उसे ऊसर भूमि कहते हैं। ऊसर भूमि का प्रभाव
- ऊसर क्षेत्र में मकान के प्लास्टर जल्दी गिरने लगते हैं,तथा ईंटें गलने लगती हैं।
- कच्ची, पक्की सड़कें टूटी-फूटी, ऊबड़-खाबड़ दिखती हैं।
- वर्षा होने पर फिसलन होती है।
- जमीन पानी नहीं सोखती, बाढ़ आती है, भू-क्षरण होता है।
- हानिकारक घास उगती है।
- लाभदायक जीवाणु कम होते हैं, जिसमें पोषक तत्त्व घट जाते हैं।
- नमकीन होने से बीजों का जमाव व वृद्धि अच्छी नहीं होती है।
- ऊसर पर्यावरण को प्रदूषित करती है।
- ऊसर बहकर अच्छे खेत भी खराब कर देती है।
प्रश्न 13.
ऊसर भूमि बनने के विभिन्न कारणों का वर्णन विस्तार से कीजिए।
उत्तर :
ऊसर भूमि बनने के प्राकृतिक व अप्राकृतिक दोनों कारण हैं।
प्राकृतिक कारण : वर्षा की कमी, अधिक तापमान, मिट्टी का निर्माण क्षारीय एवं लवणयुक्त चट्टानों से होना, भूमिगत जलस्तर का ऊँचा होना, भूमि के नीचे कड़ी परत का होना तथा लगातार बाढ़ या सूखे की स्थिति
होना। अप्राकृतिक या मानवीय कारण : जल निकास की कमी, अधिक सिंचाई, नहर वाले क्षेत्रों में जल रिसाव, भूमि को परती छोड़ देना, क्षारीय उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग तथा खारे पानी से सिंचाई ।
प्रश्न 14.
ऊसर भूमि का सुधार कैसे करेंगे? सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ऊसर भूमि सुधार प्रक्रिया : ऊसर भूमि सुधारने से पहले कुछ प्रक्षेत्र विकास कार्य करने होते हैं, जैसे- मेंड़बन्दी, समतलीकरण, पानी की व्यवस्था, जल विकास की व्यवस्था तथा 8-10 सेमी गहरी जुताई करके खेत तैयार करना। ऊसर भूमि के प्रकार के अनुसार भौतिक, रासायनिक व जैविक सुधार विधियाँ अपनाते
(क) भौतिक विधि- निम्न प्रकार हैं|
- भूमि की ऊपरी परत को खुरचकर बाहर करना।
- भूमि में पानी भरकर बहाना।
- जल निकास का समुचित प्रबन्ध।
- निक्षालन व रिसाव क्रिया या लीचिंग।
- भूमि के नीचे की कड़ी परत को तोड़ना।
- ऊसर खेत में बोलू या अच्छी मिट्टी का प्रयोग।
- रासायनिक विधियाँ- मिट्टी की जाँच कराकर जिप्सम पावराइट या गन् , प्रयोग किया जाता है।
- जैविक विधियाँ- चीनी मिल से निकलने वाले शीरे का प्रयोग, प्रेसमड कार्बनिक खादों का प्रयोग, हरी खाद के रूप में कुँचा की खेती, ऊसर सहनशील फसलों एवं प्रजातियों की खेती।
प्रश्न 15.
अम्लीय मृदा बनने के कारण एवं उसके सुधार की विधियों को लिखिए।
उत्तर :
अम्लीय मृदा बनने का कारण
- अधिक वर्षा से निक्षालन क्रिया द्वारा क्षारक तत्त्व गहरी तहों में चले जाते हैं। मिट्टी कणों के साथ हाइड्रोजन आयन अधिशोषित हो जाते हैं। मिट्टी अम्लीय हो जाती है।
- फसलों द्वारा क्षारक तत्त्वों का अधिक उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी अम्लीय हो जाती है।
- कुछ मिट्टी ऐसी होती है जो अम्लीय चट्टानों से बनी होती है।
- रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव से भी मृदा अम्लीय बन जाती है। अमोनियम सल्फेट की अमोनिया मिट्टी-कण ले लेते हैं। लेकिन सल्फेट घोल बच जाता है जो मिट्टी द्वारा छोड़े गए हाइड्रोजन आयनों H+ से मिलकर सल्फ्युरिक अम्ल बनाता है, जिससे मृदा अम्लीय हो जाती है।
- बंजर भूमि पर जब कृषि कार्य किए जाते हैं तो मिट्टी से क्षारकों के बहकर नीचे जाने की क्रिया को बल मिलता। हैं। धीरे-धीरे मिट्टी के क्षार नष्ट हो जाते हैं और उनके स्थान पर मिट्टी के कणों पर हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता बढ़ जाती है।
अम्लीय मिट्टी का सुधार : चूने का प्रयोग, जल निकास की उचित व्यवस्था, अम्ल रोथक फसन्नों का उगाना, क्षारक उर्वरकों का प्रयोग तथा पोटाशयुक्त उर्वरकों का प्रयोग करना कुछ ऐसे उपाय हैं, जिनसे अम्लीय मृदा को सुधार किया जा सकता है।
प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।
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