UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry (पर्यावरणीय रसायन)
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पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत पर्यावरणीय प्रदूषण, और पर्यावरण में होने वाली विभिन्न प्रकार की रासायनिक और प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, पर्यावरणीय रसायन शास्त्र कहलाता है।
प्रश्न 2.
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण को लगभग 100 शब्दों में समझाइए।
उत्तर
क्षोभमण्डल में अवान्छित गैसों तथा विविक्त वायु प्रदूषकों की इस सीमा तक वृद्धि कि वे मानव जाति तथा उसके पर्यावरण पर अनिष्ट प्रभाव आरोपित कर सकें, क्षोभमण्डलीय प्रदूषण कहलाता है।
- गैसीय प्रदूषक-जैसे—सल्फर के ऑक्साइड (S2, SO3) नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, NO2 ), कार्बन के ऑक्साइड (CO, CO2), हाइड्रोजन सल्फाइड हाइड्रोकार्बन, ऐल्डिहाइड, कीटोन इत्यादि।
- विविक्त या कणिकीय प्रदूषक-जैसे-धुंध, धुआँ, धूम (fumes), धूल, कार्बन, कण, लेड और कैडमियम यौगिक, जीवाणु, कवक, मॉल्ड इत्यादि। क्षोभमण्डलीय प्रदूषण ईंधनों के दहन, औद्योगिक प्रक्रमों, कीटनाशकों एवं विषैले पदार्थों के उपयोग द्वारा होता है। इसे जीवाश्म ईंधनों (fossil fuels) के प्रयोग को हतोत्साहित कर, ऑटोमोबाइलों से निकलने वाली गैसों को स्वच्छ कॅर, साइक्लोन एकत्रक (cyclone collector) का उपयोग कर एवं उचित अवशिष्ट प्रबन्धन (waste management) द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कार्बन मोनोऑक्साइड अधिक खतरनाक क्यों है? समझाइए।
उत्तर
कार्बन मोनोऑक्साइड एक अत्यधिक हानिकारक गैस है। यह रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन (haemoglobin) से क्रिया कर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाती है जो रक्त में O2 का परिवहन रोक देता है। परिणामस्वरूप शरीर में O2 की कमी हो जाती है। CO के वायु में 100 ppm सान्द्रण पर चक्कर आना तथा सिरदर्द होने लगता है। अधिक सान्द्रता पर CO प्राणघातक हो सकती है। कार्बन डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन के साथ कोई क्रिया नहीं करती है। इस कारण यह कम हानिकारक है, यद्यपि यह ग्लोबल वार्मिंग (global warming) उत्पन्न करती है।
प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस-प्रभाव के लिए कौन-सी गैसें उत्तरदायी हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
CO2 मुख्य रूप से ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) के लिये उत्तरदायी है। परन्तु दूसरी गैसें जो ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करती हैं वे मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ओजोन तथा जल-वाष्प हैं।
प्रश्न 5.
अम्लवर्षा मूर्तियों तथा स्मारकों को कैसे दुष्प्रभावित करती है?
उत्तर
अधिकांश मूर्तियाँ तथा स्मारक संगमरमर (marble) के बने होते हैं जिन पर अम्ल वर्षा का बुरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि इन स्मारकों के चारों ओर उपस्थित वायु में इनके पास स्थित उद्योगों तथा ऊर्जा संयन्त्रों (power plants) से निकलने वाले नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान हो सकते हैं। ये ऑक्साइड ही अम्ल वर्षा का कारण हैं। अम्ल वर्षा में उपस्थित अम्ल . मार्बल से क्रिया करके मूर्तियों तथा स्मारकों को नष्ट कर देते हैं।
प्रश्न 6.
धूम कुहरा क्या है? सामान्य धूम कुहरा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे से कैसे भिन्न है?
उत्तर
धूम कुहरा (Smog)–‘धूम-कुहरा’ शब्द ‘धूम’ एवं ‘कुहरे से मिलकर बना है। अत: जब धूम, कुहरे के साथ मिल जाता है, तब यह धूम कुहरा कहलाता है। विश्व के अनेक शहरों में प्रदूषण इसका आम उदाहरण है। धूम कुहरे दो प्रकार के होते हैं-
- सामान्य धूम कुहरा (General Smog)—यह ठण्डी नम जलवायु में होता है तथा धूम, कुहरे एवं सल्फर डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है। रासायनिक रूप से यह एक अपचायक मिश्रण है। अत: इसे ‘अपचायक धूम-कुहरा’ भी कहते हैं।
- प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा (Photochemical Smog)-उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है। यह स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों एवं हाइड्रोकार्बनों पर सूर्यप्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे की रासायनिक प्रकृति ऑक्सीकारक है। चूंकि इसमें ऑक्सीकारक अभिकर्मकों की सान्द्रता उच्च रहती है; अत: इसे ‘ऑक्सीकारक धूम कुहरा’ कहते हैं।
प्रश्न 7.
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
प्रश्न 8.
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के दुष्परिणाम क्या हैं? इन्हें कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर
प्रकाश रासायनिक धूम-कुहरे के दुष्परिणाम (Bad Results of Photochemical Smog)-प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के सामान्य घटक ओजोन, नाइट्रिक ऑक्साइड, ऐक्रोलीन, फॉर्मेल्डिहाइड एवं परॉक्सीऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) हैं। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के कारण गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। ओजोन एवं नाइट्रिक ऑक्साइड नाक एवं गले में जलन पैदा करते हैं। इनकी उच्च सान्द्रता से सिरदर्द, छाती में दर्द, गले का शुष्क होना, खाँसी एवं श्वास अवरोध हो सकता है। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा रबर में दरार उत्पन्न करता है एवं पौधों पर हानिकारक प्रभाव डालता है। यह धातुओं, पत्थरों, भवन-निर्माण के पदार्थों एवं रंगी हुई सतहों (painted surfaces) का क्षय भी करता है।
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के नियंत्रण के उपाय (Measures to Control the Photochemical Smog)–प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे को नियन्त्रित या कम करने के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यदि हम प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के प्राथमिक पूर्वगामी; जैसे- NO, एवं हाइड्रोकार्बन को नियन्त्रित कर लें तो द्वितीयक पूर्वगामी; जैसे-ओजोन एवं PAN तथा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा स्वतः ही कम हो जाएगा। सामान्यतया स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरित परिवर्तक उपयोग में लाए जाते हैं, जो वायुमण्डल में नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन को रोकते हैं। कुछ पौधों (जैसे- पाइनस, जूनीपर्स, क्वेरकस, पायरस तथा विटिस), जो नाइट्रोजन ऑक्साइड का उपापचय कर सकते हैं, का रोपण इस सन्दर्भ में सहायक हो सकता है।
प्रश्न 9.
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रिया कौन-सी है?
उत्तर
ओजोन परत में अवक्षय को मुख्य कारण क्षोभमण्डल से क्लोरोफ्लुओरोकार्बन (CFC) यौगिकों का उत्सर्जन है। CFC वायुमण्डल की अन्य गैसों से मिश्रित होकर सीधे समतापमण्डल में पहुँच जाते हैं। समतापमण्डल में ये शक्तिशाली विकिरणों द्वारा अपघटित होकर क्लोरीन मुक्त मूलक उत्सर्जित करते हैं।
क्लोरीन मुक्त मूलक तब समतापमण्डलीय ओजोन से अभिक्रिया करके क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक तथा आण्विक ऑक्सीजन बनाते हैं।
क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक परमाण्वीय ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके अधिक क्लोरीन मूलक उत्पन्न करता है।
क्लोरीन मूलक लगातार पुनर्योजित होते रहते हैं एवं ओजोन को विखण्डित करते हैं। इस प्रकार CFC , समतापमण्डल में क्लोरीन मूलकों को उत्पन्न करने वाले एवं ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले परिवहनीय कारक हैं।
प्रश्न 10.
ओजोन छिद्र से आप क्या समझते हैं? इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर
सन् 1980 में वायुमण्डलीय वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका पर कार्य करते हुए दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत के क्षय, जिसे सामान्य रूप से ‘ओजोन-छिद्र’ कहते हैं, के बारे में बताया। यह पाया गया कि ओजोन छिद्र के लिए परिस्थितियों का एक विशेष समूह उत्तरदायी था। गर्मियों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड परमाणु [अभिक्रिया (i)] क्लोरीन मुक्त मूलकों [अभिक्रिया (ii)] से अभिक्रिया करके क्लोरीन सिंक बनाते हैं, जो ओजोन-क्षय को अत्यधिक सीमा तक रोकता है। जबकि सर्दी के मौसम में विशेष प्रकार के बादल, जिन्हें ‘ध्रुवीय समतापमण्डलीय बादल’ कहा जाता। है, अंटार्कटिका के ऊपर बनते हैं। ये बादल एक प्रकार की सतह प्रदान करते हैं जिस पर बना हुआ क्लोरीन नाइट्रेट (अभिक्रिया (i)] जलयोजित होकर हाइपोक्लोरसे अम्ल बनाता है [अभिक्रिया (ii)]। अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन क्लोराइड से भी अभिक्रिया करके यह आण्विक क्लोरीन देता है।
वसन्त में अंटार्कटिका पर जब सूर्य का प्रकाश लौटता है, तब सूर्य की गर्मी बादलों को विखण्डित कर देती है एवं HOCI तथा Cl2 सूर्य के प्रकाश से अपघटित हो जाते हैं (अभिक्रिया v तथा vi)।
इस प्रकार उत्पन्न क्लोरीन मूलक, ओजोन-क्षय के लिए श्रृंखला अभिक्रिया प्रारम्भ कर देते हैं।
ओजोन छिद्र के परिणाम (Results of Ozone hole)
ओजोन छिद्र के साथ अधिकाधिक पराबैंगनी विकिरण क्षोभमण्डल में छनित होते हैं। पराबैंगनी विकिरण से त्वचा का जीर्णन, मोतियाबिन्द, सनबर्न, त्वचा-कैन्सर, कई पादपप्लवकों की मृत्यु, मत्स्य उत्पादन की क्षति आदि होते हैं। यह भी देखा गया है कि पौधों के प्रोटीन पराबैंगनी विकिरणों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं जिससे कोशिकाओं का हानिकारक उत्परिवर्तन होता है। इससे पत्तियों के रंध्र से जल का वाष्पीकरण भी बढ़ जाता है जिससे मिट्टी की नमी कम हो जाती है। बढ़े हुए पराबैंगनी विकिरण रंगों एवं रेशों को भी हानि पहुँचाते हैं जिससे रंग जल्दी हल्के हो जाते हैं।
प्रश्न 11.
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइए।
उत्तर
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण (Main Causes of Water Pollution)
- रोगजनक (Pathogens)—सबसे अधिक गम्भीर जल-प्रदूषक रोगों के कारकों को ‘रोगजनक’ कहा जाता है। रोगजनकों में जीवाणु एवं अन्य जीव हैं, जो घरेलू सीवेज एवं पशु-अपशिष्ट द्वारा जल में प्रवेश करते हैं। मानव-अपशिष्ट एशरिकिआ कोली, स्ट्रेप्टोकॉकस फेकेलिस आदि जीवाणु होते हैं, जो जठरांत्र बीमारियों के कारक होते हैं।
- कार्बनिक अपशिष्ट (Organic waste)-अन्य मुख्य जल-प्रदूषक कार्बनिक पदार्थ; जैसेपत्तियाँ, घास, कूड़ा-करकट आदि हैं। ये जल को प्रदूषित करते हैं। जल में पादप-प्लवकों की अधिक बढ़ोतरी भी जल-प्रदूषण का एक कारण है।
प्रश्न 12.
क्या आपने अपने क्षेत्र में जल-प्रदूषण देखा है? इसे नियन्त्रित करने के कौन-से उपाय हैं?
उत्तर
हाँ, हमारे क्षेत्र में जल प्रदूषित है। जल के प्रदूषित होने की जाँच भी हम स्वयं ही कर सकते हैं। इसके लिए हम स्थानीय जल-स्रोतों का निरीक्षण कर सकते हैं जैसे कि नदी, झील, हौद, तालाब आदि का पानी अप्रदूषित या आंशिक प्रदूषित या सामान्य प्रदूषित अथवा बुरी तरह प्रदूषित है। जल को देखकर या उसकी pH जाँचकर इसे देखा जा सकता है। निकट के शहरी या औद्योगिक स्थल, जहाँ से प्रदूषण उत्पन्न होता है, के नाम का प्रलेख करके इसकी सूचना सरकार द्वारा प्रदूषण-मापन के लिए। गठित ‘प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड कार्यालय को दी जा सकती है तथा समुचित कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है। हम इसे मीडिया को भी बता सकते हैं। जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए हमें नदी, तालाब, जलधारा या जलाशय में घरेलू अथवा औद्योगिक अपशिष्ट को सीधे नहीं डालना चाहिए। बगीचों में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। डी०डी०टी०, मैलाथिऑन आदि कीटनाशी के प्रयोग से बचना चाहिए तथा यथासम्भव नीम की सूखी पत्तियों का प्रयोग कीटनाशी के रूप में करना चाहिए। घरेलू पानी टंकी में पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO,) के कुछ क्रिस्टल अथवा ब्लीचिंग पाउडर की थोड़ी मात्रा डालनी चाहिए।
प्रश्न 13.
आप अपने जीव रसायनी ऑक्सीजन आवश्यकता (BOD) से क्या समझते हैं?
उत्तर
जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखण्डित करने के लिए जीवाणु द्वारी आवश्यक ऑक्सीजन को जैवरासायनिक ऑक्सीजन मॉग (BOD)’ कहा जाता है। अत: जल में BOD की मात्रा कार्बनिक पदार्थ को जैवीय रूप में विखण्डित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा होगी। स्वच्छ जल की BOD का मान 5 ppm से कम होता है, जबकि अत्यधिक प्रदूषित जल में यह 17 ppm या इससे अधिक होता है।
प्रश्न 14.
क्या आपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है? आप भूमि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए क्या प्रयास करेंगे?
उत्तर
हाँ, हमने अपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है। भूमि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Measures to Control Soil Pollution) मृदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं
- फसलों पर विषैले कीटनाशकों का छिड़काव विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए।
- डी०डी०टी० का प्रयोग प्रतिबन्धित हो।
- सिंचाई और उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी और जल का वैज्ञानिक परीक्षण करा लेना चाहिए
- रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट तथा हरी खाद (Compost and Green Manuring) के प्रयोग को वरीयता देनी चाहिए।
- खेतों में जलं के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
- क्षारीय भूमि को वैज्ञानिक ढंग से शोधित किया जाना चाहिए। जिप्सम, सिंचाई तथा रासायनिक खादों का प्रयोग करके क्षारीय मिट्टी को उर्वर बनाया जा सकता है।
- स्थानान्तरणशील कृषि (jhuming) पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
- जीवांशों की वृद्धि के लिए खेतों में पेड़-पौधों की पत्तियाँ, डण्ठल, छिलके, जड़े, तने आदि सड़ाए जाने चाहिए।
- खेतों के किनारे (मेडों पर) और ढालू भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
प्रश्न 15.
पीड़कनाशी तथा शाकनाशी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहिँत समझाइए।
उत्तर
पीड़कनाशी (Pesticides)-पीड़कनाशी मूल रूप से संश्लेषित रसायन होते हैं। इनका प्रयोग फसलों को हानिकारक कीटों तथा कई रोगों से बचाने हेतु किया जाता है। ऐल्ड्रीन, डाइऐल्ड्रीन बी०एच०सी० आदि पीड़कनाशी के कुछ उदाहरण हैं। ये कार्बनिक जीव-विष जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं। ये उच्च प्रभाव वाले जीव-विष भोजन श्रृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित होते हैं। समय के साथ-साथ उच्च प्राणियों में जीव-विषों की सान्द्रता इस स्तर तक बढ़ जाती है कि उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था का कारण बन जाती है।
शाकनाशी (Herbicides)-वे रसायन जो खरपतवार (weeds) का नाश करने के लिए प्रयोग किए। जाते हैं, शाकनाशी कहलाते हैं। सोडियम क्लोरेट (NaClO3) सोडियम आर्सिनेट (Na32AsO3) आदि शाकनाशी के उदाहरण हैं। अधिकांश शाकनाशी स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं, परन्तु ये कार्ब-क्लोराइड्स के समान स्थायी नहीं होते तथा कुछ ही माह में अपघटित हो जाते हैं। मानव में । जन्मजात कमियों का कारण कुछ शाकनाशी हैं। यह पाया गया है कि मक्का के खेतं, जिनमें शाकनाशी का छिड़काव किया गया हो, कीटों के आक्रमण तथा पादप रोगों के प्रति उन खेतों से अधिक सुग्राही होते हैं जिनकी निराई हाथों से की जाती है।
प्रश्न 16.
हरित रसायन से आप क्या समझते हैं? यह वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर
हरित रसायन (Green Chemistry)
हमारे देश ने 20वीं सदी के अन्त तक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग तथा कृषि की उन्नत विधियों का प्रयोग करके अच्छी किस्म के बीजों, सिंचाई आदि से खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है, परन्तु मृदा के अधिक शोषण एवं उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता घटी है।
इस समस्या का समाधान विकास के प्रारम्भ हो चुके प्रक्रम को रोकना नहीं अपितु उन विधियों को खोजना है, जो वातावरण के असन्तुलन को रोक सकें। रसायन विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के उन सिद्धान्तों का ज्ञान, जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके, ‘हरित रसायन’ कहलाता है।
हरित रसायन उत्पादन का वह प्रक्रम है, जो पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण या असन्तुलन लाता है। इसके आधार पर यदि एक प्रक्रम में उत्पन्न होने वाले सहउत्पादों को यदि लाभदायक रूप से उपयोग नहीं किया गया तो वे पर्यावरण-प्रदूषण के कारक होते हैं। ऐसे प्रक्रम न सिर्फ पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक हैं अपितु महँगे भी हैं। विकास-कार्यों के साथ-साथ वर्तमान ज्ञान का रासायनिक हानि को कम करने के लिए उपयोग में लाना ही हरित रसायन का आधार है।
एक रासायनिक अभिक्रिया की सीमा, ताष, दाब, उत्प्रेरक के उपयोग आदि भौतिक मापदण्ड पर निर्भर करती हैं। हरित रसायन के सिद्धान्तों के अनुसार यदि एक रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक एक पर्यावरण अनुकूल माध्यम में पूर्णतः पर्यावरण अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित हो जाए तो पर्यावरण में कोई रासायनिक प्रदूषक नहीं होगा।
इसी प्रकार संश्लेषण के दौरान प्रारम्भिक पदार्थ का चयन करते समय हमें सावधानी रखनी चाहिए जिससे जब भी वह अन्तिम उत्पाद में परिवर्तित हो तो अपविष्ट उत्पन्न ही न हो। यह संश्लेषण के दौरान अनुकूल परिस्थितियों को प्राप्त करके किया जाता है। जल की उच्च विशिष्ट ऊष्मा तथा कम। वाष्पशीलता के कारण इसे संश्लेषित अभिक्रियाओं में माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाना वांछित है। जल सस्ता, अज्वलनशील तथा अकैंसरजन्य प्रभाव वाला माध्यम है। हरित रसायन के उपयोग से वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयासों का वर्णन निम्नलिखित है-
- कपड़ों की निर्जल धुलाई में (In drycleaning of clothes)--टेट्राक्लोरोएथीन [Cl2C=CCl2] का उपयोग प्रारम्भ में निर्जल धुलाई के लिए विलायक के रूप में किया जाता था। यह यौगिक भू-जल को प्रदूषित कर देता है। यह एक सम्भावित कैंसरजन्य भी है। धुलाई की प्रक्रिया में इस यौगिक का द्रव कार्बन डाइऑक्साइड एवं उपयुक्त अपमार्जक द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। हैलोजेनीकृत विलायक का द्रवित CO2 से प्रतिस्थापन भू-जल के लिए कम हानिकारक है।
आजकल हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग लॉण्ड्री में कपड़ों के विरंजन के लिए लिया जाता है। जिससे परिणाम तो अच्छे निकलते ही हैं, जल का भी कम उपयोग होता है। - पेपर का विरंजन (Bleaching of paper)-पूर्व में पेपर के विरंजन के लिए क्लोरीन गैस उपयोग में आती थी। आजकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन परॉक्साइड, जो विरंजन क्रिया की दर को बढ़ाता है, उपयोग में लाया जाता है।
- रसायनों का संश्लेषण (Synthesis of chemicals)-औद्योगिक स्तर पर एथीन का ऑक्सीकरण आयनिक उत्प्रेरकों एवं जलीय माध्यम की उपस्थिति में करवाया जाए तो लगभग 90% एथेनल प्राप्त होता है।
निष्कर्षतः हरित रसायन एक कम लागत उपागम है, जो कम पदार्थ, ऊर्जा-उपभोग एवं अपविष्ट जनन से सम्बन्धित है।
प्रश्न 17.
क्या होता, जब भू-वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसें नहीं होती? विवेचना कीजिए।
उत्तर
यद्यपि ग्रीन हाउस गैसें (CO2,CH4,O3, CFCs, जल-वाष्प) ग्लोबल वार्मिंग (global warming) उत्पन्न करती हैं, परन्तु फिर भी ये पृथ्वी पर सामान्य जीवन के लिए आवश्यक हैं। ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी की सतह से विकिरणित सौर ऊर्जा को अवशोषित करके वातावरण को गर्म रखती हैं। जो पृथ्वी पर प्राणियों (living beings) के जीवन तथा पादपों (plants) की वृद्धि के लिए आवश्यक है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा पादपों के भोजन बनाने के लिए आवश्यक है। ओजोन एक छाते की तरह कार्य करती है तथा हमें हानिकारक पराबैंगनी किरणों (U.V. radiation) से बचाती है। अतः, यदि पृथ्वी के वायुमण्डल को ग्रीन हाउस गैसों से पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया जाये तो पृथ्वी पर न तो प्राणी शेष रहेंगे और न ही पादप।
प्रश्न 18.
एक झील में अचानक असंख्य मृत मछलियाँ तैरती हुई मिलीं। इसमें कोई विषाक्त पदार्थ नहीं था, परन्तु बहुतायत में पादप्लवक पाए गए। मछलियों के मरने का कारण बताइए।
उत्तर
पादप्लवक (पानी की सतह पर तैरने वाले पौधे) जैव क्षयी (biodegradable) होते हैं और जीवाणुओं की एक बड़ी संख्या द्वारा अपघटित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में जीवाणु पानी में घुली ऑक्सीजन का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग करते हैं जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जलीय जीवों जैसे मछलियों को जीवित रहने के लिए जलीय ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जब पानी में घुली ऑक्सीजन का स्तर, एक निश्चित स्तर (6ppm) से नीचे पहुँच जाता है, तो मछलियाँ मृत होकर पानी की सतह ऊपर तैरने लगती हैं।
प्रश्न 19.
घरेलू अपविष्ट किस प्रेकार खाद के रूप में काम आ सकते हैं?
उत्तर
घरेलू अपशिष्ट पदार्थों के जैव क्षयी (biodegradable) भाग को कुछ महीनों के लिए भूमि में दबा देने पर खाद के रूप में काम में लाया जा सकता है। समय बीतने के साथ, यह खाद में परिवर्तित हो जाता है। घरेलू अपशिष्ट का अजैव क्षयी भाग (जैसे कॉच, प्लास्टिक, धातु की खुरचन इत्यादि) जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित नहीं होती, खाद के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह भाग पुनः चक्रण (recycling) के लिए कारखानों में भेज दिया जाता है।
प्रश्न 20.
आपने अपने कृषि-क्षेत्र अथवा उद्यान में कम्पोस्ट खाद के लिए गड़े बना रखे हैं। उत्तम कम्पोस्ट बनाने के लिए इस प्रक्रिया की व्याख्या दुर्गंध, मक्खियों तथा अपविष्टों के चक्रीकरण के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर
कम्पोस्ट खाद के लिए बने गड्ढे घर के बहुत निकट नहीं होने चाहिए। ये गड्ढे ऊपर से ढके होने चाहिए। जिससे मक्खियाँ इनमें प्रवेश न कर सके तथा दुर्गंध वायुमण्डल में न फैल सके। केवल जैव क्षयी भाग ही गड्ढों में डालना चाहिए। घरेलू अपशिष्टों का अजैव क्षयी भाग जैसे, काँच प्लास्टिक, धातु की खुरचन इत्यादि को गड्ढों में डालने से पहले अलग कर देना चाहिए तथा पुनः चक्रण के लिए बेच देना चाहिए।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गैसीय वायु प्रदूषक है।
(i) कुहरा
(ii) वाष्प
(iii) ऐरोसॉल
(iv) ओजोन
उत्तर
(ii) वाष्प
प्रश्न 2.
कणीय वायु प्रदूषक है।
(i) अमोनिया
(ii) कज्जल
(iii) क्लोरीन
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) कज्जल
प्रश्न 3.
अकार्बनिक वायु प्रदूषक है।
(i) नाइट्रोजन ऑक्साइड
(ii) मेथेन
(iii) एथेन
(iv) ऐल्कोहॉल
उत्तर
(i) नाइट्रोजन ऑक्साइड
प्रश्न 4.
मुख्य वायु प्रदूषक है।
(i) NO
(ii) CO
(iii) SO2
(iv) ये सभी
उत्तर
(iv) ये सभी
प्रश्न 5.
ध्रुवों पर बर्फ किस प्रदूषण के कारण पिघल सकती है?
(i) जल
(ii) तापीय
(iii) मृदा
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) तापीय
प्रश्न 6.
वैश्विक तापन का प्रमुख कारण है।
(i) अम्ल वर्षा
(ii) नाभिकीय दुर्घटनाएँ
(iii) हरित गृह प्रभाव
(iv) भूकम्प
उत्तर
(iii) हरित गृह प्रभाव
प्रश्न 7.
हरित गृह गैसों के फलस्वरूप प्रभाव उत्पन्न होता है।
(i) पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि
(ii) पृथ्वी के तापक्रम में कमी
(iii) पृथ्वी के तापक्रम में कोई परिवर्तन नहीं होता
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर
(i) पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सी क्रिया वातावरण में co, की मात्रा में वृद्धि नहीं करती है?
(i) जन्तुओं का विघटन,
(ii) श्वसन
(iii) प्रकाश संश्लेषण
(iv) ईंधन का जलना
उत्तर
(iii) प्रकाश संश्लेषण
प्रश्न 9.
CO2 के अतिरिक्त अन्य हरित गृह गैस है।
(i) N2
(ii) Ar
(iii) O2
(iv) CH4
उत्तर
(iv) CH4
प्रश्न 10.
ग्रीन हाउस प्रभाव प्रदर्शित करने वाला युग्म है।
(i) N2,O2
(ii) H2,N2
(iii) CO2, H2O
(iv) O2, CH4
उत्तर
(iii) CO2, H2O
प्रश्न 11.
ओजोन पाई जाती है।
(i) तापमण्डल में
(ii) मध्यमण्डल में
(iii) समतापमण्डल में
(iv) क्षोभमण्डल में
उत्तर
(iii) समतापमण्डल में
प्रश्न 12.
ओजोन परत की मोटाई की मापक इकाई है।
(i) डेसीमल
(ii) आर्मस्ट्राँग
(iii) डॉब्सन
(iv) क्यूरी
उत्तर
(iii) डॉब्सन
प्रश्न 13.
हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल के कारण पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाती हैं, क्योंकि वहाँ उपस्थित होती है।
(i) CO2
(ii) O2
(iii) O3
(iv) N2
उत्तर
(ii) O3
प्रश्न 14.
क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स से होता है।
(i) वायुमण्डलीय ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि
(ii) ओजोन परत का क्षय
(iii) हरित गृह गैसों का ह्रास
(iv) दोनों (i) एवं (ii)
उत्तर
(ii) ओजोन परत का क्षय
प्रश्न 15.
अन्टार्कटिका के ऊपर सर्वप्रथम किस वर्ष में ओजोन छिद्र देखा गया?
(i) 1965 में
(ii) 1985 में
(iii) 1987 में
(iv) 1989 में
उत्तर
(ii) 1985 में
प्रश्न 16.
ओजोन परत के अपक्षय से सम्बन्धित निम्नलिखित में से कौन-सा प्रभाव सही नहीं है?
(i) त्वचा कैंसर होना।
(ii) पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि
(iii) ध्रुवीय बर्फ का पिघलना
(iv) आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन
उत्तर
(iv) आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन
प्रश्न 17.
जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
(i) उद्योगों से निकला अपशिष्ट
(ii) खेती में उर्वरक का प्रयोग
(iii) पीड़कनाशियों का प्रयोग
(iv) ये सभी
उत्तर
(iv) ये सभी
प्रश्न 18.
निम्न में से प्रतिबन्धित रसायन है।
(i) BHC
(ii) फोरेट
(iii) मैलाथियॉन
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) BHC
प्रश्न 19.
जैविक मृदा-प्रदूषण क़िसके द्वारा होता है?
(i) जल
(ii) जीव-जन्तु
(iii) वायु
(iv) ये सभी
उत्तर
(i) जल
प्रश्न 20.
सिलिकोसिस रोग होता है ।
(i) रुई का काम करने वालों को
(ii) पत्थर तोड़ने वालों को
(iii) ऐस्बेस्टॉस का काम करने वालों को
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) पत्थर तोड़ने वालों को
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रदूषण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में वह अवांछनीय । परिवर्तन जो उन्हें मानव, अन्य जीवों, भवनों तथा अन्य सांस्कृतिक धरोहरों के लिए हानिकारक बना देता है, प्रदूषण कहलाता है।
प्रश्न 2.
वायुमण्डल के विभिन्न क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर
वायुमण्डल को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।
- क्षोभमण्डल
- समतापमण्डल
- मध्यमण्डल
- तापमण्डल
प्रश्न 3.
आयनमण्डल के दो भाग कौन-कौन से हैं?
उत्तर
आयनमण्डल के दो भाग मध्यमण्डल तथा तापमण्डल हैं।
प्रश्न 4.
ओजोनमण्डल का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर
ओजोनमण्डल का दूसरा नाम समतापमण्डल है।
प्रश्न 5.
जीवमण्डल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
जीवमण्डल स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह भाग है जिसमें जीवधारी वास करते हैं।
प्रश्न 6.
वायुमण्डल के किन क्षेत्रों में ताप ऊँचाई में वृद्धि के साथ बढ़ता है?
उत्तर
वायुमण्डल के समतापमण्डल क्षेत्र में ताप -56°C से -2°C तक बढ़ता है तथा तापमण्डल क्षेत्र में ताप -92°C से 1200°C तक बढ़ता है।
प्रश्न 7.
वायु प्रदूषण क्या है? वायु को प्रदूषित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
वायुमण्डल में विभिन्न गैसों का एक निश्चित और सन्तुलित अनुपात है। यदि किसी कारणवश इस अनुपात में परिवर्तन हो जाए, तो सभी जीवधारियों पर इनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इस वायु को प्रदूषित वायु और इस घटना को वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु को प्रदूषित करने वाले कारक निम्नवत् हैं-
- जनसंख्या वृद्धि,
- लगातार वनों का कटना,
- कल-कारखानों की आबादी में होना,
- कोयले से चालित इंजन,
- घरों में धुआँ,
- वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि होना।
प्रश्न 8.
वायुमण्डल के दो प्राथमिक तथा दो द्वितीयक प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर
- प्राथमिक प्रदूषक = SO2 तथा NO2 गैसे
- द्वितीयक प्रदूषक == परॉक्सीऐसिल नाइट्रेट तथा ओजोन
प्रश्न 9.
वायुमण्डल के दो जैव निम्नीकरणीय तथा दो जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर
- जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक = वाहित मल तथा गोबर
- जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक = मर्करी तथा ऐलुमिनियम
प्रश्न 10.
वायुमण्डलीय प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोतों के नाम बताइए।
उत्तर
वायुमण्डलीय प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोतों के नाम ज्वालामुखी विस्फोट तथा तड़ित झंझावात हैं।
प्रश्न 11.
कौन-सा नाइट्रोजन ऑक्साइड लाल-भूरे रंग का होता है?
उत्तर
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) लाल-भूरे रंग का होता है।
प्रश्न 12.
PAN का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
PAN का पूरा नाम परॉक्सीऐसिल नाइट्रेट (peroxy acyl nitrate) है।
प्रश्न 13.
पृथ्वी का तापमान लगातार क्यों बढ़ रहा है?
उत्तर
पृथ्वी का तापमान लगातार हरित गृह प्रभाव के कारण बढ़ रहा है।
प्रश्न 14.
CO का प्रमुख सिंक क्या है?
उत्तर
मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव CO का मुख्य सिंक हैं। ये CO को CO2 में परिवर्तित कर देते हैं।
प्रश्न 15.
क्लोरोसिस से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
SO2 के प्रभाव के कारण पौधों में क्लोरोफिल का निर्माण कम हो जाता है, जिसके कारण इनकी पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा अपना हरा रंग खो देती हैं। इसे ही क्लोरोसिस कहते हैं।
प्रश्न 16.
कणिकीय प्रदूषकों का आकार कितना होता है?
उत्तर
कणिकीय प्रदूषकों का आकार 5 mm से 500000 nm के मध्य होता है।
प्रश्न 17.
कौन-से ऐरोमैटिक यौगिक वायु में कणिकाओं के रूप में उपस्थित होते हैं?
उत्तर
बहुचक्रीय ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (Polycyclic Aromatic Hydrocarbon, PAH) वायु में कणिकाओं के रूप में उपस्थित होते हैं।
प्रश्न 18.
किन्हीं दो सजीव कणिकीय प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर
जीवाणु तथा कवक सजीव कणिकीय प्रदूषकों के प्रमुख उदाहरण हैं।
प्रश्न 19.
सामान्य धूम कुहरा किस प्रकार की जलवायु में देखने को मिलता है? इसकी प्रकृति कैसी होती है।
उत्तर
सामान्य धूम कुहरा ठण्डी तथा नम जलवायु में देखने को मिलता है। इसकी प्रकृति अपचायक होती है।
प्रश्न 20.
प्रदूषित वायु से कणिकीय प्रदूषकों को पृथक करने के लिए प्रयोग की जाने वाली दो युक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रदूषित वायु से कणिकीय प्रदूषकों को पृथक् करने के लिए मुख्यतः आर्द्र स्क्रबर तथा साइक्लोन संग्राहक का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 21.
ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले दो यौगिकों के नाम बताइए।
उत्तर
नाइट्रिक ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले दो यौगिक
प्रश्न 22.
अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र किस ऋतु में बनता है?
उत्तर
अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र बसंत ऋतु में बनता है।
प्रश्न 23.
पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर
पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल का प्रयोग ट्रांसफार्मरों तथा संधारित्रों में तरलों के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 24.
किस प्रकार का प्रदूषण समुद्री पक्षियों को हानि पहुँचाता है?
उत्तर
समुद्र के जल में तेल प्रदूषण समुद्री पक्षियों को हानि पहुंचाता है।
प्रश्न 25.
पीने के पानी में नाइट्रेट की अधिकतम मात्रा कितनी होनी चाहिए?
उत्तर
पीने के पानी में नाइट्रेट की अधिकतम मात्रा 50 ppm है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रदूषक और संदूषक में क्या अन्तर है?
उत्तर
प्राकृतिक स्रोतों अथवा मानव क्रियाओं अथवा दोनों द्वारा संयुक्त रूप से उत्पन्न पदार्थ जो पर्यावरण में पहले से उपस्थित उसी पदार्थ की सान्द्रता में वृद्धि करके उसे पर्यावरण के समीप या निर्जीव घटकों के लिए हानिकारक बना देता है, प्रदूषक कहलाता है जबकि वह पदार्थ जो प्रकृति में पहले से उपस्थित नहीं होता है परन्तु मानव संक्रियाओं के कारण पर्यावरण में प्रवेश पाता है, संदूषक कहलाता है।
प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीयक प्रदूषकों से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
प्राथमिक प्रदूषक वे प्रदूषक होते हैं जो निर्माण के पश्चात् पर्यावरण में प्रवेश करते हैं तथा जैसे के तैसे बने रहते हैं। उदाहरणार्थ-SO2, NO2 आदि। जबकि द्वितीयक प्रदूषक वे प्रदूषक हैं जो प्राथमिक प्रदूषकों के मध्य रासायनिक अभिक्रियाओं से बनते हैं। उदाहरणार्थ-हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड जो प्राथमिक प्रदूषक हैं, सूर्य के प्रकाश में परस्पर क्रिया करके ऐसे पदार्थ बनाते हैं जो हानिकारक होते हैं। इस प्रकार निर्मित यौगिक द्वितीयक प्रदूषक कहलाते हैं।
प्रश्न 3.
जैव निम्नीकरणीय और जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषकों से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक वे हैं जो सूक्ष्मजीवों द्वारा या प्राकृतिक रूप से या उचित क्रिया द्वारा आसानी से विघटित हो जाते हैं और इस प्रकार हानिकारक नहीं होते हैं लेकिन जब ये वातावरण में आधिक्य में होते हैं तब इनका पूर्णतः निम्नीकरण नहीं होता है, अतः ये प्रदूषक बन जाते हैं। उदाहरणार्थ-वाहित मल, गोबर आदि जबकि जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक मर्करी, ऐलुमिनियम, DDT आदि जैसे पदार्थ होते हैं जिनका निम्नीकरण प्रकृति में स्वयं नहीं होता है या मन्द गति से होता है। तथा वातावरण में इनकी अल्प मात्रा उपस्थित होने पर भी ये मनुष्यों तथा पौधों के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं। ये वातावरण में उपस्थित अन्य यौगिकों से क्रिया करके और अधिक विषैले यौगिक बनाते हैं।
प्रश्न 4.
SOx प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव लिखिए।
उत्तर
SOx प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव निम्नवत् हैं-
- SO2 तथा SO3 दोनों श्वसन नली को हानि पहुँचाती हैं। 5 ppm सान्द्रण पर SO2 गले तथा
नेत्रों में जलन उत्पन्न करती है। SO3 1ppm सान्द्रण में बेचैनी उत्पन्न करती है। वयोवृद्ध व्यक्ति तथा हृदय या फेफड़ा रोग से ग्रसित व्यक्ति अधिक गम्भीर रूप से प्रभावित होते हैं। - अत्यधिक कम सान्द्रण (0.03 ppm) में भी SO2 पौधों पर अत्यधिक हानिकारक प्रभाव डालती है। ऐसे वायुमण्डल में लम्बे समय तक अर्थात् कुछ दिनों या सप्ताहों तक रखे पौधों में क्लोरोफिल का निर्माण कम हो जाता है तथा इनकी पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा हरा रंग खो देती हैं। इसे क्लोरोसिसः (chlorosis) कहते हैं।
- SO2 अपने वास्तविक रूपं में अथवा H2 SO4 में परिवर्तित होकर अनेक पदार्थों पर। निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव डालती है-
- यह इमारतों विशेषकर संगमरमर की इमारतों को नष्ट करती है। उदाहरणार्थ-आगरा में ताजमहल का संगमरमर उसके निकट स्थित मथुरा रिफाइनरी तथा तापीय शक्ति केन्द्र के कारण नष्ट हो रहा है।
- यह धातुओं विशेषतः आइरन तथा स्टील को संक्षारित करती है।
- यह पेण्ट के रंगों को प्रभावित करती है।
- इससे वस्त्र, चमड़ा, कागज आदि नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
SO2 किस प्रकार एक वायु-प्रदूषक का कार्य करती है?
उत्तर
SO2 एक अत्यन्त हानिकारक गैस है। वायुमण्डल में इसकी उपस्थिति से श्वसन रोग, हृदय रोग, गले तथा आँखों में अनेक परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं। यह अम्ल वर्षा (acid rain) का मुख्य कारण है। अम्ल वर्षा जन्तुओं, वनस्पतियों एवं भवनों के लिए अत्यन्त घातक है। अम्ल वर्षा से सम्बन्धित प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्न हैं-
SO2 + hv → SO2
SO2 + O2 → So3 + O
SO2 + SO2 → SO3 + SO
SO+ SO2 → SO3 + S
इस प्रकार, SO2 एक घातक वायु प्रदूषक है।
प्रश्न 6.
हरितगृह प्रभाव से क्या तात्पर्य है? इसके प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
या
हरितगृह प्रभाव क्या है? यह किस प्रकार से वैश्विक ऊष्मायन (तापमान) के लिए उत्तरदायी
उत्तर
पृथ्वी की सतह अवशोषित ऊष्मा को अवरक्त किरणों के रूप में उत्सर्जित करती है जिसे वायुमण्डल में उपस्थित CO2 तथा जल-वाष्प अवशोषित करके पुनः पृथ्वी की ओर उत्सर्जित कर देती है। इससे पृथ्वी के वायुमण्डल के निचले भाग के ताप में वृद्धि होती है। यही प्रभाव हरितगृह प्रभाव कहलाता है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हरितगृह प्रभाव के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि को वैश्विक ऊष्मायन (global warming) कहते हैं। चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के कारण हरितगृह प्रभाव होता है तथा हरितगृह प्रभाव के कारण वैश्विक ऊष्मायन होता है इसलिए, हम कह सकते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड गैस व हरितगृह प्रभाव वैश्विक ऊष्मायन के लिए उत्तरदायी हैं। हरितगृह प्रभाव के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-
- औद्योगिकीकरण-औद्योगिकीकरण के कारण वर्तमान समय में उद्योगों एवं घरों में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में प्रतिवर्ष लगभग चार अरब टन जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है जिससे प्रतिवर्ष लगभग 4% कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि हो जाती है। CO2 में यह वृद्धि हरितगृह प्रभाव में वृद्धि करती है।
- वनोन्मूलन-पौधे प्रकाश संश्लेषण में CO2 का प्रयोग करके O2 छोड़ते हैं तथा इस प्रकार वे वायुमण्डल में CO2 के स्तर को बनाए रखते हैं। वनोन्मूलन से वायुमण्डल में CO2 की वृद्धि दो प्रकार से होती है-एक तो प्रकाश संश्लेषण की कमी होने से CO2 का उपयोग कम हो जाता है तथा दूसरी ओर वृक्षों के ईंधन के रूप में प्रयुक्त होने से CO2 वायुमण्डल में पहुँचती है। इस प्रकारे वनों के विनाश से हरितगृह को बढ़ावा मिलता है।
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उपयोग–क्लोरोफ्लोरोकार्बनों का प्रयोग रेफ्रिजरेटरों, एयरकन्डीशनरों, गद्देदार सीट बनाने वाली फोम (foam) तथा ऐरोसॉल स्प्रे (aerosol spray) के निर्माण में किया जाता है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन हरित गृह प्रभाव में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और मेथेन गैसों का हरितगृह प्रभाव की वृद्धि में 90% तक योगदान सम्भव है।
प्रश्न 7.
CO2 की अधिक मात्रा भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिए कैसे उत्तरदायी है?
उत्तर
CO2 चक्र के कारण प्राकृतिक रूप से वातावरण में CO2 की सान्द्रता स्थिर रहती है। लेकिन, जब वातावरण में CO2 की सान्द्रता मानवीय क्रियाओं के कारण एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है, तो वायुमण्डल में उपस्थित CO2 का आधिक्य पृथ्वी द्वारा विकरणित ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है। अवशोषित ऊष्मा का कुछ भाग वायुमण्डल में निस्तारित हो जाता है और शेष भाग पृथ्वी पर वापस विकरणित हो जाता है जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ जाता है और भूमण्डलीय ताप में वृद्धि होती है। इस प्रभाव को ग्रीनहाउस प्रभाव
कहा जाता है।
प्रश्न 8.
अम्ल वर्षा से क्या तात्पर्य है? यह किस प्रकार होती है?
उत्तर
वह वर्षा जिसमें सल्फर ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (वायु प्रदूषकों) की जल-वाष्प से अभिक्रिया के फलस्वरूप बने सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल होते हैं, अम्ल वर्षा कहलाती है।। वायुमण्डल में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड (SO, ),सल्फर ट्राइऑक्साइड में ऑक्सीकृत होने के पश्चात् जल-वाष्प से अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है।
2SO2 + O2 → 2SO3
SO3 + H2O → H2 SO4
ठीक इसी प्रकार नाइट्रोजन के ऑक्साइड विभिन्न अभिक्रियाओं के द्वारा N2O5 बनाते हैं जो जल-वाष्प से अभिक्रिया करके नाइट्रिक अम्ल बनाता है।
NO + O3 → NO2 + O2
NO2 + O3 → NO3 + O2
NO3 + NO2 → N2O5
N2O5 + H2O → 2HNO3
इस प्रकार विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं के द्वारा उत्पन्न नाइट्रिक अम्ल तथा सल्फ्यूरिक अम्ल वर्षा के जल के साथ अम्ल वर्षा (acid rain) के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं।
प्रश्न 9.
कणिकीय प्रदूषक क्या हैं? इनके विभिन्न स्रोत क्या हैं?
उत्तर
कणिकीय प्रदूषक-वायु में निलम्बित सूक्ष्म ठोस कण तथा द्रवीय बूंदें कणिकीय प्रदूषक कहलाते हैं। इन कणों का आकार 5 nm से 500000 pm के मध्य होता है। इनकी सान्द्रता भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। स्वच्छ वायु में इनकी संख्या 100 cm होती है जबकि प्रदूषित वायु में इनकी संख्या 100000 cm होती है। कणिकीय प्रदूषकों के स्रोत निम्नलिखित हैं-
- प्राकृतिक स्रोत
- मिट्टी एवं धूल को हवा द्वारा उड़ना,
- ज्वालामुखी का फटना,
समुद्रों द्वारा लवणों का छिड़काव।
- मानव-निर्मित स्रोत
- कज्जल-ये सबसे सामान्य और सबसे छोटे कणिकीय प्रदूषक हैं। ये औद्योगिक संस्थानों, स्वचालित वाहनों तथा घरों में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं।
- फ्लाई एश–ये सबसे बड़े कणिकीय प्रदूषक हैं। ये राख के कण हैं जो ऊष्मीय विद्युत संयन्त्रों, खनन आदि क्रियाओं में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं।
- कार्बनिक कणिकीय प्रदूषक-ओलेफिन, पैराफिन, ऐरोमैटिक यौगिक आदि इस श्रेणी में आते हैं। ये स्थायी ईंधनों तथा स्वचालित वाहनों में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं। ये पेट्रोलियम शोधन, संयन्त्रों (petroleum refineries) में भी उत्पन्न होते हैं। ऐरोमैटिक यौगिकों में से बहुचक्रीय ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbon, PAH) प्रमुख कणिकीय प्रदूषक हैं। ये कज्जली कणों की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं तथा इस रूप में और अधिक हानिकारक हो जाते हैं।
- अकार्बनिक कणिकीय प्रदूषक-धात्विक ऑक्साइड, धात्विक कण, ऐस्बेस्टॉस की धूल, सल्फ्यूरिक अम्ल की बूंदें, नाइट्रिक अम्ल की बूंदें, लेड हैलाइड आदि अकार्बनिक
कणिकीय प्रदूषक हैं।
प्रश्न 10.
कणिकीय प्रदूषकों के हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कणिकीय प्रदूषकों के प्रमुख हानिकारक प्रभाव निम्नवत् हैं-
- कणिकीय प्रदूषक मनुष्यों में अनेक रोग उत्पन्न करते हैं। 5 माइक्रोन से बड़े कणिकीय प्रदूषक नासिकाद्वार में जमा हो जाते हैं जबकि 1.0 माइक्रोन के कण फेफड़ों में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। अपने अत्यधिक सतही क्षेत्रफल के कारण ये कण विभिन्न कैंसरजन्य यौगिकों को अधिशोषित करके फेफड़ों का कैंसर, ब्रोंकाइटिस (bronchitis) आदि रोग उत्पन्न करते हैं। विभिन्न प्रकार के कणिकीय प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं, उदाहरणार्थ-सिलिका युक्त धूल से सिलिकोसिस (silicosis) नामक रोग हो जाता है जबकि ऐस्बेस्टॉस से ऐस्बेस्टॉसिस (asbestosis) नामक रोग होता है। लेड के कणिकीय प्रदूषक अपनी विषैली प्रकृति के कारण मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
- विभिन्न कणिकीय प्रदूषक पौधों की पत्तियों पर जमा होकर रन्ध्रों (stomata) को अवरुद्ध कर.. देते हैं। इससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis), वाष्पोत्सर्जन (transpiration) आदि क्रियाएँ प्रभावित होती हैं और पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- वायुमण्डल में कणिकीय प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण देखने में परेशानी होती है। ऐसा कणिकीय प्रदूषकों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन (scattering) के कारण होता है।
- कणिकीय पदार्थ सूर्य की ऊष्मा को वापस अन्तरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं। इससे सूर्य की ऊष्मा पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुँच पाती है। साथ ही कणिकीय पदार्थ बादल–निर्माण में केन्द्रकों की भाँति कार्य करते हैं।
- ये धातुओं के संक्षारण में वृद्धि करते हैं।
- विभिन्न प्रकार के कणिकीय प्रदूषक इमारतों, भवनों, मृदा, कपड़ों, पेण्टों आदि को हानि पहुँचाते हैं।
प्रश्न 11.
आयनमण्डल में होने वाली विभिन्न अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर
मध्यमण्डल का विस्तार समुद्र तल से 50-85 km की ऊँचाई तक है जबकि तापमण्डल का विस्तार समुद्र-तल से 85-500 km ऊँचाई तक है। इन दोनों मण्डलों को संयुक्त रूप से आयनमण्डल (ionosphere) कहते हैं। इनमें गैसें आयनित रूप में उपस्थित रहती हैं।
इन मण्डलों में विभिन्न प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप मुक्त आयनों और इलेक्ट्रॉनों का निर्माण होता है। इन मण्डलों में होने वाली कुछ अभिक्रियाएँ निम्न हैं-
मध्यमण्डल के निचले भाग में ये मुक्त आयन तथा इलेक्ट्रॉन अन्य आयनों, परमाणुओं तथा अणुओं से टकराकर उदासीन स्पीशीज बनाते हैं। चूँकि ऊपरी वायुमण्डल में ऐसी अन्य स्पीशीज उपस्थित नहीं होती हैं जिनसे ये संयोग कर सकें अत: वहाँ ये लम्बे समय तक बनी रहती हैं।
प्रश्न 12.
कौन-सा ऐरोसॉल (aerosol) ओजोन पर्त को विच्छेदित (deplete) करता है?
उत्तर
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) ऐरोसॉल; जैसे—फ्रिऑन (CCl2F2) वायुमण्डल के समताप-मण्डल (stratosphere) में उपस्थित ओजोन पर्त को विच्छेदित करते हैं। निहित अभिक्रियाएँ निम्न हैं-
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख कारण, प्रभाव तथा नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर
जल प्रदूषण-जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अभिलक्षणों में परिवर्तन जिससे यह मनुष्य तथा जलीय जीवों के लिए हानिकारक हो जाता है तथा अन्य उपयोगों के लिए भी अनुपयुक्त हो जाता है, जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- घरेलू अपशिष्ट और वाहित मल-घरों से निकलने वाले अपशिष्ट, जैसे-कूड़ा-करकट | आदि और वाहित मल नालियों इत्यादि से होते हुए जलाशयों, नदियों आदि में पहुँचते हैं जहाँ ये उनके जल को प्रदूषित करते हैं।
- घरेलू अपमार्जक–घर में उपयोग किए जाने वाले अपमार्जक कपड़े धोने, बर्तन साफ आदि करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के साबुन, सर्फ आदि होते हैं। ये अपमार्जक घरों से नालियों, तालाबों तथा नदियों तक पहुँचकर जल प्रदूषण फैलाते हैं।
- औद्योगिक रसायन विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले जल में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक तथा अकार्बनिक रसायन हो सकते हैं। ये पदार्थ निम्न प्रकार के हो सकते हैं–धूल, क्षार, अम्ल, सायनाइड, मर्करी, जिंक, कॉपर, फेरस लवण, तेल आदि। ये रसायन जल के प्रदूषक
- कृषि उद्योग के प्रदूषक-कृषि की उपज में वृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, | पीड़कनाशियों, कीटनाशियों आदि का प्रयोग किया जाता है। ये रसायन वर्षा के जल के साथ बहते हुए विभिन्न जल स्रोतों में पहुँचकर जल को प्रदूषित करते हैं।
- रेडियोधर्मी पदार्थ–नाभिकीय विस्फोट, नाभिकीय ऊर्जा प्रक्रम से निकलने वाली विकिरण जल में घुलकर प्रदूषण फैलाती है। यूरेनियमयुक्त खनिजों का खनन भी जल प्रदूषण करता है।
- सिल्टेशन–पहाड़ों की नदियों में मृदा तथा चट्टानों के कण जल में घुलते रहते हैं। यह प्रक्रम | सिल्टेशन कहलाता है। सिल्ट अथवा गाद के जल में मिलने से भी जल प्रदूषण होता है।
- पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल-इन्हें अभी जल प्रदूषकों की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है। | इनका प्रयोग ट्रांसफॉर्मरों तथा संधारित्रों (capacitors) में तरलों के रूप में किया जाता है।
- ऊष्मीय प्रदूषक–वे प्रदूषक जो जल के ताप में वृद्धि कर देते हैं, ऊष्मीय प्रदूषक कहलाते हैं। अनेक उद्योगों में पदार्थों, माध्यमों आदि को ठंडा करने की आवश्यकता होती है। इनकी ऊष्मा को जल को स्थानान्तरित कर दिया जाता है जिससे उसका ताप बढ़ जाता है। इस गर्म जल को फिर जल-स्रोतों में डाल दिया जाता है।
जल प्रदूषण के प्रभाव निम्नवत् हैं-
- प्रदूषित जल में उपस्थित रोगाणु (pathogens) मनुष्यों तथा पालतू पशुओं में विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं।
- अपमार्जकों में उपस्थित ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट (alkyl benzene sulphonate) से जल की अम्लीयता बढ़ती है जो जलीय जीवों के लिए हानिकारक होती है।
- जल में उपस्थित वाहित मल, पत्तियाँ और विभिन्न उद्योगों, जैसे—कागज उद्योग, चर्म शोधन उद्योग के कार्बनिक अपशिष्ट पादप प्लवकों की अत्यधिक वृद्धि में सहायता करते हैं। सूक्ष्म जीवों द्वारा कार्बनिक अपशिष्टों के अपघटन से दुर्गंध उत्पन्न होती है। ऐसे जल स्रोत तैरने, नाव चलाने आदि के लिए भी उपयुक्त नहीं होते हैं। जल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने से उसमें उपस्थित जलीय जीवों की मृत्यु भी हो सकती है।
- तलछट जल को गंदला बनाते हैं।
- विषाक्त भारी धातुओं वाले जल का प्रयोग करने से विभिन्न रोग हो जाते हैं। उदाहरणार्थ-कैडमियम प्रदूषण से टाई-टाई नामक रोग हो जाता है। इसी प्रकार मर्करी
प्रदूषण से मिनामाटा रोग हो जाता है। - जल स्रोतों में उद्योगों द्वारा सीधा डाला गया गर्म जल भी प्रदूषक है। इसमें उपस्थित ऊष्मा जलीय जीवों को हानि पहुँचाती है।
- पॉलीक्लोरीनेटिड बाइफेनिल (PCBs) कैंसरजन्य है।
- उर्वरकों में प्रयुक्त फॉस्फेट जल स्रोतों में पहुँचकर शैवालों की वृद्धि में सहयोग करता है। शीघ्र ही शैवाल पूरी जल सतह को ढक लेते हैं। इससे जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। साथ ही फॉस्फेटों की उपस्थिति में जलीय पौधों की संख्या में भी वृद्धि होती है। इससे जल में घुली ऑक्सीजन काफी कम हो जाती है। इससे जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है। जल-निकायों में पौष्टिक अभिवृद्धि के कारण ऑक्सीजन की कमी तथा उसके परिणामस्वरूप
जलीय जीवों की मृत्यु सुपोषण कहलाती है।
जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के कुछ प्रमुख उपाय निम्नवत् हैं-
- वाहित मल को उपचारित करके ही जल स्रोतों में डालना चाहिए।
- गर्म जल को जल-स्रोतों में डालने से पहले ठण्डा कर लेना चाहिए।
- कृषि में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों का केवल आवश्यक मात्रा में ही प्रयोग किया जाना चाहिए। रसायनों के स्थान पर जैव उर्वरकों (bio-fertilizers) आदि का प्रयोग किया जा सकता है।।
- विभिन्न उद्योगों के बहिस्रावों (effluents) को उपचारित करने के पश्चात् ही जल-स्रोतों में डालना चाहिए। इसके लिए उद्योगों को सख्त निर्देश दिए जाने चाहिए और सम्बन्धित कानून का भी सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
प्रश्न 2.
मृदा प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके कारण, प्रभाव तथा नियन्त्रण का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मृदा प्रदूषण-भूपर्पटी की वह ऊपरी सतह जिसमें पौधे उगते हैं, मृदा कहलाती है। मृदा चट्टानों के अपक्षयण से बनती है। बाह्य स्रोतों के कारण अनावश्यक पदार्थों (प्रदूषकों) का मृदा से मिलकर उसे अनुत्पादक बनाना या प्रदूषित करना मृदा प्रदूषण कहलाती है। मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-
- शहरी अपशिष्ट–इनमें कूड़ा, पत्तियाँ, पॉलिथीन की थैलियाँ, कागज, काँच, फल या सब्जियों के छिलके, खाद्य अपशिष्ट, मल आदि सम्मिलित हैं।।
- औद्योगिक अपशिष्ट-उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों में अनेक विषैले तथा जैव अनिम्नीकरणीय (non-biodegradable) पदार्थ होते हैं। चीनी मिल, वस्त्र उद्योग, रसायन उद्योग, काँच उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, पेट्रोलियम उद्योग आदि ऐसे प्रमुख उद्योग हैं जिनसे मृदा प्रदूषण होता है।
- कृषि के प्रदूषक–कृषि में पौधों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने, उन्हें पीड़कों से बचाने आदि के लिए अनेक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ये रसायन मृदा प्रदूषण को प्रमुख कारण हैं।
- रेडियोधर्मी प्रदूषक-नाभिकीय परीक्षणों में उत्पन्न नाभिकीय धूल (nuclear dust) पहले वायुमण्डल में जाती है और अंततः मृदा पर बैठकर उसे प्रदूषित करती है। नाभिकीय संयन्त्रों से उत्पन्न नाभिकीय अपशिष्ट मृदा में दबा दिए जाते हैं। ये प्रदूषक का कार्य करते हैं। युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले नाभिकीय बम (परमाणु बम और हाइड्रोजन बम) रेडियोधर्मी उप-उत्पाद बनाते हैं। इनके रेडियोधर्मी अपशिष्टों से हानिकारक विकिरणें निकलती हैं।
- अन्य स्रोत–वनोन्मूलन (deforestation) से मृदा अपरदन में वृद्धि होती है। इससे उपजाऊ मृदा समाप्त हो जाती है। अतिचारण भी मृदा अपरदन का एक कारण है।
मृदा प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- कूड़ा, काँच; खाद्य अपशिष्ट आदि दृश्य (scene) को गंदा बनाते हैं। अनेक अपशिष्ट सड़कर दुर्गंध देते हैं।
- विभिन्न रसायन और पीड़कनाशी मृदा के संघटन को प्रभावित करके उसमें उपस्थित विभिन्न | सूक्ष्म जीवों को मार देते हैं। इससे मृदा की उर्वरता (fertility) कम हो जाती है।
- अनेक रसायन और पीड़कनाशी मृदा को विषाक्त करके उसे पौधों के उगने के अयोग्य बनाते हैं।
- अनेक पीड़कनाशी और उनके उत्पाद पौधों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये विषैले पदार्थ खाद्य श्रृंखला (food chain) के माध्यम से जन्तुओं और मनुष्यों तक पहुँच जाते हैं।
- मनुष्यों के मल तथा पशुओं के गोबर आदि पौधों की उपज में वृद्धि करने के साथ-साथ मृदा को प्रदूषित भी करते हैं। मल आदि में उपस्थित रोगाणु मृदा और पौधों को संदूषित करके मनुष्य और पालतू पशुओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
- रेडियोधर्मी धूल मृदा से पौधों और पौधों से मवेशियों, मनुष्यों आदि में पहुँचकर उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है।
मृदा प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकार से नियन्त्रित किया जा सकता है-
- शहरों के अपशिष्टों को अलग-अलग करके उसके विभिन्न घटकों का प्रयोग निचले क्षेत्रों (low-lying areas) को भरने, कम्पोस्ट (compost) आदि में किया जा सकता है। इसके घटकों का आवश्यकतानुसार पुनः चक्रण (recycle) किया जा सकता है या जलाया जा सकता है।
- गोबर का उपयोग गोबर गैस संयन्त्रों में गोबर-गैस बनाने के लिए किया जा सकता है।
- स्क्रैप से विभिन्न धातुओं को प्राप्त किया जा सकता है।
- काँच और प्लास्टिक का पुनः चक्रण किया जा सकता है। इसी प्रकार कागज का भी पुनः चक्रण किया जा सकता है। पुरानी पुस्तकों, अखबारों, मैग्जीनों को नया कागज बनाने के लिए। कागज की मिलों (paper mills) को भेजा जा सकता है।
- रासायनिक उर्वरकों और पीड़कनाशियों का प्रयोग सोच-समझकर और आवश्यकतानुसार ही किया जाना चाहिए।
- रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों (bio-fertilizers) तथा खाद (manure) का | उपयोग करना चाहिए। इससे मृदा प्रदूषण तो घटता ही है साथ ही, धन की बचत भी होती है।
- पीड़कों के नियन्त्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इससे रासायनिक पीड़कों का प्रयोग कम होगा और मृदा प्रदूषण में भी कमी आएगी।
- वनोन्मूलन को नियन्त्रित करके अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए तथा अतिचारण को भी रोकना चाहिए।
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