UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 1 Indian Economy on the Eve of Independence
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Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | Chapter 1 Indian Economy on the Eve of Independence (स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था) |
Number of Questions Solved | 63 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 1 Indian Economy on the Eve of Independence (स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केंद्र बिंदु क्या था? उन नीतियों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर
भारत में औपनिवेशिक शासकों द्वारा रची गई आर्थिक नीतियों का मूल केंद्र बिंदु भारत का आर्थिक विकास न होकर अपने मूल देश के आर्थिक हितों का संरक्षण और संवर्द्धन था। इन नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था के स्वरूप के मूल रूप को बदल डाला।। संक्षेप में, आर्थिक नीतियों के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
- भारत, इंग्लैण्ड को कच्चे माल की आपूर्ति करने तथा वहाँ के बने तैयार माल का आयात करने वाला देश बनकर रह गया।
- राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि की दर धीमी हो गई।
- कृषि उत्पादकता में निरंतर कमी हुई।
- भारतीय उद्योगों का पतन होता चला गया।
- बेरोजगारी का विस्तार हुआ।
- साक्षरता दर में आशानुकूल वृद्धि न हो सकी।
- पूँजीगत एवं आधारभूत उद्योगों का विस्तार न हो सका।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव बना रहा।
- बार-बार प्राकृतिक आपदाओं और अकाल ने जनसामान्य को बहुत ही निर्धन बना डाला। इसके कारण, उच्च मृत्यु दर का सामना करना पड़ा
प्रश्न 2.
औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताइए।
उत्तर
औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री थे
- दादाभाई नौरोजी,
- विलियम डिग्वी,
- फिडले शिराज,
- डॉ० वी०के०आर०वी० राव,
- आर०सी० देसाई।
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक शासन काल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर
औपनिवेशिक शासन काल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
- औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-व्यवस्था प्रणाली।
- किसानों से अधिक लगान संग्रह।
- प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर।
- सिंचाई सुविधाओं का अभाव।
- उर्वरकों का नगण्य प्रयोग।
- आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ापन।
प्रश्न 4.
स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर
स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम इस प्रकार हैं
- सूती वस्त्र उद्योग,
- पटसन उद्योग,
- लोहा और इस्पात उद्योग (TISCO की स्थापना 1907 में हुई),
- चीनी उद्योग,
- सीमेंट उद्योग,
- कागज उद्योग।।
प्रश्न 5.
स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत के व्यवस्थितवि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्येय क्या था?
उत्तर
भारत के वि-औद्योगीकरण के पीछे विदेशी शासकों का दोहरा उद्देश्य यह था कि प्रथम, वे भारत को इंग्लैण्ड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बना सकें तथा द्वितीय, वे उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को ही एक विशाल बाजार बना सकें। इस प्रकार, वे अपने उद्योगों के विस्तार द्वारा अपने देश (ब्रिटेन) के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना चाहते थे।
प्रश्न 6.
अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परम्परागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में कारण बताइए।
उत्तर
अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परम्परागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। इसके निम्नलिखित कारण थे
- अंग्रेजी शासनकाल में राजाओं व नवाबों, जो हस्तकला उद्योगों को संरक्षण प्रदान करते थे, की स्वायत्तता समाप्त होती गई और उनकी आय भी सीमित हो गई।
- पाश्चात्य सभ्यता के प्रभावस्वरूप, भारतीयों की रुचियों व फैशन में परिवर्तन होने लगा। इससे माँग | का स्वरूभी बदलने लगा।
- अंग्रेजों ने शिल्पकारों पर भयंकर अत्याचार किए।
- इंग्लैण्ड में भारत से आयातों पर रोक लगा दी गई।
- ब्रिटिश सरकार की आर्थिक व औद्योगिक नीति भारतीय उद्योगों के विपक्ष में थी।
- शिल्पकारों के उत्पाद, कारखानों में निर्मित उत्पादों की प्रतियोगिता के समक्ष ठहर नहीं सके।
- सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति ने इन उद्योगों को पनपने नहीं दिया।
प्रश्न 7.
भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज अपने क्या उद्देश्य पूरे करना चाहते थे?
उत्तर
औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत देश में रेलों, पत्तनों, जल-परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ। इसका उद्देश्य जनसामान्य को अधिक सुविधाएँ प्रदान करना नहीं था। अपितु देश के भीतर प्रशासन व पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखने एवं देश के कोने-कोने से कच्चा माल एकत्र करके अपने देश में भेजने तथा अपने देश में तैयार माल को भारत में पहुँचाना था।
प्रश्न 8.
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें।
उत्तर
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति की निम्नलिखित कमियाँ थीं
- भारत में एक सृदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास न करना।
- देश की विश्वप्रसिद्ध शिल्पकलाओं का धीरे-धीरे ह्रास होने देना।
- भारत को इंग्लैण्ड में विकसित हो रहे उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना।
- इंग्लैण्ड के उद्योगों में बने माल के लिए भारत को ही विशाल बाजार बनाना।
- भावी औद्योगीकरण को हतोत्साहित करने हेतु पूँजीगत उद्योगों का विकास न करना।
प्रश्न 9.
औपनिवेशिक काल में भारतीय सैम्पत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
ब्रिटिश शासकों ने नागरिक प्रशासन तथा सेना के लिए बड़ी संख्या में अंग्रेज अधिकारी भर्ती किए तथा उन्हें भारतीय सहयोगियों की अपेक्षा बहुत अधिक वेतन और भत्ते दिए गए। सभी उच्च पदों पर ब्रिटिश अधिकारी ही नियुक्त किए गएं। असीमित प्रशासनिक शक्ति के कारण वे रिश्वत के रूप में भारी धनराशि लेने लगे। सेवानिवृत्त होने पर उन्हें पेंशन भी मिलती थी। भारत में रह रहे अधिकारी अपनी बचतों, पेंशन व अन्य लाभों के एक बड़े भाग को इंग्लैण्ड भेज देते थे। इन्हें पारिवारिक प्रेषण कहा गया। यह प्रेषण भारतीय सम्पत्ति को इंग्लैण्ड को निष्कासन था। इसके अतिरिक्त स्टर्लिंग ऋणों पर भारी ब्याज देना पड़ता था। इन्हें गृह ज्ञातव्य (home charges) का भुगतान करना पड़ता था। भारत को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के युद्धों का खर्च भी देना पड़ता था। इस प्रकार औपनिवेशिक काल में भारतीय सम्पत्ति का निष्कासन होता रहा।
प्रश्न 10.
जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है?
उत्तर
जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष 1921 माना जाता है।
प्रश्न 11.
औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें।
उत्तर
ब्रिटिश भारत की जनसंख्या के विस्तृत ब्यौरे सबसे पहले 1881 की जनगणना के तहत एकत्रित किए गए। बाद में प्रत्येक दस वर्ष बाद जनगणना होती रही। वर्ष 1921 के पूर्व का भारत जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम सौपाने पर था। द्वितीय सोपान को आरम्भ 1921 के बाद माना जाता है। कुल मिलाकर साक्षरता दर तो 16 प्रतिशत से भी कम ही थी। इसमें महिला साक्षरता दर नगण्य, केवल 7 प्रतिशत आँकी गई थी। शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हजार थी। इस काल में औसत जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी। देश की अधिकांश जनसंख्या अत्यधिक गरीब थी।
प्रश्न 12.
स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
औपनिवेशिक काल में विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रकों में लगे कार्यशील श्रमिकों के आनुपातिक विभाजन में कोई परिवर्तन नहीं आया। कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था जिसमें 70-75 प्रतिशत जनसंख्या लगी थी। विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रकों में क्रमशः 10 प्रतिशत तथा 15 से 20 प्रतिशत जनसमुदाय को रोजगार मिल रहा था। इस काल में क्षेत्रीय विषमताओं में बड़ी विलक्षणती थी। मद्रास प्रेसीडेंसी के कुछ क्षेत्रों में कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता कम हो रही थी। विनिर्माण तथा सेवा श्रेत्रकों का महत्त्व बढ़ रहा था वहीं दूसरी ओर पंजाब, राजस्थान एवं उड़ीसा में कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या में बढोत्तरी हो रही थी।
प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें।
उत्तर
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ इस प्रकार थीं
- कृषि क्षेत्र में अत्यधिक श्रम-अधिशेष एवं निम्न उत्पादकता।।
- औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ापन।
- पुरानी व परम्परागत तकनीक।
- विदेशी व्यापार पर इंग्लैण्ड का एकाधिकार।
- व्यापक गरीबी।
- व्यापक बेरोजगारी।
- क्षेत्रीय विषमताएँ।
- आधारिक संरचना का अभाव।
प्रश्न 14.
भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर
वर्ष 1881 में।
प्रश्न 15.
स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण और दिशा की जानकारी दें।
उत्तर
विदेशी व्यापार का परिमाण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत के विदेशी व्यापार की मात्रा में कमी हुई। आयातों में कमी होने के मुख्य कारण थे—शत्रु राष्ट्रों के साथ आयातों में कटौती, निर्यातक देशों का युद्ध में संलग्न होना, जहाजी यातायात की तंगी, यातायात भाड़े में वृद्धि और मशीनों के आयातों पर नियंत्रण। महाद्वीपीय देशों को निर्यात बंद हो जाने और जहाजी परिवहन की कमी के कारण ब्रिटेन को होने वाले निर्यातों में भी कमी आई। किंतु बाद के तीन वर्षों में इनमें तेजी से वृद्धि हुई।
युद्ध के कारण विदेशी व्यापार की संरचना में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। आयात मद में कच्चे माल का हिस्सा बड़ा जबकि निर्मित वस्तुओं का हिस्सा घटा। इसके विपरीत निर्यातों में कच्चे माल का हिस्सा घटा जबकि निर्मित घस्तुओं का भाग बढ़ा। वस्तुओं की दृष्टि से इस अवधि में चाय तथा निर्मित जूट का निर्यात निरंतर बढ़ता रहा जबकि कच्चे जूट व तिलहन का निर्यात युद्ध से पूर्व तो बढ़ा किंतु उसके बाद घटता गया। सूती धागा, चीनी, सीमेंट, माचिस अन्य निर्मित माल तथा अन्य उपभोग वस्तुओं के आयात में निरंतर गिरावट आई जबकि खनिज तेल, रसायन, रंग आदि के आयात बढ़ते गए।
विदेशी व्यापार की दिशा- युद्धकाल में ब्रिटेन के साथ भारत के निर्यात और आयात दोनों प्रकार के व्यापार का प्रतिशत कम हो गया लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के देशों के साथ व्यापार में बहुत वृद्धि हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई। कनाडा के साथ व्यापार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। यूरोपीय देशों-फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया आदि के साथ भारत का व्यापार घटता चला गया। जापान के युद्ध में कूद पड़ने के कारण भारत का उसके साथ व्यापार बंद हो गया।
प्रश्न 16.
क्या अंग्रेजों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।
उत्तर
भारत के आर्थिक विकास में अंग्रेजों का नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष की तुलना में अधिक प्रबल है। यद्यपि अंग्रेजी इतिहासकार भारत के अल्पविकास के लिए अंग्रेजी शासन को उत्तरदायी नहीं मानते। इस बारे में एल०सी०ए० नोल्स (L.C.A. Knowles) का कहना है-“ब्रिटिश शासकों ने तो आर्थिक विकास को प्रोत्साहन दिया, न कि उसमें बाधा डाली। वेरा एन्स्टे (Vera Anstey) का कहना है कि नसंख्या में अत्यधिक वृद्धि और लोगों के दृष्टिकोण के कारण यह देश आर्थिक दृष्टि से अल्पविकसित रह गया। इसके लिए आर्थिक नीतियाँ अधिक जिम्मेदार नहीं हैं। भारतीय अर्थशास्त्री-दादाभाई नौरोजी, रमेशचन्द्र दत्त, रजनी पाम दत्त, वी०वी० भट्ट आदि इन विचारों का खण्डन करते हैं। यद्यपि, भारत के अल्पविकास के लिए ब्रिटिश शासन ही उत्तरदायी है तथापि ब्रिटिश साम्राज्य का भारत के विकास में सकारात्मक योगदान भी रहा है जो निम्नलिखित है।
- ब्रिटिश शासन के अंतर्गत राजनीतिक एवं प्रशासन की दृष्टि से भारत एक इकाई बन गया।
- शांति एवं व्यवस्था की दृष्टि से स्थिति में सुधार हुआ।
- परिवहन और संचार सुविधाओं में वृद्धि हुई।
- नगरीय क्षेत्रों में पाश्चात्य उत्तरदायी विचारों का प्रभाव पड़ा।
। इसके बावजूद राज्य की शोषणकारी आर्थिक नीति ने विकास के पुराने भौतिक आधार को नष्ट कर दिया. जो आगे चलकर भारत के आर्थिक विकास में बाधक बना।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कब ब्रिटिश शासन की नींव डाली?
(क) सन् 1757 में
(ख) सन् 1857 में
(ग) सन् 1557 में
(घ) सन् 1657 में
उत्तर
(क) सन् 1757 में
प्रश्न 2.
कब तक भारत आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न तथा समृद्ध देश रहा?
(क) 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक
(ख) 18वीं शताब्दी के अंत तक
(ग) 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक
(घ) 19वीं शताब्दी के अंत तक
उत्तर
(ख) 18वीं शताब्दी के अंत तक
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय भारत की आजीविका का मुख्य स्रोत क्या था?
(क) उद्योग
(ख) पशुपालन ।
(ग) कृषि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) कृषि
प्रश्न 4.
स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व भारत में भू-राजस्व संबंधी कितनी प्रणालियाँ प्रचलित थीं?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार ।
(घ) पाँच
उत्तर
(ख) तीन ।
प्रश्न 5.
भारत में अंग्रेजी शासन कब तक रहा?
(क) सन् 1847 तक
(ख) सन् 1740 तक
(ग) सन् 1950 तक
(घ) सन् 1947 तक
उत्तर
(घ) सन् 1947 तक ||
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से क्या आशय है?
उत्तर
सकल घरेलू उत्पाद से आशय एक वर्ष की अवधि में देश की घरेलू सीमा में अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह से है।
प्रश्न 2.
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद से क्या आशय है?
उत्तर
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद से आशय है—देश में प्रति व्यक्ति द्वारा एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रवाह। मापने का सूत्र
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों का क्या योगदान था?
उत्तर
वर्ष 1947 में राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान इस प्रकार था
1. प्राथमिक क्षेत्र = 587 प्रतिशत,
2. द्वितीयक क्षेत्र = 14.3 प्रतिशत,
3. तृतीयक क्षेत्र =27 प्रतिशत।
प्रश्न 4.
प्राथमिक क्षेत्र में कौन-कौन-सी आर्थिक क्रियाएँ शामिल की जाती है।
उत्तर
1. कृषि,
2. वानिकी,
3. मत्स्य पालन,
4. खनन।
प्रश्न 5.
‘स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ेपन की स्थिति में थी। इसके पक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर
1. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता एवं कृषि ही आजीविका का मुख्य साधन थी। .
2. कार्यशील जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि क्षेत्र में कार्यरत था।
प्रश्न 6.
कृषि के सीमित व्यापारीकरण का क्या कारण था?
उत्तर
कृषि उत्पादन अधिकतर कृषि परिवारों के जीवन निर्वाह के लिए किया जाता था। बाजार में बिक्री के लिए बहुत कम उत्पादन बच पाता था।
प्रश्न 7.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था कैसी अर्थव्यवस्था थी?
उत्तर
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था
- एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी;
- एक गतिहीन अर्थव्यवस्था थी;
- एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था थी।
प्रश्न 8.
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र क्या हैं?
उत्तर
1. प्राथमिक क्षेत्र—वह क्षेत्र जिसमें प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
2. द्वितीयक क्षेत्र- वह क्षेत्र जिसमें उद्यम एक प्रकार की वस्तु को दूसरे प्रकार में परिवर्तित करते
3. तृतीयक क्षेत्र— वह क्षेत्र जो सेवाओं का उत्पादन करता है।
प्रश्न 9.
व्यावसायिक संरचना से क्या आशय है?
उत्तर
व्यावसायिक संरचना का अर्थ है-कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में वितरण।
प्रश्न 10.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की व्यावसायिक संरचना क्या थी?
उत्तर
स्वतंत्रता के समय 72.7 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में, 10.1 प्रतिशत द्वितीयक क्षेत्र में तथा 17.2 प्रतिशत जनसंख्या तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत थी।
प्रश्न 11.
स्वतंत्रता के समय भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम बताइए।
उत्तर
कच्चे उत्पादे; जैसे-रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन।
प्रश्न 12.
स्वतंत्रता के समय भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं के नाम बताइए।
उत्तर
सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्रों जैसी अन्तिम उपभोग वस्तुएँ एवं इंग्लैण्ड के कारखानों में बनी हल्की मशीनें।
प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के समय व्यापार संतुलन की क्या स्थिति थी?
उत्तर
व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था।
प्रश्न 14.
भारत में निर्याताधिक्य का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
देश के आंतरिक बाजारों में अनाज, कपड़ा और मिट्टी के तेल जैसी अनेक वस्तुओं का अभाव हो गया और उनके मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि होने लगी।
प्रश्न 15.
भारत में जनसंख्या की दृष्टि से महान विभाजक वर्ष कौन-सा है?
उत्तर
वर्ष 1921 को जनसंख्या की दृष्टि से महान विभाजक वर्ष माना जाता है।
प्रश्न 16.
स्वतंत्रता के समय विभिन्न सामाजिक अभिसूचकों की क्या स्थिति थी?
उत्तर
साक्षरता दर = 16.7%;
जीवन प्रत्याशा =32.1
वर्ष; मृत्यु दर = 29.4%;
शिशु मृत्यु दर = 218 प्रति हजार;
महिला साक्षरता दर = 7%l गरीबी,
व्यापक बेरोजगारी एवं असमानताएँ उस समय की विशेषताएँ थीं।
प्रश्न 17.
कुटीर उद्योगों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
1. कुटीर उद्याग मुख्यत: कृषि व्यवसाय से संबद्ध होते हैं।
2. इनमें अधिकांश कार्य मानवीय श्रम द्वारा किए जाते हैं।
प्रश्न 18.
ढाका की मलमल को अरब देशों में क्या कहा जाता था?
उत्तर
ढाका की मलमल को अरब देशों में ‘आबेहयात’ कहा जाता था।
प्रश्न 19.
ब्रिटिश काल में भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के दो कारण बताइए।
उत्तर
1. राजदरबारों की समाप्ति होने पर इन उद्योगों को संरक्षण मिलना बंद हो गया।
2. पाश्चात्य प्रभाव के फलस्वरूप रुचि एवं फैशन में परिवर्तन के कारण इनके प्रति जनरुचि कम हो गई।
प्रश्न 20.
भारतीय उद्योगों के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति कैसी थी?
उत्तर
ब्रिटिश सरकार की नीति भारतीय उद्योगों के विकास को अवरुद्ध करने की थी।
प्रश्न 21.
द्वितीय विश्वयुद्ध का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
मुद्रा प्रसार के कारण मूल्यों में तेजी से वृद्धि हुई, सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव हो गया और आधारभूत उद्योगों की उपेक्षा हुई।
प्रश्न 22.
रैयतवाड़ी प्रथा के दो दोष बताइए।
उत्तर
1. लगाने का निर्धारण मनमाने एवं पक्षपातपूर्ण ढंग से किया गया।
2. लगान वृद्धि ने भू-सुधार कार्यक्रमों में बाधा डाली।
प्रश्न 23.
जमींदारी प्रथा के विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर
1. मध्यस्थों की संख्या में वृद्धि हुई।
2. लगान व शोषण में वृद्धि हुई।
प्रश्न 24.
हिल्टन यंग कमीशन की मुख्य सिफारिशें क्या थीं?
उत्तर
हिल्टन यंग कमीशन की मुख्य सिफारिशें थीं
1. देश में स्वर्ण धातुमान की स्थापना की जाए।
2. रुपए की विनिमय दर 1 शिलिंग 6 पेंस निर्धारित की जाए।
प्रश्न 25.
प्रेसीडेंसी बैंक कौन-कौन से थे? ।
उत्तर
1. बैंक ऑफ बंगाल,
2. बैंक ऑफ मुंबई,
3. बैंक ऑफ मद्रास।
प्रश्न 26.
भारत कब से कब तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा?
उत्तर
भारत सन् 1757 से 1947 तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा।
प्रश्न 27.
भारत में औपनिवेशिक शोषण के दो रूप बताइए।
उत्तर
1. दोषपूर्ण व्यापारिक नीतियों के फलस्वरूप भारतीय धन का निकास हुआ।
2. ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा भारत से ब्याज, लाभांश और लाभ के छ में धन बाहर ले जाया गया।
प्रश्न 28.
भारत के किस क्षेत्र में रैयतवाड़ी प्रथा लागू की गई?
उत्तर
सर टॉमस मुनरो ने सन् 1792 में मद्रास में रैयतवाड़ी प्रथा प्रारम्भ की। बाद में इसका विस्तार मुंबई एवं उत्तर भारत के ब्रिटिश क्षेत्रों में कर दिया गया।
प्रश्न 29.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी। दो तर्क दीजिए।
उत्तर
1. देश का आर्थिक ढाँचा अत्यधिक क्षीण था।
2. आधारभूत उद्योगों का विकास नहीं हुआ था।
प्रश्न 30.
भारतीय अर्थव्यवस्था के गतिहीन बने रहने के दो कारण दीजिए।
उत्तर
1. निम्न मजदूरी एवं निम्न क्रय-शक्ति के कारण मजदूरों की दशा अत्यधिक दयनीय थी।
2. ग्रामोद्योग एवं शिल्पकारों के पतन के कारण कृषि पर जनसंख्या का बोझ निरंतर बढ़ता जा रहा था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत आर्थिक विकास का स्तर निम्न था।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य इंग्लैण्ड में तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक आधार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को एक पोषक अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रखना था। अत: देश के आर्थिक विकास के स्थान पर वे अपने आर्थिक हितों के संरक्षण एवं संवर्द्धन में ही लगे रहे। भारत इंग्लैण्ड को कच्चे माल की पूर्ति करने तथा वहाँ के बने तैयार माल को आयात करने वाला देश ही बनकर रह गया। एक आकलन के अनुसार, 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम रही तथा प्रति व्यक्ति उत्पाद वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही रही।
प्रश्न 2.
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कृषि क्षेत्र की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल में भारत मूलतः एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर थी किंतु कृषि उत्पादकता में निरंतर कमी होती गई, यह लगभग गतिहीन बनी रही। इस गतिहीनता का प्रमुख कारण दोषपूर्ण भू-व्यवस्था प्रणालियाँ थीं जिनमें मध्यस्थों की संख्या बढ़ती जा रही थी। कृषि लाभ के अधिकांश भाग को जमींदार ही हड़प जाते थे। राजस्व व्यवस्था भी जमींदारों के पक्ष में जाती थी। परम्परागत तकनीकी, सिंचाई-सुविधाओं का अभाव और उर्वरकों के नगण्य प्रयोग के कारण कृषि उत्पादकता के स्तर में वृद्धि न हो सकी। कृषि का व्यवसायीकरण सीमित था और नकदी फसलें ब्रिटेन के कारखानों में उपयोग के लिए भेज दी जाती थीं। स्वतंत्रता के समय देश के विभाजन ने भी कृषि व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र (द्वितीयक क्षेत्र) की क्या स्थिति थीं ।
उत्तर
कृषि की भाँति औपनिवेशिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का निर्माण नहीं कर पाया। विश्वप्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन होता रहा और आधुनिक औद्योगिक आधार की नींव नहीं रखी गई। इसके पीछे ब्रिटिश सरकार के दो उद्देश्य थे—
- भारत को कच्चे माल का निर्यातक बनाना,
- इंग्लैण्ड के निर्मित माल के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनने देना। इस दौरान जो भी विनियोग हुआ, वह उपभोक्ता उद्योगों के क्षेत्र में ही हुआ; जैसे—सूती वस्त्र, पटसन आदि। आधारभूत उद्योग के रूप में केवल एक उद्योग “टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी’ की 1907 में स्थापना की गई। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीनी, कागज व सीमेंट के भी कुछ कारखाने स्थापित किए गए। अत: पूँजीगत उद्योगों का अभाव ही बना रहा। न केवल औद्योगिक क्षेत्र की संवृद्धि दर बहुत कम थी अपितु राष्ट्रीय आय में इनका योगदान भी बहुत कम था। सार्वजनिक क्षेत्र रेल, बंदरगाह, विद्युत व संचार तथा कुछ विभागीय उपक्रमों तक ही सीमित था।
प्रश्न 4.
स्वतंत्रता के समय भारत की व्यावसायिक संरचना किस प्रकार की थी?
उत्तरें
औपनिवेशिक काल में कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था और क्षेत्रीय विषमताओं में निरंतर वृद्धि हो रही थी। मद्रास प्रेसीडेंसी के क्षेत्रों में कृषि पर निर्भर कार्यशील जनसंख्या में कमी आ रही थी तो पंजाब, राजस्थान और उड़ीसा के क्षेत्रों में कृषि में संलग्न श्रमिकों में वृद्धि हो रही थी। 1951 में भारत में व्यावसायिक वितरण निम्नांकित प्रकार था-
प्रश्न 5.
स्वतंत्रता के समय भारत में आधारिक संरचना की क्या स्थिति थी?
उत्तर
औपनिवेशिक शासन के दौरान देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाकतार आदि का विकास हुआ किंतु इसके पीछे ब्रिटिश प्रशासकों का उद्देश्य जन-साधारण को अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना नहीं था बल्कि अपने हितों का संवर्द्धन करना था। सड़कों का निर्माण इसलिए किया गया कि देश के भीतर उनकी सेवाओं के आवागमन में सुविधा हो तथा माल को निकट की मण्डियों तक पहुँचाया जा सके। रेलों के विकास ने कृषि के व्यवसायीकरण को प्रोत्साहित किया, निर्यात व्यापार की माँग में विस्तार हुआ। आंतरिक व्यापार एवं जलमार्गों के विकास पर भी ध्यान दिया गया। डाक सेवाओं का भी विस्तार किया गया। स्वतंत्रता के समय भारत की आधारिक संरचना की स्थिति इस प्रकार थी
रेलवे लाइन की लंबाई = 33,000 मील;
पक्की सड़कों की लंबाई = 97,500 मील;
समुद्री जहाजों का भार = 31 लाख GRT;
बैंकों की कुल शाखाएँ =4115;
विद्युत उत्पादन क्षमता = 23 लाख किलोवाट;
विद्युतीकरण ग्रामों की संख्या = 3,000
प्रश्न 6.
भारत में दि-औद्योगीकरण के क्या परिणाम हुए?
उत्तर
भारत में वि-औद्योगीकरण (उद्योगों के पतन) के निम्नलिखित परिणाम हुए
- उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों, शिल्पकारों व अन्य कारीगरों के समक्ष जीवन-यापन की समस्या आरम्भ हो गई। वैकल्पिक रोजगार के अभाव में कृषि ने उन्हें आश्रय दिया। फलतः कृषि पर आश्रित जनसंख्या का अनुपात बढ़ता गया। यह सन् 1861 में 55% से बढ़कर सन् 1911 तक 72% हो गया।
- भारत की व्यापारिक स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए। 18वीं शताब्दी के अंत तक भारत अधिकांशत: तैयार वस्तुएँ बाहर भेजता था। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कच्चे माल की माँग बढ़ी जिसकी आपूर्ति भारत जैसे विशाल उपनिवेशों से ही हो सकती थी। दूसरी ओर इंग्लैण्ड के कारखानों में बनी वस्तुओं के लिए भारत में विशाल बाजार उपलब्ध था। अतः भारतीय उद्योगों के पतन के साथ-साथ इंग्लैण्ड में तैयार वस्तुएँ भारत में आने लगीं और इसके बदले यहाँ से कच्चे माल का निर्यात बढ़ता गया।
- शिल्पकारों के कृषि के क्षेत्र में आने पर भूमि की माँग बढ़ गई। 19वीं शताब्दी के अकालों केकारण भी कारीगर ग्रामीण उद्योगों में अपनी जीविकोपार्जन करने में असमर्थ हो चले थे। अत: कृषि क्षेत्र में आने वाले बहुत कम व्यक्ति भूमि खरीदकर खेती करने की स्थिति में थे। फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ती गई जो भूमिहीन थे और केवल श्रम द्वारा ही जीविकोपार्जन करना चाहते थे।
- शिल्पकारों की आर्थिक स्थिति खराब होती गई।
प्रश्न 7.
देश विभाजन का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हुआ, साथ ही वह दो भागों में विभाजित भी हो गया। यद्यपि यह विभाजन राजनीतिक था तथापि आर्थिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण था। भारतीय उद्योगों पर देश विभाजन के निम्नांकित प्रभाव पड़े
- भारत को अविभाजित देश के क्षेत्रफल का 77%, जनसंख्या का 82%, औद्योगिक संस्थाओं का 91% और रोजगार प्राप्त श्रमिकों का 93% भाग मिला।
- अधिकांश खनिजभण्डार भारत में ही रहे। भारत को अविभाजित भारत के संपूर्ण खनिज साधनों के केवल 3% मूल्य के खनिज पदार्थों की हानि हुई।
- देश के दो प्रमुख उद्योगों—सूती वस्त्र और जूट उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसका कारण कच्चे माल का अभाव था। अविभाजित भारत को कच्चे जूट के उत्पादन पर एकाधिकार प्राप्त था,लेकिन विभाजन के परिणामस्वरूप जूट उत्पादन क्षेत्र का 81% भाग पाकिस्तान में चला गया।
- पाकिस्तान में चले जाने वाले क्षेत्र में भारतीय उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की पर्याप्त माँग रहती थी। विभाजन के बाद इन वस्तुओं की माँग में कमी आ गई। अत: इन उद्योगों को अपने उत्पादन की खपत के लिए नये बाजारों की खोज करनी पड़ी।
- विभाजन के फलस्वरूप भारत से बड़ी मात्रा में योग्य एवं कुशल श्रमिक पाकिस्तान चले गए;फलस्वरूप भारतीय उद्योगों में कुशल श्रमिकों की कमी हो गई।
- उद्योगों की विविधता के कारण अधिकांश उद्योगपति भारत आ गए। इससे भारत में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिला।
- विभाजन के पश्चात् देश में अनिश्चित एवं अस्थिर वातावरण उत्पन्न हो गया। भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशियों के विश्वास में कमी आई और देश में विदेशी पूँजी का प्रवाह कम हो गया।
- विभाजने के पश्चात् रेलवे की स्थिति भी असंतोषजनक रही। चटगाँव और करांची बंदरगाह विदेशी | हो गए तथा मुंबई और कोलकाता बंदरगाहों पर विशेष भार आ पड़ा। कुल मिलाकर पाकिस्तान कीतुलना में भरत लाभदायक स्थिति में रहा।
प्रश्न 8.
भारत में उपनिवेशी शोषण के परिणाम क्या थे?
उत्तर
उपनिवेशी शोषण के निम्नांकित परिणाम हुए-
- भारत मूलत: ‘कृषि-प्रधान देश ही रहा और चाय, कॉफी, मसाले, तिलहन, गन्ना तथा अन्य सामग्रियों और अन्य कच्चे माल के निर्यात द्वारा ग्रेट ब्रिटेन के हितों की रक्षा के लिए भारतीय कृषि वाणिज्यीकृत हो गई।
- भारत को अपने औद्योगिक ढाँचे का आधुनिकीकरण नहीं करने दिया गया। इसके हस्तशिल्पों को | नष्ट कर दिया गया तथा वह निर्मित माल का आयातक बन गया।
- साम्राज्य अधिमान की भेदमूलक संरक्षण नीति अपनाने का परिणाम यह हुआ कि भारत के ब्रिटिश विनियोक्ताओं के लिए सुरक्षित विश्वस्त क्षेत्र ढूंढने में सहायता मिली।
- उपभोक्ता वस्तु उद्योगों-चाय, कॉफी और रबड़ बागान में प्रत्यक्ष ब्रिटिश विनियोग किया गया, लेकिन भारी और आधारभूत उद्योगों के विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।
- प्रबन्ध अभिकरण प्रणाली का स्वरूप शोषणकारी ही रहा।
- अंग्रेजों ने गृह ज्ञातव्य (home charges) के रूप में आर्थिक विकास द्वारा भारत का शोषण किया। परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकास की स्थिति में ही रह गई।
प्रश्न 9.
“स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विभिन्न शोषणकारी नीतियों एवं गरीबी और बेरोजगारी के परिणामस्वरूप अर्थचक्र बदलते-बदलते ऐसी स्थिति आ गई कि स्वतंत्रता के समय देश का आर्थिक ढाँचा अत्यधिक क्षीण हो गया था। अक्षम कृषि प्रणाली और दूषित भू-स्वामित्व व्यवस्था के नीचे करोड़ों किसान पिस रहे थे। कृषि मूलतः जीवन निर्वाहपरक ही बनी हुई थी। औद्योगिक क्षेत्र में भी स्थिति संतोषजनक न थी। वास्तव में, ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों ने हमारे देश को मुख्य रूप से प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादक के रूप में परिवर्तित कर दिया। कुल राष्ट्रीय आय का केवल 17.1% भाग ही खनन उद्योग तथा लघु उद्योगों से प्राप्त होता था। उत्पादक उद्योगों में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों की प्रधानता थी। इन उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के वर्ग में भी कृषि क्षेत्र से प्राप्त उत्पादन की प्रक्रिया (process) करने वाले उद्योगों का प्रमुख स्थान था। ये उद्योग तकनीकी दृष्टि से अत्यधिक पिछड़े थे। उत्पादकता का स्तर भी निम्न था। पूँजीगत वस्तुओं, विद्युत उपकरणों तथा रसायन उत्पादनों की मात्रा अत्यधिक नगण्ये थी। वास्तव में, यह ब्रिटेन के हितों के अनुकूल ही था कि भारत औद्योगिक दृष्टि से एक पिछड़ा देश रहा। जो थोड़े-बहुत उद्योग देश में स्थापित थे उनमें विदेशी पूँजी की प्रधानता थी।
दीर्घ उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के औपनिवेशिक शोषण के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
अंग्रेज व्यापार करने आए थे किंतु 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल पर आधिपत्य स्थापित कर ब्रिटिश शासन की नींव डाली और सन् 1947 ई० तक भारत पर शासन किया। इस उपनिवेश की शासन व्यवस्था के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया गया। उपनिवेशी शोषण के मुख्य रूप निम्नांकित थे
1. व्यापार नीतियों द्वारा शोषण- ब्रिटिश सरकार ने ऐसी व्यापारिक नीतियों का सहारा लिया कि ब्रिटिश उद्योगों को कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति की जा सके।
(1) सरकार ने नील-निर्यात को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने किसानों को अपनी भूमि पर नील उगाने और बहुत कम मूल्य पर नील के पौधे बेचने को विवश किया।
(2) दस्तकारों को बाजार मूल्य से बहुत कम मूल्य पर सूती वस्त्र व रेशमी वस्त्र बेचने को विवश किया गया। इसके अतिरिक्त दस्तकारों को बंधक मजदूरों के रूप में काम करना | पड़ा।
(3) आयात और निर्यात शुल्कों में व्यापक परिवर्तन किए गए; यथा—
(अ) सन् 1700 के बाद छपे हुए कपड़ों का इंग्लैण्ड में आयात बंद कर दिया गया,
(ब) भारतीय वस्तुओं पर भारी सीमा-शुल्क और ब्रिटिश वस्तुओं के भारत में आयात पर बहुत मामूली शुल्क लगाए गए,
(स) भेद-मूलक संरक्षण नीति के अंतर्गत ऐसे उद्योगों को संरक्षण दिया गया जिन्हें ग्रेट ब्रिटेन के अलावा अन्य देशों से प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता था।
2. ब्रिटिश पूँजी के निर्यात द्वारा शोषण- भारत में अंग्रेजों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में विनियोग किए गए। जैसे-रेलवे, बंदरगाह, जहाजरानी, विद्युत, जल प्रबंध, सड़क व परिवहन, वाणिज्यिक कृषि, | चाय, कहवा व रबड़, कपास, पटसन, तम्बाकू, चीनी वे कागज, बैंक, बीमा एवं व्यापार, इंजीनियरिंग, रसायन व मशीन-निर्माण। ये सभी विनियोग ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय निगमों तथा अनुषंगी कम्पनियाँ बनाकर किए गए। ये निगम शोषण के प्रमुख उपकरण थे और भारत के ब्याज, लाभांश * और लाभ के रूप में धन बाहर ले जाते थे।
3. प्रबन्ध अभिकरण प्रणाली द्वारा वित्त पूँजी से शोषण- कम्पनियों के प्रबंध का कार्य प्रबंध अभिकर्ताओं को सौपा गया था। ये प्रबंध अभिकर्ता कच्चे माल, भण्डार उपकरण और मशीनों तथा उत्पादन की बिक्री जैसे कुछ कामों पर दलाली पाते थे, कार्यालय भत्ते लेते थे और लाभ का एक अंश प्राप्त करते थे।
4. ब्रिटिश प्रशासन व्यय के भुगतान द्वारा शोषण— ब्रिटिश शासकों ने नागरिक प्रशासन एवं सेना के लिए बहुत अधिक वेतन और भत्तों पर अंग्रेज अधिकारी भर्ती किए। अनेक सुविधाएँ एवं असीमित प्रशासनिक शक्ति के कारण उन्हें बड़ी मात्रा में रिश्वत मिलती थी, सेवानिवृत्त होने पर पेंशन मिलती थी। बचत, पेंशन व अन्य लाभों को वे इंग्लैण्ड अपने घर भेज देते थे। स्टर्लिंग ऋणों पर भारी ब्याज भी इंग्लैण्ड ही जाता था। इस प्रकार हमारे संसाधनों का भारी निकास (drain) हुआ।
प्रश्न 2.
भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर
18वीं शताब्दी के अंत तक भारत आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न तथा समृद्ध देश था। यहाँ के कृषकों, शिल्पकारों तथा व्यापारियों की कार्यकुशलता विश्वभर में प्रसिद्ध थी। भारतीय औद्योगिक आयोग, 1916 ने लिखा है-“जिस समय आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था के उद्गम पश्चिमी यूरोप में असभ्य जातियाँ निवास करती थीं, भारत अपने शासकों के वैभव तथा शिल्पकारों की उच्चकोटि की काना हेतु विख्यात था।” परंतु 19वीं शताब्दी की अनेक घटनाओं ने हमारे उद्योगों व हस्तकलाओं को प्रायः नष्ट कर दिया। डॉ० गाडगिल के अनुसार, 1880 तक भारतीय उद्योगों का पराभव हो चुका था। भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1. राजदरबारों की समाप्ति- सामान्यतः राजा, महाराजा और सामंत लोग हस्तकलाओं के पारखी हुआ करते थे। उनके संरक्षण में ही भारतीय उद्योग फले-फूले थे। ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ इनकी स्थिति दयनीय होती गई और हस्तकलाओं का पराभव होने लगा।
2. रुचि व फैशन में परिवर्तन- धीरे-धीरे भारतीय पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होने लगे। उनकी रुचि और फैशन में परिवर्तन के साथ-साथ, इनकी माँग के स्वरूप में भी परिवर्तन होने लगा। इससे स्वदेशी उद्यागों को धक्का लगा।
3. शिल्पकारों पर अत्याचार- ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त ठेकेदार शिल्पकारों पर भयानक अत्याचार करते थे। बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर उत्पाद खरीदना सामान्य बात थी। प्रशासन का अधिकार मिलने पर दमन व शोषण की यह प्रक्रिया और तीव्र हो गई। इससे परेशान होकर अनेक शिल्पकारों ने यह कार्य ही छोड़ दिया।
4. इंग्लैण्ड में भारतीय वस्तुओं के आयात पर रोक– भारत से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर बहुत अधिक कर लगा दिए गए। ये कर 50 प्रतिशत से 400 प्रतिशत तक थे। रेशमी वस्त्रों का आयात पूर्णतः बंद कर दिया गया।
5. दोषपूर्ण आर्थिक एवं औद्योगिक नीति– ब्रिटिश सरकार ने अपनी आर्थिक और औद्योगिक नीति का निर्माण इस प्रकार किया जिससे भारतीय उद्योगों पर कुठाराघात हो। उदाहरण के लिए मुक्त व्यापार नीति, भारी आयात-निर्यात कर एवं भारी अंतर्राज्यीय करों ने भारतीय उद्योगों को अत्यधिक क्षति पहुँचाई। :
6. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव- जैसे-जैसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार होता गया। देश का धनी वर्ग ब्रिटिश प्रशासकों का कृपापात्र बनने के लिए पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने लगा। वह भारतीय माल की अपेक्षा विदेशी माल का उपयोग करने लगा और भारतीय उत्पादों की माँग देश में कम हो गई।
7. विदेशी वस्तुओं से प्रतियोगिता में असफल- इंग्लैण्ड के आधुनिक उद्योगों में प्रयुक्त मशीनों से उत्पन्न माल के समक्ष परम्परागत तकनीक से निर्मित भारतीय माल न ठहर सका। इसका कारण यह था कि मिल में बनी वस्तुएँ सस्ती, गुण में अच्छी और अधिक टिकाऊ थीं।
8. शिल्पकला का ह्रास– विदेशी वस्तुओं के समक्ष प्रतियोगिता में न ठहर पाने के साथ-साथ स्वदेशी वस्तुओं के गुण, स्तर, किस्म और आकर्षण में कमी आने लगी। दुर्भाग्य से इसी समय भारतीय सामंतशाही स्वदेशी वस्तुओं को ही घृणा की दृष्टि से देखने लगी। इसका भारतीय उद्योगों पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
9. सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति- भारत में ब्रिटिश सरकार ने न केवल यहाँ के उद्योगों के प्रति उपेक्षा दिखाई अपितु अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें नष्ट भी किया। देश का कच्चा माल इंग्लैण्ड भेजा जाने लगा और उसी कच्चे माल से निर्मित माल वहाँ से देश में आने लगी। आंतरिक व्यापार को नष्ट करके विदेशी व्यापार में वृद्धि की गई और भारत सरकार भारत की प्रगति के बारे में तटस्थ तथा निष्क्रिय बनी रही। इस प्रकार धीरे-धीरे भारतीय हस्तकलाओं का ह्रास होता गया।
प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
1. प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर–स्वतंत्रता के समय देश की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी। देश में निर्धनता व्यापक रूप में विद्यमान थी। इस समय, अभाव तथा भुखमरी भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा का बयान करती थी।
2. कृषि एक मुख्य व्यवसाय—स्वतंत्रता के समय भारत में कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था थी। यहाँ की लगभग 72.7 प्रतिशत जनसंख्या कृषि-कार्य में लगी हुई थी। विकसित देशों की तुलना में यह प्रतिशत बहुत अधिक था।
3. कृषि, आजीविका का मुख्य स्रोत– स्वतंत्रता के समय कृषि भारत की आजीविका का मुख्य स्रोत थी। 72.7 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी तथा राष्ट्रीय आय में इसका योग आधे से भी अधिक लगभग 56 प्रतिशत था।
4. उत्पादकता का निम्न स्तर– स्वतंत्रता के समय भारत में कृषि क्षेत्र का उत्पादन उसकी माँग की तुलना में कम था। इसके अतिरिक्त उत्पादकता का स्तर भी निम्न था। यह भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का प्रतीक था। उत्पादन की परम्परागत तकनीक कृषि के विकास में बाधक बनी हुई थी।
5. मध्यस्थों की अधिकता– स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में भू-राजस्व संबंधी तीन प्रणालियाँ
प्रचलित थीं—
- जमींदारी प्रथा,
- महालवाड़ी प्रथा तथा
- रैयतवाड़ी प्रथा। सरकार तथा किसानों के बीच मध्यस्थों की एक बड़ी श्रृंखली थी। ये मध्यस्थ किसानों से बहुत अधिक लगान वसूल करने लगे। मध्यस्थों द्वारा किए जाने वाले इस शोषण ने कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
6. कृषि व्यवसायीकरण का अभाव- स्वतंत्रता से पूर्व भातीय कृषि मात्र जीवन-निर्वाह का साधन थी। कृषि का व्यवसायीकरण सीमित था। बाजार में बिक्री के लिए बहुत कम उत्पादन बेच पाता था, सारा का सारा स्व-उपयोग पर ही व्यय हो जाता था।
7. उपभोक्ता उद्योगों का धीमा विकास– भारत में ब्रिटिश पूँजी की सहायता से कुछ उपभोक्ता उद्योगों; (जैसे-कपड़ा, जूट, चीनी, माचिस आदि) की स्थापना एवं विकास किया गया था किंतु इन उद्योगों में किए गए निवेश पर ब्याज तथा प्राप्त लाभांश विदेश भेज दिया जाता था। इसका उपयोग देश के औद्योगिक विकास के लिए नहीं किया गया।
8. आधारभूत उद्योगों का अभाव- स्वतंत्रता के समय देश में पूँजीगत, भारी एवं आधारभूत उद्योगों का अभाव था। केवल एक ही आधारभूत उद्योग था-टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर। देश का औद्योगिक आधार अत्यधिक कमजोर था।
9. कुटीर एवं लघु उद्योगों का हास– ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व भारतीय शिल्प उद्योग चरमोत्कर्षपर थे। ढाका की मलमल (आबेहयात) विश्वभर में प्रसिद्ध थी। किंतु ब्रिटिश प्रशासकों की दोषपूर्ण नीति के कारण धीरे-धीरे उनका पतन हो गया। 18. आधारभूत संरचना का अभाव-स्वतंत्रता के
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