UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 सुभाषितानि (सुन्दर उक्तियाँ) (संस्कृत-खण्ड)
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[पाठ-परिचय : ‘संस्कृत’ के इस पाठ में जीवनोपयोगी उपदेश निहित हैं, जिनका आचरण करके मनुष्य सुख-शान्ति का जीवन जी सकता है।]
1. वरमेको गुणी ………………………………………………………………………. तारागणैरपि।
शब्दार्थ-वरम् = श्रेष्ठ। गुणी = गुणवान् शतैरपि = सैकड़ों भी। तुम = अन्धकार।
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘सुभाषितानि’ नामक पाठ से उधृत है।
हिन्दी अनुवाद – सैकड़ों मूर्ख पुत्रों से (भी) एक गुणवान् पुत्र श्रेष्ठ है; (क्योंकि असंख्य) तारागणों और एक चन्द्रमा दोनों में चन्द्रमा अन्धकार को मार देता है; असंख्य तारे नहीं।
2. मनीषिणः सन्ति ………………………………………………………………………. हितं च दुर्लभम्।।
शब्दार्थ – मनीषिणः = विद्वान् हितैषिणः = हित चाहनेवाले। सुहृत् = मित्र नृणाम् = मनुष्यों में। यथौषधम् (यथा + औषधम्) = जैसे ओषधि। हितं = हितकारी।
हिन्दी अनुवाद – जो विद्वान् हैं, वे हितैषी ( भला चाहनेवाले) नहीं हैं। जो हित चाहने वाले हैं, वे विद्वान् नहीं हैं। जो विद्वान् भी हो और हितैषी भी, ऐसा व्यक्ति मनुष्यों में उसी प्रकार से दुर्लभ है, जिस प्रकार स्वादिष्ट और हितकारी ओषधि दुर्लभ होती है।
3. चक्षुषा मनसा ………………………………………………………………………. लोको नु प्रसीदति।।
शब्दार्थ-चक्षुषा = नेत्र से । वाचा = वाणी से। चतुर्विधम् = चार प्रकार से । प्रसादयति = प्रसन्न करता है। लोकं = संसार को। तं = उसके प्रति ।
हिन्दी अनुवाद – जो मनुष्य नेत्र से, मन से, वाणी से और कर्म से-(इन) चारों प्रकार से संसार को प्रसन्न रखता है, संसार उसे प्रसन्न रखता है।
4. अक्रोधेन जयेत् ………………………………………………………………………. सत्येन चानृतम्॥
शब्दार्थ-अक्रोधेन = क्रोध न करने से। असाधुम् = दुर्जन को। जयेत् = जीतना चाहिए। कदर्यम् = कंजूस को। अनृतं = झूठ।।
हिन्दी अनुवाद – क्रोध को क्रोध न करने से (शान्ति से) जीतना चाहिए। दुर्जन को सज्जनता से जीतना चाहिए। कंजूस को दान से जीतना चाहिए। असत्य (झूठ) को सत्य से जीतना चाहिए।
5. अकृत्वा परसन्तापमगत्वा ………………………………………………………………………. स्वल्पमपि तद् बहु॥
शब्दार्थ – अकृत्वा = न करके। परसन्तापम् = दूसरे को दुःख देना। अगत्वा = न जाकर । तद् = वह। खल = दुष्ट । सतां = सज्जनों का।।
हिन्दी अनुवाद – दूसरों को दु:खी न करके, दुष्ट के घर न जाकर, संज्जनों के मार्ग का उल्लंघन न करके, जो थोड़ा भी मिल जाता है, वही बहुत है।
6. सत्याधारस्तपस्तैलं ………………………………………………………………………. यत्नेन वार्यताम्।
शब्दार्थ-सत्याधारः = सत्य ही जिसका आधार है। दयावर्तिः = दयारूपी बत्ती। शिखा = लौ । वार्यताम् = जलाना चाहिए। तपस्तेले = तपरूपी तेल।।
हिन्दी अनुवाद – सत्य का आधार वाले, तपरूपी तेल वाले, दयारूपी बत्ती वाले, (और) क्षमारूपी लौ वाले दीपक को अन्धकार में प्रवेश करते समय प्रयत्न से जलाना चाहिए।
7. त्यज दुर्जन ………………………………………………………………………. नित्यताम्।।
शब्दार्थ-संसर्ग = संगति साथ, समगमम् = मेल-मिलाप अहः = दिन नित्यम् = उचित, ठीक। अनित्यम् = अनुचित भज = अनुकरण करो।
हिन्दी अनुवाद – दुष्टों की संगति त्याग दो। सज्जनों से मेल-मिलाप करो दिन में पुण्य कर्म करो और रात्रि में उचितअनुचित को याद करो अर्थात् हमें दिनभर अच्छे कार्य करने चाहिए और रात्रि में उन पर विचार करना चाहिए कि हमने क्या उचित किया और क्या अनुचित
8. मनसि वचसि ………………………………………………………………………. सन्ति सन्तः कियन्तः।।
शब्दार्थ – काये = शरीर में । पुण्यपीयूषपूर्णाः = पुण्यरूपी अमृत से भरे हुए। परगुण-परमाणून् = दूसरों के अत्यल्प गुणों पर्वतीकृत्य = पर्वत के समान बड़ा।
हिन्दी अनुवाद – मन, वाणी और शरीर में पुण्यरूपी अमृत से भरे हुए, परोपकारों के द्वारा तीन लोकों को प्रसन्न करनेवाले, दूसरों के परमाणु जैसे बहुत छोटे गुणों को भी पर्वत के समान बड़ा देखकर और अपने हृदय से सदा प्रसन्न रहनेवाले सज्जन इस संसार में कितने हैं अर्थात् बिरले ही हैं।
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