UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation (जैव विविधता एवं संरक्षण)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों (कंपोनेंट) के नाम लिखिए।
उत्तर
जैव विविधता के तीन आवश्यक घटक निम्नवत् हैं –
- आनुवंशिक विविधता
- जातीय विविधता
- पारिस्थितिकिय विविधता प्रश्न
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आकलन करते हैं?
उत्तर
पृथ्वी पर जातीय विविधता समान रूप से वितरित नहीं है, बल्कि एक रोचक प्रतिरूप दर्शाती है। पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं। जैव विविधता साधारणतया, उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में सबसे अधिक तथा ध्रुवों की तरफ घटती जाती है। उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में जातीय समृद्धि के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं- उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों (Tropical regions) में जैव जातियों को विकास के लिए अधिक समय मिला तथा इस क्षेत्र को अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई जिससे उत्पादकता अधिक होती है। जातीय समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती है। पारिस्थितिकीविद् प्रजाति की उष्ण एवं शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में मिलने की प्रवृत्ति, अधिकता आदि की अन्य प्राणियों एवं पौधों से तुलना कर उसके अनुपात की गणना और आकलन करते हैं।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति- समृद्धि क्यों मिलती है? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए।
उत्तर
इस प्रकार की परिकल्पनायें निम्नवत् हैं –
- जाति उद्भवन (speciation) आमतौर पर समय का कार्य है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद (glaciation) होता रहा है जबकि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र लाखों वर्षों से
अबाधित रहा है। इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए लम्बा समय मिला है। - उष्ण कटिबन्धीय पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण (temperate environment) से भिन्न तथा कम मौसमीय परिवर्तन दर्शाता है। यह स्थिर पर्यावरण निकेत (niches) विशिष्टीकरण को।
प्रोत्साहित करता रहा है जिसकी वजह से अधिकाधिक जाति विविधता उत्पन्न हुई है।
- जाति उद्भवन (speciation) आमतौर पर समय का कार्य है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद (glaciation) होता रहा है जबकि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र लाखों वर्षों से
- उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता उत्पन्न हुई है।
प्रश्न 4.
जातीय-क्षेत्र सम्बन्ध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व है?
उत्तर
जातीय- क्षेत्र सम्बन्ध (Species- area relationship) – जर्मनी के महान् प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री एलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में गहन खोज के बाद जाति समृद्धि तथा क्षेत्र के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया। उनके अनुसार कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध आयताकार अतिपरवलय (rectangular hyperbola) होता है। यह लघुगणक पैमाने पर एक सीधी रेखा दर्शाता है। इस सम्बन्ध को निम्नांकित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
log S = log C + Z log A
जहाँ; S = जाति समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएंट)
C = Y – अन्त:खण्ड (इंटरसेप्ट)
पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है। यह वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है। आश्चर्यजनक रूप से समाश्रयण रेखा (regression line) की ढलान एक जैसी होती है। यदि हम किसी बड़े समूह के जातीय क्षेत्र सम्बन्ध जैसे- सम्पूर्ण महाद्वीप का विश्लेषण करते हैं, तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी होती। है। Z के माने की परास (range) 0.6 से 1.2 होती है।
प्रश्न 5.
किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर
जाति क्षति के कारण (Causes of Species Loss) – विभिन्न समुदायों में जीवों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। जब तक किसी पारितन्त्र में मौलिक जाति उपस्थित रहती है तब तक प्रजाति के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती रहती है। मौलिक जाति के विलुप्त होने पर इसके जीनपूल में उपस्थित महत्त्वपूर्ण लक्षण विलुप्त हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानव हस्तक्षेप के कारण सम्पूर्ण विश्व जाति क्षति की बढ़ती हुई दर का सामना कर रहा है। जाति क्षति के मुख्य कारण निम्नवत् हैं –
(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन (Habitat Loss and Fragmentation) – मानवीय हस्तक्षेप के कारण जीवों के प्राकृतिक आवासों का नाश हुआ है। जिसके कारण जातियों का विनाश गत 150 वर्षों में अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है। मानव हितों के कारण औद्योगिक क्षेत्रों, कृषि क्षेत्रों, आवासीय क्षेत्रों में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे वनों का क्षेत्रफल 18% से घटकर लगभग 9% रह गया है। आवासीय क्षति जन्तु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है।
विशाल अमेजन वर्षा वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काट कर साफ कर दिया गया है। इसमें निवास करने वाली करोड़ों जातियाँ प्रभावित हुई हैं और उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है। आवासीय क्षति के अतिरिक्त प्रदूषण भी जातियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। मानव क्रियाकलाप भी जातीय आवासों को प्रभावित करते हैं। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है, तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए वह बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि में कमी होती है।
(ii) अतिदोहन (Over Exploitation) – मानव हमेशा से भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, परन्तु लालच के वशीभूत होकर मानव प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण बहुत-सी जातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतिदोहन के कारण गत 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। अनेक समुद्री मछलियों की प्रजातियाँ शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की अनेक जातियाँ खतरे में हैं।
(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien Species Invasions) – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जान बूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास (पार्थेनियम) लैंटाना और हायसिंथ ( आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश) जातियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
(iv) सहविलुप्तता (Co-extinctions) – एक जाति के विलुप्त होने से उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। उदाहरण के लिए– एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उसके विशिष्ट परजीवी भी विलुप्त होने लगते हैं।
(v) स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि (Shifting or Jhum Cultivation) – जंगलों में रहने वाली जन जातियाँ विभिन्न जन्तुओं का शिकार करके भोजन प्राप्त करती हैं। इनका कोई निश्चित
आवास नहीं होता। ये जीवनयापन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानान्तरित होती रहती हैं। ये जंगल की भूमि पर खेती करते हैं, इसके लिए ये जनजातियाँ प्राय: जंगल के पेड़-पौधों, घास फूस को जलाकर नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इसके कारण वन्य प्रजातियाँ स्थानाभाव के कारण प्रभावित होती हैं।
प्रश्न 6.
पारितन्त्र के कार्यों के लिए जैवविविधता कैसे उपयोगी है?
उत्तर
जैव विविधता की पारितन्त्र के कार्यों के लिए उपयोगिता (Utility of Biodiveristy for Ecosystem Functioning) – अनेक दशकों तक पारिस्थितिकविदों का विश्वास था कि जिस समुदाय में अधिक जातियाँ होती हैं वह पारितन्त्र कम जाति वाले समुदाय से अधिक स्थिर रहता है। डेविड टिलमैन (David Tilman) ने प्रयोगशाला के बाहर के भूखण्डों पर लम्बे समय तक पारितन्त्र के प्रयोग के बाद पाया कि उन भूखण्डों में जिन पर अधिक जातियाँ थीं, साल दर साल कुल जैवभार में कम विभिन्नता दर्शाई। उन्होंने अपने प्रयोगों में यह भी दर्शाया कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है।
हम यह महसूस करते हैं कि समृद्ध जैव विविधता अच्छे पारितन्त्र के लिए जितनी आवश्यक है, उतनी ही मानव को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है। प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता की अनेक पारितन्त्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है। तीव्र गति से नष्ट हो रही अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग 20 प्रतिशत ऑक्सीजन, प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है। पारितन्त्र की दूसरी सेवा परागणकारियों; जैसे- मधुमक्खी, गुंजन मक्षिका पक्षी तथा चमगादड़ द्वारा की जाने वाली परागण क्रिया है जिसके बिना पौधों पर फल तथा बीज नहीं बन सकते। हम प्रकृति से अन्ये अप्रत्यक्ष सौन्दर्यात्मक लाभ उठाते हैं। पारितन्त्र पर्यावरण को शुद्ध बनाता है। सूखा तथा बाढ़ आदि को नियन्त्रित करने में हमारी मदद करता है।
प्रश्न 7.
पवित्र उपवन क्या हैं ? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?
उत्तर
अलौकिक ग्रूव्स या पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाये जाने वाले वनखण्ड हैं। ये जातीय समुदायों/राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं। पवित्र उपवनों से विभिन्न प्रकार के वन्य जन्तुओं और वनस्पतियों को संरक्षण प्राप्त होता है क्योंकि इनके आस-पास हानिकारक मानव गतिविधियाँ बहुत कम होती हैं। इस प्रकार ये वन्य जीव संरक्षण में धनात्मक योगदान प्रदान करते हैं।
प्रश्न 8.
पारितन्त्र सेवा के अन्तर्गत बाढ़ व भू- अपरदन (सॉयल इरोजन) नियन्त्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितन्त्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?
उत्तर
पारितन्त्र को संरक्षित कर बाढ़, सूखा व भू-अपरदन (soil erosion) जैसी समस्याओं पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। वृक्षों की जड़ें मृदा कणों को जकड़े रहती हैं, जिससे जल तथा वायु प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होते हैं। वृक्षों के कटान से यह अवरोध समाप्त हो जाता है। मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत तीव्र वायु या वर्षा के जल के साथ बहकर नष्ट हो जाती है। इसे मृदा अपरदन कहते हैं। पहाड़ों में जल ग्रहण क्षेत्रों के वृक्षों को काटने से मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है और यह अधिक गम्भीर रूप धारण कर लेती है। बाढ़ के समय नदियों का पानी किनारों से तेज गति से टकराता है और इन्हें काटता रहता है। इसके फलस्वरूप नदी का प्रवाह सामान्य दिशा के अतिरिक्त अन्य दिशाओं में भी होने लगता है। वृक्षारोपण, बाढ़ नियन्त्रण तथा मृदा अपरदन को रोकने का प्रमुख उपाय है। वृक्ष मरुस्थलों में वातीय अपरदन (wind erosion) को रोकने में उपयोगी होते हैं। वृक्ष वायु गति की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं जिससे अपरदन की दर कम हो जाती है।
प्रश्न 9.
पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत), जन्तुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है। क्या कारण है कि जन्तुओं में अधिक विविधता मिलती है?
उत्तर
प्राणियों में अनुकूलन की क्षमता पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। प्राणियों में प्रचलन का गुण पाया जाता है, इसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियाँ होने पर ये स्थान परिवर्तन करके स्वयं को बचाए रखते हैं। इसके विपरीत पौधे स्थिर होते हैं, उन्हें विपरीत स्थितियों का अधिक सामना करना ही पड़ता है। प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र तथा अन्त:स्रावी तन्त्र पाया जाता है। इसके फलस्वरूप प्राणी वातावरण से संवेदनाओं को ग्रहण करके उसके प्रति अनुक्रिया करते हैं। प्राणी तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्त:स्रावी तन्त्र के फलस्वरूप स्वयं को वातावरण के प्रति अनुकूलित कर लेते हैं। इन कारणों के फलस्वरूप किसी भी पारितन्त्र में प्राणियों में पौधों की तुलना में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
प्रश्न 10.
क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जान-बूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?
उत्तर
जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जान-बूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास लैंटाना और हायसिंथ (आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इन हानिकारक प्रजातियों को हमें जान-बूझकर विलुप्त करना होगा। इसी प्रकार अनेक विषाणु जैसे-पोलियो विषाणु को विलुप्त करके दुनिया को पोलियो मुक्त करना चाहते हैं।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है – (2015)
(क) मोर
(ख) सारस
(ग) कबूतर
(घ) गौरैया
उत्तर
(ख) सारस
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा स्तनिन संकटग्रस्त नहीं है? (2016)
(क) लाल पाण्डा
(ख) कस्तूरी मृग
(ग) नील गाय
(घ) भारतीय बबर शेर
उत्तर
(ग) नील गाय
प्रश्न 3.
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम किस सन में पारित किया गया था? (2014)
(क) 1942
(ख) 1972
(ग) 1912
(घ) 1991
उत्तर
(ख) 1972
प्रश्न 4.
प्राकृतिक वासस्थान में जीवों का संरक्षण कहलाता है (2017)
(क) उत्थाने संरक्षण
(ख) स्वस्थाने संरक्षण
(ग) (क) व (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) स्वस्थाने संरक्षण
प्रश्न 5.
भारत में अभयारण्यों की कुल संख्या है – (2017)
(क) 515
(ख) 480
(ग) 520
(घ) 490
उत्तर
(ग) 520
प्रश्न 6.
भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है – (2014)
(क) दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
(ख) काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
(ग) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
(घ) कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर
(ग) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
प्रश्न 7.
घाना राष्ट्रीय उद्यान किस प्रदेश में स्थित है? (2016)
(क) सिक्किम
(ख) असम
(ग) राजस्थान
(घ) उत्तराखण्ड
उत्तर
(ग) राजस्थान
प्रश्न 8.
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत के किस राज्य में स्थित है? (2016)
(क) असम
(ख) गुजरात
(ग) महाराष्ट्र
(घ) पंजाब
उत्तर
(क) असम
प्रश्न 9.
एशियाई शेरों के लिए एकमात्र प्राकृतिक वास गिर राष्ट्रीय उद्यान कहाँ पर स्थित है। (2018)
(क) उत्तराखण्ड
(ख) राजस्थान
(ग) गुजरात
(घ) मध्य प्रदेश
उत्तर
(ग) गुजरात
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वन्य जीवन और जैव विविधता में अन्तर बताइए। (2015)
उत्तर
वन्य जीवन में वे सभी प्राणी तथा पादप आते हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण और प्रभुत्व से दूर अपने प्राकृतिक वासस्थानों में रहते हैं जबकि जैव विविधता में सभी जीव, जातियाँ, समष्टियाँ, उनके बीच आनुवंशिक विभिन्नताएँ तथा सभी समुदायों के एकत्रित सम्मिश्र व पारिस्थितिक तन्त्र आते हैं।
प्रश्न 2.
वन्य जीवन क्या है? इसके विनाश के दो मुख्य कारण बताइए।
उत्तर
वन्य जीवन– (उपर्युक्त प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
विनाश के कारण– 1. वनोन्मूलन 2. वनों में लगने वाली आग
प्रश्न 3.
जैव विविधता की परिभाषा लिखिए। इसके संरक्षण की दो विधियों का उल्लेख कीजिए। (2015, 16, 17)
उत्तर
जैव विविधता (उपर्युक्त प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
जैव संरक्षण की विधियाँ- 1. स्वस्थाने संरक्षण 2. बहिस्थाने संरक्षण
प्रश्न 4.
विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष किस दिनांक को मनाया जाता है? इसका उद्देश्य क्या है? (2014)
उत्तर
जैव विविधता एवं पर्यावरण के संरक्षण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
प्रश्न 5.
आइ०यू०सी०एन० (IUCN) तथा डब्लूडब्लू०एफ० (WWF) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
IUCN – अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (International Union of Conservation of Nature and Natural Resources)
WWF – World Wide Fund.
प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्राणी कहाँ पाये जाते हैं? (2014)
- बबर शेर
- बाघ
उत्तर
- बबर शेर – गुजरात के काठियावाड में स्थित गिर जंगल में।
- बाघ – पश्चिम बंगाल में स्थित सुन्दरवन में।
प्रश्न 7.
कौन-सा जन्तु अत्यधिक शिकार के कारण भारत में विलुप्त हो रहा है? (2017)
उत्तर
कस्तूरी मृग।
प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम लिखिए। इसके संरक्षण के लिए कौन-सी परियोजना प्रारम्भ की गई है? (2014)
उत्तर
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम ‘बाघ’ है। इसके संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर’ परियोजना प्रारम्भ की गई है।
प्रश्न 9.
राष्ट्रीय पार्क एवं वन्य-जीव सैन्क्चुअरी में अन्तर बताइए। (2015)
या
उस प्रदेश तथा राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिखिए जहाँ भारतीय गैंडे संरक्षित हैं। राष्ट्रीय उद्यान और प्राणि विहार में अन्तर बताइए। (2017)
उत्तर
राष्ट्रीय पार्क वन्य जीव एवं पारिस्थितिक तन्त्र दोनों के संरक्षण के लिए सुनिश्चित होते हैं। जबकि वन्य- जीव सैन्क्चुअरी केवल वन्य-जीव का संरक्षण करने के लिए सुनिश्चित होते हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, सिबसागर, जोरहट (असम) एवं मानस प्राणिविहार बारपोटा (असम) में भारतीय गैंडों को संरक्षित किया गया है।
प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी स्थित राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिखिए। (2014, 17)
उत्तर
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान।
प्रश्न 11.
वन्य जीव क्या है? कॉर्बेट नेशनल पार्क किस राज्य में स्थित है? (2017)
उत्तर
वन्य जीव (प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें)
कॉर्बेट नेशनल पार्क, नैनीताल, उत्तराखण्ड में स्थित है।
प्रश्न 12.
‘तप्त स्थल (हॉट स्पॉट) क्या हैं? भारत में स्थित दो तप्त स्थलों के नाम लिखिए। (2014, 17)
उत्तर
वह भौगोलिक क्षेत्र जहाँ की जैव विविधता संकट में होती है, तप्त स्थल कहलाता है। हिमालय (पूर्वी हिमालय) तथा पश्चिमी घाट भारत में स्थित प्रमुख तप्त स्थल हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वन्य प्राणियों के विनाश के चार प्रमुख कारण लिखिए। (2014)
या
प्राणियों के विलुप्तीकरण के कारण लिखिए। (2016)
उत्तर
वन्य प्राणियों के विनाश के चार प्रमुख कारण निम्नवत् हैं –
- तीव्र वनोन्मूलन जिसके कारण वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास समाप्त होते जा रहे हैं।
- गैर-कानूनी रूप से वन्य प्राणियों का शिकार।
- मानव की क्रियाओं या भूलवश या प्राकृतिक कारणों से वनों में लगने वाली आग।
- प्रदूषण ने विभिन्न प्राणियों के आवासों को विभिन्न प्रकार से दूषित कर दिया है जिससे इनमें रहने वाले जीवों का जीवनकाल कम हो गया है।
प्रश्न 2.
वन्य प्राणी उत्पादों के लिए मनुष्य का लोभ’ शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
उत्तर
स्वतन्त्रता के बाद, क्रीड़ा आखेट (game hunting) का स्थान फर, चमड़े, मांस, हाथीदाँत, औषधियों, प्रसाधनों, सुगन्ध-द्रव्यों, साज-सज्जा, स्मृति चिन्हों, संग्रहालयी निदर्शो (museum specimens) आदि के लिए, वन्य प्राणियों के चोरी और सीनाजोरी से शिकार ने ले लिया। इस प्रकार, वन्य प्राणियों का विनाश व्यापक और तीव्र गति से होने लगा। उदाहरणार्थ, एक कामोत्तेजक औषधि (aphrodisiac) के संश्लेषण में प्रयुक्त सींग के लिए गैंडे (rhinoceros) का विगत 40-50 वर्षों में व्यापक वध हुआ है। इसी प्रकार, हाथीदाँत (ivory) के लिए हाथियों का, कस्तूरी (musk-एक अत्यधिक सुगन्धित द्रव्य जो नर की नाभि के निकट स्थित एक पुटी में भरा होता है) के लिए कस्तूरी मृग (musk deer) का, चर्बी, मांस, खाल, आदि के लिए ह्वेल का, फर के लिए हिमालयी हिमचीते (Himalayan snow-leopard) का, चमड़े के लिये बाघों, लोमड़ियों, घड़ियालों, साँभर, साँपों आदि का व्यापक वध हुआ है और अब भी हो रहा है।
प्रश्न 3.
रेड डाटा बुक से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता बताइए। (2014, 15)
या
रेड डाटा बुक किसे कहते हैं। इसमें उल्लिखित किन्हीं चार स्तनियों के नाम लिखिए। (2015)
उत्तर
विश्व संरक्षण संघ (World Conservation Union- WCU) – जिसे अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (International Union of Conservation of Nature and Natural Resources- IUCN या IUCNNR) भी कहा जाता है, के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जैव विविधता को विश्व के सभी भागों में अति संकट से गुजरना पड़ रहा है। इस सम्बन्ध में wCU ने अध्ययन द्वारा संकटग्रस्त जीवों की सूची लिपिबद्ध की जिसे रेड डाटा बुक कहा जाता है। इस सूची में उन जातियों एवं उपजातियों को सम्मिलित किया गया जो विलोपन के खतरे से गुजर रही हैं। इसका प्रकाशन पहली बार सन् 1963 में स्विट्जरलैण्ड में किया गया जहाँ WCU का मुख्यालय है। WCU ने रेड डाटा बुक में संकटग्रस्त जातियों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटकर विभाजित किया और उन्हें सूचीबद्ध किया। रेड डाटा बुक की सहायता से हमें संकटग्रस्त जीवों की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इस जानकारी की सहायता से हम उन संकटग्रस्त जीवों के संरक्षण के लिए प्रयास कर सकते हैं और उन्हें विलुप्त होने से बचा सकते हैं।
इसमें उल्लिखित चार स्तनी इस प्रकार हैं-
- काला हिरण
- चीतल
- चिंकारा तथा
- तेन्दुआ।
प्रश्न 4.
“भारत में वन्य प्राणियों की संकटग्रस्त जातियाँ” शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
या
संकटग्रस्त जातियाँ किन्हें कहते हैं? कोई दो संकटग्रस्त जातियों के उदाहरण दीजिए। (2015)
या
संकटाग्रस्त जातियों से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो संकटाग्रस्त भारतीय स्तनधारी प्राणियों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
हमारे देश में, इस समय, वन्य स्तनियों की लगभग 81, वन्य पक्षियों की लगभग 30, सरीसृपों और उभयचरों की लगभग 15 तथा अकशेरुकियों की बहुत-सी जातियाँ संकटग्रस्त हैं अर्थात् विलुप्त होने की कगार पर हैं, इन्हें संकटग्रस्त जातियाँ कहा जाता है। इनकी पूर्ण सूची, भारतीय शासन द्वारा प्रसारित “लाल आँकड़े’ (Red Data Book) नामक पुस्तक में दी गई हैं। हमारे संकटग्रस्त स्तनी मुख्यत: हैं—बबर शेर, बाघ, भेड़िये, सियार, लोमड़ियाँ, भालू, गन्ध बिलाव, लोरिस, अधिकांश जातियों के बन्दर, शल्की चींटीखोर, हिमचीता, गैंडा, जंगली गधा, जंगली सुअर, कस्तूरी मृग, कश्मीरी मृग, विविध जातियों के कुरंग, उड़न गिलहरियाँ, गंगों का सँस, सेही, गवले या गौर, जंगली भेड़े और बकरियाँ, गिब्बन, हाथी, जंगली भैंसे आदि।
हमारे संकटग्रस्त पक्षी मुख्यतः हैं- कुछ जातियों की बत्तखें, बाज, समुद्री गरुड़, बाँस तीतर, पहाड़ी बटेर, भारतीय पनचिरा, स्कन्ध मुर्गाबी (spur fowl), धनेश, हुकना, चेड़ (pheasant), सारस आदि।
संकटग्रस्त सरीसृप हैं- कई जातियों के कछुवे, मगरमच्छ, गोह, विषैले सर्प, अजगर इत्यादि।
संकटग्रस्त उभयचर मुख्यत: हैं- जरायुजी (viviparous) टोड तथा हिमालयी सरटिका (newt)।
प्रश्न 5.
जंगली जानवरों को सुरक्षित रखना क्यों आवश्यक है? इसके लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाया गया है? (2013)
या
वन्य जीव संरक्षण क्यों आवश्यक है? इस विषय में सरकार क्या कदम उठा रही है? (2015)
उत्तर
जंगल में जंगली जानवर पारिस्थितिक तन्त्र के जैविक घटक (biotic factors) होते हैं। ये जंगल में विभिन्न जीवों की संख्या को सीमित रखने में सहायक होते हैं। यदि इन्हें नष्ट कर दिया जायेगा तो जंगल में अन्य जीवों की संख्या में अचानक परिवर्तन आ जायेगा, जिससे वहाँ पारिस्थितिक तन्त्र में असन्तुलन की स्थिति आ जायेगी।
जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा उठाये गये कदम निम्नवत् हैं –
- ZSI (Zoological Survey of India) – जुलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया का प्रमुख उद्देश्य जन्तुओं का सर्वेक्षण, अनुसंधान तथा पर्यवेक्षण है।
- IBWL (Indian Board for Wildlife) – वन्य जीवन भारतीय परिषद् का गठन भी वन्य जीवों के संरक्षण के लिये ही किया गया। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय उद्यानों, जन्तु विहारों तथा चिड़ियाघरों द्वारा जन्तुओं का संरक्षण करना है।
- भारतीय संविधान में जंगली जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
- अनाधिकृत रूप से जंगलों को काटने पर रोक लगायी गयी है।
- वृक्षारोपण का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चलाया जा रहा है।
- भारतीय जन्तु सर्वेक्षण विभाग द्वारा संकटग्रस्त जातियों का अध्ययन किया जा रहा है जिसे लाल आँकड़े की किताब (Red Data Book) में सूचीबद्ध किया जा रहा है।
प्रश्न 6.
“बाघ परियोजना का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
बाघ परियोजना (Project Tiger) – इस परियोजना का आरम्भ सन् 1973 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों का संरक्षण करना है। इससे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान, कॉर्बेट नेशनल पार्क, नैनीताल (उत्तराखण्ड), रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई माधोपुर (राजस्थान) एवं सुन्दरवन चीता अभयारण्य (पं बंगाल) हैं।
प्रश्न 7.
वन्यजीव की परिभाषा लिखिए। इसके संरक्षण की दो प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
वन्यजीव में वे सभी प्राणी तथा पादप आते हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण और प्रभुत्व से दूर अपने प्राकृतिक वास स्थानों में रहते हैं। वन्य जीव संरक्षण विस्तृत रूप से दो प्रमुख विधियों द्वारा किया जाता है –
1. स्वस्थाने संरक्षण (In- situ Conservation) – स्वस्थाने संरक्षण वन्य जन्तुओं के प्राकृतिक आवास में किया जाता है। इसके लिए इन प्राकृतिक आवास स्थानों को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। निषेध की सीमा के अनुसार इन क्षेत्रों को निम्न प्रकारों में बाँटा गया है –
- राष्ट्रीय उद्यान (National Park)
- अभयारण (Sanctuaries)
- जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserve)
- अलौकिक ग्रूव्स तथा झीलें (Sacred grooves and lakes)
2. बहिस्थाने संरक्षण (Ex- situ Conservation) – इस संरक्षण में संकटोत्पन्न पादपों तथा जन्तुओं का उनके प्राकृतिक आवास से अलग एक विशेष स्थान पर अच्छी देखभाल की जाती है और सावधानीपूर्वक संरक्षित किया जाता है। इसके अन्तर्गत जन्तु उद्यान, वानस्पतिक उद्यान, वन्य जीव सफारी पार्क, बीज बैंक एवं जीन बैंक आदि आते हैं।
प्रश्न 8.
प्राणि विहार क्या है? भारत के दो प्राणि विहारों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
अभयारण (प्राणि विहार, Sanctuaries) – अभयारण्यों का उद्देश्य केवल वन्य जीवन का संरक्षण करना होता है। अतः इसमें व्यक्तिगत स्वामित्व, लकड़ी काटने, पशुओं को चराने आदि की अनुमति इस प्रतिबन्ध के साथ दी जाती है कि इन क्रिया-कलापों से वन्य प्राणी प्रभावित न हों। इनकी स्थापना एवं नियन्त्रण सम्बन्धित राज्य सरकार के अधीन होती है। भारत में लगभग 520 अभयारण हैं। भारत के दो प्राणि विहार-
- जलदापारा जन्तु विहार, मदारीहाट-पश्चिमी बंगाल
- घाना पक्षी विहार, भरतपुर-राजस्थान।
प्रश्न 9.
जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? भारत में कितने जीव-मण्डल आरक्षित क्षेत्र हैं? (2017)
या
संरक्षित जैवमण्डल क्या है? किन्हीं दो भारतीय संरक्षित जैवमण्डल के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर
जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve) – सन् 1971 में यूनेस्को की मनुष्य एवं जीव-मण्डल परियोजना के अन्तर्गत मानव कल्याण हेतु जीवमण्डल के संरक्षण की दृष्टि से जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना का शुभारम्भ किया गया। भारत में कुल 18 जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र हैं जिनमें से हिमालय प्रदेश का शीत मरुस्थल क्षेत्र तथा शेशाचालम प्रमुख हैं।
प्रश्न 10.
सिद्ध कीजिए कि “मानव-कल्याण, वन्य प्राणियों के साथ सहअस्तित्व में छिपा हुआ है।” (2014)
उत्तर
हजारों-लाखों वर्ष पूर्व का आदिमानव (primitive man) स्वयं एक वन्य प्राणि था जो भोजन के लिए अन्य वन्य प्राणियों का शिकार करता था। सभ्यता (civilization) और संस्कृति (culture) के उदय के साथ-साथ, प्रागैतिहासिक (prehistoric) मानव में वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम और इनके साथ सहअस्तित्व की भावना का भी उदय हुआ। प्रारम्भ में प्रागैतिहासिक मानव ने, शिकार में सहायता हेतु, कुत्तों को पाला। भूवैज्ञानिक (geological) प्रमाणों से पता चलता है कि बाद में, लगभग 5000 वर्ष पूर्व की सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization) तक, गाय एवं बैल, भैंस, हाथी, बकरी, मछलियाँ, मगरमच्छ आदि कई प्रकार के वन्य प्राणी मानव-जीवन से सम्बद्ध हो गये।
इनके अतिरिक्त भी, भित्ति-चित्रणों में और सिक्कों, बर्तनों आदि पर खुदाई में शेर, बाघ, गैंडे, सर्प, बन्दर आदि कुछ ऐसे वन्य प्राणियों का समावेश हो गया जिनसे कि मानव घबराता या डरता था। इसके बाद, ईसापूर्व के धार्मिक दर्शनों (religious philosophies), जैसे कि हिन्दू धर्म (Hinduism), बौद्ध-धर्म (Budhhism), जैन- धर्म (Jainism) आदि में, वन्य प्राणियों के वध को रोकने हेतु, ‘अहिंसा (Ahimsa or non-violence) धार्मिक सिद्धान्त (sacred tenet) के रूप में अपनाया गया। आर्यों (Aryans) ने शेर, मृग, सारस, मोर, हाथी, बकरी, घड़ियाल, बैल, गरुड़ (eagle), बत्तख आदि को देवी-देवताओं की सवारियाँ (mounts) मानकर इनका सम्मान किया।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि मानव-कल्याण वन्य प्राणियों के साथ सहअस्तित्व में छिपा हुआ है अर्थात् यदि मानव वन्य प्राणियों के साथ प्रेमभाव से रहेगा तो उनका कल्याण निश्चित है। परन्तु यदि वह उनका विनाश करता है तो कुछ समय पश्चात्, उनकी हानि परिलक्षित होने लगेगी।
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