UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 7 जयशंकर प्रसाद (काव्य-खण्ड)

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 7 जयशंकर प्रसाद (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

( पुनर्मिलन)

1. चौंक उठी …………………………………. मैं फेरा।
अथवा  अरे बता दो मुझे …………………………………. 
आकर कह दे रे!
शब्दार्थ- दूरागत = दूर से आयी। निस्तब्ध = शान्त, शब्दविहीन । निशा = रात्रि । प्रवासी = विदेश में गया हुआ।
सन्दर्भ- यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ के ‘पुनर्मिलन’ कविता से लिया गया है। यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘कामायनी’ महाकाव्य से संकलित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यावतरण में यह बताया गया है कि मनु श्रद्धा से रुष्ट होकर सारस्वत नगर चले गये। वहाँ वे संघर्षों में घायल हो गये। श्रद्धा ने उनकी इस स्थिति को स्वप्न में देखा और मनु को ढूंढ़ने निकल पड़ी। मनु को खोजती हुई यहाँ श्रद्धा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- श्रद्धा मनु को खोजती हुई जा रही है। रात का समय, एकान्त निर्जन वन, विचारों में डूबी वह चली जा रही है । इड़ा अपने विचारों में डूबी हुई बैठी है, अचानक दूर से आयी आवाज सुनकर वह चौंक पड़ी । इड़ा सोचने लगी, इस शान्त शब्दविहीन सुनसान रात्रि में यह इस प्रकार कहती कौन आ रही है ! आवाज इस प्रकार थी-”अरे मुझे कोई दया करके बता दो कि वह मेरा प्रवासी (विदेश में गया हुआ) प्रियतम कहाँ चला गया है? उसी पगले से मिलने के लिए मैं चक्कर काट रही हूँ।”
काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाषा- खड़ीबोली। रस- वियोग श्रृंगार। गुण- प्रसाद । अलंकार- रूपक, अनुप्रास।

2. रूठ गया था…………………………………..……………..जलती।
शब्दार्थ- शूल = काँटा। सदृश = समान। साल रही = चुभ रही है। उर = छाती, मन । राजपथ = राजमार्ग, रास्ता । वेदना = पीड़ा।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित ‘पुनर्मिलन’ से उद्धृत है।
प्रसंग- मनु श्रद्धा से रूठ गये थे। वह उन्हें खोजती हुई निकल पड़ी। श्रद्धा मनु के रूठने के विषय में बताती हुई कहती है –
व्याख्या- इड़ा ने दूर से आती हुई ध्वनि सुनी। यह ध्वनि श्रद्धा की थी। श्रद्धा कह रही थी कि मैं अपने बिछुड़े प्रियतम से मिलने के लिए ही फेरा लगा रही हैं। वह आगे कहती है- मेरा प्रियतम मनु मुझसे क्या रूठ गया था, मानो अपने-आपसे ही रूठ गया था। उसके रूठने का कारण यह था कि मैं उसे उस रूप में नहीं अपना सकी थी, जिस रूप में वह चाहता था। वह मुझ पर पूर्ण अधिकार चाहता था। मेरे मन में मेरी भावी सन्तति के प्रति पनपते प्रेम से उसे ऐसा लगा, जैसे वह उपेक्षित हो रहा हो और इसीलिए वह मुझे छोड़कर चला गया। उसमें और मुझमें कोई अन्तर तो था नहीं- यह सोचकर ही मैं रूठे हुए प्रियतम को मना भी नहीं सकी थी। भला कोई स्वयं को मनाता थोड़े ही है।
                 किन्तु वस्तुत: यह एक भूल ही हुई थी। मुझे उसे मनाना चाहिए था। मेरी वह भूल अब काँटे की तरह मेरे मन में चुभ रही है। कोई मुझे यह तो बताये कि मैं उसे किस प्रकार पा सकती हूँ? पता नहीं वह कहाँ-कहाँ भटकता फिर रहा होगा।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. वातावरण की दृष्टि से उत्तम अभिव्यक्ति हुई है।
  2. भाषा- खड़ीबोली, “उर को सालता’ मुहावरा।
  3. गुण- प्रसाद।
  4. रस- विप्रलंभ श्रृंगार।
  5. शब्द-शक्ति- अपनेपन से रूठना’, ‘धुंधली-सी छाया चलती’, ‘जलती’ आदि लाक्षणिक प्रयोग है। अलंकार-रूपक, अनुप्रास।

3. इड़ा उठी………………………………………….………घायल होकर लेटे।
शब्दार्थ- वसन = वस्त्र । विशृंखले = अस्त-व्यस्त। कबरी = चोटी । छिन्न पत्र = छिन्न-भिन्न (टूटे) पत्तेवाली । मकरन्द = पराग । अवलम्ब = सहारा । वय = उम्र । बटोही = पथिक।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘पुनर्मिलन’ शीर्षक पाठ से अवतरित हैं।
प्रसंग- श्रद्धा ने अपने बिछडे पति मनु को स्वप्न में घायल और मरणासन्न अवस्था में देखा। वह पुत्र को साथ लेकर मनु को खोजने निकल पड़ती है और खोजते-खोजते इड़ा के पास पहुँचती है । इड़ी श्रद्धा की अस्त-व्यस्त दशा का चित्रण करती है।
व्याख्या- इड़ा ने जब उठकर देखा तो उसे राजपथ पर एक धुंधली-सी छाया आती दिखायी दी। उसके स्वर में करुण वेदना थी और उसकी पुकार दु:ख की आग में जलती हुई-सी प्रतीत हो रही थी। श्रद्धा का शरीर निरन्तर चलने के कारण थक गया था। उसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गये थे। उसकी चोटी खुल गयी थी, जो उसकी अधीरता को प्रकट कर रही थी। वह ऐसी मुरझाई कली के समान मालूम पड़ रही थी, जिसकी पंखुड़ियाँ टूटकर बिखर गयी हों, जिसका पराग लुट गया हो। श्रद्धा की अस्त-व्यस्तता उसकी मानसिक परेशानी को प्रकट कर रही थी, जिससे उसे अपने शरीर की सुध नहीं थी।
                   इड़ा कहती है कि उस स्त्री के साथ एक नवीन किशोर आयु का कोमल और सुन्दर बालक था। वह अपनी माँ की उँगली पकड़कर चल रहा था। वह शान्त और धैर्य की मूर्ति के समान था। वह अपनी माँ का एकमात्र आधार था और अपनी माँ को कसकर पकड़े हुए धीरे-धीरे चल रहा था। वे दोनों ही पथिक जो माँ-बेटे थे, अत्यन्त थके हुए और दु:खी लग रहे थे। वे दोनों उस भूले हुए मनु की खोज कर रहे थे जो घायल होकर लेटा हुआ था।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में मनु की खोज में श्रद्धा की अस्त-व्यस्त दशा का करुण चित्रण हुआ है।
  2. पुत्र मानव को माँ श्रद्धा का एकमात्र सहारा बताया है; क्योंकि पति के बिछुड़ने पर पुत्र ही स्त्री का अवलम्ब कहा जाता है।
  3. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली
  4. शैली- चित्रात्मक।
  5. रस- विप्रलम्भ श्रृंगार एवं केरुण।
  6. शब्द शक्ति- लक्षणा ।
  7. गुण- माधुर्य
  8. अलंकार- अनुप्रास, उपमा।

4. इड़ा आज कुछ ……………………………………….…..दुःख की रातें।
शब्दार्थ- द्रवित = दयालु । बिसराया = भुला दिया है। रजनी = रात । व्यथा = दु:ख।
सन्दर्भ- ये पंक्तियाँ ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘कामायनी’ के ‘पुनर्मिलन’ शीर्षक से ली गयी हैं।
प्रसंग- इन पंक्तियों में इड़ा श्रद्धा की करुण दशा को देखकर पूछती है कि तुम्हें किसने भुला दिया है।
व्याख्या- इड़ा श्रद्धा की करुण वाणी को सुनकर उसके पास जाती है और उसका परिचय पूछते हुए यह प्रश्न करती है कि तुमको किसने भुला दिया है? तुम किसे यहाँ खोज रही हो? इस रात में तुम कहाँ भटकती फिरोगी? मेरे पास बैठकर थोड़ी देर विश्राम करो, आज मैं भी अत्यधिक व्यथित हूँ। तुम अपने दु:ख को मुझे बताओ । यह जीवन एक लम्बी यात्रा के सदृश है जिसमें खोये हुए पुनः मिलते हैं। इस जीवन में मिलने और बिछुड़ने का क्रम दिन और रात के क्रम के समान चलता रहता है। दु:ख की रातें कितनी ही लम्बी हों पर समाप्त हो जाती हैं।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाग्यवादी विचारधारा का संकेत है।
  2. भाषा शुद्ध एवं परिमार्जित है।
  3. शैली लाक्षणिक तथा प्रसाद गुण दृष्टिगोचर हो रहा है।
  4. अनुप्रास, उपमा, दृष्टान्त अलंकार है।

5. श्रद्धा रुकी………………………………………………..क्यों रह जाती?
शब्दार्थ- श्रान्त = थका हुआ। वह्नि-शिखा = आग की लपटें । वेदी-ज्वाला = यज्ञवेदी की अग्नि । अनुलेपन = मरहम।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘पुनर्मिलन’ से उधृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में मूर्च्छित मनु को देखकर श्रद्धा के हृदय में उत्पन्न भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।
व्याख्या- इड़ा की सहानुभूतिपूर्ण बातों को सुनकर श्रद्धा वहीं रुक गयी। उसका बेटा भी बहुत थक गया था और वहाँ आश्रय भी मिल रहा था। श्रद्धा तब इड़ा के साथ उस स्थान की ओर चल दी, जहाँ पर आग की लपटें उठ रही थीं। सहसा यज्ञवेदी की अग्नि धधक उठी, जिससे मण्डप में प्रकाश फैल गया। श्रद्धा ने वहाँ कुछ देखा और कदम बढ़ाती हुई वहाँ तक जा पहुँची। उसने वहाँ मनु को घायल अवस्था में देखा। श्रद्धा सोचने लगी कि क्या मेरा स्वप्न सच्चा निकला? वह चीख उठी-“आह प्राणप्रिय ! यह क्या हो गया? तुम इस दशा में क्यों हो?” ऐसा कहते हुए उसका मन भर आया और उसके नेत्रों से आँसू बहने लगे। यह देखकर इड़ा चकित रह गयी। श्रद्धा अपने पति मनु के पास बैठकर उनके शरीर पर हाथ फेरने लगी। उसका वह स्पर्श मरहम के समान कोमल एवं कष्ट हरनेवाला था; तब मनु के हृदय में पीड़ा क्यों शेष रहती?
काव्यगत सौन्दर्य

  1. यहाँ कवि ने श्रद्धा और मनु के मिलन का मार्मिक चित्रण किया है।
  2. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली
  3. शैली- चित्रात्मक।
  4. रस- करुण।
  5. अलंकार- ‘घुला हृदय बन नीर बहा’ में रूपक है।

6. उस मूर्च्छित नीरवता …………………………………………… लगते जी को? (Imp.)
शब्दार्थ- नीरवता = सूनापन, सन्नाटा। स्पन्दन = कम्पन।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘पुनर्मिलन’ से उद्धृत है।।
प्रसंग- इन पद्य-पंक्तियों में प्रसादजी ने श्रद्धा और मनु के मिलने का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या- श्रद्धा अपने पति मनु को घायल और मूच्छित देखकर ‘प्राणप्रिय’ कहकर उनके पास बैठ गयी और उनको सहलाने लगी। श्रद्धा का सुखद एवं मधुर स्पर्श पाकर शब्दहीन, चुपचाप मूच्छित पड़े मनु के शरीर में हल्की-सी हलचल उत्पन्न हो गयी। मनु ने आँखें खोलीं और एक-दूसरे को प्रेमपूर्वक देखते रहे, तब दोनों की आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे।
                 उधर श्रद्धा का पुत्र मानव यज्ञभूमि के ऊँचे मन्दिर, यज्ञ-मण्डप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, वह सोचने लगा कि यह सब कितना मोहक, सुन्दर और नवीन है, जो मेरे मन को आकर्षित कर रहा है।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. यहाँ कवि ने पतिपरायणा स्त्री के सहज प्रेम और सेवाभाव का चित्रण किया है।
  2. प्रेम का मधुर स्पर्श शारीरिक पीड़ा को दूर कर देता है।
  3. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली ।
  4. शैली- भावात्मक, चित्रात्मक।
  5. रस- शृंगार।
  6. छन्द- माधुर्य ।।

7. माँ ने कहा …………………………………………….…. श्रद्धा का संगीत बना।
शब्दार्थ- रोएँ खड़े होना = रोमांचित होना। सजीवता = जीवन्तता।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘पुनर्मिलन’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग- इन पंक्तियों में श्रद्धा अपने पुत्र को मनु से मिलवाती है। सबके मिलन पर छोटे-से परिवार में आत्मीयता का भाव भर जाता है।
व्याख्या- मनु के होश में आने पर श्रद्धा ने अपने पुत्र से कहा कि तू भी आकर अपने पिता के दर्शन कर ले । ये भूमि पर लेटे हुए हैं – माँ का कथेनें:सुनते ही उसने पितोकेपीस”जोकर कहा-पंतीर्जी’ ! देखों मैं आपके पास आ गया।” पिंतों से बँतकरं पुत्र को अति प्रसन्नत हुई । दनों हरिसँचित हो गये। | पुत्र अपनी माँ ( श्रद्धा) से बोला कि माताजी आप यहाँ बैठी क्या कर रही हो? पिताजी प्यासे होंगे, इन्हें जल लाकर दो। बालक की मधुर ध्वनि से मण्डप में ऐसी सजीवता छा गयी, जो पहले नहीं थी। | इस प्रकार उस घर में पुन: अपनेपन का भाव भर गया। श्रद्धा, मनु और कुमार के मिलने से वहाँ एक छोटा-सा परिवार बन गया। उस परिवार में श्रद्धों का मधुर स्वर संगीत बनकर छा गया।
काव्यंगत सौन्दर्य

  1. प्रैस्तुत पंक्तियों में श्रद्धा, कुमार और मनु के सुखद मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है।
  2. भाषा- शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली
  3. शैली- चित्रात्मक, संलाप।

प्रश्न 2. जयशंकर प्रसाद की जीवनी एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

जयशंकर प्रसाद
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म- सन् 1890 ई०, काशी। मृत्यु- सन् 1937 ई० । पिता- बाबू देवीप्रसाद ।
रचनाएँ- ‘झरना’, ‘लहर’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’, ‘प्रेम पथिक’ आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय- छायावाद, रहस्यवाद, ईश्वरोन्मुख लौकिक प्रेम, प्रकृति-प्रेम तथा भारतीय संस्कृति से प्रेम। रस-प्राय: सभी।
भाषा- आरम्भ में ब्रजभाषा, बाद में खड़ीबोली, संस्कृत शब्दों की प्रचुरता, मुहावरों का अभाव ।
शैली- 1. कथात्मक, 2, दुरूह तथा गहन और 3. भावात्मक।
अलंकार- सभी प्राचीन, नवीन (मानवीकरण आदि) अलंकार।
छन्द- हिन्दी के प्राचीन छन्द।

  • जीवन-परिचय- बाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1890 ई० में हुआ था। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद ‘सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध एक धनी व्यवसायी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद इनकी शिक्षा का प्रवन्ध घर पर ही हुआ। यहाँ इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी का गम्भीर अध्ययन किया और अपने व्यापार की देखभाल के साथ हिन्दी की सेवा में भी लगे रहे। प्रसाद जी स्वभाव से बड़े उदार, मृदुभाषी, स्पष्ट वक्ता, साहसी और हँसमुख प्रकृति के व्यक्ति थे। इनकी मनोवृत्ति धार्मिक थी। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक और शिव के परम भक्त थे। इनकी मृत्यु सन् 1937 ई० में क्षय रोग के कारण हो गयी।
  • रचनाएँ- प्रसाद जी ने साहित्य के विविध क्षेत्रों में अपना स्वतन्त्र मार्ग बनाया। इन्होंने काव्य, नाटक, उपन्यास और निबन्ध सभी विषयों को स्पर्श किया है।
  • काव्य- चित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, प्रेम पथिक, झरना, आँसू, लहर और कामायनी ।

काव्यगत विशेषताएँ

  • (क) भाव-पक्ष-आधुनिक काल के छायावादी ऐवं रहस्यवादी कवियों में प्रसाद जी का सर्वोच्च स्थान है।‘आँसू’ इनका प्रथमं छायावादी कार्ये हैं कॉमर्यंन इन ऑन्तैम और र्सर्वं श्रेष्ठ रचना है। पौराणिक कथा पर आधारित इस काव्य में इन्होंने अपनी काव्य-प्रतिभा को चरम सीमा तक पैहुँचा दिया है। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे पुजारी थे, जिसका प्रभाव इनकी रचनाओं पर पड़ा है। प्रसादजी मूल रूप से कल्पना और भावना के कवि थे। भावना के क्षेत्र में इन्होंने प्रेम और सौन्दर्य को स्थान दिया है। इनकी यह प्रेम-भावना मुख्यत: तीन रूपों में दिखायी देती है—
    1. ईश्वरोन्मुख लौकिक प्रेम,
    2. भारतीय संस्कृति से प्रेम,
    3. प्रकृति प्रेम।
  • (ख) कला-पक्ष-भाषा- प्रसादजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। वह सरल और क्लिष्ट दो रूपों में दिखायी देती है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में व्यावहारिक भाषा का प्रयोग हुआ है, किन्तु पद की रचनाएँ संस्कृत प्रधान हो गयो हैं । अत: कहीं-कहीं क्लिष्टता आ गयी है। इनका वाक्य-विन्यास और शब्द-चयन अति सुन्दर और अद्वितीय है। इनकी रचनाओं में एक-एक वाक्य नेगीने की भाँति जड़ा होता है। इनकी भाषा लाक्षणिकता और चित्रात्मकता अधिक है, किन्तु मुहावरों का सर्वथा अभाव है। संच तो यह है कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रसाद जैसी सशक्त भाषा किसी साहित्यकार की नहीं है।
    • शैली– प्रसाद जी की शैली ठोस, स्पष्ट, परिष्कृत और स्वाभाविक है। छोटे-छोटे वाक्यों में गम्भीर भाव भर देना और उसमें संगीत का विधान कर देना इन शैली की विशेषता है। इनकी रचनाओं में इनका व्यक्तित्व झाँकता रहता है। इन्होंने अपने दार्शनिक विचारों को गम्भीर शैलीं मैंव्यक्त किया है तथा लज्जा, चिन्ता औदिं मानसिक भवों के चित्रण में इन्होंने भावात्मक शैली को अपनाया है।
    • रस- रस की दृष्टि से प्रसाद जी मुख्यतः श्रृंगार रस के कवि हैं, किन्तु कॅरुणवीर, वात्सल्य आदि के भी सुन्दर उदाहरण इनकी रचनाओं में मिलते हैं।
    • अलंकार- प्रसाद जी ने अलंकारों का सुन्दर स्वाभाविकै प्रयोग किया है। उनमें रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, श्लेष, विरोधाभास आदि मुख्य हैं। एक उदाहरण देखिए-
    • रूपक-

काली आँखों में कितनी, यौवन के मद की लाली।
मानसिक मदिरा से भर दी, कितने नीलम की प्याली।।

  • छन्द- आधुनिक छन्दों के अतिरिक्त प्रसादजी ने कवित्त, रोली, रूपमाला आदि छन्दों को अपनाया है। संस्कृत छन्दों के साथ इन्होंने सुन्दर गीत भी लिखे हैं। वस्तुत: प्रसादजी का कवि-रूप बड़ा ओजस्वी था। ये छायावादी युग के प्रथम प्रवर्तक थे। आधुनिक युग के कवियों में उनका स्थान सर्वोच्च है। इनकी रचनाओं के कारण हिन्दी साहित्य गौरवान्वित हुआ है।

प्रश्न 3. ‘पुनर्मिलन’ काव्यांश का सारांश एवं मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
‘पुनर्मिलन’ कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य का एक अंश है। जल-प्रलय से बचे हुए मनु और श्रद्धा साथ-साथ रहने लगे। श्रद्धा अपनी भावी सन्तान के लिए वस्त्र बुनने लगी। मनु को यह अच्छा न लगा और वे श्रद्धा को छोड़कर भाग गये। एक रात स्वप्न में श्रद्धा ने मनु को घायल और मूर्च्छित अवस्था में देखा। श्रद्धा उनकी खोज में अपने पुत्र को साथ लेकर चल पड़ी। इस कविता का सारांश निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत है –
सारांश- रात्रि के समय श्रद्धा अपने पुत्र के साथ यह कहती हुई जा रही थी कि कोई मुझे यह बता दे कि मेरा प्रिय कहाँ है? वह मुझसे रूठकर चला आया था और मैं उसे मना नहीं पायी थी। ‘इड़ा’ इन शब्दों को सुनकर उठी और उसने सड़क पर शिथिल शरीर और अस्त-व्यस्त वस्त्रों को पहने हुए श्रद्धा को देखा। उसका पुत्र कुमार उसकी अँगुली पकड़े हुए था। |
इड़ा उसकी ऐसी दशा देखकर बोली कि तुम्हें किसने बिसराया है? तुम बैठो और मुझे अपनी कथा सुनाओ। श्रद्धा, इड़ा के साथ जलती हुई अग्नि के पास पहुँची। उसने वहाँ मनु को देखा। वह वहाँ पहुँच गयी और बोली, मेरा स्वप्न सच्चा निकला है। अरे प्रिय ! तुम्हारा यह क्या हाल है? वह मनु के पास बैठकर उसे सहलाने लगी, जिससे मनु की मूच्र्छा दूर हो गयी और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं । जैसे ही दोनों की आँखें चार हुईं, उनकी आँखों में आँसू आ गये। इस समय कुमार राजमहल की ओर देख रहा था। श्रद्धा ने उसे पुकारकर कहा कि तेरे पिता यहाँ हैं। तू भी यहाँ आ जा। वह पिता-पिता कहते हुए वहाँ आया और बोला कि हे माँ ये प्यासे होंगे। तू इनको पानी पिला। इस प्रकार वहाँ सबका मिलन हो गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रसाद के प्रकृति-चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- प्रसाद ने प्रकृति के सुन्दर रूपों का चित्रण किया है।’झरना’ में प्रेम और सौन्दर्य के साथ प्रकृति के मनोरम रूप का भी चित्रण किया है। इसमें कवि के छायावादी रूप के स्पष्ट दर्शन होते हैं।

प्रश्न 2. इड़ा को कामायनी’ धुंधली-सी छाया’ क्यों लग रही थी?
उत्तर- कामायनी अत्यन्त दुबली हो गयी थी। रात्रि में गहन अँधेरा छाया था। इस कारण इड़ा को वह धुंधली छाया-सी मालूम पड़ रही थी।

प्रश्न 3. विरहिणी के रूप में कवि ने कामायनी का चित्रण किस प्रकार किया है?
उत्तर- विरहिणी कामायनी बहुत कमजोर हो गयी है। उसने अपने वस्त्र भी ठीक प्रकार से नहीं पहन रखे हैं। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी ने कली का मकरन्द लूट लिया हो और वह मुरझा गयी हो।

प्रश्न 4. ‘पुनर्मिलन’ काव्यांश का भाव लिखिए।
उत्तर- रात्रि के समय श्रद्धा अपने पुत्र के साथ यह कहती हुई जा रही थी कि कोई मुझे यह बता दे कि मेरा प्रिय कहाँ है? वह मुझसे रूठकर चला आया था और मैं उसे मना नहीं पायी थी।’ इड़ा’ इन शब्दों को सुनकर उठी और उसने सड़क पर शिथिल शरीर और अस्त-व्यस्त वस्त्रों को पहने हुए श्रद्धा को देखा। उसका पुत्र कुमार उसकी उँगली पकड़े हुए था।
                     इड़ा उसकी ऐसी दशा देखकर बोली कि तुम्हें किसने बिसराया है? तुम बैठो और मुझे अपनी कथा सुनाओ। श्रद्धा, इड़ा के साथ जलती हुई अग्नि के पास पहुँची। उसने वहाँ मनु को देखा। वह वहाँ पहुँच गयी और बोली मेरा स्वप्न सच्चा निकला है। अरे प्रिय ! तुम्हारा यह क्या हाल है? वह मनु के पास बैठकर उसे सहलाने लगी, जिससे मनु की मूच्र्छा दूर हो गयी और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं। जैसे ही दोनों की आँखें चार हुईं, उनकी आँखों में आँसू आ गये। इस समय कुमार राजमहल की ओर देख रहा था। श्रद्धा ने उसे पुकार कर कहा कि तेरे पिता यहाँ हैं । तू भी यहाँ आ जा। वह पितापिता कहते हुए वहाँ आया और बोला कि हे माँ ये प्यासे होंगे। तू इनको पानी पिला। इस प्रकार वहाँ सबका मिलन हो। गया।

प्रश्न 5. कामायनी तथा उसके पुत्र के मनु से पुनर्मिलन को संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- श्रद्धा अपने पुत्र के साथ मनु को खोजती चली जा रही है। वह लोगों से उनका पता पूछ रही है और पश्चात्ताप कर रही है कि यदि मैं उन्हें मना लेती तो सम्भवतः वे न जाते । इड़ा उसकी आवाज सुनकर चौंक जाती है। वह देखती है कि पथ पर अस्त-व्यस्त वस्त्रों में एक युवती चली आ रही है। उसके साथ एक किशोर भी है। इड़ा ने उसके रोने का कारण पूछा। तभी श्रद्धा को घायल अवस्था में लेटे हुए अपने पति मनु दिखायी पड़े। उन्हें देखते ही श्रद्धा की आँखों में आँसू बहने लगे। जब श्रद्धा ने अपने हाथों से मनु को सहलाया तो उनमें चेतना आयी। श्रद्धा को अपने पास देखकर उनकी आँखों से आँसू बहने। लगे।
                              उनका पुत्र यज्ञ भूमि के ऊँचे मन्दिर, यज्ञ मण्डप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, तभी श्रद्धा ने कहा-‘देख पुत्र! तेरे पिता यहाँ हैं। यह सुन कर वह दौड़कर पास आ गया तथा अपनी माँ से अपने पिता को जल पिलाने के लिए कहा। उसी समय सारा मण्डप नवनिर्मित परिवार की प्रसन्नता से भर उठा।

प्रश्न 6. जयशंकर प्रसाद की भाषा-शैली बताइए।
उत्तर- भाषा-शैली- प्रसाद जी की भाषा पूर्णत: साहित्यिक, परिमार्जित एवं परिष्कृत है। भाषा प्रवाहयुक्त होते हुए भी संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है, जिसमें सर्वत्र ओज एवं माधुर्य गुण विद्यमान है। अपने सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए प्रसाद जी ने लक्षणा एवं व्यंजनों का आश्रय लिया है। प्रसाद जी की शैली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है। संगीतात्मकता तथा लय पर आधारित इनकी शैली अत्यन्त सरस एवं मधुर है।

प्रश्न 7. ‘पुनर्मिलन’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर- इस कविता में श्रद्धा, मनु और उनके पुत्र कुमार के मिलन का वर्णन है। एक बार मनु किसी बात पर खिन्न होकर घर से बाहर चले जाते हैं। श्रद्धा रात्रि में उनकी तलाश में पुत्र का हाथ पकड़े हुए बाहर निकल जाती है और यह कहती जा रही थी कि ”मेरा प्रिय कहाँ है वह मुझसे नाराज होकर चला गया है।” इड़ा श्रद्धा की आवाज सुनकर बाहर निकलती है और उसका हाल-चाल जानने के लिए उसे जलती हुई अग्नि के पास ले जाती है। वहाँ मनु पड़े हुए थे। वहाँ जाकर श्रद्धा मनु का सिर सहलाने लगी। मूच्र्छा दूर होने पर उन्होंने आँखें खोलीं। दोनों की आँखें चार होते ही मनु की आँखों में आँसू आ गये। श्रद्धा अपने पुत्र को पुकारती है कि तुम्हारे पिता यहाँ हैं। कुमार आता है और अपने पिता को देखता है । इस तरह तीनों को पुनर्मिलन होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जयशंकर प्रसाद किस काल के कवि हैं?
उत्तर- जयशंकर प्रसाद आधुनिक काल के कवि हैं।

प्रश्न 2. जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य का नाम बताइए।
उत्तर- कामायनी।

प्रश्न 3. जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित दो काव्य ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर- कामायनी और लहर।

प्रश्न 4. जयशंकर प्रसाद को किस युग का प्रवर्तक माना जाता है?
उत्तर- छायावादी युग का।

प्रश्न 5. कवि किस आशा से अनुप्रेरित होकर क्यारी और कुंज में परिश्रम कर रहा है?
उत्तर-
कवि मल्लिका पुष्प खिलने की आशा से क्यारी और कुंज में परिश्रम कर रहा है।

प्रश्न 6. श्रद्धा कौन थी?
उत्तर- श्रद्धा मनु की पत्नी थी।

प्रश्न 7. निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए-
(अ) श्रद्धा के पुत्र का नाम मानव है।                       (×)
(ब) जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं।                (√)
(स) पुनर्मिलन कामायनी निर्वेद सर्ग में उद्धृत है।     (√)

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) मुखर हो गया सूना मण्डप।
(ब) आत्मीयता घुली उस घर में छोटा सा परिवार बना।
उत्तर-

  • (अ) काव्य-सौन्दर्य-
    1. यहाँ बालकों की प्रकृति एवं उनकी उत्सुकता सम्बन्धी भावना का अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
    2. मनु से श्रद्धा और पुत्र के मिलन में स्वाभाविकता का समावेश हुआ है।
    3. भाषा- ऐतिहासिक खड़ीबोली ।
    4. रस- शृंगार तथा वात्सल्य
    5. गुण- माधुर्य।
    6. अलंकार- अनुप्रास।।
  • (ब) काव्य-सौन्दर्य- 
    1. कवि ने पति, पत्नी तथा पुत्र का मिलन दिखलाकर भावात्मकता, आत्मीयता तथा स्वाभाविकता की सृष्टि की है।
    2. भाषा- सरस एवं प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली।
    3. अलंकार- अनुप्रास एवं उपमा।
    4. गुण- प्रसाद।
    5. शैली- संवादात्मक।
    6. रस- श्रृंगार, वात्सल्य ।
    7. गुण- माधुर्य ।

प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम बताइए-
(अ) घुला, हृदय, बन नीर बहा।
(ब) इड़ा आज कुछ द्रवित हो रही दुःखियों को देखा उसने।
उत्तर-
(अ) करुण
(ब) करुण एवं शान्त रस।

प्रश्न 3. ‘मुखर हो गया सूना मण्डप’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
मानवीकरण।

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