UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड)
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
1. हर क्यारी में पद-चिह्न ……………………………………………………………………….. मचल मचल इठलाती है।
शब्दार्थ-पद-चिह्न = पैरों के चिह्न कसक = पीड़ा। शबनम = ओस किसलय = कोपलें। आभा = सौन्दर्य
सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में श्रमिक एवं कृषक वर्ग की महत्ता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – सुमन जी श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि मैंने क्यारी-क्यारी यानी खेत-खेत में तुम्हारे पद-चिह्नों को देखा है। तुमने कठिन परिश्रम से जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल पर आज भी तुम्हारे श्रमयुक्त कदम परिलक्षित हो रहे हैं। फसलों की डालियाँ जो नये-नये पल्लवों से लद गई हैं, प्रतीत होता है कि तुम्हारी मुस्कान इन्हें मिल गयी है। विकास का यही नियम है, जगह-जगह मुस्कान फैल जाती है। प्रत्येक काँटे का व्यक्तित्व भी बड़ा अजीब होता है। इसमें किसी न किसी का दुःख-दर्द कसकता ही है। ओस की बूंदों को देखकर जीवन में प्यास जग जाती है।
प्रत्येक नदी की उठती हुई लहरें मन को डस लेती हैं अर्थात् नदी से उठती हुई लहरें मन पर अपना प्रभाव डालती हैं। जो भी नया अंकुर फूटता है, वह भविष्य में आने वाली अपनी कलियों को अपने में समाहित किये रहता है। अंकुर की आँख विकास का प्रतिरूप है। हर किसलय में, हर पल्लव में जो लाली परिलक्षित होती है, वह और कुछ नहीं, तुम्हारे अधरों की लाली ही मालूम देती है। कलियों को अपना स्वभाव है कि हवा बहने पर वे हिलती-डुलती हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
- सुमनजी ने समाज की प्रगति में श्रमिक-कृषक वर्ग के योगदान को रेखांकित किया है।
- भाषा-सरल खड़ी बोली।
- शब्द शक्ति-लक्षणा।
- रस-शान्त
- अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश।।
2. अम्बर में उगती सोने-चाँदी ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।
अथवा क्या उम्र ढलेगी तो ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।
शब्दार्थ-सिन्धु = समुद्र पावन = पवित्र संघर्ष = लड़ाई लाचारी = बेबशी।
सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यावतरण में सुमनजी ने श्रमिक एवं कृषक वर्ग के परिश्रम से समाज में आयी सम्पन्नता का वर्णन किया है।
व्याख्या – सुमनजी कहते हैं कि आकाश में उगते सूरज, चाँद और सितारे ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे सोने और चाँदी की फसलें उग रही हैं। खेत में ज्वार और बाजरे की फसलें मस्ती में लहरा रही हैं। यह सुन्दर दृश्य मन को प्रभावित कर रहा है। ये मन को नये-नये बिम्ब प्रदान करते हैं। चाँद के उदय होने पर समुद्र में चाँदनी सैकड़ों ज्वार उठा देती है।
सुमनजी कहते हैं कि ऊपर बताये गये प्राकृतिक दृश्य इतने मोहक हैं कि हम अपने को इनसे अलग नहीं कर सकते ये इतने आकर्षक हैं कि मेरे मन को बाँध लेते हैं। फिर भी जीवन में अनगिनत क्रिया-कलाप करने पड़ते हैं। इन क्रिया-कलापों से हम दूर भी नहीं रह सकते प्राकृतिक सौन्दर्य और जीवन के धन्धे को क्या साथ-साथ लेकर चलना संभव है। शरीर और मन का सम्बन्ध अत्यन्त पवित्र होता है। यह पवित्र सम्बन्ध कैसे टूट सकता है? प्रकृति मन को सुख प्रदान करती है और जीवन के धन्धे शरीर के लिए अत्यावश्यक हैं। अतः दोनों का सम्बन्ध बना रहना उचित है।
सुमनजी कुछ गम्भीर मुद्रा में हो जाते हैं और पूछते हैं क्या जब उम्र ढलने लगेगी तो यह सब कुछ, जो आज इतना आकर्षक लग रहा है, ओझल हो जायेगा? क्या उम्र ढलने के साथ-साथ सूरज और चाँद की कान्ति मन्द पड़ जायेगी? जिने सुन्दर दृश्यों को संजोये मैंने जीवन-मृत्यु का स्वर साध लिया है, क्या उनका आकर्षण साँसों को धोखा दे देगा?
सुमनजी पुन: कहते हैं कि मैं जिस दिन स्वप्नों एवं अपनी कल्पनाओं का मूल्यांकन करने बैठेंगा, उस दिन मेरे संघर्षों पर जाला चढ़ जायेगा, मेरा संघर्ष थक जायेगा और जिस दिन विवशता मुझ पर तरस दिखाएगी अर्थात् जिस दिन मैं मजबूरी का गुलाम बन जाऊँगा, उस दिन जीवन की अपेक्षा मृत्यु का पलड़ा भारी होगा, उस दिन मृत्यु मुझे पकड़ लेगी।
काव्यगत सौन्दर्य
- सुमनजी ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता का चित्रण किया है।
- भाषा-खड़ी बोली।
- शब्द शक्ति-लक्षणा।
- रस-शान्त
- शैली-गीत
3. इन सबसे बढ़कर मूक ……………………………………………………………………….. प्रतिध्वनि बतलाते हो।
शब्दार्थ-पथ = रास्ता, मार्ग पथराई = पत्थर-सी। अकारथ = व्यर्थ मूक = गूंगा। बेबसी = लाचारी। आजादी = स्वतन्त्रता।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यावतरण शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में सुमनजी ने निर्बल व्यक्तियों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है।
व्याख्या – कवि कहता है कि मेरा मन प्राकृतिक सुन्दरता को देखने में नहीं लगा रह सकता। मैं दुःख से तड़पते हुए उन व्यक्तियों को अधिक महत्त्व देता हूँ जो कि अन्न के अभाव में भूख से व्याकुल होकर पथरा गये हैं। उनकी पथराई आँखें आनेजाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने पास बुलाती हैं। वही आँखें आज मुझे भी अपने नजदीक बुला रही हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी चिन्ता ईश्वर को भी नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि इन्हें बनाने के बाद ईश्वर इन्हें उसी प्रकार भूल गया है, जैसे कि उसने इन्हें बनाया ही न हो। सचमुच धर्म की ध्वजा इन दीन-हीन प्राणियों की हड़ियों पर ही फहराती है क्योंकि ये लोग अन्याय और अनीति के विरुद्ध आवाज तक नहीं उठा पाते हैं।
सुमनजी का कहना है कि यदि मैं ऐसे व्यक्तियों को भुला देता हूँ तो मेरा मानव शरीर धारण करना बेकार है। ऐसी स्थिति में मेरा शरीर मिट्टी का लोथड़ा मात्र रह जायेगा। यदि मेरी आँखें इन लोगों के कष्टों को देखकर सहानुभूति से द्रवित नहीं होती हैं तो इन आँखों का कोई मूल्य नहीं है। आँसू तो दया और करुणा के प्रतीक हैं, अतः जब तक इन आँखों से करुणा का जल नहीं प्रवाहित होता है, तब तक इनका होना और न होना बराबर है। यदि मैं निर्बल वर्ग को भुला देता हूँ तो मेरा जन्म लेना व्यर्थ है और मेरा जीवित रहना भी मरे हुए व्यक्ति के समान ही है। अभिप्राय यह है कि मानव को मानव के प्रति सहानुभूति, दया, करुणा-जैसी मानवीय भावनाओं को अपने हृदय में रखना चाहिए।
सुमनजी कहते हैं कि मैं स्पष्ट रूप से अवलोकन कर रहा हूँ कि तुम श्रमिक वर्ग की उपेक्षा कर रहे हो। अब इन्हें मीठी-मीठी बातों द्वारा बहलाना छोड़ दो। अब तुम्हारा यह दर्शन चलने वाला नहीं है। निर्धन श्रमिक के मृतप्राय बच्चों पर विवशता चीख-चीख पड़ती है और तुम इसे स्वतन्त्रता की प्रतिध्वनि के रूप में परिभाषित कर उधर से अपना ध्यान हटाना चाहते हो। तुम्हारी यह सोच उपयुक्त नहीं है।
काव्यगत सौन्दर्य
- इन पंक्तियों में सुमनजी ने मानव के प्रति सहानुभूति, करुणा और प्रेम की भावना व्यक्त की है।
- भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली,
- गुण- प्रसाद।
- शब्द शक्ति-लक्षणा।
- अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
- रस-करुण।
4. यों खेल करोगे तुम कब ……………………………………………………………………….. का अम्बर में घेरा यदि।
अथवा विश्वास सर्वहारा ……………………………………………………………………….. दरार पड़ जायेगी।
अथवा सदियों की कुर्बानी ……………………………………………………………………….. अम्बर में घेरा यदि।
शब्दार्थ-असहाय = निर्धन। सर्वहारा = गरीब तबके के लोग। गोंस = फाँस, कील। कुर्बानी = बलिदान अम्बर = आकाश।
सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उधृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने दीन-दुखियों के प्रति शासन की उपेक्षा पर गहरी चोट की है।
व्याख्या – सुमनजी शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि तुम असहायों की मूल समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत लम्बा समय बीत गया, गरीब व्यक्ति को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर कब तक सुलाते रहोगे। जरा याद रखना, मानवीय संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले बचोगे और संसार श्मशान घाट बन जायेगा। ऐसी स्थिति में तुम अकेले क्या करोगे?
सुमनजी आगे चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सर्वहारा (गरीब, निर्धन) वर्ग का विश्वास खो दिया तो पास आती मृत्यु की। गहरी फाँस तुम्हारे जीवन में गड़ जायेगी। बड़े मुश्किल के बाद गरीब जागा है, इसकी जागृति का स्वागत करना चाहिए। यदि बाँध बाँधने के पूर्व ही पानी सूख जाए, तब तो धरती की छाती में दरार पड़ जायेगी। बाँध इसलिए बाँधा जाता है ताकि उसमें पानी इकट्ठा रहे। यदि पानी सूख गया तो बाँध का क्या औचित्य? अतः समय रहते सजग हो जाओ और निर्धन व्यक्ति को उसका अधिकार सौंप दो।
सुमनजी आगे पुनः चेतावनी दे रहे हैं, यदि श्रमिक वर्ग के उत्थान के लिए सदियों से चले आ रहे विचार आन्दोलन का सम्मान न हुआ, उनकी कुर्बानी बेकार चली गयी तो ठीक नहीं होगा। सुबह के जागरण को जमुहाई ले-लेकर खो देना कहाँ की बुद्धिमानी है? पूर्णिमा का उत्सव मनाने की बात सोचते-सोचते ही यदि आकाश में अमावस्या का अँधेरा छा गया तो इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। अत: अँधेरा दूर करके श्रमिक के जीवन में प्रकाश का उत्सव मनाने का प्रयास करो।
काव्यगत सौन्दर्य
- सर्वहारा वर्ग के उत्थान की बात कही गयी है।
- भाषा-खड़ी बोली।
- शब्द शक्ति-लक्षणा।
- रस-रौद्र।
- शैली-भावात्मक, गीत।
- अलंकार-आशा की अफीम में रूपक।
5. इतिहास न तुमको माफ करेगा ……………………………………………………………………….. सब छन्दों की रानी है।
अथवा इतिहास न तुमको ……………………………………………………………………….. को मत मन्द करो।
शब्दार्थ-सैलाब = बाढ़, प्रवाह, जल-प्लावन भू = भूलोक। भुवः = भुवलोक। गायत्री = एक वैदिक छन्द। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उद्धृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने मानव समाज के कर्णधारों को समाज कल्याण हेतु प्रोत्साहित किया है।
व्याख्या – सुमनजी का कहना है कि समय परिवर्तनशील है। इसलिए हमें जो भी अवसर प्राप्त हुए हैं उनका सदुपयोग किया जाना चाहिए अन्यथा कीर्ति की जगह अपकीर्ति मिलेगी। यदि हमने समय का सही सदुपयोग नहीं किया तो आने वाला समाज हमारी अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता पर धिक्कारेगा। इस समय का जो भी इतिहास लिखा जायेगा, उसमें किसी भी व्यक्ति को उसकी अकर्मण्यता के लिए क्षमा नहीं किया जायेगा। सत्ता में बैठे लोगों को चेतावनी देते हुए सुमनजी कहते हैं कि तुम्हारी अकर्मण्यता से पूरब में उगने वाले सूरज की लालिमा पर कालिख पुत जायेगी। उसकी महत्ता खत्म हो जायेगी और फिर शताब्दियों तक इस प्रकार की उन्नतिशील घड़ियाँ आयें अथवा न आयें, हमें यह भी मालूम नहीं है। इसलिए हमें अपने समय का उचित उपयोग करना चाहिए।
समय परिवर्तनशील है। अतः इसकी परिवर्तनशीलता को देखते हुए प्रगति के प्रवाह को रोकने का प्रयास मत करो। मालूम नहीं कि इस प्रकार की सुखद वायु में साँस लेने का अवसर मिले या न मिले। इसलिए तुम सभी खिड़की और दरवाजों को खोलकर रखो। जीवन की सुखदायी किरणों का प्रकाश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने दो। इस आनन्ददायक घड़ियों का उपयोग मात्र धनी वर्ग तक सीमित न रह जाय। तुम्हें ऐसा प्रयास करना चाहिए, जिससे उन किरणों का प्रकाश आमजन के आँगन तक पहुँच सके। नव-निर्माणरूपी महान यज्ञ की ज्वालाओं को मन्द करने का प्रयास मत करो, अपितु उसको अधिक तीव्र जलने दो।
सुमनजी का कहना है कि आज जो चेतना का प्रभात हुआ है, इसके लिए बहुत पुराने समय से संघर्ष होता रहा है। इस नये प्रभात की अरुणाई की पहचान बहुत पुरानी है। आज नवयुग की चेतना-गायत्री, भूलोक, भुवलोक और स्वर्गलोक की समता की प्रतिष्ठा करने का आह्वान कर रही है, इसका गर्मजोशी से स्वागत करो।
काव्यगत सौन्दर्य
- इन पंक्तियों में सुमनजी की प्रगतिवादी भावना की अभिव्यक्ति हुई है।
- भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।
- शैलीभावात्मक, गीत।
- शब्द शक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना
- रस-वीर एवं अद्भुत
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
( स्मरणीय तथ्य )
जन्म – 5 अगस्त, सन् 1915 ई०
मृत्यु – 27 नवम्बर, सन् 2002 ई०
जन्म – स्थान-ग्राम-झगरपुर, जनपद-उन्नाव, उ०प्र०
अध्यापन कार्य – उज्जैन, मध्य प्रदेश
रचनाएँ – मिट्टी की बारात, हिल्लोल, जीवन के गान्
पुरस्कार – 1958 -(देव पुरस्कार), 1974-(सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार), 1974-(साहित्य अकादमी पुरस्कार), 1974–(पद्मश्री), 1993-(शिखर सम्मान), 1993-‘ भारत भारती’ पुरस्कार, 1999–पद्म भूषण।
प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के जीवन-वृत्त एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की साहित्यिक विशेषताएँ एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।
प्रश्न 5.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।
जीवन – परिचय – डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त, सन् 1915 ई० (संवत् 1972 श्रावण मास शुक्ल पक्ष नागपंचमी) को ग्राम झगरपुर, जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। परिहार वंश में जन्मे सुमन जी का विवर्द्धन गहरवाड़ वंशीय माता के दूध द्वारा हुआ। उनके पितामह ठाकुर बलराज सिंह जी स्वयं रीवा सेना में कर्नल थे तथा प्रपितामह ठाकुर चन्द्रिका सिंह जी को सन् 1857 ई० की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने एवं वीरगति प्राप्त होने का गौरव प्राप्त था।
सुमन जी ने अधिकांश रूप से रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों में रहकर आरम्भिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा प्राप्त की है। तत्पश्चात् सन् 1940 ई० में उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से परास्नातक (हिन्दी) की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1942 ई० में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1948 ई० में माधव कॉलेज उज्जैन में हिन्दी विभागाध्यक्ष बने, दो वर्षों के पश्चात् 1950 ई० में उनको ‘हिन्दी गीतिकाव्य का उद्भव-विकास और हिन्दी साहित्य में उसकी परम्परा’ शोध प्रबन्ध पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि प्रदान की। आपने सन् 1954-56 तक होल्कर कॉलेज इन्दौर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर भी सुचारु रूप से कार्य किया। सन् 1956-61 ई० तक नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक और सूचना विभाग का कार्यभार आपको सौंपा गया।
सन् 1961-68 तक माधव कॉलेज उज्जैन में वे प्राचार्य के पद पर कार्य करते रहे। इन आठ वर्षों के बीच सन् 1964 ई० में वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कला संकाय के डीन तथा व्यावसायिक संगठन, शिक्षण समिति एवं प्रबन्धकारिणी सभा के सदस्य भी रहे। सन् 1968-70 ई० तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति के पद पर आसीन रहे।
डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को सन् 1958 ई० में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उनके काव्य संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ पर ‘देव’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई० में ‘पर आँखें नहीं भरीं’ काव्य संग्रह पर ‘नवीन’ पुरस्कार से सम्मानित किये गये। आपको सन् 1973 ई० में मध्य प्रदेश राजकीय उत्सव में सम्मानित किया गया। जनवरी, सन् 1974 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से विभूषित किया गया। भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार द्वारा 20 मई, सन् 1973 ई० को डी०लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। नवम्बर, सन् 1974 ई० को उन्हें ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुस्कार’ प्रदान किया गया। 26 फरवरी, 1973 ई० को ‘मिट्टी की बारात’ नामक काव्य संग्रह पर ‘सुमन जी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपने अक्टूबर, सन् 1974 ई० को नागपुर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र में दीक्षान्त भाषण दिया। पुन: 24 अप्रैल, 1977 ई० को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में पंचम दिनकर स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत भाषण के लिए आपको आमंत्रित किया गया। सन् 1975 ई० में राष्ट्रकुल विश्वविद्यालय परिषद् के लन्दन विश्वविद्यालय स्थित मुख्यालय में कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति की गई। 17-18 जनवरी, सन् 1977 ई० को भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में हुए बावनवें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। पुनः 15-16 जनवरी, सन् 1978 ई० को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट में
भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् के तिरपनवें अधिवेशन की अध्यक्षता की। 27 नवम्बर, 2002 ई० को शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का 87 वर्ष की अवस्था में जनपद उज्जैन (म०प्र०) में निधन हो गया।
रचनाएँ – सुमन जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(1) हिल्लोल – यह सुमन जी के प्रेम-गीतों का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं को चित्रित किया गया है।
(2) जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया – इन सभी संग्रहों की कविताओं में क्रान्तिकारी भावनाएँ व्याप्त हैं। इन कविताओं में पीड़ित मानवता के प्रति सहानुभूति तथा पूँजीवाद के प्रति आक्रोश है।
(3) विन्ध्य हिमालय – इसमें देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की कविताएँ हैं।
(4) पर आँखें नहीं भरीं – यह प्रेमगीतों का संग्रह है।
(5) मिट्टी की बारात – इस पर सुमन जी को अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
डॉ० ‘सुमन’ जी प्रगतिवादी कवि के रूप में हमारे समक्ष अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से उपस्थित होते हैं। आपकी कविताओं में दलित, पीड़ित, शोषित एवं वंचित श्रमिक वर्ग को समर्थन किया गया है, साथ ही सामान्य रूप से पूँजीपति वर्ग तथा उनके अत्याचारों का खण्डन भी अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है। सामयिक समस्याओं का विवेचन उनकी कविताओं का प्रमुख अंग रहा है। आपकी कविताओं में आस्था और विश्वास का स्वर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। आपने समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं तथा वर्ण जातिगत विषमताओं एवं भाग्यवादी विचारधारा को खण्डन भी किया है।
भाषा – सुमन जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता, वयवीयता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है। जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है।
सुमन जी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-
(क) नवीन-सन्धि, शब्द,
(ख) सरल सामाजिक योजना तथा
(ग) देशज शब्द।
भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमन जी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।
शैली – सुमन जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में लाक्षणिकता का भी प्रयोग किया है। सुमन जी की कविताओं की अभिव्यक्ति सौन्दर्य की एक विशेषता काव्यवाद का निर्वहन भी है। इसके अन्तर्गत जीवन की वर्तमान समस्याओं का पौराणिक घटनाओं से साम्य स्थापित किया है। आपकी कविताओं में प्रतीक विधान भी दर्शनीय है। सुमन जी की कविताओं में अलंकारों की समास योजना नहीं है। अनायास ही जो अलंकार आपकी कविताओं में आ गये हैं, ये भावोत्कर्ष में सहायक हुए हैं।
हिन्दी साहित्य में स्थान – ‘सुमन’ जी भारतीय माटी की वह गन्ध हैं, जिसमें जीवन रस-आनन्द सर्वत्र महकता रहता है। जिस प्रकार पृथ्वी की अभिव्यक्ति वनस्पतियों द्वारा होती है उसी प्रकार वनस्पतियों के रस से जीवित मानव प्राणी की अभिव्यक्ति उसकी कलात्मकता और वैज्ञानिकता में होती है।’सुमन’ जी भारतीय संस्कृति के अभिव्यक्ता हैं। प्रकृति के रूप, रस, गन्ध आदि के चितेरे भी हैं। जीवन रस की मादकता के गायक हैं। जनसामान्य के दुःख-दर्द से द्रवित होने वाले मानव और परम्परागत गौरव गरिमा के संरक्षक हैं। उनके इन्हीं विशिष्ट रूपों को काव्य में पहचाना गया है। एक युग विशेष की मानसिकता की झाँकी उनके काव्य के गुणों से परिपूर्ण एवं प्रभावशाली है।
अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ‘सुमन’ जी का हिन्दी साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। वे हिन्दी साहित्य को ऐसी निधि प्रदान कर गये हैं जो कभी भी नष्ट नहीं हो सकती। शरीर तो नश्वर है लेकिन वैचारिक शरीर शाश्वत रूप से जीवित रहता है। सुमन जी अपनी कृतियों के माध्यम से हिन्दी साहित्य के प्रेमियों के मानस पटल पर सदैव नित-नवीन रूप में मुस्कराते रहेंगे।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘युगवाणी’ कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने मानवता के कल्याण की कामना की है तथा यह आग्रह किया है कि राष्ट्र के विकास का कार्य अवरुद्ध नहीं होना चाहिए अर्थात् राष्ट्र के विकास के लिए हमें निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्न 2.
‘युगवाणी’ कविता की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।’
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है।‘युगवाणी’ कविता में जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है। सुमनजी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं—
- नवीन सन्धि शब्द
- सरल सामाजिक योजना
- देशज शब्द भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमनजी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।
प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता का सारांश संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कवि श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहता है कि मैंने क्यारी-क्यारी में तुम्हारे ही पदचिह्नों के दर्शन किये हैं। तुमने परिश्रमपूर्वक जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल में आज भी तुम्हारे श्रमशील कदम झाँकते दिखाई दे रहे हैं । विकास का यही नियम है, जगह-जगह मुस्कान बिखर जाती है। इतना कठिन परिश्रम करने पर भी सर्वहारा वर्ग परेशान है। कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो तुम्हें समय कभी माफ नहीं करेगा। तुम्हारा अस्तित्व स्वयं खतरे में पड़ जायेगा।
प्रश्न 4.
कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से किन वास्तविकताओं के प्रति आगाह किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता के माध्यम से स्पष्ट किया है कि शासक वर्ग दीन-दुखियों की उपेक्षा कर रहा है और उन पर प्रहार कर रहा है। आज के युग में श्रमिक वर्ग शोषित एवं परेशान है।
प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता में कवि ने शासकों को क्या परामर्श दिया है?
उत्तर :
कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत समय बीत गया, निर्धन को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर अब भी सुला देना चाहते हो । याद रखना, मानवीय संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले रह जाओगे और यदि संसार श्मशान बन गया तो तुम उसमें रहकर अकेले गीत गाओगे?
प्रश्न 6.
“युगवाणी’ कविता में कवि ने किसके इतिहास को माफ न करने को कहा है?
उत्तर :
कवि ने शासक एवं पूँजीपति वर्ग के इतिहास को कभी न माफ करने की बात कही है क्योंकि शासक एवं पूँजीपति वर्ग श्रमिकों का शोषण करते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस काल के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ आधुनिक काल (प्रगतिवादी युग) के कवि हैं।
प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस धारा के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी धारा के कवि हैं।
प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की चर्चित रचनाएँ हैं-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, विन्ध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरीं, मिट्टी की बारात आदि।
प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है।’सुमन’ जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है।
प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य बताइए।
उत्तर :
युगवाणी कविता का तात्पर्य है-समयाधारित विचार। समय की माँग है कि राष्ट्र का विकास अनवरत गति से किया जाये ताकि मानवता का कल्याण हो।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(क) तन का, मन को पावन नाता कैसे तोड़ें?
उत्तर :
कवि ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भाषा–खड़ी बोली, शब्द शक्तिलक्षणी, शैली-गीत एवं रस-शान्त
(ख) इतिहास न तुमको माफ करेगी याद रहे।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, शैली-भावात्मक, गीत एवं रस-रौद्र
(ग) नव-निर्माण की लपटों को मत मन्द करो।
उत्तर :
यहाँ कवि की प्रगतिवादी भावना व्यक्त हुई है। शब्दशक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना, शैली-भावात्मक, गीत अलंकारअनुप्रास एवं भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।
(घ) विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो
आसन्न मौत की गहन गोंस गड़ जायेगी।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, अलंकार-गहन गोंस गड़ में अनुप्रास अलंकार।।
2.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिए
विशेषण विशेष्य
पद चिह्न
धर्म ध्वजा
दुःख दर्द
1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को प्रगतिवादी कवि कहा जाता है, ऐसे प्रगतिवादी कवियों की सूची बनाइए।
उत्तर :
प्रगतिवादी कवि
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
- बाबा नागार्जुन
- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
- केदारनाथ अग्रवाल
- नरेन्द्र शर्मा
- भगवतीचरण वर्मा
- रामविलास शर्मा
2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के पुरस्कारों की सूची बनाइए।
पुरस्कार (वर्ष)
1. देव पुरस्कार (1958)
2. सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार (1974)
3. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1974)
4. पद्मश्री (1974)
5. शिखर सम्मान (1993)
6. भारत भारती पुरस्कार (1993)
7. पद्म भूषण (1999)
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