UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 4 यौतुकः पापसञ्चयः (कथा – नाटक कौमुदी)

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परिचय

यौतुक शब्द का हिन्दी पर्याय दहेज है। आज यह भारतीय समाज का कोढ़ बना हुआ है। आज वधू को उसके गुणों के आधार पर नहीं, अपितु उसके द्वारा लाये गये दहेज के आधार पर सम्मान दिया जाता है।

प्रस्तुत नाटक में दहेज पर कुठाराघात किया गया है तथा यह प्रतिष्ठित किया गया है कि विपत्ति के समय संस्कारवान् बहू ही परिवार के लिए सहायक होती है, अधिक दहेज लाने वाली बहू नहीं।

पाठ-सारांश

रमानाथ और विनय बचपन के मित्र हैं। विनय की पुत्री सुमेधा का रमानाथ के बड़े पुत्र से विवाह हुआ था। विनय निर्धन था; अत: वह पर्याप्त दहेज नहीं दे सका था। रमानाथ के कनिष्ठ पुत्र का विवाह सेठ दुर्गादास की पुत्री चपला से हुआ था, जिसने विवाह में बहुत दहेज दिया था और घरेलू कार्य के लिए दो सेविकाएँ भी दी थीं। रमानाथ अधिक दहेज मिलने से सेठ दुर्गादास व उसकी पुत्री चपला से प्रसन्न थे और दहेज न मिलने के कारण विनय और उसकी गुणवती पुत्री सुमेधा से अप्रसन्न।

प्रथम दृश्य – रमानाथ विनय को बुलाकर कहते हैं कि सेठ दुर्गादास के द्वारा चपला के साथ भेजी गयी दो नौकरानियाँ घर का सब कामकाज करती हैं; अतः अब हमें तुम्हारी पुत्री सुमेधा की आवश्यकता नहीं है, इसे तुम ले जाओ। विनय ने रमानाथ से कहा–मित्र! ऐसा मत कहो। मैं निर्धन हूँ और घर पर रखकर उसके पालने का भार वहन करने में भी असमर्थ हूँ। मेरी पुत्री विदुषी, सुशिक्षित, सुसंस्कृत एवं सहनशील है; क्योंकि मैंने उसे बहुत कष्टों से पाला है।

इसी बीच सुमेधा पात्र में जल लेकर आती है। विनय ने उससे कहा कि मुझे जल नहीं चाहिए, तुम्हारे ससुर ने मुझे पर्याप्त जल पहले ही पिला दिया है। सुमेधा ने उससे कहा कि वह अपने श्रद्धेय ससुर के विषय में कोई निन्दा नहीं सुनना चाहती है। विनय ने सुमेधा से कहा कि जाओ, सबका अभिवादन करके आओ। मैं तुम्हें लेने आया हूँ।

रमानाथ सुमेधा से अपने व अपने मित्र हेतु भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहकर बाहर चला जाता है। विनय वहीं चिन्तित बैठा हुआ है। इसी समय टेलीफोन की घण्टी बजती है। रमानाथ की पत्नी रम्भा टेलीफोन उठाकर सुनती है। उसे फोन से ज्ञात होता है कि उसके पति रमानाथ दुर्घटना में घायल हो गये हैं और मिशन अस्पताल में भर्ती हैं।

इसी समय रमानाथ की छोटी पुत्रवधू सजधज कर आती है। वह पिता के घर किसी उत्सव में जाने को तैयार है। रम्भा कहती है कि तुम्हारे ससुर दुर्घटना में घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं, उन्हें सेवा-शुश्रूषा की आवश्यकता हो सकती है, परन्तु चपला यह कहती हुई–“रुग्ण की चिकित्सा के लिए अस्पताल और सेवा के लिए वहाँ अनेक परिचारिकाएँ हैं तथा सुमेधा सेवा में दक्ष है उसे ले जाइए।’-उत्सव में चली जाती है।

द्वितीय दृश्य – रमानाथ को विनय का पत्र मिलता है। उसमें उसने लिखा है कि वह अपनी पुत्री सुमेधा को लेने आ रहा है। तब रम्भा कहती है कि सुमेधा नहीं जाएगी। मेरी ही बुद्धि भ्रमित हो गयी थी। उसके ही रक्त-दान से मेरे सौभाग्य की लालिमा; अर्थात् पति के प्राण बचे हैं। रमानाथ को अधिक रक्तस्राव हो जाने के कारण रक्त की आवश्यकता थी। सुमेधा के रक्त का वर्ग ही उनके रक्त से मिलता था। उसने ही सहर्ष रक्त दिया था। रम्भा ने कहा कि सुमेधा निर्धन है तो क्या हुआ, वह सुसभ्य, सुशिक्षित है और चपला भले ही धनवान् हो, किन्तु वह स्वार्थिनी, असंस्कृत और अशिक्षित है।

उसी समय विनय आ जाता है। रमानाथ अपने पुनर्जीवन लाभ के लिए उसे मिठाई खाने के लिए कहता है। रम्भा कहती है कि यह मिठाई मुझे सद्बुद्धि मिलने के लिए भी है तथा विनय से कहती है कि हम सुमेधा को पाकर धन्य हैं। उसके ही रक्तदान से ये (रमानाथ) जीवित बचे हैं। रमानाथ विनय को बताता है कि उसे समय सुमेधा का जीवन दु:खमय था। मैं उसके दु:ख को सहन करने में असमर्थ था; अत: पुत्र के लौटने तक मैंने उसे तुम्हारे पास धरोहर के रूप में रखने का निश्चय किया था। अब मैं उसे कदापि नहीं भेजूंगा। विनय भी क्रोध में अपने द्वारा कही गयी बातों के लिए रमानाथ से क्षमा माँगता है।

प्रस्तुत नाटक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विवाह-सम्बन्ध सदैव समान स्तर के परिवार में ही स्थापित करने चाहिए तथा व्यक्ति को अनेक प्रलोभनों में फंसकर मानवीय गुणों का अनादर नहीं करना चाहिए। मनुष्य को दहेज की अपेक्षा करने के स्थान पर सुसभ्य, सुसंस्कृत, लज्जाशील एवं मर्यादाशील वधू की अपेक्षा करनी चाहिए। वही सर्वश्रेष्ठ दहेज है।

चरित्र-चित्रण

रमानाथ [2006, 08, 09, 10, 13, 14]

परिचय प्रस्तुत नाट्यांश के पुरुष पात्रों में रमानाथ का प्रमुख स्थान है। विनय उसका मित्र है, जिसकी पुत्री का विवाह रमानाथ के ज्येष्ठ पुत्र के साथ हुआ है। दूसरे पुत्र के विवाह में अत्यधिक दहेज प्राप्त हो जाने पर रमानाथ की धनलोलुपता बढ़ जाती है और वह अपने मित्र विनय का दहेज न देने के कारण अपमान भी करता है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. धनलोलुप  रमानाथ अपने कनिष्ठ पुत्र के विवाह में वधू पक्ष के द्वारा अत्यधिक दहेज तथा घर पर कार्य करने के लिए दो नौकरानियाँ दिये जाने पर स्वार्थी एवं लोभी बन जाता है तथा सुमेधा की ओर से उसका मने परिवर्तित होने लगता है।

2. त्रुटियों को सुधारने वाला – रमानाथ स्वार्थवश अपने समधी तथा मित्र विनय का अपमान भी करता है, किन्तु दुर्घटनाग्रस्त होने के पश्चात् वह बहुत पश्चात्ताप करता है। अन्ततः अपने मित्र विनय से अपनत्वपूर्ण मृदु व्यवहार करता है।

3. निर्दयी – धन के लोभ में रमानाथ अपने मित्र विनय के यह प्रार्थना करने पर भी कि वह निर्धन होने के कारण अपनी पुत्री का पालन नहीं कर पाएगा, उससे अपनी पुत्री को अपने घर ले जाने के लिए कहता है।

4. गुणग्राही तथा शान्ति का इच्छुक – रमानाथ गुणग्राही है। वह सुमेधा के गुणों को पहचानकर उसका आदर भी करता है। घर की शान्ति बनाये रखने के लिए ही सुमेधा का अपमान करने वाली अपनी पत्नी रम्भा को वह कुछ नहीं कहता। वह सुमेधा को अपमान-अत्याचार से सुरक्षित रखने के लिए ही; अपने पुत्र के लौट आने तक; सुमेधा को उसके पिता के घर पहुँचवाना चाहता है।

5. परिवर्तित विचारधारा वाला – किसी समय रमानाथ धन को ही सब कुछ समझता है और उसके सामने मानवीय गुणों-शील, सुसंस्कारिता, सुसभ्यता–को तुच्छ। किन्तु कालान्तर में उसकी विचारधारा में परिवर्तन हो जाता है और तब वह मानवीय गुणों को ही श्रेष्ठ मानने लगता है। उसकी परिवर्तित विचारधारा का ही यह परिणाम है कि वह किसी समय अनादृत पुत्रवधू एवं समधी को अपने सिर-आँखों पर बैठा लेता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रमानाथ जहाँ निर्दयी, धनलोलुप इत्यादि दुर्गुणों का वाहक है, वहीं वह गुणग्राही और अपनी त्रुटियों में सुधार करने वाला भी है। विचारशीलता से वह इन दुर्गुणों से मुक्त हो जाता है। तथा पश्चात्ताप भी करता है। अन्तत: वह समझ लेता है कि दहेजरूपी धन पापों का संग्रह ही है।

रम्भा [2006, 08,11]

परिचय रम्भा रमानाथ की पत्नी तथा सुमेधा एवं चपला की सास है। प्रस्तुत नाट्यांश में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वह धनलोलुप, अत्याचारी, स्वार्थी और हृदयहीन सासों का प्रतिनिधित्व करती हुई-सी प्रतीत होती है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. स्वार्थी और धनलोलुप – रम्भा स्वार्थी और धनलोलुप स्वभाव की स्त्री है। वह अपनी पुत्रवधू सुमेधा पर दहेज न लाने के लिए अत्याचार करती है। वह धन को ही सर्वस्व समझती है अपनी बड़ी बहू सुमेधा का अपमान वह केवल इसलिए करती है कि वह छोटी बहू चपला के समान अधिक दहेज लेकर नहीं आयी थी। ‘ममैव बुद्धिः भ्रमिता’ कथन उसकी इसी स्वार्थी और धनलोलुप प्रवृत्ति की स्वीकारोक्ति का सूचक है।

2. पति को चाहने वाली – रम्भा अपने पति को चाहने वाली एक पतिव्रता स्त्री है। जब वह दूरभाष पर अपने पति के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार सुनती है तो रोने लगती है। पति को ही वह अपना सौभाग्य मानती है, यह उसके इस वाक्य-“तस्या एव रक्तेन मम सौभाग्यलालिमा सुरक्षीकृता।”-से स्पष्ट होता है। वह चपला को भी इसीलिए रोकना चाहती है कि घायलावस्था में पति की सेवा-शुश्रूषा के लिए उसे उसकी आबश्यकता पड़ सकती है।

3. कृतज्ञा – रम्भा स्वार्थी और धनलोलुप तो अवश्य है, किन्तु कृतघ्न नहीं है। वह अपने ऊपर किये गये उपकार को मानने वाली है। सुमेधा द्वारा रक्तदान और सेवा करके उसके पति की प्राणरक्षा करने पर उसकी आँखें खुल जाती हैं और वह उसके उपकार का गुणगान अपने पति तथा अपने समधी से करती है। अपनी गलती को मानती हुई वह सुमेधा को घर में उचित सम्मान देती है।

4. दुष्कर्म पर लज्जित होने वाली – लोभ के वशीभूत होकर रम्भा अपनी ज्येष्ठ पुत्रवधू पर अत्याचार करती अवश्य है, किन्तु उसकी शीलता, सुसभ्यता, सुसंस्कारिता तथा कनिष्ठा पुत्रवधू की निर्लज्जता, अहंकारवादिता से जब उसके ज्ञानचक्षु खुलते हैं तो वह अपने द्वारा किये गये दुष्कर्मों पर लज्जित होती है। वह स्वयं कहती है कि “ममैव बुद्धिः भ्रमिता अहं लज्जितास्मि।”

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रम्भा में जहाँ स्त्री स्वभावोचित धनलोलुपता, स्वार्थीपन जैसे दुर्गुण मिलते हैं, वहीं उसमें पतिव्रता, लज्जाशीलता इत्यादि सद्गुणों का समावेश भी है। निश्चित ही विषम परिस्थितियाँ मनुष्य को वास्तविकता की ओर मोड़ देती हैं। रम्भा जो दहेज की चकाचौंध से भ्रमित थी वह विषम परिस्थितियों में वास्तविकता को समझकर दहेज को पाप का संचय कहने लगती है।

सुमेधा [2006, 08, 09, 10, 11, 12, 13, 15]

परिचय प्रस्तुत नाट्यांश का ताना-बाना सुमेधा को लेकर ही बुना गया है। वह ही नाटक की मुख्य पात्र भी है। सम्पूर्ण कथा उसके चारों ओर ही घूमती है। वह विनय की पुत्री एवं रमानाथ की ज्येष्ठ पुत्रवधू है। वह भारतीय नारी के सद्गुणों की वाहक आदर्श नारी है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. सेवापरायणा – भारतीय नारी को सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठापित करने वाला गुण उसकी सेवा-परायणता ही है। वह अपनी ससुराल को ही स्वर्ग मानती है तथा सास-ससुर को देवता मानकर उनकी पूजा करती है। सुमेधा अनेक कष्टों के होते हुए भी अपने पति का गृह त्यागकर अपने पिता के घर नहीं जाना चाहती। साथ-ही अपने पिता के मुख से अपने निर्दयी ससुर की निन्दा भी नहीं सुनना चाहती। अपने ससुर की प्राणरक्षा वह अपना रक्त देकर करती है। यह उसके सेवापरायण होने का प्रबल प्रमाण है।

2. सुसंस्कृत एवं विनम्र – सुमेधा का सम्पूर्ण व्यक्तित्व उसकी नम्रता के पावन जल से स्नानकर कान्तिमान हो उठा है। वह प्रताड़ित किये जाने पर भी अपनी विनम्रता को नहीं त्यागती। उसकी विनम्रता का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को तब मिलता है, जब वह अपने पिता को अपने ससुर की निन्दा करने से यह कहकर रोकती है-“कृपया मम श्रद्धेयश्वसुरमाधिक्षिपतु भवान्।” उसके सुसंस्कृत होने का प्रमाण तो कदम-कदम पर मिलता है। किसी समय उससे दुर्व्यवहार करने वाली सास रम्भा उसकी सुसंस्कारिता, सुसभ्यता इत्यादि से प्रभावित होकर स्वयं कह उठती है-“स्पष्टीकरोमि सुमेधां प्राप्य वयं धन्याः।”

3. विचारशीला – सुमेधा प्रगतिशील विचारधारा वाली भारतीय नवयुवती है। उसका मानना है कि सम्मान के इच्छुक माता-पिता को अपने समान स्तर के परिवार में ही पुत्र-पुत्री का विवाह करना चाहिए। अपने पिता से कहा गया उसका यह वाक्य इस बात की पुष्टि करता है-“सम्मानेच्छुकैः समानस्तरपरिवार एव कन्या प्रदेया।”

4. धैर्यधृता एवं उदारमना – धैर्य ही व्यक्ति को विपत्तियों से उबारने में सक्षम होता है, यह उक्ति सुमेधा पर अक्षरश: सत्य बैठती है। वह धैर्यपूर्वक प्रत्येक कष्ट को सहन करती है और अपनी उदारता का परित्याग नहीं करती। अन्ततः अपनी उदारता से वह अपने सास-ससुर का मन जीत लेती है और उनकी आँखों का तारा बन जाती है। अपना रक्त देकर अपने ससुर की प्राणरक्षा करना उसके उदार हृदय होने का प्रमाण है।

5. विदुषी एवं गुणवती – सुमेधा निर्धन परिवार की कन्या तो अवश्य है किन्तु वह विदुषी और गुणवती है। उसके इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर ही रमानाथ के ज्येष्ठ पुत्र ने उससे प्रेम-विवाह किया था। नाटक के अन्त में रमानाथ ने विनय से वास्तविक स्थिति को स्वीकार करते हुए ठीक ही कहा था-“उस समय सुमेधा का जीवन दुःखमय हो गया था। उसके त्याग, विनम्रता आदि गुण उसके लिए शत्रुवत् हो गये थे। उसका दुःख मेरे लिए असहनीय था, इसलिए मैंने अपने पुत्र के प्रवास से आगमनं तक अपनी पुत्रवधू को धरोहर के रूप में तुम्हें समर्पित करने का निश्चय किया था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सुमेधा पूर्णतया आदर्श भारतीय नारी है। प्रस्तुत नाट्यांश में वह सर्वगुणसम्पन्न एवं सर्वप्रिया वधू के रूप में चित्रित की गयी है। समाजोत्थान के लिए सुमेधा जैसी ही सुयोग्य वधुओं एवं माताओं की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आवश्यकता है।

विनय [2010]

परिचय विनय नाटक की नायिका सुमेधा के पिता, रमानाथ के मित्र एवं सम्बन्धी हैं। ये सामान्य आर्थिक स्थिति के व्यक्ति हैं। पाठ के अन्तर्गत इनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं –

1. योग्य पिता  विनय एक योग्य पिता हैं। इन्होंने अपनी पुत्री सुमेधा को अच्छी शिक्षा व संस्कार दिए हैं। यही कारण है कि वधू बन जाने पर वह अपनी ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है। कन्या को योग्य बनाना एक योग्य पिता का ही कार्य है।

2. मित्र-मित्रता के प्रति विश्वासी – विनय का मित्र-मित्रता के प्रति अत्यधिक विश्वास है। वे यह मानते हैं कि मित्र कितनी भी सम्पन्न क्यों न हो, वह अपने धनहीन मित्र का कभी अपमान नहीं करेगा। इसी कारण ये सामान्य आर्थिक स्थिति के होते हुए भी अपनी पुत्री सुमेधा का विवाह अपने सम्पन्न मित्र रमानाथ के पुत्र के साथ कर देते हैं। रमानाथ जब सुमेधा को वापस इनके घर भेजना चाहते हैं तो ये कहते हैं कि ‘‘बालमित्रस्य असम्मानं त्वत्तः नापेक्ष्यते।”

3. कुलीनता में विश्वास रखने वाले – विनय का पारिवारिक कुलीनता में पूर्ण विश्वास है। इसीलिए जब रमानाथ सुमेधा को इनके साथ भेजना चाहते हैं तब ये मित्र को कुलीनता की याद दिलाते हुए कहते हैं। कि “त्वं कुलीनोऽसि। स्वपरिवारस्य मर्यादां विचिन्त्य। किं कथयिष्यन्ति जनाः?”

4. स्पष्टवक्ता – विनय को स्पष्ट बात कहने में तनिक भी संकोच नहीं है। जब रमानाथ सुमेधा को इनके साथ भेजना चाहते हैं, तब ये अपनी धनहीनता की अवस्था को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ‘विचारय मित्र! सम्प्रदत्तायाः भारं वोढुं कथं समक्षोऽस्ति एकोऽकिञ्चनः?

5. स्वाभिमानी – विनय स्वाभिमानी भी हैं। जब रमानाथ इनकी विनम्रता से प्रभावित नहीं होते और न ही इनकी प्रार्थना सुनते हैं, बल्कि अपनी पुत्रवधू का पालन करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं तो विनय का स्वाभिमान जाग उठता है। वे रोषपूर्वक कहते हैं कि “यदि तुम्हारे जैसे कुबेर सदृश धनवान् अपनी पुत्रवधू के जीवन-निर्वाह में असमर्थ हैं तो मुझ जैसे श्रमजीवी के घर में भोजन का अभाव नहीं है। मैं अपनी पुत्री का पालन करने में समर्थ हूँ।”

6. आधुनिक और ईश्वर-विश्वासी – विनय विचारों से आधुनिक होने के साथ-साथ ईश्वर की सत्ता पर विश्वास रखने वाले भी हैं। उनके कथन ‘अस्मिन् युगे दुहिता भाररूपा नास्ति।” तथा ”बलीयसी ईश्वरेच्छा।” इसकी पुष्टि करते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विनय अनेक सद्गुणों से युक्त है जो अपने मित्र रमानाथ से श्रेष्ठ सिद्ध होता है।

लघु उत्तटीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुमेधा कस्य तनया ( पुत्री ) आसीत् ? [2006,07,08, 10, 12, 13, 15]
उत्तर :
सुमेधा विनयस्य तनया आसीत्।

प्रश्न 2.
सुमेधायां के गुणाः आसन् ? [2007,11]
उत्तर :
सुमेधा विदुषी, सुसंस्कृता, सहनशीला, सेवाभाविनी च इत्यादयः गुणयुक्ताः आसन्।

प्रश्न 3.
रमानाथस्य गृहे कलहमूलं किम् आसीत् ?
उत्तर :
रमानाथस्य गृहे यौतुकम् एव कलहमूलम् आसीत्।

प्रश्न 4.
रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य किं कारणम् ?
उत्तर :
रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य कारणम् एकमेव आसीत् यत् सा आत्मना सह यौतुकं प्रभूतं नानीतवती।

प्रश्न 5.
रमानाथस्य गृहे सर्वगृहकार्यं कः अकरोत् ?
या
रमानाथस्य गृहे सर्वाणि गृहकार्याणि कः अकरोत् ? [2015]
उत्तर :
रमानाथस्य गृहे सर्वगृहकार्यं सुमेधा अकरोत्।

प्रश्न 6.
चपलायाः स्वभावे का विशेषता आसीत् ? [2007]
उत्तर :
चपला चञ्चला, कटुभाषिणी, स्वेच्छाचारिणी, गर्वशीला च आसीत्।

प्रश्न 7.
रमानाथाय रक्तं का अदात् ? [2006,07,08, 10]
उत्तर :
रमानाथाय रक्तं सुमेधा अदात्।

प्रश्न 8.
रम्भा कथं स्वार्थिनी अभूत् ? [2010]
उत्तर :
चपलायाः धनाढ्यतया प्रभावेण रम्भा धनलोलुपा स्वार्थिनी च अभूत्।

प्रश्न 9.
सुमेधा चपला च के आस्ताम् ? [2013]
उत्तर :
सुमेधा चपला च द्वे एवं रमानाथस्य पुत्रवध्वौ आस्ताम्।

प्रश्न 10.
सुमेधा का आसीत् ?
उत्तर :
सुमेधा रमानाथस्य ज्येष्ठपुत्रवधूः आसीत्।

प्रश्न 11.
चपला का आसीत् ?[2009]
उत्तर :
चपला रमानाथस्य कनिष्ठा पुत्रवधूः आसीत्।

प्रश्न 12.
रमानाथः कः ? सुमेधायाः व्यवहारेण तस्य हृदयपरिवर्तनं कथं जातम् ?
उत्तर :
रमानाथः सुमेधायाः लुब्धकः श्वशुरः अस्ति। सुमेधायाः मृदुव्यवहारेण विपत्तिसमये रक्तदानेन च तस्य हृदयपरिवर्तनं जातम्।

प्रश्न 13.
रम्भा कस्य भार्या? [2007,08, 09, 10, 11, 12, 13, 14]
उत्तर :
रम्भा रमानाथस्य भार्या।

प्रश्न 14.
चपलायाः पितुः किं नाम आसीत्? [2011, 15]
उत्तर :
चपलायाः पितुः नाम श्रेष्ठ दुर्गादासः आसीत्?

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

1. ‘यौतुकः पापसञ्चयः’ नामक पाठ में वर्तमान समय में भी प्रचलित किस समस्या को उठाया गया है ?

(क) सांस्कृतिक पतन की समस्या को
(ख) दहेज की समस्या को
(ग) निर्धनता की समस्या को
(घ) अशिक्षा की समस्या को

2. रमानाथ की धनी पुत्रवधू कौन है?

(क) सुमेधा
(ख) चपला
(ग) रम्भा
(घ) तीनों में कोई नहीं

3. सुमेधा और रम्भा आपस में क्या थीं ?

(क) बहू-सास
(ख) देवरानी-जिठानी
(ग) पुत्री-माता
(घ) पड़ोसिने

4. सुमेधा में कौन-सा गुण नहीं है ?

(क) उदारहृदयता
(ख) सेवापरायणता
(ग) सुसंस्कृतता
(घ) स्वार्थान्धता

5. सुमेधा के रक्तदान और सेवा-शुश्रूषा से किनका हृदय-परिवर्तन होता है ?

(क) विनय और रमानाथ को
(ख) रम्भा और रमानाथ को
(ग) चपला और रम्भा का
(घ) रम्भा और विनय का

6. “साविदुषी सुसंस्कृता सहनशीलापि।”इस कथन में ‘सा’ शब्द से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(क) ‘चपला’ की ओर
(ख) ‘सुमेधा’ की ओर
(ग) रम्भा की ओर
(घ) “चपला’ और ‘सुमेधा’ की ओर

7. “नहि सुमेधे! तव धनिश्वशुरेण पूर्वमेव पर्याप्त जलं पायितम्।” इस संवाद में निहित भाव है

(क) व्यंग्य का
(ख) विद्वेष का
(ग) करुणा का
(घ) तृप्ति का

8. रमानाथ अपने मित्र विनय को मिष्टान्न क्यों खिलाता है ?

(क) सुमेधा की सेवापरायणता का
(ख) अपने पुनर्जीवन-प्राप्ति का
(ग) रम्भा के हृदय-परिवर्तन का
(घ) अपने हृदय-परिवर्तन का

9. “मम कनिष्ठपुत्रवधूचपलायाः पित्रा श्रेष्ठ …………………… प्रेषिते सेविके सर्वगृहकार्यं कुरुतः।” वाक्य के रिक्त-स्थान में आएगा –

(क) शम्भूदासेन
(ख) दुर्गादासेन
(ग) चन्दनदासेन
(घ) रत्नदासेन

10. ‘अस्मिन् युगे दुहिता …………………. नास्ति।” वाक्य की पूर्ति होगी । [2005,08]

(क) लक्ष्मीरूपा’ से
(ख) ‘सेविकारूपा’ से
(ग) ‘भाररूपा’ से
(घ) “धनरूपा से

11. “हितैषिणः आपत्काल एव परीक्ष्यन्ते।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) रमानाथः
(ख) रम्भा
(ग) चपला
(घ) विनयः

12. “दुर्घटनया मम नेत्राभ्यां काञ्चनकान्तिसमुत्पन्नम् …………………. अपनीतम्।” वाक्य में रिक्त| स्थान की पूर्ति होगी

(क) ‘अज्ञानम्’ से
(ख) मोहत्वम्’ से
(ग) लोभम्’ से
(घ) ‘अन्धत्वम्’ से

13. “तस्याः त्यागः श्लाघ्यः सुमेधायाः रक्तदानेनैव एष:।”वाक्य में रिक्त-स्थान में आएगा

(क) उपकृतः
(ख) प्रसन्नः
(ग) जीवितः
(घ) मरणः

14. “रक्तदानं जीवनं ददाति, रक्तपातम् अपहरत्येव।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) रम्भा
(ख) विनयः
(ग) रमानाथः
(घ) सुमेधा

15. “अहं स्वपुत्रवधू तुभ्यं …………………. समर्पयितुं निश्चितवान्।” के रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) आभूषणरूपेण
(ख) न्यासरूपेण
(ग) धनरूपेण
(घ) कोषरूपेण

16. “क्रोधानलः यथार्थचित्तदाहकः परमधुनान्तं सुखदं तु सर्वं सुखदम्।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?

(क) विनयः
(ख) दुर्गादासः
(ग) रमानाथः
(घ) रम्भा

17. सुमेधा …………………. पुत्री आसीत्। [2007,08,09, 11, 12, 15]

(क) रमानाथस्य
(ख) विनयस्य
(ग) रम्भायाः
(घ) चपलायाः

18. चपला …………………. “पुत्री आसीत्।

(क) विनयस्य
(ख) रम्भायाः
(ग) दुर्गादासस्य
(घ) रमानाथस्य

19. यौतुक शब्दस्य अर्थ …………………. अस्ति।

(क) खेलः
(ख) दहेजः
(ग) नृत्यः
(घ) मेला

20. ‘यौतुकः पापसञ्चयः’ नाटकस्य नायिका …………………. अस्ति। [2007]

(क) चपला
(ख) सुमेधा
(ग) रम्भा
(घ) कमला

21. समाजे …………………. निन्दनीयः [2006]

(क) यौतुकः
(ख) परोपकारः
(ग) अध्ययन:
(घ) सदाचारः

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