UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के भोजन से क्या तात्पर्य है? रोगी को भोजन देते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
या
रोगी के स्वास्थ्य-लाभ के समय दिये जाने वाले भोजन का विशेष चुनाव करना चाहिए। क्यों?
या
रोगी के आहार कितने प्रकार के होते हैं? रोगी के आहार को तैयार करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? [2008]
उत्तर:
रुग्णावस्था में आहार

रुग्णावस्था के परिणाम हैं
(1) शारीरिक दुर्बलता,
(2) पाचन शक्ति का ह्रास,
(3) पोषक तत्त्वों की कमी तथा
(4) शरीर के विभिन्न अंगों में शिथिलता। इन विशेष परिस्थितियों में रोगी को तला, भुना अथवा मसालों युक्त भोजन दिया जाना अनुपयुक्त रहता है। उसे एक विशिष्ट प्रकार के आहार की आवश्यकता होती है। रोगी को दिया जाने वाला भोजन हल्का, सन्तुलित, ताजा, आवश्यक पोषक तत्वों से युक्त तथा पर्याप्त ऊर्जा एवं ऊष्मा प्रदान करने वाला होना चाहिए। इसके अतिरिक्त रुग्णावस्था में दिया जाने वाला भोजन रोगों पर भी आधारित होता है। सामान्यतः रोगी के आहार में निम्नलिखित

परिवर्तन किए जाने चाहिए

  1. शुद्ध व गाढ़े दूध के स्थान पर पानी मिला अथवा सप्रेटा दूध उपयोग में लाया जाना चाहिए।
  2. आहार में वसा कम होनी चाहिए।
  3.  खाद्यान्नों, आलू व अरवी आदि की मात्रा कम-से-कम होनी चाहिए।
  4. विटामिन व खनिज-लवणयुक्त तरकारियाँ अधिक प्रयोग में लाई जानी चाहिए।
  5. (फलों का सेवन अधिक कराया जाना चाहिए।
  6. आहार हर प्रकार से सुपाच्य होना चाहिए।

इस प्रकार रुग्णावस्था में आहार को उतना ही महत्त्व है जितना कि रोगोपचार के लिए दी जाने वाली औषधियों का, क्योंकि औषधियाँ यदि रोगी को रोगमुक्त करती हैं, तो उपयुक्त आहार उसे स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करता है।

रोगी को भोजन देते समय ध्यान रखने योग्य बातें

रोगी का भोजन क्या और कैसा हो? इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना अत्यधिक आवश्यक है–
(1) सुपाच्य एवं हल्का भोजन:
रोगी को सहज ही पचने वाला भोजन दिया जाना चाहिए जिससे कि उसका अवशोषण जल्द हो सके। रोगी को सामान्यत: बिस्कुट, साबूदाना, सूजी, दलिया, कस्टर्ड, फल तथा उबली हुई सब्जियाँ दी जानी चाहिए।

(2) उच्च कैलोरीयुक्त आहार:
प्रायः ज्वर की अवस्था में शरीर के तापमान में वृद्धि होती है, जिसके कारण शारीरिक उष्णता एवं शक्ति की हानि होती है; अत: रोगी को 3000-4000 कैलोरी ऊर्जा प्रदान करने वाला आहार देना चाहिए। लम्बी अवधि के रोगी को 2000-3000 कैलोरी ऊर्जा देने वाला भोजन दिया जाना चाहिए। नियमानुसार रोगी को शारीरिक भार की दृष्टि से 80 कैलोरी/किलोग्राम के हिसाब से ऊर्जायुक्त आहार मिलना चाहिए।

(3) अतिरिक्त प्रोटीनयुक्त आहार:
सामान्यत: सभी रोगों में दुर्बलता उत्पन्न होती है तथा आन्तरिक ऊतकों की क्षति होती है जिसका एकमात्र विकल्प प्रोटीनयुक्त आहार है। साधारणत: रोगी को 100-150 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन मिलनी चाहिए। रोगी को भोजन में 300-350 कैलोरी प्रोटीन भोज्यपदार्थों से प्राप्त होनी चाहिए। प्रोटीन-प्राप्त करने के लिए दूध सर्वोत्तम आहार है। यदि वसा की मात्रा कम करनी है तो सप्रेटा दूध प्रयुक्त करना चाहिए। बच्चों को फटे दूध का पानी देना लाभप्रद रहता है। दूध के अतिरिक्त सरलता से पाचनशील दालों के सूप, मटन सूप, अण्डे आदि भी रोगी को दिए जाने । चाहिए। कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जिनमें रोगी को बहुत कम प्रोटीनयुक्त आहार ही दिया जाता है।

(4) कार्बोजयुक्त आहार:
सामान्यतः रोगी को वसायुक्त भोज्य-पदार्थ कम-से-कम दिए जाते हैं। अत: रोगी की ऊर्जा पूर्ति के लिए उसके आहार में पर्याप्त कार्बोजयुक्त भोज्य-पदार्थों का होना बहुत आवश्यक है। इसके लिए रोगी को ग्लूकोज वे लैक्टोज के रूप में शक्कर दी जा सकती है। इसका अतिरिक्त लाभ यह है कि यह एन्जाइम क्रिया के बिना ही रक्त प्रवाह में सरलता से अवशोषित
हो जाती है।

(5) विटामिनयुक्त भोजन:
लगभग सभी रोगों में रोगी की पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है। चयापचय की क्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए विटामिन ‘ए’, ‘बी’ कॉम्पलैक्स तथा एस्कॉर्बिक एसिडयुक्त भोज्य-पदार्थों का सेवन रोगी के लिए आवश्यक होता है। इसके लिए उसे दूध, अण्डा तथा हरी शाक-सब्जियों का दिया जाना लाभप्रद रहता है।

(6) खनिज-लवणयुक्त आहार:
नमकीन सूप व रस तथा नमकीन भोज्य-पदार्थों का सेवन कराकर रोगी की नमक की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है। दूध, हरी शाक-सब्जियों, दालों व अण्डा आदि को देने से रोगी को कैल्सियम, लोहा तथा फॉस्फोरस आदि प्राप्त हो सकते हैं। पोटैशियम की कमी को दूर करने के लिए फलों के रस तथा दूध उत्तम स्रोत हैं। उच्च रक्त चाप जैसे कुछ रोगों में व्यक्ति को नमक बहुत कम दिया जाता है।

(7) तरल पदार्थ:
पेय पदार्थ; जैसे फलों के रस, सूप, चाय इत्यादि; रोगी को 2500 से 5000 मिलीलीटर तक प्रतिदिन दिए जाने चाहिए। ज्वर आदि के कारण रोगी के शरीर से पसीने के द्वारा तथा अन्य उत्सर्जन क्रियाओं के द्वारा पानी की बहुत हानि होती है। इसके लिए रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी अथवा जीवाणु-रोधक फिल्टर द्वारा छाना हुआ पानी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।

प्रश्न 2:
रोगी को दिए जाने वाले तरल भोजन कौन-कौन से होते हैं? इन्हें तैयार करने की विधियों का भी वर्णन कीजिए। [2011]
या
फटे दूध का पानी किस रोगी को देते हैं? इसे बनाने की क्या विधि है? [2011, 12, 13, 15, 16]
या
फटे दूध का पानी (whey-water) क्यों उपयोगी है तथा इसे किस रोगी को देंगी?
या
चार तरल आहारों के नाम बताइए।
या
तरल आहार से आप क्या समझते हैं? [2009, 12, 15]
उत्तर:
रोगी के लिए आदर्श तरल आहार

तरल भोजन रोगियों का महत्त्वपूर्ण आहार है। यह हल्का एवं सुपाच्य होता है तथा रोगी में जलअल्पता (डी-हाइड्रेशन) की स्थिति उत्पन्न नहीं होने देता। तरल भोजन के कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. फटे दूध का पानी,
  2.  टोस्ट का पानी,
  3. जौ का पानी,
  4. चावल का पानी,
  5. दाल का सूप,
  6. टमाटर का सूप,
  7. फलों का रस,
  8. आम का पना,
  9.  मांस का सूप तथा
  10.  अण्डे का फ्लिप।

इन तरल आहारों को तैयार करने की विधि तथा उनके उपयोग का विवरण निम्नलिखित है
(1) फटे दूध का पानी:
यह प्रायः बच्चों तथा मोतीझरा अथवा मियादी ज्वर के रोगियों के लिए उपयुक्त रहता है। लगभग 1/2 लीटर दूध साफ बर्तन में उबालें तथा उबाल आते ही उसमें टाटरी अथवा नींबू के रस की कुछ बूंदें डाल दें। दूध के फटने से पानी व छेना अलग-अलग हो जाता है। बर्तन को अधिक हिलाये बिना पानी को किसी दूसरे साफ बर्तन में छान लेना चाहिए। इसमें स्वाद के अनुसार नमक मिलाया जा सकता है। इसे दिन में 2-3 बार रोगी को देना चाहिए।’

(2) टोस्ट का पानी:
हल्का एवं कार्बोजयुक्त होने के कारण टोस्ट का पानी लगभग सभी प्रकार के रोगियों को दिया जा सकता है। डबल रोटी के टुकड़ों को धीमी आग पर अच्छी तरह सेकिए। अब इन्हें एक बर्तन में रखकर खोलता हुआ पानी इतना डालिए कि टोस्ट पूरी तरह से डूब जाएँ तथा पानी ऊपर रहे। अब लगभग 15-20 मिनट तक इन्हें पानी में पड़ा रहने दीजिए। अब एक स्वच्छ कपड़े में से पानी छान लें। स्वादानुसार नमक अथवा चीनी मिलाकर रोगी को दीजिए।

(3) जौ का पानी:
एक बड़ी चम्मच पिसी हुई जो लेकर अच्छी तरह साफ कर लें। आधा लीटर पानी एक पतीली में लेकर आग पर चढ़ा दें। पानी उबल जाने पर उसमें जौ डालकर धीमी आग पर अच्छी तरह से पकाएँ। अब एक स्वच्छ कपड़े में पानी को छानकर उसमें नींबू का रस, नमक तथा पिसी हुई काली मिर्च डालकर रोगी को दें। जौ का पानी पेचिश तथा गुर्दे के रोगियों को देना लाभप्रद रहता है।

(4) चावल का पानी:
एक बड़ी चम्मच चावल लेकर अच्छी तरह धोकर साफ कर लें। अब इन्हें आधा लीटर पानी में डालकर आग पर चढ़ा दें। चावलों के गलने पर बर्तन को आग पर से उतार लें। एक स्वच्छ कपड़े में से शेष पानी को छान लें। अब इसमें स्वादानुसार नमक व नींबू का रस डालकर रोगी को दें। चावल का पानी पेचिश, अतिसार तथा टायफाइड के रोगियों को देना अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

(5) दाल का सूप:
एक बड़ी चम्मच मूंग की दाल को बीनकर व धोकर साफ कर लें। अब इसे किसी बर्तन में आधा लीटर पानी डालकर आग पर चढ़ा दें। धीमी आग पर इसे 15-20 मिनट तक पकाएँ। दाल के अच्छी तरह गल जाने पर शेष पानी को किसी स्वच्छ कपड़े में छान लें। अब इसमें स्वादानुसार नमक डालकर रोगी को दें। मोतीझरा अथवा मियादी ज्वर के रोगी के लिए दाल का सूप सर्वोत्तम रहता है।

(6) टमाटर का सूप:
250 ग्राम पके टमाटर पानी में अच्छी तरह धोकर किसी बर्तन में आधा लीटर पानी डालकर आग पर चढ़ा दें। जब टमाटर गल जाएँ तो उन्हें कुचल व मसलकर किसी बर्तन में छान लें। यदि रोगी को घी लेने की अनुमति हो, तो घी व जीरे का छौंक लगाएँ। अब स्वादानुसार नमक व पिसी हुई काली मिर्च डाल दें। यदि रोगी को घी लेना मना हो, तो बिना छौंक लगाए ही सुप देना उचित रहता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियों; जैसे–पालक, गाजर, लौकी आदि; का भी सूप तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार के सूप विटामिन तथा खनिज लवणों से भरपूर होते हैं।

(7) फलों का रस:
मौसमी, सन्तरा, अनार व अँगुर आदि के रस रोगियों के लिए अत्यधिक उपयोगी रहते हैं। रोगी को सदैव अच्छे व ताजे फलों का रस देना चाहिए, क्योंकि सड़े-गले फलों का रस बेस्वाद तथा हानिकारक होता है। रस निकालने से पूर्व फलों को अच्छी प्रकार पानी में धो लेना चाहिए। हाथ की अथवा बिजली की मशीन द्वारा फलों का रस निकालकर उसे एक स्वच्छ कपड़े में छन लेना चाहिए। अब इसमें स्वादानुसार नमक एवं पिसी हुई काली मिर्च डालकर रोगी को देना चाहिए।

(8) आम का पना:
कच्चे आम को राख में भूनकर तथा ठण्डा करके उसका छिलका उतार लेते हैं। अब छिले हुए आम को अच्छी तरह मथकर उसका गूदा अलग कर लेते हैं। गूदे को ठण्डे पानी में घोलकर तथा रोगी की रुचि के अनुसार इसमें नमक, पिसी काली मिर्च, भुना हुआ जीरा, हरे पुदीने का रस व चीनी आदि मिला देते हैं। आम का पनी लू से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

(9) मांस (मटन) का सूप:
250 ग्राम बकरे अथवा मुर्गी का मांस अच्छी प्रकार पानी में साफ कर किसी बर्तन में एक लीटर पानी में डालकर धीमी आग पर निरन्तर उबालें। जब यह भली प्रकार न जे.ए, तो बर्तन को ठण्डा करने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर पानी की सतह पर आई चिकनाई को दूर कर देना चाहिए। अब इसे ठीक प्रकार से छान लें। इसे रोगी को देने से पूर्व हल्का-सा. गर्म कर लें तथा स्वादानुसार नमक व पिसी काली मिर्च डाल दें।

(10) अण्डे का फ्लिप:
“अण्डे को तोड़कर किसी प्याले में अच्छी तरह से फेंटें। अब एक गिलास दूध गरम करें। दूध में रोगी की रुचि के अनुसार चीनी मिलाकर फेंटा हुआ अण्डा अच्छी तरह से घोल दें। अण्डा मिला गरम दूध रोगी के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 3:
निम्नलिखित की उपयोगिता एवं बनाने की विधि लिखिए
(क) कस्टर्ड,
(ख) अरारोट,
(ग) खिचड़ी,
(घ) दलिया तथा
(ङ) साबूदाना
या
रोगी के लिए खिचड़ी बनाने की विधि लिखिए। [2015, 17]
उत्तर:
(क) कस्टर्ड:
यह कम तरल भोजन की श्रेणी में आता है। यह रोगी के लिए सुपाच्य एवं शक्तिवर्द्धक होता है। इसे बनाने के लिए एक ताजे अण्डे को तोड़कर उसकी जर्दी को अच्छी तरह से फेटते हैं। अब इसमें आवश्यकतानुसार चीनी व 250 मिलीलीटर दूध मिलाकर एक कटोरे में डाल देते हैं। एक भगोने में खौलता हुआ पानी लेकर उसके बीच में उपर्युक्त कटोरा रखकर घोल को चम्मच से | तब तक हिलाते हैं जब तक यह गाढ़ा न हो जाए। गाढ़े घोल को हल्का गर्म अथवा ठण्डा करके रोगी
को दिया जाता है।

(ख) अरारोट:
दो छोटे चम्मच अरारोट पाउडर को 50 मिलीलीटर पानी में डालकर घोल बनाएँ। अब इस घोल को 250 मिलीलीटर खौलते दूध में थोड़ा-थोड़ा डालें तथा चम्मच से लगातार चलाते रहें जिससे कि इसमें गाँठे न पड़े। गाढ़ा होने पर उतारकर चीनी मिला दें। इसे रोगी को गर्म-गर्म परोसा जाता है। पेचिश एवं अतिसार के रोगी को यह नमक मिलाकर देना चाहिए।

(ग) खिचड़ी:
यह एक सुपाच्य हल्का भोजन है। मूंग की दाल की खिचड़ी मलेरिया व पेचिश के रोगियों के लिए अति उपयोगी रहती है। एक भाग चावल व दो भाग मूंग की दाल लेकर दोनों को बीन कर साफ कर लें तथा स्वच्छ पानी में इन्हें दो-तीन बार धो लें। एक भगोने में पानी उबालें तथा उबलते पानी में उपर्युक्त दाल-चावल डालकर आग पर चढ़ा दें। आवश्यकतानुसार इसमें नमक वे हल्दी डाल दें। जब दाल व चावल अच्छी तरह पक जाए तथा खिचड़ी थोड़ी गाढ़ी हो जाए, तो इसे ठण्डा करके रोगी को दिया जा सकता है।

(घ) दलिया:
दलिये में प्रोटीन, कार्बोज तथा लवण होते हैं। यह हल्का, सुपाच्य तथा पौष्टिक होता है तथा प्रायः सभी प्रकार के रोगियों के लिए उपयोगी रहती है। इसे बनाने के लिए एक बड़ी चम्मच दलिये को दो प्याले पानी में डाल कर उबालें। हल्का गाढ़ा हो जाने पर इसे रोगी की रुचि के अनुसार नमक डालकर परोसे अथवा इसमें चीनी व दूध मिलाकर दें।

(ङ) साबूदाना:
विभिन्न रोगों में पाचन शक्ति कमजोर होने पर साबूदाने का सेवन रोगी के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है। इसे बनाने के लिए एक बड़ी चम्मच साबूदाना लेकर उसे अच्छी प्रकार से साफ कर लें। अब एक भगोने में 250 मिलीलीटर पानी उबालें। पानी के उबलने पर उसमें साबूदाना डाल दें। थोड़ी देर पकने पर उसमें आवश्यकतानुसार दूध व चीनी डाल दें। इसे रोगी की रुचि के अनुसार गर्म अथवा हल्का गर्म परोसें। यह मलेरिया व टायफाइड के रोगी को दिया जाता है। पेचिश के रोगी को साबूदाना बिना चीनी व दूध डाले देना चाहिए।

प्रश्न 4:
निम्न रोगों के रोगियों के रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ के समय का भोजन क्या होगा और वह कैसे बनेगा
(क)गैस्ट्रोएण्ट्राइटिस तथा
(ख) मियादी बुखार
या
मियादी बुखार के लक्षण लिखिए। किसी एक रोग से ग्रसित रोगी को क्या भोजन देंगे?
या
मियादी बुखार में रोगी को क्या आहार दिया जाना चाहिए? [2018]
उत्तर:

(क) गैस्ट्रोएण्ट्राइटिस:
यह दूषित आहार के कारण होने वाला पेट का रोग है जिसमें आँतों में सूजन आ जाने के फलस्वरूप पेट में दर्द अनुभव होता है तथा अम्लीयता बढ़ जाती है; अतः इस रोग की अवधि में शीघ्र पचने वाले तरल भोज्य-पदार्थों का सेवन अधिक कराया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि आहार में अम्लीय पदार्थ न हों। उदाहरण-टोस्ट का पानी, नींबू रहित चावल का पानी तथा पालक, गाजर वे लौकी आदि सब्जियों का सूप।
स्वास्थ्य लाभ के समय रोगी को हल्के एवं सुपाच्य भोजन; जैसे-खिचड़ी, साबूदाना तथा दलिया; देना चाहिए।

[संकेत: बनाने की विधि हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 3 का उत्तर देखें।)
(ख) मियादी बुखार:
मियादी बुखार या टायफाइड नामक रोग में आहार का विशेष महत्त्व होता है। यह रोग आहार-नाल में जीवाणुओं के संक्रमण से उत्पन्न होता है। इस रोग में आँतों में सूजन एवं घाव हो जाते हैं तथा पाचन शक्ति अत्यधिक क्षीण हो जाती है। इस रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ की अवधि में दिये जाने वाले क्विरण निम्नलिखित हैं

रोग की अवधि में आहार:
मियादी बुखार या टायफाइड रोग की स्थिति में रोगी के शरीर में प्रोटीन की काफी कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न खनिज लवणों तथा ग्लाइकोजन के संग्रह में भी कमी आ जाती है। इस स्थिति में रोगी को ऐसा आहार दिया जाना चाहिए, जिससे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, जल, सोडियम तथा पोटैशियम क्लोराइड की समुचित मात्रा मिलती रहे। इस रोग में ऊर्जा की आवश्यकता भी अधिक होती है। दिन में लगभग 3500 कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है। इसके साथ ही प्रतिदिन लगभग 100 ग्राम प्रोटीन भी आवश्यक होती है।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए टायफाइड के रोगी के लिए नियोजित खाद्य-सामग्री में विभिन्न भोज्य-पदार्थों का समावेश होना चाहिए। रोगी को दूध, आधा उबला हुआ अण्डा, ब्रेड, मक्खन तथा सूजी की खीर या कॉर्नफ्लैक्स आदि दिया जा सकता है। फलों का रस, भुना हुआ आलू, हल्की चपाती तथा मसूर की दाल भी दी जा सकती है। टायफाइड के रोगी को दिन में तीन बार मुख्य आहार दिया
जाना चाहिए तथा साथ ही अल्प-मात्रा में मध्य-आहार भी दिए जा सकते हैं। ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पेचिश के रोगी के रोग की अवधि और स्वास्थ्य लाभ के समय का भोजन कैसा होना चाहिए?
या
पेचिश के रोगी को कैसा भोजन दिया जाना चाहिए और क्यों? [2008, 11, 12, 13, 16]
उत्तर:
पेचिश की स्थिति में आहार

पेचिश में बार-बार दस्त लगते हैं तथा पेट में ऐंठन होती है। मल के साथ श्लेष्मा तथा कभी-कभी रक्त भी विसर्जित होता है। पेचिश दो प्रकार की होती है-एक एमीबिक (Amoebic) जो अमीबा नामक सूक्ष्म रोगाणु द्वारा उत्पन्न होती है और दूसरी बैसिलरी। यह पहले प्रकार की पेचिश से अधिक घातक होती है।

इस रोग का उद्भवन काल 1 से 2 दिन होता है। बैसिलरी पेचिश में दस्तों के साथ ज्वर भी रहता है, परन्तु अमीबिक में ज्वर नहीं होता है। ऐंठन के साथ लाल या सफेद आँव वाले दस्त दोनों में
ही लगते हैं।

रोगी को दही, उबला चावल, मूंग की दाल की खिचड़ी, पानी में पका साबूदाना या अरारोट, केला दिया जा सकता है। गम्भीर अवस्था में केवल चावल का माँड ही दिया जाना चाहिए। ईसबगोल
की भूसी दही में मिलाकर दिन में दो या तीन बार खिलानी चाहिए।
जैसे-जैसे पाचन शक्ति ठीक हो जाए रोटी, फल, तरकारी भी खाने को दे सकते हैं।

प्रश्न 2:
स्वस्थ व्यक्ति और रोगी के भोजन में क्या अन्तर होता है? [2008, 11, 12, 13]
उत्तर:
आहार मनुष्य का सर्वोत्तम डॉक्टर है। यदि स्वस्थ अवस्था में सही, सुपाच्य तथा उचित मात्रा में सन्तुलित भोजन मनुष्य को मिलता रहे तो उसका स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों को छोड़कर, सामान्यतः ठीक रहता है। इसी प्रकार, रुग्णावस्था में थोड़ा-सा भी अनियमित भोजन लेने पर रोग की गम्भीरता अत्यधिक बढ़ सकती है।
रुग्णावस्था में भोजन ऐसा होना चाहिए जिसमें आवश्यक पोषक-तत्त्व, जिनकी शरीर में कमी हो सकती है, अधिक मात्रा में हों। रोगी के भोजन में सभी पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं, किन्त यह सरलत ग्राह्य, सुपाच्य तथा शीघ्र पचने वाला होना चाहिए।

प्रश्न 3:
विभिन्न रोगियों को दिए जाने वाले भोजन की तालिका बनाइए।
या।
निम्न रोगों के रोगियों का भोजन कैसा होना चाहिए ? ज्वर, अतिसार, टायफाइड। [2009]
उत्तर:
विभिन्न रोगों के रोगियों को दिए जाने वाले भोजन की तालिका निम्नलिखित है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन 1

प्रश्न 4:
रोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? [2008, 11, 17]
उत्तर:
रोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  1. भोजन सफाई से स्टील या कलई के बर्तनों में बनाया जाना चाहिए।
  2. भोजन इस प्रकार तैयार होना चाहिए कि उसके पौष्टिक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, खनिज-लवण व विटामिन आदि; नष्ट न होने पाये।।
  3. भोजन डॉक्टर के निर्देशानुसार तैयार करना चाहिए।
  4. रोगी के भोजन में चटपटे मसाले, घी व तेल का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो, उबली हुई सब्जी ही देनी चाहिए।
  5. भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए आवश्यकतानुसार काला नमक व काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिए।
  6.  भोजन के साथ सब्जी में नींबू का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
  7. (रोगी को अधिकतर हल्का भोजन; जैसे-खिचड़ी, डबलरोटी, हल्की-हल्की फुलकियाँ, पालक की सब्जी इत्यादि; देना चाहिए।
  8. रोगी को जो भी भोजन दिया जा रहा है, वह उन तत्त्वों से परिपूर्ण होना चाहिए जिनकी कमी से वह रोग उत्पन्न हुआ है।

प्रश्न 5:
रोगी को भोजन कराते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी? [2011, 13, 14]
उत्तर:
रोगी को भोजन कराते समय ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

  1. भोजन सुपाच्य एवं हल्का तथा डॉक्टर की सलाह पर आधारित होना चाहिए।
  2. रोगी को प्रायः दिन में भोजन कराना उपयुक्त रहता है।
  3. रोगी को नींद से जगाकर भोजन न कराएँ।
  4. रोगी को निश्चित कार्यक्रम व समय के अनुसार भोजन कराना चाहिए।
  5.  भोजन सदैव स्वच्छ बर्तनों में देना चाहिए तथा प्रयुक्त बर्तनों को नि:संक्रमित कर साफ करना चाहिए।
  6. रोगी से सदैव प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 6:
क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति को रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ के समय क्या आहार दिया जाना चाहिए? [2014]
उत्तर:
क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति के फेफड़े कुप्रभावित होते हैं जिससे खाँसी व स्थायी ज्वर बना रहता है। इसके अतिरिक्त रोगी को भूख कम लगती है तथा उसका भार नित्यप्रति कम होता रहता है। अतः उसे अतिरिक्त कैलोरीयुक्त भोजन की आवश्यकता होती है। रोग की अवस्था में उसे हल्का, सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन देना चाहिए। इसके लिए उसे दाल, टमाटर व मांस के सूप दिए जाने चाहिए। शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए रोगी को मूंग की दाल की खिचड़ी, दूध का दलिया, दूध, अण्डा, हरी शाक- सब्जियाँ तथा फलों का सेवन कराना उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 7:
मलेरिया रोग में दिए जाने वाले आहार का विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2010]
उत्तर:
मलेरिया नामक रोग में व्यक्ति को कॅपकपी से तीव्र ज्वर होता है। इस रोग में व्यक्ति का यकृत भी प्रभावित होता है परन्तु व्यक्ति का पाचन क्रिया पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। सामान्य दशाओं में मलेरिया के रोगी को सामान्य पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार दिया जा सकता है, परन्तु यदि ज्वर तीव्र है, तो भोजन देना उचित नहीं होता। इस दशा में रोगी को दूध दिया जाना चाहिए। ज्वर उतर जाने के बाद स्वास्थ्य लाभ के समय सुपाच्य किन्तु पौष्टिक हल्का भोजन देना चाहिए। रोगी को उसकी रुचि के अनुसार खिचड़ी, दलिया, साबूदाना, हरी सब्जियाँ दी जा सकती हैं। रोगी को उबला अण्डा तथा मक्खन भी दिया जा सकता है।

प्रश्न 8:
रोगी के आहार में ग्लूकोज का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ग्लूकोज अन्य शर्कराओं की अपेक्षा अधिक घुलनशील होती है तथा एन्जाइम क्रिया के बिना ही अवशोषित होकर रक्त प्रवाह में पहुँच जाती है। अत: ग्लूकोज तुरन्त ऊर्जा प्रदान करती है। इस प्रकार ग्लूकोज लेने पर रोगी दुर्बलता से शीघ्र मुक्त होने का अनुभव करता है। हमारे शरीर में ग्लूकोज शर्करा ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहती है तथा आवश्यकतानुसार ग्लाइकोजन ग्लूकोज में परिवर्तित होकर रुधिर प्रवाह में मिलती रहती है। रुग्णावस्था में ग्लाइकोजने के संचय में कमी आ जाती है, जिसकी पूर्ति करने के लिए रोगी को ग्लूकोज देना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 9:
टमाटर सूप कैसे तैयार करेंगी? [2015, 17]
उत्तर:
टमाटर सूप बनाने के लिए सही पके हुए टमाटरों को पहले स्टील या कलई किये बर्तन में उबालते हैं। जब टमाटर भली-भाँति उबल जायें तो इन्हें बड़े चम्मच या कलछी से घोट लिया जाता है। तत्पश्चात् इसका पानी छानकर रोगी की इच्छानुसार नमक, काली मिर्च डालकर ही रोगी को दिया जा सकता है। स्वाद के अनुसार इसमें थोड़ी चीनी भी मिलाई जा सकती है।

प्रश्न 10:
टोस्ट वाटर तैयार करने की विधि लिखिए। [2016]
उत्तर:
सामग्री डबलरोटी का टुकड़ा व पानी।

बनाने की विधि डबलरोटी के टुकड़े को आग पर सेंक लेते हैं। जब वह गुलाबी रंग का हो जाता है तो उसे किसी बर्तन (कटोरा) में रख देते हैं। अब एक बड़े बर्तन में पानी उबालते हैं। जब पानी खूब उबल जाता है तो उसे सिके टोस्ट वाले बर्तन में डाल देते हैं तथा उस पानी को छान लेते हैं, यही टोस्ट वाटर (टोस्ट का पानी) कहलाता है। इसमें काला नमक तथा काली मिर्च मिलाकर रोगी को देते हैं।
टोस्ट वाटर अधिकतर टायफाइड के रोगी को ज्वर उतरने के पश्चात् दिया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
किसी व्यक्ति को रोग की दशा में दिए जाने वाले आहार को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
किसी व्यक्ति को रोग की दशा में दिए जाने वाले आहार को उपचारार्थ आहार कहा जाता है।

प्रश्न 2:
रोगी के भोजन को कितनी श्रेणियों में विभालि किया जा सकता है?
उत्तर:
रोगी के भोजन को क्रमश: तरल आहार तथा कम हार के। श्रणियों में बाँटा जा सकता है। तरल आहार को पुन: पूर्ण-तरल तथा अर्द्ध-तरल आहार में बाँटा जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के लिए कार्बोज का सर्वाधिक उपयोगी स्रोत कौन-सा है?
या
फलों का आहार में क्यमहत्त्व है? [2008]
उत्तर:
सेब, अंगर, केला, अमरूद वे आम आदि फल रोगी के लिए कार्बोज प्राप्ति के मुख्य साधन हैं। इनसे रक्त में शर्करा की आवश्यकता की तुरन्त पूर्ति हो जाती है और शारीरिक अंगों को विशेष श्रम नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 4:
जौ का पानी किस रोग में दिया जाता है? [2015, 16]
उत्तर:
जौ का पानी गुर्दो के रोग तथा पेचिश में दिया जाना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 5:
‘फटे दूध का पानी में भोजन के कौन-कौन से तत्त्व पाए जाते हैं?
या
फटे दूध के पानी की पौष्टिकता के विषय में लिखिए।
उत्तर:
फटे दूध को पानी में खनिज-लवण, विटामिन, शर्करा तथा प्रोटीन आदि भोजन के पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं।

प्रश्न 6:
फटे दूध के पानी में कौन-सा तत्त्व नहीं पाया जाता?
उत्तर:
फटे दूध के पानी में वसा नामक तत्त्व नहीं पाया जाता।

प्रश्न 7:
टोस्ट का पानी’ किस रोगी को दिया जाता है?
उत्तर:
तीव्र ज्वर से पीड़ित रोगी को टोस्ट का पानी दिया जाता है।

प्रश्न 8:
रुग्णावस्था में रोगी को किस प्रकार का आहार दिया जाना चाहिए?
उत्तर:
साधारणत: रुग्णावस्था में रोगी को हल्का, सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 9:
क्षय रोग से पीड़ित व्यक्ति को कैसा आहार देना चाहिए?
उत्तर:
क्षय रोगी को अधिक कैलोरी बाला, प्रोटीनयुक्त, सुपाच्य भोजन देना चाहिए।

प्रश्न 10:
रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल देने का क्या लाभ है?
उत्तर:
उबालकर ठण्डा किया हुआ जल रोगाणुमुक्त हो जाता है; अतः यह रोगी को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाता।

प्रश्न 11:
टायफाइड में ठोस भोजन खिलाना क्यों उपयुक्त नहीं है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टायफाइड के रोगी की आँते अत्यधिक कमजोर हो जाती हैं। अतः उसे ठोस भोजन न देकर तरल भोजन देना ही उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 12:
मियादी बुखार के रोगी को आप कैसा आहार देंगी? [2010, 14]
उत्तर:
मियादी बुखार के रोगी को वसारहित, प्रोटीनयुक्त तथा तरल अथवा कम तरल भोजन देना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 13:
एक व्यक्ति के लिए दलिया बनाने में पदार्थों का क्या अनुपात होना चाहिए?
उत्तर:
एक बड़ी चम्मच दलिया, दो प्याले पानी, एक प्याला दूध व दो छोटी चम्मच चीनी एक व्यक्ति के लिए दलिया तैयार करने के लिए पर्याप्त रहते हैं।

प्रश्न 14:
तरल भोजन रोगी के लिए क्यों उपयुक्त रहता है? [2018]
उत्तर:
रोगी को यह सुविधापूर्वक दिया जा सकता है तथा अधिक सुपाच्य होने के कारण शीघ्र ही शरीर में अवशोषित हो जाता है।

प्रश्न 15:
रोगी को देने के लिए नरम आहार के कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर:
दूध, गला हुआ मांस, मछली, अण्डा, कीमा, कस्टर्ड, दही, दलिया, खिचड़ी आदि नरम आहार हैं।

प्रश्न 16:
पूर्ण-तरल तथा अर्द्ध-तरल भोजन कौन-से हैं?
उत्तर:
नींबू, मांस, जौ आदि का पानी पूर्ण-तरल, जबकि टमाटर, मांस, दाल, सब्जी का सूप, चाय, दूध आदि अर्द्ध-तरल भोजन हैं। इनसे भी अधिक ठोस दलिया, साग-सब्जियाँ, खट्टे फल, आधा उबला अण्डा आदि कम-तरल भोजन हैं।

प्रश्न 17:
हल्के भोजन से क्या तात्पर्य है? यह कब दिया जाता है?
उत्तर:
हल्के भोजन का अर्थ है अर्द्ध-तरल शीघ्र पचने वाला सुपाच्य भोजन। यह कम तरल पदार्थ देने के पश्चात् तथा ठोस पदार्थ से पूर्व दिया जाता है।

प्रश्न 18:
कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतः किन भोज्य-पदार्थों का समावेश करना चाहिए? [2009, 12, 13, 18]
उत्तर:
कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतः अधिक रेशे युक्त भोज्य पदार्थों का समावेश करना चाहिए जैसे कि सम्पूर्ण अनाज, छिलकायुक्त दालें, सब्जियाँ तथा फल। जल की मात्रा भी अधिक होनी चाहिए।

प्रश्न 19:
लू लगने के लक्षण लिखिए। इस रोगी को किस प्रकार का आहार देना चाहिए? [2007, 18]
उत्तर:
लू लग जाने पर व्यक्ति को तेज ज्वर हो जाता है। चेहरा लाल हो जाता है, होंठ सूखने लगते हैं तथा शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस दशा में रोगी को ठण्डे पेय-पदार्थ अधिक मात्रा में दिए जाने चाहिए। कच्चे आम का पना तथा पुदीने का रस भी दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 20:
अतिसार के रोगी को क्या भोजन देते हैं और क्यों ? [2011]
उत्तर:
अतिसार के रोगी को केवल तरल पदार्थ देने चाहिए, यह भी तब जब मल त्याग बार-बार हो रहा हो। रेशे वाले पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अचार, मुरब्बे आदि न दें; क्योंकि इससे रोग की गम्भीरता बढ़ सकती है। रोगी में जल की कमी हो जाती है; अतः जल दें। चाय, कॉफी दी जा सकती है। क्योंकि यह मल का निर्माण नहीं करती।

प्रश्न 21:
अतिसार के रोगी के आहार में दही या मटठे का क्या महत्त्व है?
या
अतिसार के रोगी को कैसा आहार देना चाहिए? [2007, 10, 11, 14]
उत्तर:
अतिसार के रोगी के आहार में दही या मट्ठे का विशेष महत्त्व होता है। यदि इसमें ईसबगोल मिला लिया जाए, तो अधिक लाभ होता है।

प्रश्न 22:
मधुमेह के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए? [2008, 12]
उत्तर:
मधुमेह के रोगी को शर्करायुक्त भोजन देना बन्द कर देना चाहिए। ठोस हो या द्रव किसी भी प्रकार का मीठा पदार्थ ऐसे रोगी को न दें। इसके अतिरिक्त अधिक कार्बोहाइड्रेट्स वाले भोजन; चावल, आलू, शकरकन्द आदि; न देकर प्रोटीनयुक्त भोजन; दालें, दाने वाली, फलियों वाली सब्जियां व खट्टे पदार्थ; दिए जाने चाहिए।

प्रश्न 23:
कच्ची सब्जियों को खाने से शरीर को कौन-से पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में मिलते हैं? [2009, 13, 14]
उत्तर:
कच्ची सब्जियों को खाने से शरीर को लोहा तथा विटामिन्स भरपूर मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 24:
जीवन-रक्षक घोल क्या है? इसे कैसे तैयार करते हैं? [2016]
उत्तर:
हमारे शरीर में पानी की कमी की पूर्ति करने के लिए जो पेय तैयार किया जाता है उसे ‘जीवन-रक्षक घोल’ कहते हैं। विधि इसे तैयार करने की विधि बड़ी आसान है-जल को उबालकर उसमें थोड़ा-सा नमक तथा चीनी मिलाकर एवं इसके साथ में दो-चार बूंद नींबू का रस डालकर इसे तैयार किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. रोग की अवस्था में कमजोर हो जाती है
(क) स्मरण शक्ति
(ख) नजर
(ग) पाचन शक्ति
(घ) श्रवण शक्ति

2. सामान्य रूप से रोगी को दिया जाना चाहिए
या रोगी का भोजन होना चाहिए
(क) गरिष्ठ आहार
(ख) स्वादिष्ट आहार
(ग) सुपाच्य आहार
(घ) चाहे जैसा आहार

3. लू से पीड़ित व्यक्ति को देना चाहिए [2010, 12, 14, 15]
(क) आम का पना
(ख) प्याज
(ग) हरे पुदीने का रस
(घ) ये सभी

4. मलेरिया के रोगी को देना चाहिए
(क) दूध
(ख) दही
(ग) भोजन
(घ) चाहे कुछ भी हो

5. पेचिश के रोगी को भोजन कैसा होना चाहिए?
(क) केवल फल
(ख) केवल दूध
(ग) दही-चावल
(घ) रोटी-सब्जी

6. रोगी को अधिकतर कैसा भोजन देना चाहिए?
(क) तरल
(ख) गरिष्ठ
(ग) ठोस
(घ) चाहे जैसा

7. निमोनिया के रोगी को कौन-सा पेय पदार्थ देंगी?
(क) लस्सी
(ख) शर्बत
(ग) चाय
(घ) शीतल पेय

8. तरल पदार्थ किस रोग के रोगी को दिया जाता है?
(क) मियादी बुखार
(ख) तपेदिक
(ग) रक्ताल्पता
(घ) सिरदर्द

9. क्षय रोग के रोगी को कौन-सी वस्तु हानि पहुँचाती है? [2013]
(क) मौसमी
(ख) रस वाले फल
(ग) मिर्च-मसालेदार भोजन
(घ) दूध

10. अतिसार में क्या देना चाहिए?
(क) रोटी
(ख) द्वे वाटर
(ग) मीट
(घ) पुलाव

11. रुग्णावस्था में पाचन शक्ति हो जाती है
(क) अत्यधिक तीव्र
(ख) कमजोर
(ग) कोई अन्तर नहीं होता
(घ) इनमें से कोई नहीं

12. कब्ज के रोगी को कौन-सा आहार अधिक मात्रा में देना चाहिए? [2012]
(क) वसायुक्त
(ख) ठोस
(ग) पौष्टिक
(घ) रेशेदार

13. क्षय रोग के रोगी को कौन-सा भोजन देना चाहिए?
(क) मिर्च-मसालेदार
(ख) दूध
(ग) उबला हुआ
(घ) स्वादिष्ट

14. कौन-सा पदार्थ लेने से तुरन्त ऊर्जा मिलती है? [2013, 14, 17]
(क) विटामिन
(ख) ग्लूकोज
ग) प्रोटीन
(घ) खनिज-लवण

15. किसी भी भोज्य-पदार्थ से प्राप्त ऊर्जा को नापने की इकाई है [2017]
(क) ग्राम
(ख) आंस
(ग) डिग्री
(घ) कैलोरी

16. आहार में कार्बोहाइड्रेट का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए [2007]
(क) बेरीबेरी में
(ख) मधुमेह में
(ग) तपेदिक में
(घ) एनीमिया में

17. मधुमेह किस तत्त्व की अधिकता से होता है? [2011, 16]
क) प्रोटीन
(ख) वसा
(ग) शर्करा
(घ) विटामिन

18. किस प्रकार के भोजन रोगों से बचाते हैं ? [2009]
(क) बिस्कुट
(ख) चावल
(ग) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियाँ
(घ) चीनी

19. अतिसार के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए ? [2010, 11, 12]
(क) तला भोजन
(ख) तरल भोजन
(ग) गरिष्ठ भोजन
(घ) कुछ नहीं

20. नेत्रों के लिए कौन-सा पौष्टिक तत्त्व आवश्यक है? [2014, 17, 18]
(क) कैल्सियम
(ख) विटामिन ‘बी’
(ग) ग्लूकोज
(घ) विटामिन ‘ए’

उत्तर:
1. (ग) याचन शक्ति,
2. (ग) सुपाच्य आहार,
3. (घ) ये सभी,
4. (क) दूध,
5. (ग) दही-चावल,
6. (क) तरल,
7. (ग) चाय,
8. (क) मियादी बुखार,
9. (ग) मिर्च-मसालेदार भोजन,
10. (ख) हे कटर,
11. (ख) कमजोर,
12. (घ) रेशेदार,
13. (ख) दूध,
14. (ख) ग्लूकोज,
15. (घ) कैलोरी,
16. (ख) मधुमेह में,
17. (ग) शर्करा,
18. (ग) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियाँ,
19. (ख) तरल भोजन,
20. (घ) विटामिन ‘ए

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