UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य)

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य).

(खण्डकाव्य)

प्रश्न 1
डॉ० राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 12, 18]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का सारांश लिखिए। [2012, 13, 15]
या
‘मुक्ति-दूत’ की कथावस्तु या कथासार अपने शब्दों में लिखिए। [2012, 13, 14, 15, 17, 18]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। [2016, 17]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के प्रतिपाद्य विषय (उद्देश्य) को समझाइए। [2018]
उत्तर
डॉ० राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित ‘मुक्ति-दूत’ नामक खण्डकाव्य गाँधीजी के जीवन-दर्शन का एक पक्ष चित्रांकित करता है। इस कथानक की घटनाएँ सत्य एवं ऐतिहासिक हैं। कवि ने इसके कथानक को पाँच सर्गों में विभक्त किया है।

प्रथम सर्ग में कवि ने महात्मा गाँधी के अलौकिक एवं मानवीय स्वरूप की विवेचना की है। पराधीनता के कारण उस समय भारत की दशा अत्यधिक दयनीय थी। आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी परिस्थितियों में भारत का शोषण हो रहा था। अवतारवाद की धारणा से प्रभावित होकर कवि कहता है कि जब संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाता है, तब ईश्वर किसी महापुरुष के रूप में जन्म लेता है। अन्यायी रावण से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए राम का और अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। इसी क्रम में भारत-भूमि के परित्राण के लिए काठियावाड़ प्रदेश में पोरबन्दर नामक स्थान पर करमचन्द के यहाँ मोहनदास के नाम से एक महान् विभूति का जन्म हुआ था।

महात्मा गाँधी के दुर्बल शरीर में महान् आत्मिक बल था। भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए उन्होंने तीस वर्षों तक भारत का जैसा नेतृत्व किया, वह भारतीय इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। इनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप ही भारतवर्ष को स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकी।

‘मुक्ति-दूत’ के द्वितीय सर्ग में गाँधीजी की मनोदशा का चित्रण किया गया है। उनका हृदय यहाँ के निवासियों की दयनीय दशा को देखकर व्यथित और उनके उद्धार के लिए चिन्तित था।

एक दिन गाँधीजी स्वप्न में अपनी माता को देखते हैं। माताजी उन्हें समझा रही हैं कि जो तुम्हारा थोड़ा भी भला करे, तुम उसका अधिकाधिक हित करो; गिरते को सहारा दो; केवल अपना नहीं, औरों का भी पेट भरो। माँ का स्मरण करके गाँधीजी का हृदय भर आया। उन्होंने सोचा-माँ ने सही कहा है, मैं मातृभूमि के बन्धन काढूँगा। मैं कोटि-कोटि दलित भाइयों की रक्षा करूंगा।

एक बार गाँधीजी ने स्वप्न में श्री गोखले (गोपाल कृष्ण) को देखा। उन्होंने गाँधीजी को निरन्तर स्वतन्त्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और यह आशा प्रकट की कि गाँधीजी ही भारतवर्ष के मुक्ति-दूत बनेंगे

जो बिगुल बजाया है तुमने, दक्षिण अफ्रीका में प्रियवर।
देखो उसकी गति क्षीण न हो, भारतमाता के पुत्र-प्रवर ।।

‘तृतीय सर्ग में अंग्रेजों की दमन-नीति के प्रति गाँधीजी का विरोध व्यक्त हुआ है। देश में अंग्रेजों का शासन था और उनके अत्याचार चरम-सीमा पर थे। भारतीय बेबसी और अपमान की जिन्दगी जी रहे थे। केवल वही लोग सुखी थे, जो अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे। जब उनकी नीति से अंग्रेजों का हृदय नहीं बदला, तब उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध ‘सविनय सत्याग्रह’ के रूप में संघर्ष छेड़ दिया।

गाँधीजी ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय देशवासियों से अंग्रेों की सहायता करने का आह्वान किया, परन्तु युद्ध में विजय पाने के बाद अंग्रेजों ने ‘रॉलेट ऐक्ट’ पास करकेचना अत्याचारी शिकंजा और अधिक कड़ा कर दिया। गाँधीजी ने अंग्रेजों के इस काले कानून का उग्र विरोध किया। उनके साथ जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, पटेल आदि नेता संघर्ष में सम्मिलित हो गये। इन्हीं दिनों जलियाँवाला बाग की अमानवीय घटना घटित हुई।

यह दृश्य देखकर गाँधीजी का हृदय दहल उठा और उनकी आँखों में खून उतर आया। इस युग-पुरुष ने क्रोध का जहर पीकर सभी को अमृतमय आशा प्रदान की और यह निश्चय कर लिया कि अंग्रेजों को अब भारत में अधिक दिनों तक नहीं रहने देंगे।

चतुर्थ सर्ग में भारत की स्वतन्त्रता के लिए गाँधीजी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलनों का वर्णन है। जलियाँवाला बाग की नृशंस घटना हो जाने पर गाँधीजी ने अगस्त, सन् 1920 ई० में देश की जनता का ‘असहयोग आन्दोलन’ के लिए आह्वान किया। लोगों ने सरकारी उपाधियाँ लौटा दीं, विदेशी सामान का बहिष्कार किया। छात्रों ने विद्यालय, वकीलों ने कचहरियाँ और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरियाँ छोड़ दीं। इस आन्दोलन से सरकार महान् संकट और निराशा के भंवर में फंस गयी।

असहयोग आन्दोलन को देखकर अंग्रेजों को निराशा हुई। उन्होंने भारतीयों पर ‘साइमन कमीशन’ थोप दिया। ‘साइमन कमीशन के आने पर गाँधीजी के नेतृत्व में सारे भारत में इसका विरोध हुआ। परिणामस्वरूप सरकार हिंसा पर उतर आयी। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर निर्मम लाठी-प्रहार हुआ, जिसके फलस्वरूप देश भर में हिंसक क्रान्ति फैल गयी। गाँधीजी देशवासियों को समझा-बुझाकर मुश्किल से अहिंसा के मार्ग पर ला सके।

गाँधीजी ने 79 व्यक्तियों को साथ लेकर नमक कानून तोड़ने के लिए डाण्ड़ी की पैदल यात्रा की। अंग्रेजों ने गाँधीजी को बन्दी बनाया तो प्रतिक्रियास्वरूप देश भर में सत्याग्रह छिड़ गया।

बापू की एक ललकार पर देश भर में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन फैल गया। सब जगह एक ही स्वर सुनाई पड़ता था-‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’। स्थान-स्थान पर सभाएँ की गयीं, विदेशी वस्त्रों की होलियाँ जलायी गयीं, पुल तोड़ दिये गये, रेलवे लाइनें उखाड़ दी गयीं, थानों में आग लगा दी गयी, बैंक लुटने लगे, अंग्रेजों को शासन करना दूभर हो गया।
मुक्ति-दूत के पञ्चम सर्ग में स्वतन्त्रता-प्राप्ति तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। कारागार में गाँधीजी के अस्वस्थ होने के कारण सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया। इंग्लैण्ड के चुनावों में मजदूर दल की सरकार बनी। फरवरी, सन् 1947 ई० में प्रधानमन्त्री एटली ने जून, 1947 ई० से पूर्व अंग्रेजों के भारत छोड़ने की घोषणा की। भारत में हर्षोल्लास छा गया। मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनाने की अपनी मांग पर अड़े रहे। 15 अगस्त, सन् 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया और देश की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में आ गयी। गाँधीजी ने अनुभव किया कि उनका स्वतन्त्रता का लक्ष्य पूर्ण हो गया; अतः वे संघर्षपूर्ण राजनीति से अलग हो गये।

खण्डकाव्य के अन्त में गाँधीजी भारतवर्ष के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं और इसी के साथ खण्डकाव्य की कथा समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2009, 13]
या
‘मुक्ति-दूत’ के प्रथम सर्ग के आधार पर गाँधीजी के लोकोत्तर गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रथम सर्ग में कवि ने महात्मा गाँधी के अलौकिक एवं मानवीय स्वरूप की विवेचना की है। पराधीनता के कारण उस समय भारत की दशा अत्यधिक दयनीय थी। आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी परिस्थितियों में भारत का शोषण हो रहा था। कवि अवतारवाद की धारणा से प्रभावित होकर कहता है। कि जब संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाता है, तब ईश्वर किसी महापुरुष के रूप में जन्म लेता है। अन्यायी रावण से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए राम का और अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। वही ईश्वर कभी गौतम, कभी महावीर, कभी ईसा मसीह, कभी हजरत मुहम्मद, कभी गुरु गोविन्द सिंह आदि महापुरुषों के रूप में अत्याचार के निवारण के लिए प्रकट होता रहता है। उसके अनेक रूप और नाम होते हैं। लोग उसे पहचान नहीं पाते; क्योंकि वह मनुष्य के समान आचरण करता है। उसके आचरण से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। उसके त्याग और बलिदान से लोग सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित होते हैं। अमेरिका में लिंकन और फ्रांस में नेपोलियन के रूप में वही दिव्य शक्ति थी। इसी क्रम में भारत-भूमि के परित्राण के लिए काठियावाड़ प्रदेश में पोरबन्दर नामक स्थान पर करमचन्द के यहाँ मोहनदास के नाम से एक महान् विभूति का जन्म हुआ था।

महात्मा गाँधी के दुर्बल शरीर में महान् आत्मिक बल था। उन्होंने अपने बीस वर्ष के अफ्रीका प्रवास में वहाँ के भारतीय मूल निवासियों पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया था। भारत लौटकर यहाँ के शोषित, दलित, दीन-हीन हरिजनों की दशा देखकर गाँधीजी व्याकुल हो उठे थे। गाँधीजी को हरिजनों और हिन्दुस्तान से अगाध प्रेम था। हरिजनों का उद्धार करने और भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए उन्होंने तीस वर्षों तक भारत का जैसा नेतृत्व किया, वह भारतीय इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। इनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप ही भारतवर्ष को स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकी।

प्रश्न 3
‘मुक्ति-दूत’ के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए। [2009, 11, 14, 15, 17]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
“मैं घृणा-द्वेष की यह आँधी, न चलने दूंगा न चलाऊँगा। या तो खुद ही मर जाऊँगा, या इसको मार भगाऊँगा।।”
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य की उक्त पंक्तियों के आधार पर नायक की मनोदशा का वर्णन कीजिए। या । मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य में किसकी मुक्ति का वर्णन है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (2010)
उत्तर
‘मुक्ति-दूत’ के द्वितीय सर्ग में गाँधीजी की मनोदशा का चित्रण किया गया है। उनका हृदय यहाँ के निवासियों की दयनीय दशा को देखकर व्यथित और उनके उद्धार के लिए चिन्तित था।

एक दिन गाँधीजी स्वप्न में अपनी माता को देखते हैं। माताजी उन्हें समझा रही हैं कि जो तुम्हारा थोड़ा भी भला करे, तुम उसका अधिकाधिक हित करो; गिरते को सहारा दो; केवल अपना नहीं, औरों का भी पेट भरो। माँ का स्मरण करके गाँधीजी का हृदय भर आया। उन्होंने सोचा—माँ ने सही कहा है, मैं मातृभूमि के बन्धन काढूंगा। मैं कोटि-कोटि दलित भाइयों की रक्षा करूंगा। जब तक मेरे देश को एक बच्चा भी नंगा और भूखा रहेगा, मैं चैन से नहीं सोऊँगा। मेरे देश के निवासी अपमान भरा जीवन जी रहे हैं। मनुष्य-मनुष्य का तथा धनी-निर्धन का यह घृणित भेद मिटाना ही होगा। हरिजनों की दुर्दशा को देखकर उनका हृदय क्षोभ से जलने लगता है। हम सभी ईश्वर की सन्तान हैं, उनमें भेद कैसा? गुरु वशिष्ठ ने निषाद को हृदय से लगा लिया था, राम ने शबरी के जूठे बेर खाये थे। हरिजन सत्यकाम को गौतम बुद्ध ने शिक्षा दी थी। मेरा तो मत है कि हरिजन के स्पर्श से किसी मन्दिर की पवित्रता नष्ट नहीं होती। ये भी अपने भाई हैं, हमें चाहिए कि हम इन्हें हृदय से लगाकर प्यार करें।

गाँधीजी ने हरिजनों को आश्रम में रहने के लिए आमन्त्रित किया। इस पर कुछ लोगों ने रुष्ट होकर आश्रम के लिए चन्दा देने से इनकार कर दिया। आश्रम के प्रबन्धक मगनलाल ने जब गाँधीजी को बताया कि हरिजनों को आश्रम में रखकर आपने अच्छा नहीं किया, तब गाँधीजी ने कठोर स्वर में कहा–

असवर्णो की बस्ती में भी रह लँगा उनके संग भले।।
करके मजदूरी खा लूंगा, सो लँगा सुख से वृक्ष तले ॥
पर मगनलाल ! मेरे जीते, अस्पृश्य न कोई हो सकता।
समता की उर्वर धरती में, कटुता के बीज न बो सकता ॥

पहले देश स्वतन्त्र हो जाये, फिर मुझे इस छुआछूत से ही लड़ना है। गाँधीजी के इस उत्तर से आश्रमवासियों ने अनुभव किया कि गाँधीजी असाधारण मनुष्य हैं।

एक बार गाँधीजी ने स्वप्न में श्री गोखले (गोपाल कृष्ण) को देखा। उन्होंने गाँधीजी को निरन्तर स्वतन्त्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और यह आशा प्रकट की कि गाँधीजी ही भारतवर्ष के मुक्ति-दूत बनेंगे

जो बिगुल बजाया है तुमने, दक्षिण अफ्रीका में प्रियवर।
देखो उसकी गति क्षीण न हो, भारतमाता के पुत्र-प्रवर॥

प्रश्न 4
‘मुक्ति-दूत’ काव्य के तृतीय सर्ग की कथा का सार लिखिए। [2009, 12, 16, 17]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2010, 12, 13, 14, 15, 17]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर जलियाँवाला बाग की घटना का वर्णन कीजिए। [2009]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के किस सर्ग ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है और क्यों ? संक्षेप में अपने विचार व्यक्त कीजिए। [2011]
उत्तर
तृतीय सर्ग में अंग्रेजों की दमन-नीति के प्रति गाँधीजी का विरोध व्यक्त हुआ है। देश में अंग्रेजों । का शासन था और उनके अत्याचार चरम-सीमा पर थे। भारतीय बेबसी और अपमान की जिन्दगी जी रहे थे। केवल वही लोग सुखी थे, जो अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे। गाँधीजी भारत की दुर्दशा का कारण भली-भाँति समझते थे, इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के प्रति पहले नम्रता की नीति अपनायी। वे उनको जनता के दु:ख-दर्द बताकर कुछ विनम्र बनाना चाहते थे, परन्तु जब उनकी नीति से अंग्रेजों का हृदय नहीं बदला, तब उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध ‘सविनय सत्याग्रह’ के रूप में संघर्ष छेड़ दिया।

गाँधीजी ने प्रथम विश्व युद्ध के समय देशवासियों से अंग्रेजों की सहायता करने का आह्वान किया, जिससे अंग्रेजों का हृदय भारतीयों के प्रति कोमल हो, परन्तु युद्ध में विजय पाने के बाद अंग्रेजों ने ‘रॉलेट ऐक्ट पास करके अपना अत्याचारी शिकंजा और अधिक कड़ा कर दिया। गाँधीजी ने अंग्रेजों के इस काले कानून का उग्र विरोध किया। उनके साथ तेज बहादुर सपू, जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, जिन्ना, पटेल आदि नेता संघर्ष में सम्मिलित हो गये। इन्हीं दिनों जलियाँवाला बाग की अमानवीय घटना घटित हुई। वैशाखी के अवसर पर अमृतसर के इस बाग में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने के लिए जनता एकत्र हुई थी कि जनरल डायर नामक अंग्रेज सेनानायक ने निहत्थी भारतीय जनता पर अन्धाधुन्ध साढ़े सोलह सौ चक्र गोलियों की वर्षा कर उसे भून डाला। डायर की इस नृशंस पशुता का शिकार माताओं, विधवाओं, बिलखते बच्चों को भी होना पड़ा-

दस मिनट गोलियाँ लगातार, साढ़े सोलह सौ चक्र चलीं ।
जल मरे सहस्राधिक प्राणी, लाशों से संकुल हुई गली ॥
चंगेज, हलाकू, अब्दाली, नादिर, तैमूर सभी हारे ।
जनरल डायर की पशुता से, पशुता भी रोई मन मारे ।।

यह दृश्य देखकर गाँधीजी का हृदय दहल उठा और उनकी आँखों में खून उतर आया। इस युग-पुरुष ने क्रोध का जहर पीकर सभी को अमृतमय आशा प्रदान की और यह निश्चय कर लिया कि अंग्रेजों को अब भारत में अधिक दिनों तक नहीं रहने देंगे।

प्रश्न 5
‘मुक्ति-दूत’ काव्य के चतुर्थ सर्ग की घटनाओं का सार अपने शब्दों में लिखिए। [2010, 11]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का चौथा सर्ग गाँधीजी के कर्मयोग का प्रतीक है। सिद्ध कीजिए। [2010]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर चतुर्थ एवं पंचम सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। [2011]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथावस्तु को लिखिए। [2015, 16, 17]
उत्तर
चतुर्थ सर्ग में भारत की स्वतन्त्रता के लिए गाँधीजी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलनों का वर्णन है। जलियाँवाला बाग की नृशंस घटना हो जाने पर गाँधीजी ने अगस्त सन् 1920 ई० में देश की जनता को ‘असहयोग आन्दोलन’ के लिए आह्वान किया। लोगों ने सरकारी उपाधियाँ लौटा दीं, विदेशी सामान का बहिष्कार किया। छात्रों ने विद्यालय, वकीलों ने कचहरियाँ और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरियाँ छोड़ दीं। इस आन्दोलन से सरकार महान् संकट और निराशा के भंवर में फँस गयी।

असहयोग आन्दोलन को देखकर अंग्रेजों को निराशा हुई। उन्होंने भारतीयों पर ‘साइमन कमीशन थोप दिया। ‘साइमन कमीशन’ के आने पर गाँधीजी के नेतृत्व में सारे भारत में इसका विरोध हुआ। लाला लाजपत राय, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खान ने गाँधीजी के स्वर में स्वर मिलाकर साइमन कमीशन का विरोध किया। परिणामस्वरूप सरकार हिंसा पर उतर आयी। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर निर्मम लाठी-प्रहार हुआ, जिसके फलस्वरूप देशभर में हिंसक क्रान्ति फैल गयी। गाँधीजी देशवासियों को समझा-बुझाकर मुश्किल से अहिंसा के मार्ग पर ला सके।

गाँधीजी ने 79 व्यक्तियों को साथ लेकर नमक कानून तोड़ने के लिए डाण्डी की पैदल यात्रा की। अंग्रेजों ने गाँधीजी को बन्दी बनाया तो प्रतिक्रियास्वरूप देशभर में सत्याग्रह छिड़ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ में अंग्रेजों ने समझौता करना चाहा, परन्तु गाँधीजी की आजादी की माँग न मानने के कारण समझौता , भंग हो गया। नमक का कानून तोड़ने, डाण्डी यात्रा, सविनय अवज्ञा आन्दोलन व साइमन कमीशन के विरोध में गाँधीजी के अटूट साहस और नायकत्व को देखकर अंग्रेजी सरकार चौंक गयी। वह स्वयं अपने द्वारा किये गये अत्याचारों के प्रति चिन्तित थी।

बापू की एक ललकार पर देश भर में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन फैल गया। सब जगह एक ही स्वर सुनाई पड़ता था-‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’। स्थान-स्थान पर सभाएँ की गयीं, विदेशी वस्त्रों की होलियाँ जलायी गयीं, पुल तोड़ दिये गये, रेलवे लाइनें उखाड़ दी गयीं, थानों में आग लगा दी गयी, बैंक लुटने लगे, अंग्रेजों को शासन करना दूभर हो गया। उन्होंने दमन-चक्र चलाया तो गाँधीजी ने 21 दिन का अनशन’ कर दिया। इन्हीं दिनों कारागार से गाँधीजी की पत्नी की मृत्यु हो गयी। आजीवन पग-पग पर साथ देने वाली जीवन-संगिनी के वियोग से बापू की वेदना का समुद्र उमड़ पड़ा। गाँधीजी की आँखों से आँसू बहने लगे। वे इस अप्रत्याशित आघात से व्याकुल अवश्य हुए, परन्तु पत्नी के स्वर्गवास ने अंग्रेजों के विरुद्ध उनके मनोबल को और अधिक दृढ़ कर दिया। कवि इसका चित्रण करता हुआ कहता है–

बूढ़े बापू की आहों से, कारा की गूंजी दीवारें।
बन अबाबील चीत्कार उठीं, थर्राई ऊँची मीनारें।

प्रश्न 6
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के पञ्चम सर्ग या अन्तिम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2012, 13, 14]
उत्तर
मुक्ति-दूत के पञ्चम सर्ग में स्वतन्त्रता-प्राप्ति तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। कारागार में गाँधीजी के अस्वस्थ होने के कारण सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व की रजिनीति बदलने लगी। इंग्लैण्ड के चुनावों में मजदूर दल की सरकार बनी। फरवरी, सन् 1947 ई० में प्रधानमन्त्री एटली ने जून 1947 ई० से पूर्व अंग्रेजों के भारत छोड़ने की घोषणा की। भारत में हर्षोल्लास छा गया। तब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के नाम से अपना अलग राष्ट्र बनाने की माँग की। गाँधीजी को भारत के विभाजन से महान् दुःख हुआ। मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनाने की अपनी माँग पर अड़े रहे। नोआखाली और बिहार में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। गाँधीजी ने लोगों को समझा-बुझाकर शान्त किया। 15 अगस्त, सन् 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया और देश की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में आ गयी। गाँधीजी ने अनुभव किया कि उनका स्वतन्त्रता का लक्ष्य पूर्ण हो गया; अतः वे संघर्षपूर्ण राजनीति से अलग हो गये। उन्होंने कहा-

लड़ाई मेरी हुई समाप्त, विदा ओ जीवन के जंजाल।
नया गाँधी बन तुम्हें स्वदेश करेगा प्यार जवाहरलाल ॥

खण्डकाव्य के अन्त में गाँधीजी भारतवर्ष के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं और इसी के साथ खण्डकाव्य की कथा समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 7
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर काव्य के नायक (प्रमुख पात्र) महात्मा गाँधी का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2016, 18]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि गाँधीजी को मुक्ति-दूत क्यों कहा गया है ? उनके चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11, 14]
या
‘मुक्ति-दूत’ के आधार पर गाँधीजी के लोकोत्तर गुणों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य में मुक्ति-दूत कौन हैं ? उनके चरित्र की तीन विशेषताएँ बताइए।
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2015]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के पुरुष पात्र के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए। [2015, 17]
या
‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के उस पात्र का चरित्र-चित्रण लिखिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है। [2016, 17]
उत्तर
डॉ० राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित ‘मुक्ति-दूत’ नामक खण्डकाव्य में महात्मा गाँधी के पावन चरित्र का वर्णन किया गया है। गाँधीजी इस खण्डकाव्य के नायक हैं। प्रस्तुत काव्य के आधार पर महात्मा गाँधी के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं

(1) अलौकिक दिव्य पुरुष—कवि ने गाँधीजी को ईश्वर का अवतार बताया है जो पृथ्वी पर दु:खों का हरण करने के लिए यदा-कदा आते हैं। जिस श्रेणी में राम, कृष्ण, ईसा मसीह, पैगम्बर, बुद्ध, महावीर आदि हैं, उसी श्रेणी में कवि ने गाँधीजी को भी रखा है। भारत में अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ जाने पर देश को स्वतन्त्र कराने के लिए मानो स्वयं परमात्मा ने महात्मा गाँधी के रूप में जन्म लिया था। इस प्रकार मुक्ति–दूत के नायक महात्मा गाँधी साधारण पुरुष न होकर दिव्य पुरुष थे।

(2) महान् देशभक्त-गाँधीजी महान् देशभक्त थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को स्वतन्त्र कराने और जनता की सेवा में लगा दिया। उनका हृदय देशवासियों की दुर्दशा देखकर व्यथित हो उठा था। उन्होंने जीवन की अन्तिम श्वास तक देश-सेवा करने का जो प्रण किया था, उसे भली प्रकार निभाया तथा सारा सुख एवं वैभव त्यागकर अपना जीवन भारत को स्वतन्त्र कराने में लगा दिया। अन्त में वे अपने देश के लिए मंगल-कामना करते हैं

रहो खुश भेरे हिन्दुस्तान, तुम्हारा पथ हो मंगल-मूल।
सदा महके वन चन्दन चारु, तुम्हारी अँगनाई की धूल।

(3) हरिजनोद्धारक-गाँधीजी असहाय और दलितों के सहायक थे। उनकी दुर्दशा देखकर उनका हृदय वेदना से भर जाता था। संसार में वे सभी को ईश्वर की सन्तान मानते थे। उनका कहना था

जिन हाथों ने संसार गढ़ा, क्या उसने हरिजन नहीं गढ़े।
तब फिर यह कैसा छुआछूत, किस गीता में पाठ पढ़े॥

गाँधीजी साबरमती आश्रम में हरिजनों को भी रखते थे। आश्रम के प्रबन्धक और दान-दाताओं द्वारा विरोध करने पर गाँधीजी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया-

असवर्णो की बस्ती में भी, रह लँगा उनके संग भले।
करके मजदूरी खा लूंगा, सो नँगा सुख से वृक्ष तले॥
x                                    x                               x
मैं घृणा द्वेष की यह आँधी, न चलने दूंगा, न चलाऊँगा।
या तो खुद ही मर जाऊँगा, या इसको मार भगाऊँगा ॥

गाँधीजी के जीवन का मुख्य उद्देश्य हरिजनों का उद्धार करना ही था। कवि ने स्पष्ट शब्दों में कहा है-

दलितों के उद्धार हेतु ही, तुमने झण्डा किया बुलन्द।
तीस बरस तक रहे जूझते, अंग्रेजों से अथक अमन्द।

(4) हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक-गाँधीजी साम्प्रदायिक वैर-भाव के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्वतन्त्रता-संग्राम में हिन्दू-मुस्लिम दोनों को साथ लिया था। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम एकता का अथक प्रयत्न किया। नोआखाली में हिन्दू-मुस्लिमों के साम्प्रदायिक दंगों के समय उन्होंने प्राण हथेली पर रखकर शान्ति का प्रयास किया था। वे हिन्दू-मुस्लिम को एक डाली पर खिले फूल समझते थे–

मुझे लगते हिन्दू-मुस्लिम, एक ही डाली के दो फूल।
एक ही माटी के दो रूप, एक ही जननी के दो लाल॥

(5) आर्थिक समृद्धि के पोषक–गाँधीजी ने भारत की दीन-हीन दशा को सुधारने के लिए स्वदेशी वस्त्रों का निर्माण एवं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, खादी एवं चरखे को प्रोत्साहन, सादा जीवन और उच्च विचार की प्रेरणा, मादक द्रव्यों का त्याग आदि अनेक प्रयत्न किये। उनका कहना था

छोटा बच्चा भी भारत का है, एक अगर नंगा भूखा।
गाँधी को चैन कहाँ होगा, वह भी सो जाएगा भूखा॥

(6) मातृभक्त-गाँधीजी माँ के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति-भावना रखते हैं। माँ को स्वप्न में देखने पर वे सोचते हैं—’माँ जैसी कहीं नहीं ममता’ और माँ की प्रेरणा से ही देश-सेवा में जुट जाते हैं। गाँधीजी ने उदारता, दया, परोपकार, सत्यती आदि गुणों को अपनी माता से सीखा था।

(7) अहिंसा और करुणा की मूर्ति-गाँधीजी अहिंसा के पुजारी और करुणा को साकार मूर्ति थे। अंग्रेजों के संकट के समय भी वे उन कठोर शासकों से लाभ उठाना न्यायसंगत नहीं मानते थे। भारत की दयनीय दशा देखकर उनके हृदय में करुणा का सागर लहराने लगता था।

(8) भारत के मुक्ति-दूत-महात्मा गाँधी ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का कुशल नेतृत्व किया। उनके तीस वर्ष के सतत प्रयासों से भारत की मुक्ति का स्वप्न पूर्ण हुआ। उनके कुशल नेतृत्व में परतन्त्रता की श्रृंखला टूटकर छिन्न-भिन्न हो गयी और भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हो गया। अतः निश्चित ही वे सच्चे अर्थों में भारत के मुक्ति–दूत थे।

(9) सम्मान और पद के निर्लोभी-गाँधीजी का त्याग एवं बलिदान एक आदर्श है। उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए जीवनभर अनेक यातनाएँ भोगीं और संघर्ष करते रहे। भारत के स्वाधीन होने पर जब उनका लक्ष्य पूर्ण हो गया, तब उन्होंने संघर्षपूर्ण राजनीति से संन्यास ग्रहण कर लिया।

(10) मानवीय गुणों से भरपूर-गाँधीजी का चरित्र अनेक गुणों का भण्डार था। उनमें सत्यता, दया, परोपकारे, करुणा, अहिंसा तथा देशभक्ति के गुण कूट-कूटकर भरे थे। वे विश्व-बन्धुत्व तथा भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत थे तथा सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखने वाले थे।

इस प्रकार गाँधीजी देवतुल्य मानव, स्वतन्त्रता के अग्रदूत, हरिजनों के उद्धारक, भारत को आर्थिक समृद्धि के पोषक, निर्लोभी एवं अहिंसा-प्रेमी थे। वे सत्य, अहिंसा, करुणा, प्रेम, उदारता, सहानुभूति, समता, देश-प्रेम आदि मानवीय गुणों के साकार रूप थे। वास्तव में वे भारत में एक अलौकिक पुरुष के रूप में अवतरित हुए।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *