UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड).

कवि परिचय

प्रश्न 1.
सुमित्रानन्दन पन्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 10]
या
सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
श्री सुमित्रानन्दन पन्त का सम्पूर्ण काव्य आधुनिक काव्य-चेतना का प्रतीक है। ये ऐसे कवि हैं। जो हिन्दी-साहित्य-कानन को झरने के समान कल-कल निनाद से मुखरित कर नवजीवन प्रदान करते हैं। इन्होंने अपने काव्य की लय-ताल में मानव-जीवन की लय-ताल को निबद्ध करने का प्रयास किया है। इनके काव्य में धर्म, दर्शन, नैतिक एवं सामाजिक मूल्य, प्रकृति की सुकुमारता-उद्दण्डता आदि एक साथ देखी जा सकती है। वास्तव में इनका काव्य; काव्य-रसिकों के गले को कण्ठहार है। |

जीवन-परिचय–सुकुमार भावनाओं के कवि और प्रकृति के चतुर-चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई० को प्रकृति की सुरम्य गोद में अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० गंगादत्त पन्त था। इनके जन्म के छः घण्टे के बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया था; अतः इनका लालन-पालन पिता और दादी के वात्सल्यं की छाया में हुआ। पन्त जी ने अपनी शिक्षा का प्रारम्भिक चरण अल्मोड़ा में पूरा किया। यहीं पर इन्होंने अपना नाम गुसाईंदत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन रखा। इसके बाद वाराणसी के जयनारायण हाईस्कूल से स्कूल-लीविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की और जुलाई, 1919 ई० में इलाहाबाद आये और म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर इन्होंने बी० ए० की परीक्षा दिये बिना ही कॉलेज त्याग दिया था। इन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला और हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। प्रकृति की गोद में पलने के कारण इन्होंने अपनी सुकुमार भावना को प्रकृति के चित्रण में व्यक्त किया। इन्होंने प्रगतिशील विचारों की पत्रिका रूपाभा’ का प्रकाशन किया। सन् 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन से प्रेरित होकर ‘लोकायन’ नामक सांस्कृतिक पीठ की स्थापना की और भारत-भ्रमण हेतु निकल पड़े। सन् 1950 ई० में ये ऑल इण्डिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन् 1976 ई० में भारत सरकार ने इनकी साहित्य-सेवाओं को ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। इनकी कृति ‘चिदम्बरा’ पर इनको ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 28 दिसम्बर, सन् 1977 ई० को इस महान् । साहित्यकार ने इस भौतिक संसार से सदैव के लिए विदा ले ली और चिरनिद्रा में लीन हो गये। |

रचनाएँ-पेन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने कविता के अतिरिक्त नाटक, उपन्यास और कहानियों की भी रचना की है, परन्तु काव्य ही इनका प्रधान क्षेत्र रहा है। अपने दीर्घकालिक काव्य-जीवन में इन्होंने हिन्दी काव्य-जगत को अनेक कृतियों प्रदान की हैं जो निम्नलिखित हैं

(1) वीणा—यह पन्त जी की प्रथम काव्य-पुस्तक है। इसमें प्रकृति-निरीक्षण, अनुभूति और कल्पनाओं का सुन्दर रूप दिखाई देता है।
(2) ग्रन्थि-यह असफल प्रेम की दुःखपूर्ण गाथा का काव्य है। इसमें वियोग श्रृंगार की प्रधानता है।
(3) पल्लव–यह कल्पना-प्रधान काव्य है। इसमें प्रकृति-निरीक्षण और ऊँची कल्पनाओं के दर्शन । होते हैं। इसमें ‘वसन्तश्री’,’परिवर्तन’; ‘मौन-निमन्त्रण’, ‘बादल’ आदि श्रेष्ठ कविताएँ संकलित हैं।
(4) गुंजन-इसमें कवि का मन प्रकृति से हटकर आत्मचित्रण की ओर लग गया है। नौकाविहार’ इस संकलन की श्रेष्ठ कविता है।
(5) युगान्त,
(6) युगवाणी,
(7) ग्राम्या—इन काव्यों में कवि पर गाँधीवाद और समाजवाद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
(8) लोकायतन-इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है। इसमें ग्राम्य-जीवन और जनभावना को स्वर प्रदान किया गया है।
पन्त जी की अन्य रचनाएँ हैं—पल्लविनी, अतिमा, युगपथ, ऋता, स्वर्णकिरण, चिदम्बरा, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, शिल्पी, स्वर्णधूलि आदि।

साहित्य में स्थान-सुन्दर, सुकुमार भावों के चतुर-चितेरे पन्त ने खड़ी बोली को ब्रजभाषा जैसा माधुर्य एवं सरसता प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। पन्त जी गम्भीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के सहज आस्थावान् कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय की कल्पना की है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि “पन्त जी हिन्दी कविता के श्रृंगार हैं, जिन्हें पाकर माँ-भारती कृतार्थ हुई।

पद्यांशों की सन्दर्भ व्याख्या चींटी

प्रश्न 1.
चींटी को देखा?
वह सरल, विरल, काली रेखा
तम के तागे-सी जो हिल-डुल,
चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल
वह है पिपीलिका पाँति !
देखो ना, किस भाँति ।
काम करती वह सतत !
कन-कन करके चुनती अविरत ! [2012]
गाय चराती,
धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती,
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना सँवारती,
घर आँगन, जनपथ बुहारती ।
उत्तर
[विरल = जो घंनी न हो। तम = अन्धकार। लघुपद = छोटे-छोटे पैरों से। पल-पल = थोड़ी-थोड़ी देर में। पिपीलिका = चींटी। सतत = निरन्तर। अविरत = बिना रुके। अरि = शत्रु। बुहारती = साफ करती।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यावतरण प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘युगवाणी’ । काव्य-संग्रह की चींटी’ शीर्षक कविता से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ” किया गया है।

प्रसंग-इस अवतरण में कवि ने चींटी जैसे लघु प्राणी की परिश्रमशीलता का वर्णन करके मनुष्य को उससे प्रेरणा प्राप्त करने का सन्देश दिया है।

व्याख्या-कवि प्रश्न करता है कि क्या तुमने कभी चींटी को ध्यानपूर्वक देखा है? चीटियों की पंक्ति एक सरल (सीधी) काली और विरल रेखा के समान प्रतीत होती है। वह अपने छोटे-छोटे पैरों से प्रति क्षण चलती रहती है। चींटियाँ जब मिलकर चलती हैं तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे कोई पतलां काला धागा हिल-डुल रहा हो। कवि आगे कहता है कि वह चींटियों की पंक्ति (कतार) है। तुम ध्यान से देखो कि वह किस प्रकार निरन्तर चलती रहती है। वह निरन्तर अपने काम में जुटी रहती है और अपने व अपने परिवार के लिए छोटे-छोटे उपयोगी कणों को बिना रुके लगातार चुनती रहती है।

इतना ही नहीं, उसका भी घर-समाज है। यह गाय चराती है और उन्हें धूप खिलाती है। प्राणिशास्त्रियों के अनुसार चींटियों में भी गायें होती हैं। वे अपने बच्चों की देखभाल करती हैं, अपने शत्रुओं से निर्भय होकर लड़ती हैं, अपनी सेना सजाती हैं तथा घर, आँगन और रास्ते को साफ करती प्रतीत होती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. इन पंक्तियों में चींटी की श्रमशीलता (कर्मठता) पर प्रकाश डाला गया है।
  2. कवि चींटी के माध्यम से मनुष्य को सतत कर्म करने की प्रेरणा दे रहा है। कवि के अनुसार चीटियों का लघु स्वरूप और मिल-जुलकर कार्य करने की प्रवृत्ति यह दर्शाती है कि शारीरिक लघुता व्यक्ति की कार्य-क्षमता पर अधिक प्रभावी नहीं हो सकती है।
  3. भाषा-सरल साहित्यिक खड़ी बोली।
  4. शैलीवर्णनात्मक।
  5. रस-वीर रस (कर्मवीरता के कारण)।
  6. गुण-ओज।
  7. अलंकार-तम के तागेसी जो हिल-डुल’ में उपमा और अनुप्रास; ‘कन-कन’ में पुनरुक्तिप्रकाश।
  8. भावसाम्य–जिस प्रकार पन्त ने चींटी के माध्यम से सदैव कर्मरत रहने की प्रेरणा दी है, वैसे ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी सतत कर्मशील बने रहने पर बल दिया है

नर हो, न निराश करो मन को।
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो।

प्रश्न 2.
चींटी है प्राणी सामाजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक !
देखा चींटी को ?
उसके जी को ?
भूरे बालों की सी कतरन,
छिपा नहीं उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भय
विचरण करती, श्रम में तन्मय,
वह जीवन की चिनगी अक्षय।
वह भी क्या देही है, तिल-सी ?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल-सी !
दिन भर में वह मीलों चलती,
अथक, कार्य से कभी न टलती।
उत्तर
[ श्रमजीवी = श्रम करके जीने वाली। चिनगी = चिंगारी। अक्षय = कभी नष्ट न होने वाली। अथक = बिना थके।]।

सन्दर्भ--पूर्ववत्।।

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने चींटी के गुणों और उसकी क्रियाशीलता का वर्णन किया है।

व्याख्या-चींटी एक सामाजिक प्राणी है। चींटी का अपना एक समाज होता है और उसी के साथ वह हिल-मिलकर नियमपूर्वक रहती है। वह कठोर परिश्रमी जीव है और उसमें एक अच्छे नागरिक के सभी गुण विद्यमान हैं।

कवि कहता है कि तुमने चींटी को ध्यान से देखा होगा। वह अत्यधिक लघु प्राणी है, परन्तु उसका । हृदय एवं आत्मबल अत्यन्त विशाल है। चींटियों की पंक्ति भूरे बालों की कतरन के समान दिखाई देती है। उसकी लघुता को सभी जानते हैं, लेकिन उसके हृदय में असीम साहस है। वह सारी पृथ्वी पर, जहाँ चाहती है, निर्भय होकर विचरण करती है। उसे किसी भी स्थान पर घूमने में भय नहीं लगता है। वह लगातार अपने श्रम से, भोजन को एकत्र करने के काम में तल्लीन होकर जुटी रहती है। चींटी श्रम की साकार मूर्ति है। वह जीवन की कभी नष्ट न होने वाली चिंगारी है। चींटी एक अतिलघु प्राणी है, परन्तु उसमें जीवन की सम्पूर्ण ज्योति जगमगाती है।

कवि कहता है कि उसका शरीर बड़ा नहीं, अपितु वह तिल के समान अत्यन्त छोटा है। इतनी छोटी होते हुए भी चींटी शक्ति से भरी हुई इधर-उधर घूमती रहती है। दिनभर में वह कई मील की लम्बी यात्रा पूरी करती है, फिर भी वह कभी थकती नहीं है और निरन्तर अपने काम में जुटी रहती है। धूप, छाँव, शीत, वर्षा में भी वह अपना कार्य करने से नहीं चूकती है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. पन्त जी ने चींटी जैसे लघु प्राणी में भी आदर्श सामाजिक प्राणी के गुण देखे हैं।
  2. कवि तुच्छ दिखने वाले जीवन में भी महानता के तत्त्व हूँढ़ने में सक्षम है।
  3. भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
  4. शैली-वर्णनात्मक।
  5. रस-वीर रस (कर्मवीरता के कारण)।
  6. अलंकार-‘भूरे बालों की सी कतरन’ में उपमा, ‘रिलमिल-झिलमिल’ में अनुप्रास।
  7. गुण-ओजमिश्रित प्रसाद।
  8. भावसाम्य-जिस प्रकार चींटी धूप-छाँव, शीत-वर्षा की चिन्ता किये बिना आजीवन श्रमशील बने रहने की प्रेरणा देती है, उसी प्रकार रामनरेश त्रिपाठी भी मृत्युपर्यन्त कर्म करने के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं

कर्म तुम्हारा धर्म अटल हो,
कर्म तुम्हारी भाषा।
हो सकर्म ही मृत्यु तुम्हारे
जीवन की अभिलाषा।

चंद्रलोक में प्रथम बार
प्रश्न 1.
चंद्रलोक में प्रथम बार,
मानव ने किया पदार्पण,
छिन्न हुए लो, देश काल के,
दुर्जय बाधा बंधन।
दिग-विजयी मनु-सुत, निश्चय,
यह महत् ऐतिहासिक क्षण,
भू-विरोध हो शांत,
निकट आये सब देशों के जन। [2015]
युग-युग का पौराणिक स्वप्न
हुआ मानव का संभव,
समारंभ शुभ नए चन्द्र-युग का
भू को दे गौरव।।
उत्तर
[पदार्पण = पैर रखना। दुर्जय = कठिनाई से जीते जा सकने वाले। बाधा = रुकावट, अड़चन। दिग्-विजयी = दिशाओं को जीतने वाला। मनु-सुत = मनुष्य। महत् = बड़ा। भू-विरोध = पृथ्वी पर दिखाई देने वाले झगड़े। पौराणिक = पुराना। समारंभ = प्रारम्भ।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘ऋता’ नामक काव्य-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ‘चंद्रलोक में प्रथम बार’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं।

[विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले सभी पद्यांशों की व्याख्या में यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने मानव के चन्द्रमा पर पहुँचने की ऐतिहासिक घटना के महत्त्व को। व्यक्त किया है। यहाँ कवि ने उन सम्भावनाओं का भी वर्णन किया है, जो मानव के चन्द्रमा पर पैर रखने से साकार होती प्रतीत हो रही हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब चन्द्रमा पर प्रथम बार मानव ने अपने कदम रखे तो ऐसा करके उसने देश-काल के उन सारे बन्धनों, जिन पर विजय पाना कठिन माना जाता था, छिन्न-भिन्न कर दिया। मनुष्य को यह आशा बँध गयी कि इस ब्रह्माण्ड में कोई भी देश और ग्रह-नक्षत्र अब दूर नहीं हैं। यह निश्चय ही मनु के पुत्रों (मनुष्यों) की दिग्विजय है। यह ऐसा महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण है कि अब सभी देशों के निवासी मानवों को परस्पर विरोध समाप्त करके एक-दूसरे के निकट आना चाहिए और प्रेम से रहना चाहिए। यह सम्पूर्ण विश्व ही अब एक देश में परिवर्तित हो गया है। सभी देशों के मनुष्य अब एक-दूसरे के। निकट आएँ, यही कवि की आकांक्षा है।

मनुष्य का युगों-युगों से चन्द्रमा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। चन्द्र-विजय से युगों-युगों का पौराणिक स्वप्न अब सम्भव हो गया है। चन्द्रमा के सम्बन्ध में की जाने वाली मानव की मनोरम कल्पनाएँ अब साकार हो उठी हैं। पृथ्वीवासियों को गौरवान्वित करके अब नये चन्द्र युग का कल्याणकारी आरम्भ हुआ है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत कविता में कवि ने दार्शनिक विचारों की प्रस्तुति वैज्ञानिक पृष्ठभूमि में की है।
  2. भाषा–साहित्यिक खड़ी बोली
  3. शैली–प्रतीकात्मक
  4. रस-वीर।
  5. छन्द– तुकान्त-मुक्त।
  6. गुण-ओज।
  7. अलंकार–अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश।
  8. भावसाम्यसंस्कृत के अधोलिखित श्लोक जैसी भावना ही कवि ने इन पंक्तियों में व्यक्त की है-

अयं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम्॥

प्रश्न 2.
फहराए ग्रह-उपग्रह में
धरती का श्यामल-अंचल,
सुख संपद् संपन्न जगत् में
बरसे जीवन-मंगल।
अमरीका सोवियत बने ।
नव दिक् रचना के वाहन
जीवन पद्धतियों के भेद ।
समन्वित हों, विस्तृत मन।
उत्तर
[ ग्रह = सूर्य की परिक्रमा करने वाले तारे। इनके नाम हैं-पृथ्वी, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, प्लूटो, नेप्च्यून, यूरेनस। (प्रस्तुत कविता के अनुसार नौ ग्रह हैं; परन्तु वर्तमान में केवल आठ ग्रह माने गये हैं। प्लूटो को क्षुद्र ग्रह माना गया है)। उपग्रह = किसी बड़े ग्रह के चारों ओर घूमने वाले छोटे ग्रह; जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा। श्यामल = हरा-भरा। संपद् = सम्पत्ति, वैभव। मंगल = कल्याण। नव दिक् = नयी दिशाएँ। रचना = सृजन, निर्माण। पद्धति = रास्ता। समन्वित = मिले हुए। विस्तृत = विशाल।]

व्याख्या-कवि का कथन है कि मैं अब यह चाहता हूँ कि ब्रह्माण्ड के ग्रहों-उपग्रहों में इस पृथ्वी का श्यामलं अंचल फहराने लगे। तात्पर्य यह है कि मनुष्य अन्य ग्रहों पर भी पहुँचकर वहाँ पृथ्वी जैसी हरियाली और जीवन का संचार कर दे। सुख और वैभव से युक्त इस संसार में मानव-जीवन के कल्याण की वर्षा हो; अर्थात् सम्पूर्ण संसार में कहीं भी दु:ख और दैन्य दिखाई न पड़े।

अमेरिका और सोवियत रूस नयी दिशाओं की रचना करें, क्योंकि अन्तरिक्ष विज्ञान में यही देश सर्वाधिक प्रगति पर हैं। कवि का कहना है कि विश्व में प्रत्येक देश की संस्कृति और सभ्यता भिन्न-भिन्न है। तथा अलग-अलग जीवन-पद्धतियाँ हैं। इनकी भिन्नता समाप्त होनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि सभी जीवन-पद्धतियाँ आपस में मिलकर एक हो जाएँ और मन की संकुचित भावना का अन्त कर लोग उदारचेता बने तथा विश्व-मानव में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का विकास हो।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. कवि चारों ओर कल्याणमय जीवन के प्रसार की कामना करता है।
  2. भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली
  3. शैली–प्रतीकात्मक।
  4. रस-वीर।
  5. छन्द-तुकान्तमुक्त।
  6. गुण-ओज।
  7. अलंकार-‘फहराये ग्रह-उपग्रह में धरती का श्यामल अंचल में रूपक तथा अनुप्रास।

प्रश्न 3.
अणु-युग बने धरा जीवन हित
स्वर्ण-सृजन को साधन,
मानवता ही विश्व सत्य
भू राष्ट्र करें आत्मार्पण।
धरा चन्द्र की प्रीति परस्पर
जगत प्रसिद्ध, पुरातन,
हृदय-सिन्धु में उठता।
स्वर्गिक ज्वार देख चन्द्रानन । [2012, 16]
उत्तर
[ धरा = पृथ्वी। सृजन = निर्माण। आत्मार्पण = आत्म-समर्पण। चन्द्रानन = चन्द्रमा का मुख।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में यह कामना की गयी है कि अणु-शक्ति की परख और प्रयोग करने वाला यह वैज्ञानिक युग, मानव-जीवन के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो।। |

व्याख्या-कवि का कहना है कि विज्ञान का सम्पूर्ण विकास मानव-जीवन के कल्याण के लिए ही होना चाहिए। परमाणु-शक्ति मानव-जीवन के विनाश का साधन न होकर पृथ्वी पर स्वर्ग के निर्माण का साधन बननी चाहिए। विश्व का एकमात्र सत्य है—मानवता की भावना। इसके समक्ष समग्र पृथ्वी के राष्ट्र को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए; अर्थात् सम्पूर्ण विश्व एक राष्ट्र बने और सम्पूर्ण देश मानवता की ही बात सोचें। वे अणुशक्ति से एक-दूसरे के विनाश की बात न सोचें, वरन् उसे मानवता के हित में लगाएँ।

चन्द्रमा और पृथ्वी का प्रेम जगत् प्रसिद्ध है और बहुत पुराना है; क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी का ही एक अंग है। इसीलिए पृथ्वी के सागर रूपी हृदय में चन्द्रमा के मुख को देखकर ज्वार उठा करता है। तात्पर्य यह है। कि चन्द्रविजये की सार्थकता तभी है जब वैज्ञानिक उपलब्धियों को मानव-हित में लगाया जाए।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. कवि विज्ञान की उन्नति को मानवता के विकास के लिए उपयोगी मानता है।
  2. पूर्णमासी के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के निकट आ जाता है तो समुद्र का पानी चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से ऊपर को उठ जाया करता है। यही ज्वार कहलाता है। कवि ने इस भौगोलिक सत्य की अति उत्कृष्ट साहित्यिक अभिव्यक्ति की है।
  3. भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
  4. शैली–प्रतीकात्मक एवं भावात्मक।
  5. रस-शान्त।
  6. छन्द-तुकान्त-मुक्त।
  7. गुण–प्रसाद।
  8. अलंकार-स्वर्ग-सृजन का साधन में अनुप्रास तथा हृदय-सिन्धु’ में रूपका
  9. भावसाम्य-विज्ञान की शक्ति मनुष्य द्वारा नियन्त्रित है और मनुष्य अपनी इच्छानुसार इसका उपयोग कर सकता है; यह भाव अन्यत्र भी व्यक्त किया गया है

शक्ति शक्ति है बुरी या अच्छी कभी नहीं होती है।
एक नियन्त्रक मानव, इसके ही विचार ढोती है।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
(क) तम के तागे सी जो हिल-डुल
चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल ।
(ख) भूरे बालों की सी कतरन,
छिपां नहीं उसका छोटापन,
(ग) सुख संपद् सम्पन्न जगत् में
बरसे जीवन-मंगल ।
उत्तर
(क) उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश,
(ख) उपमा,
(ग) अनुप्रास।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों से उपसर्ग और शब्द को पृथक्-पृथक् करके लिखिए-
सुनागरिक, अक्षय, समारम्भ, उपग्रह।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड) 1

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पदों में से प्रत्ययों को अलग करके लिखिए-
सामाजिक, छोटापन, पौराणिक।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड) 2

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 सुमित्रानन्दन पन्त (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *