UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 13 श्री श्यामनारायण पाण्डेय (काव्य-खण्ड)
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कवि-परिचय
प्रश्न 1.
श्री श्यामनारायण पाण्डेय का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म श्रावण कृष्ण पंचमी को संवत् 1964 ( ईसवी सन् 1907 ई० ) में डुमराँव गाँव, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के बाद श्यामनारायण पाण्डेय संस्कृत अध्ययन के लिए काशी (वर्तमान बनारस) आये। कोशी से वे साहित्याचार्य की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। वे स्वभाव से सात्विक, हृदय से विनोदी और आत्मा से परम निर्भीक व्यक्ति थे। पाण्डेय जी के स्वस्थ-पुष्ट व्यक्तित्व में शौर्य, सत्त्व और सरलता का अनूठा मिश्रण था। उनके संस्कार द्विवेदीयुगीन, दृष्टिकोण उपयोगितावादी और भाव-विस्तार मर्यादावादी थे। लगभग दो दशकों से ऊपर वे हिन्दी कवि-सम्मेलनों के मंच पर अत्यन्त लोकप्रिय एवं समादृत रहे। उन्होंने आधुनिक युग में वीर काव्य की परम्परा को खड़ी बोली में प्रतिष्ठित किया। यह महान कवि रूपी सूर्य सन् 1991 में अस्त हो गया।
रचनाएँ-श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
- हल्दी घाटी’ (1937-39 ई०)।
- जौहर’ (1939-44 ई०)
- ‘तुमुल’ (1948 ई०)। यह पुस्तक ‘त्रेता के दो वीर’ नामक खण्डकाव्य का ही परिवर्धित संस्करण है।
- रूपांतर’ (1948 ई०)
- ‘आरती’ (1945-46 ई०)
- ‘जय हनुमान’ (1956 ई०) उनकी प्रमुख प्रकाशित काव्य पुस्तकें हैं।
- ‘माधव’, ‘रिमझिम’, ‘आँसू के कण’ और ‘गोरा वध’ उनकी प्रारम्भिक लघु कृतियाँ हैं।
- ‘परशुराम’ अप्रकाशित काव्य है तथा वीर सुभाष’ रचनाधीन ग्रंथ है। श्यामनारायण पाण्डेय के संस्कृत में लिखे कुछ काव्य-ग्रंथ भी अप्रकाशित ही हैं।
साहित्य में स्थान–श्यामनारायण पाण्डेय वीर रस के अद्भुत कवियों में से एक थे। वे काशी के प्रसिद्ध साहित्याचार्य थे। उन्होंने चार महाकाव्य रचे, जिनमें हल्दीघाटी’ और ‘जौहर’ विशेष चर्चित हुए। ‘हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप के जीवन और जौहर’ में रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। हल्दीघाटी पर श्यामनारायण पाण्डेय को ‘देव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण श्यामनारायण पाण्डेय कवि सम्मेलनों में बड़े लोकप्रिय थे।
पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या
हल्दीघाटी
प्रश्न 1.
मेवाड़-केसरी देख रहा,
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़-दौड़ करता था रण,
वह मान-रक्त का प्यासा था।
चढ़कर चेतक पर घूम-घूम,
करता सेना रखवाली था।
ले महामृत्यु को साथ-साथ
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।
उत्तर
[ मेवाड़-केसरी = मेवाड़ का राजा राणा प्रताप। तमाशा = दृश्य। कपाली = काल का स्वामी] ।
सन्दर्भ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित तथा ओजस्वी वाणी के कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘हल्दीघाटी’ शीर्षक से उद्धृत हैं।
[विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले सभी पद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि श्यामनारायण पाण्डेय जी ने हल्दीघाटी की युद्धभूमि में महाराणा प्रताप द्वारा दिखाए गए रण-कौशल का दृष्टांत वर्णन किया है।
व्याख्या-उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बताया है कि हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ केसरी अर्थात् राणा प्रताप केवल युद्ध का तमाशा ही नहीं देख रहे थे, यद्यपि वह दौड़-दौड़कर इस प्रकार युद्ध कर रहे थे मानो वह मानसिंह (हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह शत्रु सेना का नेतृत्व कर रहा था) के रक्त के प्यासे हों अर्थात् राणा प्रताप का रण-कौशल इतना भयानक था कि वह अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मानसिंह की सेना परे रक्तपिपासु बनकर टूट पड़े थे।
राणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर अपनी सेना की रखवाली करते हुए इस प्रकार युद्ध कर रहे थे जैसे मानो अपने साथ मृत्यु का प्रलयकारी भीषण रूप लिए साक्षात् महाकाल युद्धभूमि में आ धमका हो।
तात्पर्य यह है कि हल्दीघाटी के युद्ध में जब शत्रुसेना का नेतृत्व करता हुआ मानसिंह युद्धभूमि में राणा प्रताप के सामने आया तो राणा प्रताप ने मानसिंह के नेतृत्व में भेजी गयी मुगल सेना में उथल-पुथल मचा दी।
काव्यगत सौन्दर्य–
- हल्दीघाटी की युद्धभूमि का दृष्टांत वर्णन हुआ है।
- रस–वीर रस।
- शैली-ओजपूर्ण।
- छन्द-मुक्त, तुकान्त।
- अलंकार–श्लेष, अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास।
- भावसाम्य-देशभक्त माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी इन पंक्तियों में ऐसा ही भाव व्यक्त किया है-
बलि होने की परवाह नहीं, मैं हूँ कष्टों का राज रहे,
मैं जीता, जीता, जीता हूँ, माता के हाथ स्वराज रहे।
प्रश्न 2.
चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट-काट,
करता था सफल जवानी को।
सेना-नायक राणा के भी,
रण देख देखकर चाह भरे।
मेवाड़ सिपाही लड़ते थे।
दूने तिगुने उत्साह भरे॥
उत्तर
[ पानी = जोश, प्रतिष्ठा। रण = युद्धस्थल। चाह = लालसा।]
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में राणा प्रताप के युद्ध-कौशल और उनके पराक्रम का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि-कह रहे हैं कि जब राणाप्रताप युद्धभूमि में तलवार उठाकर चेतक पर सवार होकर युद्ध करते थे तो ऐसा प्रतीत होता था मानो वह अपने अन्दर भूतल में स्थित पानी अर्थात् असीम शौर्य को धारण कर रहे हों अर्थात् युद्ध करते हुए राजा के अन्दर असीमित साहस दिखाई पड़ रहा था। वह ऐसा पराक्रमी वीर था जो शत्रुसेना के सिर काट-काटकर अपनी जवानी का वास्तविक परिचय देता था। अर्थात् अपनी जवानी के कारण सफलता भी प्राप्त कर रहे थे।
राणा प्रताप की सेना के कुशल सैनिक राणा प्रताप का रणकौशल देख-देखकर और भी उत्साहित । होकर युद्ध कर रहे थे। वे राणा प्रताप के पराक्रम को देखकर दोगुने-तिगुने उत्साह के साथ युद्ध कर रहे थे।
काव्यगत सौन्दर्य-
- कवि ने देश के गौरवपूर्ण इतिहास का वर्णन किया है।
- रस-वीर रस।
- छन्द-मुक्त, तुकान्त।
- अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश, श्लेष, अतिशयोक्ति।
- शैली–ओजपूर्ण।
- भावसाम्य-हिन्दी के महान कवि जयशंकर प्रसाद ने भी अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से स्वदेश हित में ऐसे ही भाव व्यक्त किए हैं—
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ, विकीर्ण दिव्य दाह सी,
सपूत मातृभूमि के, रुको न शूर साहसी,
अराति सैन्य-सिन्धु में, सुवाड़वाग्नि से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
प्रश्न 3.
क्षण मार दिया कर कोड़े से,
रण किया उतर कर घोड़े से।
राणा रण कौशल दिखा-दिखा,
चढ़ गया उतर कर घोड़े से॥ ।
क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
राणा-कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने का यह
रण चण्डी जीभ पसार बढी॥
उत्तर
[ कर = हाथ। रण कौशल = युद्धभूमि की कुशलता। भीषण = भयानक। चण्डी = दुर्गा, काली। )
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में राणा प्रताप के रणकौशल का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-हल्दी घाटी की युद्धभूमि में कवि राणा प्रताप के रण-कौशल को देखकर चकित है। वह उसके कौशल को देखकर कहता है कि राणा प्रताप इस तरह युद्ध कर रहा था कि कहीं वह शत्रु सेना में हाथ के कोड़े से हमला कर देता तो कहीं, घोड़े से उतरकर युद्ध करने लगता था। उसका घोड़े से कहीं उतरकर और कहीं चढ़कर युद्ध करनी देखते बनता था।
राणा प्रताप युद्ध स्थल में अपनी तलवार से शत्रुसेना पर जिस ओर हमला कर देता वहीं हाहाकार मच जाता था। शत्रु सेना में इस तरह शोर मच रहा था मानो वहाँ राणा प्रताप नहीं, बल्कि स्वयं महाकाली खड्ग लेकर रक्त पीने के लिए अपनी जीभ पसारकर बढ़ रही हो।
काव्यगत सौन्दर्य-
- राणा प्रताप की वीरता का अद्भुत वर्णन हुआ है।
- रस–वीर।
- छन्द-मुक्त, तुकान्त।
- शैली-ओजपूर्ण।
- अलंकार-अतिशयोक्ति, उत्प्रेक्षा।
- भावसाम्य-कवि सोहनलाल द्विवेदी जी ने भी स्वतन्त्रता की खातिर ऐसे ही भावों को व्यक्त किया है—
अशेष रक्त तोल दो
स्वतन्त्रता का मोल दो
कड़ी युगों की खोल दो
डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
प्रश्न 4.
वह हाथी दल पर टूट पड़ा,
मानो उस पर पवि छूट पड़ा।
कट गई वेग से भू, ऐसा
शोणित का नाला फूट पड़ा।
जो साहस कर बढ़ता उसको,
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ-बीच फेंक,
बरछे पर उसको रोक दिया।
उत्तर
[ दल = समूह। पवि = भाला। शोणित = रक्त, लहू।]
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने महाराणा प्रताप के असीम पराक्रम का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि राणा प्रताप शत्रुसेना के हाथीदल पर इस भाँति हमला करता था कि मानों पूर्ण वेग से भाले का वार किया गया हो और उसके वेग से हाथीदल से इस भाँति लहू की धारा फूट ५ . पड़ी जैसे भूमि भाले के प्रहार से फट पड़ी हो और उससे जल का वेगपूर्ण नद-सा फूट पड़ा हो।
कवि कहता है कि यदि कोई शत्रु राणा पर वार करने के लिए साहस करके आगे बढ़ता तो वह केवल राणा की तिरछी निगाह के मात्र से ही वहीं का वहीं रूक जाता था और यदि कोई शत्रु सैनिक हमला भी कर देता तो राणाप्रताप उसे नभ के बीचोंबीच हवा में ही अपने भाले से रोक देता था।
काव्यगत सौन्दर्य-
- राणा प्रताप की वीरता का अद्भुत चित्रण हुआ है।
- रस-वीर।
- छन्द-मुक्त, तुकान्त।
- शैली–ओजपूर्ण।
- भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
- अलंकार-उपमा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति।
- भावसाम्य-महाकवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता का वर्णन इन पंक्तियों में किया है–
भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी-सी,
खेदि-खेदि खाती दीह दारुन दलन के।
प्रश्न 5.
क्षण उछल गया अरि घोड़े पर,
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर।
बैरी दल से लड़ते-लड़ते,
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।
क्षण में गिरते रुण्डों से,
मदमस्त गजों के शुण्डों से।
घोड़ों के विकल वितुण्डों से,
पट गई भूमि नरमुण्डों से।।
उत्तर
[ अरि = शत्रु। रुण्ड = सिरविहीन शरीर। वितुण्ड = हाथी।] ।
प्रसंग—प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने राणा प्रताप के शौर्य से युद्धभूमि में फैले हाहाकार का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि यदि कोई शत्रु राणा प्रताप पर हमला करने के लिए उठा भी तो वह वहीं धाराशायी हो गया अर्थात् राणा प्रताप द्वारा उसे घोड़े पर ही ढेर कर दिया गया। राणा प्रताप के पराक्रम का बयान करते हुए कवि कहता है कि वह शत्रु सेना से लड़ते-लड़ते कभी-कभी अपने घोड़े पर खड़ा भी हो जाता, इस प्रकार प्रचंड शत्रुओं के विशाल दलों को वह खदेड़-खदेड़ उन पर हमला करता था। राणाप्रताप के हमले से शत्रुओं के धड़ हाथियों की सँड़ों के समान गिर रहे थे। हाथियों और घोड़ों की भयंकर विकलता के कारण युद्धभूमि नरमुण्डों से पटी हुई दिखाई पड़ रही थी।
काव्यगत सौन्दर्य-
- कवि के माध्यम से राणा प्रताप के पराक्रम का बड़ा ही ओजस्वी वर्णन किया गया है।
- भाषा-खड़ी बोली।
- रस-वीर।
- अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश, अतिशयोक्ति।
- शैली-ओजपूर्ण।
- भावसाम्य-महाकवि भूषण द्वारा वीर रस का ऐसा ही वर्णन किया गया है-
निकसत म्यान ते मयूखें अलैभानु कैसी,
फारें तमतोम से गयंदन के जाल को।
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल को।
प्रश्न 6.
ऐसा रण, राणा करता था,
पर उसको था सन्तोष नहीं।
क्षण-क्षण आगे बढ़ता था वह,
पर कम होता था रोष नहीं।।
कहता था लड़ता मान कहाँ,
मैं कर लें रक्त-स्नान कहाँ?
जिस पर तय विजय हमारी है,
वह मुगलों का अभिमान कहाँ?
उत्तर
[ रण = युद्ध। रोष = गुस्सा, क्रोध। अभिमान = घमण्ड।]
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने राणा प्रताप द्वारा मुगल सेना के छक्के छुड़ाने का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि राणा प्रताप के रण कौशल के बारे में कहता है कि राणा इस तरह भयानक युद्ध करता था कि वह कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेता था। वह युद्धभूमि में जैसे-जैसे आगे बढ़ता था, वैसे-वैसे उसका और भी युद्ध का उत्साह बढ़ता जाता था।
राणा प्रताप कहता था कि युद्धभूमि में मानसिंह (मुगल सेना का नेतृत्व करने वाला).उसका मुकाबला नहीं कर सकते हैं। अर्थात् युद्धभूमि में राणा का मुकाबला करना मानसिंह के बस की बात नहीं है और उसके हाथों राणा का शरीर रक्त रंजित हो, यह कदापि नहीं हो सकता। राणा यह पूर्ण विश्वास के साथ कहता है कि युद्ध में विजय उसकी ही होगी, यह पूर्ण निश्चित है। उसके जीते जी मुगल सेना अभिमान प्रकट करे, यह कदापि नहीं हो सकता है।
काव्यगत सौन्दर्य-
- कवि के द्वारा राणा प्रताप के अप्रतिम शौर्य का बखान किया गया है।
- भाषा-खड़ी बोली।
- रस–वीर।
- अलंकार-अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, श्लेष।
- शैली-ओजपूर्ण।
- भावसाम्य-स्वदेश के प्रति कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ऐसी ही पंक्तियों का उद्गार किया है-
बलि होने की परवाह नहीं, मैं हूँ, कष्टों का राज्य रहे,
मैं जीता, जीता, जीता हूँ माता के हाथ स्वराज्य रहे।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
प्रश्न 1.
‘हल्दी घाटी’ कविता का सौन्दर्य कवि की ओजपूर्ण शैली में प्रस्फुटित हुआ है। कविता से उदाहरण देते हुए कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर
ओजपूर्ण शैली के निम्नलिखित उदाहरण हैं-
(क) मेवाड़-केसरी देख रहा,
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़-दौड़ करता था रण,
वह मान-रक्त का प्यासा था।।
(ख) कहता था लड़ता मान कहाँ,
मैं कर लें रक्त-स्नान कहाँ?
जिस पर तय विजय हमारी है,
वह मुगलों का अभिमान कहाँ?
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम सहित स्पष्टीकरण कीजिए-
उत्तर
(क) कट गई वेग से भू, ऐसा ।
शोणित का नाला फूट पड़ा।
(ख) घोड़ों के विकल वितुण्डों से,
पट गई भूमि नरमुण्डों से।
उत्तर
(क) अतिशयोक्ति, उपमा अलंकार
(ख) अतिशयोक्ति, अनुप्रास अलंकार
प्रश्न 3.
श्री श्यामनारायण पाण्डेय की पुस्तक में दी गई कविता वीर रस से परिपूर्ण है। वीर रस की परिभाषा देते हुए पाठ से दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
(क) वीर रस की परिभाषा–शत्रु की उन्नति, दीनों पर अत्याचार या धर्म की दुर्गति को मिटाने जैसे किसी विकट या दुष्कर कार्य को करने का जो उत्साह मन में उमड़ता है, वही वीर रस का स्थायी भाव है, जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है।
(ख) वीर रस के अव्यय-स्थायी भाव–उत्साह।
आलम्बन (विभाव)-अत्याचारी शत्रु।
उद्दीपन (विभाव)--शत्रु का अहंकार रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
अनुभाव–गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
संचार भाव-आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।
उदाहरण-
वह हाथी दले पर टूट पड़ा,
मानो उस पर पवि छूट पड़ा।
कट गई वेग से भू, ऐसा ।
शोणित का नाला फूट पड़ा।
प्रश्न 4.
कविता में आए निम्नलिखित मुहावरों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
तमाशा देखना, रक्त का प्यासा होना, हलचल मचाना।
उत्तर
मुहावरे वाक्य-प्रयोग
तमाशा देखना-हल्दी घाटी के युद्ध में मुगल सेना राणाप्रताप के रण-कौशल का तमाशा देखती रह गयी।
रक्त का प्यासा होना-राणा प्रताप शत्रु सेना पर इस भाँति टूट पड़ता था मानो वह रक्त का प्यासी हो।
हलचल मचाना–हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर जिस ओर मुड़ जाता था उसी ओर मुगल सेना में हलचल मच जाती थी।
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