UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का गठन एवं कार्य (अनुभाग – दो)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का गठन एवं कार्य (अनुभाग – दो)

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विर] उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है ? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। [2013, 14]
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् के कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2012]
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् के किन्हीं दो कार्यों को बताइए। [2010]
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् के तीन प्रमुख कार्य लिखिए। [2015, 17]
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का गठन कैसे होता है? [2017]
उत्तर :
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार, राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता एवं परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी, जिसका अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होगा।

गठन– 
लोकसभा में जिस दल को बहुमत होता है उस दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। प्रधानमन्त्री की सलाह से राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनमें विभागों का वितरण करता है। मन्त्री तीन स्तर के होते हैं-(1) कैबिनेट मन्त्री, (2) राज्य मन्त्री तथा (3) उपमन्त्री। जब लोकसभा में किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होता तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करके प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है।


मन्त्रियों की योग्यताएँ- 
प्रधानमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों के लिए संसद के किसी भी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि कोई मन्त्री सदस्य नहीं है तो उसे मन्त्री बनने के बाद 6 महीने के अन्दर किसी-न-किसी
सदन का सदस्य बन जाना चाहिए अन्यथा उसे मन्त्री-पद से त्याग-पत्र देना पड़ेगा।

मन्त्रियों द्वारा शपथ- प्रत्येक मन्त्री को अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति के समक्ष संविधान और अपने पद के प्रति पूर्ण ईमानदार तथा निष्ठावान रहने, अपने कर्तव्यों का पालन करने तथा मन्त्रिपरिषद् की सभी नीतियों एवं कार्यवाहियों को गुप्त रखने की शपथ लेनी पड़ती है। राष्ट्रपति तथा मन्त्रियों के सरकारी रजिस्टर में हस्ताक्षर के बाद केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का गठन हो जाता है।

मन्त्रिपरिषद के कार्य
संविधान द्वारा राष्ट्रपति को शासन के संचालन के लिए जो अधिकार दिये गये हैं, उनका प्रयोग मन्त्रिपरिषद् ही करती है, वही राष्ट्रपति के नाम से देश का शासन चलाती है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मन्त्रिपरिषद् मुख्यतया निम्नलिखित कार्य करती है|

    • राष्ट्रपति को सहायता एवं सलाह देना–संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् के गठन का उद्देश्य | राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता एवं परामर्श देना है।
    • राष्ट्रीय नीति का निर्धारण-मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य शासन सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करना है। मन्त्रिपरिषद् ही देश तथा विदेश के लिए नीतियों का निर्धारण करती है।
    • अपने विभाग सम्बन्धी कार्य करना-केन्द्रीय प्रशासन अनेक विभागों में बँटा हुआ है और प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग का प्रशासनिक कार्य करता है। संसद में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतया सम्बन्धित विभाग के मन्त्री ही देते हैं।
    • वित्तीय कार्य–मन्त्रिपरिषद् प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ होने से पूर्व देश का बजट तैयार कराकर संसद में प्रस्तुत करती है तथा उसे पारित कराती है। देश की आर्थिक नीति भी मन्त्रिपरिषद् ही निर्धारित करती है।
    • विधायन कार्य-प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग सम्बन्धी विधेयक तैयार कराकर संसद में पेश करता है । तथा कानून बन जाने पर उसे लागू करता है।
    • संसद में सरकार का प्रतिनिधित्व-संसद की बैठकों में मन्त्रिगण सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, सदस्यों के प्रश्नों तथा आलोचनाओं का उत्तर देते हैं और सरकार की नीति का समर्थन करते हैं।
    • संविधान में संशोधन-संविधान में संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत एवं पारित | कराये जाते हैं।
    • व्यवस्थापिका की कार्यवाही-लोकसभा तथा राज्यसभा की बैठकों की तिथि निश्चित करना, । बैठक के घण्टे तथा विधेयकों के पेश करने का क्रम निश्चित करना, प्रत्येक विधेयक पर विचार करने
      का समय निश्चित करना आदि कार्यों को मन्त्रिपरिषद् ही करती है।
    • नियुक्ति सम्बन्धी कार्य-संविधान ने राष्ट्रपति को जिन महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति का अधिकार दिया है, उन सभे पदों पर नियुक्ति राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह से ही करता है।
    • सूचना देना–मन्त्रिपरिषद् अपनी नीतियों एवं कार्यों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को नियमित रूप से सूचना देती रहती है। राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् से कोई भी प्रशासनिक जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  • जनमत तैयार करना–मन्त्रिपरिषद् के सदस्य सरकारी नीतियों के पक्ष में जनमत तैयार करने का प्रयास करते हैं जिससे जनता में सरकार की लोकप्रियता बढ़े।
  • युद्ध अथवा शान्ति सम्बन्धी घोषणाएँ–मन्त्रिपरिषद् द्वारा ही युद्ध और शान्ति सम्बन्धी घोषणाएँ की जाती हैं और यह निर्णय किया जाता है कि दूसरे देशों से किस प्रकार के सैनिक और व्यापारिक । सम्बन्ध स्थापित किये जाएँ।
  • अन्य कार्य–मन्त्रिपरिषद् अपराधियों को क्षमा करने के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को सलाह देती है। मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही राष्ट्रपति भारतरत्न, पद्मभूषण, पद्मश्री आदि उपाधियाँ प्रदान करता है।
    निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मन्टिअरिषद् के कार्य एवं शक्तियाँ बहुत अधिक व्यापक होती हैं। देश की समस्त राजनीतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर उसका अधिकार होता है।

प्रश्न 2.
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है ? उसके अधिकारों एवं कार्यों (कर्तव्यों) का वर्णन | कीजिए। [2010, 14]
           या
प्रधानमन्त्री के किन्हीं दो कार्यों एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2012]
           या
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है? भारतीय शासन में प्रधानमन्त्री की स्थिति की व्याख्या कीजिए। [2014, 18]
उत्तर :

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति

प्रधानमन्त्री केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का मुखिया होता है । संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, “प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। किन्तु व्यवहार में राष्ट्रपति उस राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है, जिसका लोकसभा में बहुमत होता है। यदि लोकसभा में एक दल का बहुमत न होने पर दो या अधिक दल परस्पर अपना गठबन्धन बनाकर नेता चुन लेते हैं तो राष्ट्रपति ऐसे गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। यदि लोकसभा में किसी भी दल या दलों के गठबन्धन को बहुमत प्राप्त नहीं होता तो राष्ट्रपति स्वविवेक से किसी भी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है। जुलाई, 1979 ई० में चौ० चरण सिंह की प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक के प्रयोग का एक ज्वलन्त उदाहरण है।

प्रधानमन्त्री के कार्य (शक्तियाँ) तथा महत्त्व

प्रधानमन्त्री के निम्नलिखित कार्यों से उसकी शक्तियों तथा महत्त्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है

1. मन्त्रिपरिषद्को निर्माता- 
राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री को नियुक्त करता है तथा उसके बाद प्रधानमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों तथा उनके विभागों का वितरण करता है। प्रधानमन्त्री किसी भी मन्त्री के विभाग में फेर-बदल कर सकता है।


2. मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष– 
प्रधानमन्त्री केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष तथा नेता होता है। वह मन्त्रिपरिषद् की बैठकों में अध्यक्षता करता है तथा उसकी कार्यवाही का संचालन भी करता है। मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं। मन्त्रिपरिषद् यदि देश की नौका है तो प्रधानमन्त्री उसका नाविक। यदि किसी मन्त्री की राय प्रधानमन्त्री से नहीं मिलती है तो प्रधानमन्त्री ऐसे मन्त्री को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य कर सकता है अथवा उसे राष्ट्रपति द्वारा मन्त्रिपरिषद् से हटवा सकता है।

3. कार्यपालिका का प्रधान- 
राष्ट्रपति देश की कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री में निहित होती है। अत: अप्रत्यक्ष रूप से देश का मुख्य शासक प्रधानमन्त्री होता है।

4. शासन का प्रमुख प्रबन्धक- 
देश की शासन-व्यवस्था को विभिन्न विभागों तथा मन्त्रालयों में बाँटना, मन्त्रियों में विभागों का वितरण करना, मन्त्रालयों की नीतियाँ तय करना तथा उनमें समय-समय पर अपेक्षित परिवर्तन करना आदि कार्य प्रधानमन्त्री की इच्छा तथा निर्देश पर निर्भर होते हैं। इस प्रकार प्रधानमन्त्री ही देश के शासन का प्रमुख प्रबन्धक होता है।

5. लोकसभा का नेता- 
लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के कारण वह लोकसभा काअधिवेशन बुलाने, कार्यक्रम निश्चित करने तथा सत्र स्थगित करने का निर्णय लेती है। वह लोकसभा में अपने मन्त्रिमण्डल का नेतृत्व करता है तथा शासन सम्बन्धी नीतियों की घोषणा करता है। वह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का भी परामर्श दे सकता है।

6. राष्ट्रपति एवं मन्त्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति एवं संसद के बीच की कड़ी– 
प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति और मन्त्रिपरिषद् के बीच की कड़ी का कार्य करता है। वह मन्त्रिमण्डल की नीतियों, निर्णयों आदि की। जानकारी राष्ट्रपति को देता है तथा राष्ट्रपति के निर्णयों से वह मन्त्रियों को अवगत कराता है। इसी प्रकार प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति तथा संसद के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह राष्ट्रपति को संसद की कार्यवाही से अवगत कराता है तथा राष्ट्रपति के सुझावों को संसद तक पहुँचाता है।

7. नियुक्तियाँ सम्बन्धी अधिकार- 
राष्ट्रपति के द्वारा मन्त्रियों, राज्यपालों, न्यायाधीशों, राजदूतों, विभिन्न आयोगों, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य इत्यादि की जितनी भी नियुक्तियाँ की जाती
हैं, वे सभी प्रधानमन्त्री के परामर्श पर की जाती हैं।

8. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व– 
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारतीय प्रधानमन्त्री का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चाहे विदेश विभाग प्रधानमन्त्री के हाथ में हो या नहीं, फिर भी अन्तिम रूप से | विदेश नीति का निर्णय प्रधानमन्त्री ही करता है। भारत की पुट-निरपेक्षता की विदेश नीति भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू जी की ही देन है।

9. शासन का प्रमुख प्रवक्ता– 
देश तथा विदेश में प्रधानमन्त्री ही शासन की नीति को प्रमुख तथा अधिकृत प्रवक्ता होता है। यदि कभी संसद में किन्हीं दो मन्त्रियों के आपसी विरोधी वक्तव्यों के कारण भ्रम और विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो प्रधानमन्त्री का वक्तव्य ही इस स्थिति को समाप्त कर सकता है।

10. देश का सर्वोच्च नेता तथा शासक- 
प्रधानमन्त्री देश का सर्वोच्च नेता तथा शासक होता है। देश का समस्त शासन उसी की इच्छानुसार संचालित होता है। यह व्यवस्थापिका से अपनी इच्छानुसार कानून
बनवा सकता है और संविधान में आवश्यक संशोधन भी करवा सकता है।

11. आम चुनाव प्रधानमन्त्री के नाम पर-
देश के आम चुनाव (सामान्य निर्वाचन) प्रधानमन्त्री के नाम पर ही कराये जाते हैं। आम चुनाव प्रधानमन्त्री का ही चुनाव होता है। इस प्रकार आम चुनाव | स्वाभाविक रूप से प्रधानमन्त्री की प्रतिष्ठा व शक्ति में बहुत वृद्धि कर देते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रधानमन्त्री राष्ट्र का नेता होता है; क्योंकि देश के शासन की सम्पूर्ण बागडोर उसके हाथ में होती है। व्यावहारिक दृष्टि से देश का समस्त शासन उसी की इच्छानुसार संचालित होता है।

प्रश्न 3.
भारतीय प्रधानमन्त्री के राष्ट्रपति और संसद से सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् तथा लोकसभा के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
संसदीय शासन-प्रणाली के अन्तर्गत मन्त्रिपरिषद् ही व्यावहारिक रूप से कार्यपालिका की प्रधान होती है; क्योकि प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का प्रमुख होता है; अत: प्रधानमन्त्री का पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण, भारत के प्रधानमन्त्री का पद भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भारत के राष्ट्रपति की स्थिति ग्रेट ब्रिटेन के राजा अथवा रानी के समान है। वह एक वैधानिक प्रधान- मात्र है।

डॉ० अम्बेडकर के अनुसार, “वह राष्ट्र का प्रमुख है, कार्यपालिका का प्रमुख नहीं।” राष्ट्रपति अपने में निहित सभी शक्तियों का प्रयोग, मन्त्रिपरिषद् के परामर्श के उपरान्त ही करता है। भारतीय व्यवस्था में संसद का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संसद ही सम्पूर्ण व्यवस्था के नियमन के लिए उत्तरदायी होती है। परन्तु भारत में संसद पूर्ण रूप से अप्रतिबन्धित नहीं है। इसका प्रमुख कारण प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल का संसद पर दबाव बना रहना है।

प्रधानमन्त्री एवं राष्ट्रपति का सम्बन्ध– भारत में कार्यपालिका का अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है। सैद्धान्तिक दृष्टि से प्रधानमन्त्री की मन्त्रिपरिषद् का गठन उसको परामर्श देने के लिए किया जाता है; किन्तु वास्तविक स्थिति इसके विपरीत है। मन्त्रिपरिषद् के निर्णय एवं परामर्श राष्ट्रपति को मानने पड़ते हैं। यद्यपि राष्ट्रपति इनके सम्बन्ध में अपनी व्यक्तिगत असहमति प्रकट कर सकता है; किन्तु वह मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों को मानने के लिए अन्ततः बाध्य होता है। भारतीय संविधान में किये गये 42वें तथा 44वें संशोधन के पूर्व राष्ट्रपति अपनी मन्त्रिपरिषद् की राय मानने के लिए कानूनी दृष्टिकोण से बाध्य था। इन संशोधनों के उपरान्त व्यवस्था यह कर दी गयी है कि राष्ट्रपति को अपनी मन्त्रिपरिषद् की राय मानने के लिए विवश कर दिया गया है। वह केवल मन्त्रिमण्डल से पुनर्विचार के लिए आग्रह ही कर सकता है, किन्तु फिर भी वह मन्त्रिपरिषद् की नीतियों को प्रभावित कर सकता है, यह उसके व्यक्तित्व पर निर्भर है। मन्त्रिपरिषद् में लिये गये समस्त निर्णयों से राष्ट्रपति को अवगत कराया जाता है तथा राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल से किसी भी प्रकार की सूचना माँग सकता है। प्रधानमन्त्री की सलाह पर वह अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनको शपथ-ग्रहण कराता है। प्रधानमन्त्री के परामर्श पर वह किसी भी मन्त्री को पदच्युत कर सकता है।

प्रधानमन्त्री और संसद का सम्बन्ध– प्रधानमन्त्री और संसद के घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा (संसद का प्रथम सदन) के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद प्रश्न, पूरक प्रश्न, निन्दा प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव आदि के द्वारा प्रधानमन्त्री एवं उसके मन्त्रिमण्डल पर नियन्त्रण रखती है। संविधान द्वारा भारत में संसदात्मक शासन-व्यवस्था अपनायी गयी है और संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका परस्पर सम्बन्धित होती हैं तथा कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। उत्तरदायित्व का अर्थ है कि प्रधानमन्त्री और उसकी मन्त्रिपरिषद् संसद (लोकसभा) के. अधीन है। वह उसकी इच्छानुसार ही कार्य करता है और उस समय तक ही अपने पद पर बना रह सकता है। जब तक कि उसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त हो।

व्यावहारिक दृष्टि से संसद प्रधानमन्त्री और उसकी मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण नहीं रखती, क्योंकि प्रधानमन्त्री बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है और उसके पीछे संसद का बहुमत साधारणतया सदैव रहता है। संसद पर प्रधानमन्त्री के नियन्त्रण का एक महत्त्वपूर्ण साधन प्रधानमन्त्री के हाथ में लोकसभा को भंग करने की संस्तुति का अधिकार है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श पर लोकसभा को भंग कर पुनः चुनाव करा सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व का क्या अर्थ है ? [2012]
           या
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् किस प्रकार संसद के प्रति उत्तरदायी है ? [2013]
           या
मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से किसके प्रति उत्तरदायी होती है? [2014]
           या
मन्त्रियों के सामूहिक उत्तरदायित्व’ का क्या अर्थ है ? मन्त्रिपरिषद् किसके प्रति उत्तरदायी है ? [2013]
उत्तर :
भारत में संसदात्मक शासन-प्रणाली की व्यवस्था की गयी है और संसदात्मक शासन-प्रणाली में मन्त्रिपरिषद् को सामूहिक उत्तरदायित्व रहता है। सामूहिक उत्तरदायित्व से मतलब है कि मन्त्रिपरिषद् के सदस्य सभी मन्त्री अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति व्यक्तिगत रूप से तो उत्तरदायी होते ही हैं, सामूहिक रूप से भी प्रशासनिक नीति और समस्त प्रशासनिक कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् एक इकाई के रूप में कार्य करती है, जिससे सभी मन्त्री एक-दूसरे के निर्णय और कार्य के लिए उत्तरदायी होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि मन्त्रिमण्डल की सफलता या असफलता का भार एक मन्त्री पर नहीं पड़ता, वरन् सभी मन्त्रियों पर पड़ता है अर्थात् वे एक साथ तैरते हैं। और एक साथ ही डूबते हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद पर संसद किस प्रकार नियन्त्रण रखती है ?
           या
संसद मन्त्रिपरिषद् पर कैसे नियन्त्रण रखती है ? इसके द्वारा अपनाये जाने वाले किन्हीं तीन तरीकों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर : केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् संसद के प्रति उत्तरदायी है; अत: संसद उस पर अग्रलिखित प्रकार से नियन्त्रण रखती है।

1. संसद-सदस्य मन्त्रिपरिषद् के कार्यों एवं नीतियों की आलोचना करते हैं।
2. मन्त्रिपरिषद् द्वारा पेश किये गये वित्तीय विधेयकों पर संसद की पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
3. मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति भी उत्तरदायी होती है, क्योंकि संसद में अविश्वास पारित होने पर । मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
4. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, प्रश्नों तथा पूरक प्रश्नों द्वारा संसद मन्त्रिपरिषद् पर पूर्णत: नियन्त्रण रखती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम प्रधानमंन्त्री का नाम बताइए। [2009, 11]
उत्तर :
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री-पं० जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 2.
मन्त्रियों की कितनी श्रेणियाँ होती हैं ?
उत्तर :
मन्त्रियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं।

प्रश्न 3.
कौन-से संविधान संशोधन द्वारा मन्त्रिपरिषद् में सदस्यों की संख्या सीमित कर दी गयी है?
उत्तर :
91वें संविधान संशोधन (2003) द्वारा मन्त्रिपरिषद् में सदस्यों की संख्या सीमित कर दी गयी है।

प्रश्न 4.
संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य क्या है ?
उतर :
संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य देश तथा विदेश के लिए शासन सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करना है तथा राष्ट्रपति को परामर्श देना है।

प्रश्न 5.
भारत में कुल कितने राज्य हैं ? हाल में ही नये बनाए गए राज्य की राजधानी का नाम लिखिए। (2015)
उत्तर :
भारत में कुल 29 राज्य हैं। हाल में ही नये बनाए गए राज्य की राजधानी हैदराबाद है।

प्रश्न 6.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में अधिक-से-अधिक कितने मंत्री हो सकते हैं ? उनकी नियुक्ति कौन करता है ? (2015)
उत्तर :
सरकार में जितने भी प्रकार के मन्त्री बनाये जाते हैं वे संयुक्त रूप से मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करते हैं जिनका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मन्त्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं-मन्त्रिमण्डल अथवा कैबिनेट स्तर के मन्त्री, राज्य मन्त्री तथा उपमन्त्री।

मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के अधिकतम 15% तक हो सकती है। इनकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है

(क) राष्ट्रपति
(ख) लोकसभा अध्यक्ष
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) जनता

2. मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से किसके प्रति उत्तरदायी होती है? (2014]

(क) लोकसभा के प्रति
(ख) प्रधानमन्त्री के प्रति
(ग) उपराष्ट्रपति के प्रति
(घ) इनमें से कोई नहीं

3. मन्त्रिपरिषद्का अध्यक्ष कौन होता है?

(क) राष्ट्रपति
(ख) उपराष्ट्रपति
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) लोकसभा अध्यक्ष

4. यदि मन्त्रिपरिषद् की कोई सदस्य संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, तो वह . अधिकतम कितने दिनों तक मन्त्री रह सकता है?

(क) 2 माह
(ख) 6 माह
(ग) 10 माह
(घ) एक वर्ष

5. दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमन्त्री कौन थे ? (2014)

(क) लाल बहादुर शास्त्री
(ख) मोरारजी देसाई
(ग) चरण सिंह
(घ) गुलजारी लाल नन्दा

6. भारत का प्रधानमन्त्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? (2017)

(क) राष्ट्रपति के प्रति ।
(ख) राज्यसभा के प्रति
(ग) लोकसभा के प्रति
(घ) सर्वोच्च न्यायालय के प्रति

उत्तरमाला
1.
(क), 2. (क), 3. (ग), 4. (ख), 5. (ग)

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