UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 अशोक वाजपेयी (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 अशोक वाजपेयी (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 अशोक वाजपेयी (काव्य-खण्ड)

कवि-परिचय

प्रश्न 1.
कवि अशोक वाजपेयी का जीवन-परिचय लिखिए और उनकी काव्य-कृतियों (रचनाओं) के नाम लिखिए। [2012, 15, 18]
उत्तर
अशोक वाजपेयी केवल कवि ही नहीं चिन्तक और आलोचक भी हैं। इनका काव्य-सम्बन्धी चिन्तन आधुनिक जीवन-बोध से जुड़े हुए समर्थ बौद्धिक और संवेदनशील व्यक्ति की सोच का ही परिणाम है। कविता के विषय में लिखी गयी इनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं

“कविता सच या किसी महान् अनुभव की तलाश है या नहीं, मैं नहीं जानता। पर इतना तय है कि कवि कविता के माध्यम से, भाषा के संयोजन से अपनी जगह की तलाश करता है। उसे अस्तित्व, मानवीय स्थिति, नियति, उपस्थिति और अनुपस्थिति नश्वरता के प्रश्नों से उलझाती है। इस उलझाव के बिना कोई सार्थक तलाश मुमकिन नहीं। जो कविता इन प्रश्नों से अपने को अलग रखती है, उसे अपनी जगह न समझ में आ सकती है और न ही अन्ततः मिल सकती है।”

जीवन-परिचय-श्री अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी, सन् 1941 ई० को तत्कालीन मध्य प्रदेश के दुर्ग नामक स्थान पर हुआ था। इनका परिवार निम्न-मध्यमवर्गीय एवं संस्कारी था। इन्होंने सागर विश्वविद्यालय से बी० ए० तथा सेण्ट स्टीफेन्स कॉलेज, नयी दिल्ली से अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। सन् 1965 ई० में नयी दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज के अंग्रेजी विभाग से अध्यापन-कार्य छोड़कर ये भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए और प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में कार्य किया। प्रशासनिक सेवा में आने के पूर्व से ही ये कवि रूप में चर्चित रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार के महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इनके द्वारा प्रकल्पित और स्थापित संस्थानों, आयोजनों, प्रकाशनों और विमर्शो की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। ये ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ विश्वविद्यालय तथा ‘बिरला फाउण्डेशन से भी सम्बद्ध रह चुके हैं। भोपाल में इन्होंने एक बहु-आयामी कलाकेन्द्र ‘भारत भवन’ की स्थापना की। वर्धा स्थित महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के ये प्रथम कुलपति रहे।

विख्यात हिन्दी कवि, आलोचक और सम्पादक अशोक वाजपेयी को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘दयावती कवि-शेखर सम्मान’ और ‘कबीर सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। एक विद्वान के रूप में इन्होंने यूरोप के विभिन्न सम्मेलनों में भाग लिया है और भाषण भी दिये हैं। इन्हें पोलैण्ड के राष्ट्रपति द्वारा “द ऑफिसर्स क्रॉस ऑफ मेरिट ऑफ द रिपब्लिक ऑफ पोलैण्ड’ तथा फ्रान्सीसी सरकार द्वारा “ऑफिसर डी० एल० ऑर्डर डेस आर्ट्स एट डेस लेटर्स’ पुरस्कारों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।

वर्तमान में ये ‘ललित कला अकादमी’ के अध्यक्ष हैं और नयी दिल्ली में ही निवास कर सतत साहित्य-साधना में संलग्न हैं। |

रचनाएँ–श्री अशोक वाजपेयी की 15 कविता-पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें प्रमुख हैं‘शहर अब भी सम्भावना है’, ‘एक पतंग अनंत’, ‘अगर इतने से’, ‘तत्पुरुष’, कहीं नहीं वहीं’, ‘बहुरि अकेला’, ‘इबारत से गिरी मात्राएँ’, ‘आविन्यो’, ‘अभी कुछ और’, ‘समय के पास समय’, ‘उम्मीद का दूसरा नाम’, ‘तिनका तिनका’, ‘थोड़ी-सी जगह’, ‘घास में दुबका आकाश’, ‘पुनरपि’ तथा ‘विवक्षा’। साहित्य और आलोचना से सम्बन्धित इनकी सात कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं, जिनमें प्रमुख हैं-‘फिलहाल’, ‘कुछ पूर्वाग्रह’, ‘समय से बाहर’, ‘कविता का गल्प’ और ‘सिद्धियाँ शुरू हो गयी हैं। इनकी कला से सम्बन्धित तीन पुस्तकें अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुई हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद बाँग्ला, मराठी, गुजराती, उर्दू, राजस्थानी, अंग्रेजी, पोलिश और फ्रेंच भाषाओं में हो चुके हैं। ये ‘समवेत’, ‘पहचान’, ‘कविता एशिया’, ‘बहुवचन’, ‘समास’, ‘पूर्वाग्रह’ आदि पत्रिकाओं के सलाहकार व सम्पादक रह चुके हैं तथा अभी भी कुछ पत्रिकाओं का सम्पादन कर रहे हैं।

साहित्य में स्थान-अशोक वाजपेयी ने अपने समय की सच्चाई को मूर्त रूप प्रदान कर कविता के क्षेत्र में अपना नाम दर्ज कराया है, जो कि वास्तव में एक कठिन कार्य है और इतनी प्रतिभा विरलों में ही होती है। आधुनिक हिन्दी-साहित्य में इनका स्थान इनके कर्तृत्व के कारण सदा याद किया जाएगा।

पुद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

युवा जंगल
प्रश्न 1.
एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी उँगलियों से बुलाता है।
मेरी शिराओं में हरा रक्त बहने लगा है।
आँखों में हरी परछाइयाँ फिसलती हैं ।
कन्धों पर एक हरा आकाश ठहरा है।
होठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं— [2013] |
मैं नहीं हूँ और कुछ
बस एक हरा पेड़ हूँ
—हरी पत्तियों की एक दीप्त रचना!
उत्तर
[ युवा = जवान। शिराओं = नसों। दीप्त = प्रज्वलित, प्रभासित।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘युवा जंगल’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के रचयिता श्री अशोक वाजपेयी जी हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हरियाली और वृक्षों के महत्त्व का वर्णन कर रही है।

व्याख्या-कवि कहता है कि वृक्षों के निरन्तर कटाव को देखकर उसका हृदयं अत्यधिक दुःखी होता है, क्योंकि वह चतुर्दिक हरियाली ही निहारना चाहता है। हरियाली और वृक्षों को उसके जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। एक दिन एक युवा अर्थात् नवीन जंगल की ओर उसकी दृष्टि जाती है तो वह उसे देखकर अत्यधिक प्रसन्न हो जाता है। वह युवा जंगल से स्वयं को आत्मसात-सा कर लेता है। जब युवा जंगल अपनत्व की भावना से छोटी-छोटी शाखाओं रूपी हरी-हरी अँगुलियों से उसे बुलाता है तो धीरे-धीरे उसकी रगों में भी लाल रक्त के स्थान पर हरा रक्त प्रवाहित होता प्रतीत होता है। आशय यह है कि कवि उस समय स्वयं को एक पौधे के रूप में स्वीकार कर रहा था। कवि की आँखों के सामने जो परछाइयाँ आतीजाती दीखती हैं, वह भी उसे हरी ही दिखाई पड़ती हैं। धीरे-धीरे उसे ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उसने अपने कन्धों पर हरे रंग का एक आकाश ही उठा रखा है। उसके होंठ हरियाली को निहारकर बरबस हरियाली के गान गाने के लिए बुदबुदाने लगते हैं और अकस्मात् उसके मुख से निकल पड़ता है कि वह एक हरे पेड़ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। वह हरी पत्तियों से युक्त ईश्वर की एक प्रभासित रचना है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. स्वयं को वृक्षों के रूप में कल्पित करना अभूतपूर्व है।
  2. भाषा-बोलचाल की खड़ी बोली।
  3. शैली–प्रतीकात्मक़।
  4. रस-शान्त।
  5. छन्द-अतुकान्त और मुक्त।
  6. अलंकार-मानवीकरण।
  7. शब्द-शक्ति-अभिधा और लक्षणा।
  8.  गुण-माधुर्य।।

प्रश्न 2.
ओ जंगल युवा,
बुलाते हो।
आता हूँ।
एक हरे वसन्त में डूबा हुआ
आऽताऽ हूँ …।
सन्दर्भ-पूर्ववत्।।
उत्तर
प्रसंग-युवा जंगल के बुलाने पर कवि सहर्ष उसके आह्वान को स्वीकार करता हुआ अपने मन के विचारों को स्पष्ट कर रहा है।

व्याख्या-कवि युवा जंगल को सम्बोधित करता हुआ कह रहा है कि यदि तुम मुझे बुला रहे हो तो मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ। मैं स्वयं को हरियाली से युक्त वसन्त में पूर्णरूपेण ओत-प्रोत करके आता हूँ। आशय यह है कि कवि उस समय अपने को भी एक वृक्ष के रूप में ही कल्पित कर रहा है। जब हम किसी के साथ; चाहे वह जड़ हो या चेतन; स्वयं को आत्मसात् करके देखते हैं तो उसके सुख-दु:ख हमें अपने ही सुख-दु:ख प्रतीत होते हैं। जब हमारा दृष्टिकोण विस्तृत होता है तो हम स्वयं में सारी प्रकृति को और सारी प्रकृति में स्वयं को समाहित देखते हैं; अर्थात् भिन्नता जैसी कोई वस्तु होती ही नहीं और यदि होती भी है तो वह स्वार्थ ही है। स्वार्थी व्यक्ति को प्रकृति में सभी भिन्न दिखाई देते हैं।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रकृति के साथ एकात्मभाव की कल्पना अद्भुत है।
  2. भाषा-बोलचाल की खड़ी बोली
  3. शैली–प्रतीकात्मक।
  4. छन्द-अतुकान्त और मुक्त।
  5. अलंकारमानवीकरण।
  6. गुण–प्रसाद।

भाषा एकमात्र अनन्त है।
प्रश्न 1.
फूल झरता है।
फूल शब्द नहीं!
बच्चा गेंद उछालता है,
सदियों के पार
लोकती है उसे एक बच्ची!
उत्तर
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित भाषा . . एकमात्र अनन्त है’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के रचयिता श्री अशोक वाजपेयी जी हैं। यह कविता उनके ‘तिनका-तिनका’ नामक काव्य-संग्रह से ली गयी है।

प्रसंग-प्रस्तुत कविता-पंक्तियों में कवि भाषा की विशेषता का वर्णन कर रहा है। उसका कहना है। कि सब कुछ समाप्त हो सकता है, लेकिन भाषा का अस्तित्व सदैवं विद्यमान रहेगा।

व्याख्या-कवि का कहना है कि भाषा ही एकमात्र अनन्त है; अर्थात् जिसका अन्त नहीं है। फूल वृक्ष से टूटकर पृथ्वी पर गिरते हैं, उसकी पंखुड़ियाँ टूटकर बिखर जाती हैं और अन्तत: फूल मिट्टी में ही विलीन हो जाता है। वह प्रकृति से जन्मा है और अन्त में प्रकृति में ही लीन हो जाता है। फूल की तरह शब्द विलीन नहीं होते। भाषा जो शब्दों से बनती है, वह कभी समाप्त नहीं होती। सदियों के पश्चात् भी भाषा का अस्तित्व बना रहता है। यह दूसरी बात है कि विशद समयान्तराल में भाषा के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य हो जाता है, लेकिन वह समाप्त नहीं होती। यह उसी प्रकार है जैसे एक बालक गेंद को उछालता है और दूसरा उसे पकड़कर पुन: उछाल देता है। आज किसी ने कोई बात कही, सैकड़ों वर्षों बाद परिवर्तित स्वरूप में कोई दूसरा व्यक्ति भी उसी बात को कह देता है। अत: निश्चित है कि भाषा ही एकमात्र अनन्त है, जिसका कोई अन्त नहीं है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. भाषा की विशिष्टता का वर्णन है कि भाषा अनन्त है।
  2. सदियों पूर्व की घटनाओं को हमारे समक्ष उपस्थित करने का एकमात्र साधन भाषा है।
  3. भाषा को अनन्त कहकर उसे ईश्वर के समतुल्य सिद्ध किया गया है।
  4. भाषा-देशज शब्दों से युक्त सहज और सरल खड़ी बोली।
  5. शैली-वर्णनात्मक और विवेचनात्मक।
  6. छन्द–अतुकान्त और मुक्त।
  7. शब्दशक्ति- अभिधा और लक्षणा।
  8. गुण–प्रसाद।

प्रश्न 2.
बूढ़ा गाता है एक पद्य,
दुहराता है दूसरा बूढ़ा,
भूगोल और इतिहास से परे
किसी दालान में बैठा हुआ!
न बच्चा रहेगा,
ने बूढा,
न गेंद, न फूल, न दालान
रहेंगे फिर भी शब्द
भाषा एकमात्र अनन्त है।
उत्तर
सन्दर्भ--पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश में कवि कहता है कि सब कुछ समाप्त होने के उपरान्त भी भाषा की विद्यमानता रहेगी; क्योंकि भाषा अनन्त है।

व्याख्या–कवि कहता है कि हमें प्राचीन काल से सम्बन्धित ज्ञान इतिहास और भूगोल जैसे विषयों की सहायता से प्राप्त हो जाता है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब इतिहास और भूगोल भी नहीं लिखे गये थे, भाषा का अस्तित्व उस समय भी था। उस समय भी कोई एक वृद्ध व्यक्ति जब कोई पद गुनगुनाता था तो घर के ही किसी अन्य भाग में बैठा हुआ कोई अन्य वृद्ध उसी पद को या अन्य किसी पद को गुनगुना उठता था और इसी माध्यम से भाषा आज तक चलती चली आ रही है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि भाषा की विद्यमानता किसी-न-किसी रूप में सदैव रही है।

पुनः कवि कहता है न बच्चा रहेगा, न वृद्ध; क्योंकि बच्चा एक समयान्तराल पर वृद्ध हो जाएगा और वृद्ध जीवन छोड़ चुका होगा। न गेंद रहेगा, न ही फूल और न ही दालान; क्योंकि ये सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। एक-न-एक दिन सभी को समाप्त हो ही जाना है। लेकिन इन सबके समाप्त हो जाने के बाद भी शब्द बने। रहेंगे; क्योंकि वह भाषा का ही एक भाग है और भाषा ही एकमात्र अनन्त है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. कवि ने भूगोल और इतिहास से पहले भाषा की सत्ता को स्वीकार किया है।
  2. भाषा–सरल और सहज शब्दों से युक्त।
  3. शैली—विवेचनात्मक।
  4. छन्द-अतुकान्त और मुक्त।
  5. शब्दशक्ति–अभिधा, लक्षण और व्यंजना।
  6. भावसाम्य-भाषा का एक अंश होने के कारण शब्द भी अनन्त है; क्योंकि अनन्त का अंश भी अनन्त ही होता है। भारतीय उपनिषद् ग्रन्थ भी इसकी स्वीकारोक्ति करते हैं

ॐ पूर्णः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते ॥

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए-
(क) एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी उँगलियों से बुलाता है। |
(ख) कन्धों पर एक हरा आकाश ठहरा है,
होठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं।
(ग) ने गेंद, न फूल, न दालान
रहेंगे फिर भी शब्द
उत्तर
(क) मानवीकरण,
(ख) मानवीकरण तथा
(ग) अनुप्रास।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के चार-चार पर्यायवाची शब्द लिखिए-
आकाश, आँख, पेड़, फूल, जंगल।
उत्तर
आकाश–अन्तरिक्ष, अम्बर, व्योम, नभ आदि।
आँख-दृग, लोचन, चक्षु, अक्षि आदि।
पेड़-रूख, विटप, द्रुमं, पादप आदि।
फूल-पुष्प, कुसुम, सुमन, पुहुप आदि।
जंगल-विपिन, कानन, अरण्य, वन आदि।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 अशोक वाजपेयी (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 अशोक वाजपेयी (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *